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अभी लंबा सफर बाकी

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक साल बाद भी एलजीबीटी समुदाय की स्वीकार्यता नहीं
एलजीबीटी अधिकारों की जंग

कल्पना कीजिए, आप अंधेरे कमरे में बंद हैं। लंबे अरसे बाद कमरा खुलता है और रोशनी आती है। आसपास का माहौल देखकर आप चकित रह जाते हैं। आपकी समझ में नहीं आता कि क्या करें। पिछले साल छह सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद मैं बिलकुल इसी तरह महसूस करता हूं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एलजीबीटी लोग दूसरे नागरिकों को मिलने वाले सभी अधिकारों के हकदार हैं। इस यात्रा का शुरू से हिस्सा होने के नाते मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह दिन भी आएगा, जब हमें अपराधी की तरह नहीं देखा जाएगा, सार्वजनिक जगहों पर परेशान नहीं किया जाएगा, समलैंगिक कहकर दुत्कारा नहीं जाएगा, नौकरी से निकाला नहीं जाएगा या पदोन्नति में नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। अचानक हमें लगा कि बाहर भी एक दुनिया है जिसके अस्तित्व के बारे में हम जानते नहीं थे। वास्तव में हमें नहीं पता कि इस आजादी का क्या करें।

इस फैसले ने हमें आजादी जरूर दी है, लेकिन अभी तो आजादी की यात्रा शुरू हुई है। अभी अनेक मुद्दे सुलझने बाकी हैं। जैसे, कौन सा टॉयलेट इस्तेमाल करना है, पहचान पत्र कैसे हासिल करें, क्लास में लड़कों के साथ बैठें या फिर लड़कियों की लाइन में, वयस्क होने पर क्या हम अपने साथी के साथ शादी कर सकते हैं, क्या हम बच्चे गोद ले सकते हैं या फिर सरोगेसी से अपने बच्चे पा सकते हैं, या फिर बैंक खाते में अपने साथी को नॉमिनी बना सकते हैं?

मैं एक लेस्बियन जोड़े को जानता हूं। उनका फ्लैट ज्यादा उम्र वाले पार्टनर के नाम पर था। 2017 में उसकी मृत्यु हो गई। मृत महिला के भाई ने फ्लैट पर दावा कर दिया क्योंकि कम उम्र वाली महिला के साथ मृत महिला के संबंधों को मान्यता नहीं मिली थी। समाज ने 20 साल पुराने रिश्ते को स्वीकार नहीं किया। एक अन्य मामला मुस्लिम बिजनेसमैन और उसके युवा हिंदू साथी का था। उनके रिश्ते को समाज ने नहीं माना तो मुस्लिम ने अपने हिंदू प्रेमी को गोद लेने का फैसला किया। तब उसे पता चला कि सुन्नी कानून में इसकी इजाजत नहीं है। उसने अपनी वसीयत पंजीकृत कराने की कोशिश की तो मुस्लिम पार्टनर के परिजनों ने कहा कि वे उसे घर से निकाल देंगे। वह घर का सह-स्वामी था। हिंदू पार्टनर को अपने मुस्लिम प्रेमी के साथ 15 साल तक उस घर में रहने के बावजूद दावा करने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी।

ट्रांसजेंडर लोगों के मामलों में सबसे बड़ी समस्या पहचान पत्र की है। बड़ी संख्या में ये लोग हिंसा और हिकारत से बचने के लिए अपना परिवार छोड़कर हिजड़ों के पास पहुंच जाते हैं। ‘हमसफर’ ट्रस्ट की तरफ से आयोजित आधार कैंप में बड़ी संख्या में लेस्बियन और ट्रांसजेंडर सामान्य पहचान पत्र बनाने के लिए आते हैं, ताकि वे बैंक में खाता खुलवा सकें या बाइक खरीद सकें। लेस्बियन की इच्छा विवाह करने की होती है, लेकिन इसकी रस्म कौन कराएगा? कोई पंडित, मौलवी या पादरी शादी की रस्म पूरी नहीं करवाएगा। स्पेशल मैरिज एक्ट में भी कहा गया है कि विवाह पुरुष और महिला के बीच होता है। एलजीबीटी समुदाय को अपने सांसदों के जरिए लॉबिंग करनी होगी ताकि फ्रांस की तरह “कॉमन लॉ यूनियन मैरिज” को मान्यता मिले। जोड़े के तौर पर मान्यता के लिए विवाह पहला कदम होगा। इससे उन्हें अपने पार्टनर को नामित करने, संयुक्त रूप से प्रॉपर्टी खरीदने, ज्वाइंट एकाउंट खुलवाने और कम प्रीमियम वाली फैमिली इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने की अनुमति मिलेगी।

अगला कदम परिवारों को मान्यता दिलाने के लिए प्रयास करना होगा। मैं एक ऐसे लेस्बियन जोड़े को जानता हूं जिसे इस वजह से परेशान किया गया क्योंकि उसने अपनी नौकरानी के बच्चे को गोद लिया था। जब वे स्कूल गए तो प्रिंसिपल ने कहा कि पेरेंट-टीचर मीटिंग के लिए बच्चे के पिता को लेकर आएं। पेरेंट-टीचर मीटिंग भी उनके लिए प्रताड़ना का सबब बन जाती है क्योंकि हर माता-पिता पूछते हैं कि बच्चे का बाप कहां है? इससे भी गंभीर समस्या है कि सरकार ने गे और लेस्बियन माता-पिता के लिए सरोगेसी पर रोक लगा दी है। बॉलीवुड की दो मशहूर हस्तियों ने सरोगेसी से बच्चे हासिल किए, लेकिन उनके बच्चों को विदेशी श्वेत महिला ने जन्म दिया। यह तथ्य हताश करने वाला है कि अमीर लोग कानून का मखौल उड़ाते हैं। कानून के नाम पर देश में एलजीबीटी कम्युनिटी के सिर्फ गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को परेशान किया जाता है।

महाराष्ट्र में ही दो लाख से ज्यादा बच्चे अनाथ हैं या सड़कों पर रहने को बाध्य हैं। एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग गोद लेकर उन्हें आशियाना क्यों नहीं दे सकते? इस समुदाय के अनेक लोग अनाथालयों में उन्हें खाना और मदद देने जाते हैं। लेकिन इन बच्चों को अपने घर लाना बहुत कठिन है क्योंकि उन पर अपहरण का केस बन सकता है, या उनके खिलाफ बच्चों के यौन उत्पीड़न का झूठा मामला बन सकता है।

बीमा के फॉर्म में समलैंगिक जीवनसाथी का नामांकन भी कठिन है। अगर आपके साथ कोई अनहोनी हो जाती है तो इसकी कोई गारंटी नहीं कि आपके जीवनसाथी को बीमा राशि मिल ही जाएगी, क्योंकि आपका परिवार अदालत में दावा कर सकता है। हाल में एक अमीर पारसी पुरुष की वसीयत को उसके भाई के बच्चों ने चुनौती दी जबकि वह व्यक्ति अपना मकान, बीमा की राशि और अन्य संपत्ति अपने प्रेमी के लिए छोड़ गया है। उत्तर प्रदेश का रहने वाला उसका प्रेमी गरीब ड्राइवर है जिसके साथ उसका प्रेम 35 साल पहले तब से था जब पारसी व्यक्ति को उसके परिवार ने त्याग दिया। इस समुदाय में दस करोड़ लोग हैं जिन्हें वे मूलभूत अधिकार भी प्राप्त नहीं, जो समाज को सभ्य और सुव्यवस्थित बनाते हैं। रुथ वनिता और सलीम किदवई जैसे लेखकों के साहित्य से समलैंगिक रिश्तों के 3,000 साल पुराने इतिहास का उल्लेख मिलता है।

(लेखक एलजीबीटी समुदाय के लिए काम करने वाले हमसफर ट्रस्ट के चेयरमैन और मुंबई के पत्रकार हैं)

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