गुजरात की सत्ता में पिछले करीब तीन दशक से कायम भारतीय जनता पार्टी 2017 में कांग्रेस के साथ करीबी लड़ाई में फंसती हुई दिखी थी। इस विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के मैदान में आने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। भाजपा ने 18 नवंबर को जब स्टार प्रचारकों की रैलियों की ‘कारपेट बॉम्बिंग’ शुरू की, उस दिन गांधीनगर के भाजपा मुख्यालय श्री कमलम में प्रदेश महामंत्री प्रदीप सिंह वाघेला ताबड़तोड़ बैठकों में व्यस्त थे और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील रैलियों में लगातार बाहर थे। वाघेला मानते हैं कि भाजपा के सामने इस बार भी कोई चुनौती नहीं है। आउटलुक के लिए अभिषेक श्रीवास्तव ने उनसे कुछ प्रमुख बिंदुओं पर बात की।
भाजपा किन मुद्दों पर यह चुनाव लड़ रही है?
गुजरात का विकास ही प्रमुख एजेंडा है। आज गुजरात पूरे देश में हर चीज में नंबर वन है। वैसे भी विकास की राजनीति को नरेंद्र मोदी जी ने गुजरात से ही प्रतिष्ठापित किया है। उसी एजेंडे को हम आगे बढ़ाएंगे।
नंबर वन पर तो हैं ही, उससे आगे और कहां जाएंगे?
नंबर वन भारत में हैं, वैश्विक स्तर पर भी आगे जाना है। अभी तो भारत के अन्य राज्यों से गुजरात की तुलना होती है। गुजरात के आकार के जो विकसित देश हैं उनसे साथ भविष्य में तुलना होगी। वहां तक जाएंगे।
इस चुनाव में आपका मुख्य प्रतिद्वंद्वी कौन है? कांग्रेस या आम आदमी पार्टी?
दोनों में से कोई नहीं है, लेकिन हम कांग्रेस को मानते हैं। कांग्रेस का अपना काडर है, कार्यकर्ता है, खुद का वोट बैंक है। हर चुनाव में कांग्रेस 30 से 35 प्रतिशत वोट लाती है। इस बार हम लोग उसके वोटबैंक को काफी हद तक ले लेंगे।
कौन-कौन से वे तबके हैं जिनके भाजपा के साथ आने की उम्मीद है आपको?
इनमें ओबीसी का एक बड़ा तबका है। आदिवासी हैं और एससी भी इस बार भाजपा के साथ आएगा।
इसके कारण आपको क्या लगते हैं?
आज करीब डेढ़ करोड़ लोग ऐसे हैं गुजरात में जिनको राज्य या केंद्र सरकार की किसी न किसी योजना का लाभ मिला है। ये सभी लोग भाजपा के समर्थन में आ रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के बारे में आपका क्या खयाल है, जो पहली बार लड़ रही है?
जहां-जहां भाजपा का शासन है ऐसे किसी भी राज्य में आम आदमी पार्टी टिक नहीं पाई है। गोवा, उत्तराखंड, यूपी, सब जगह उसकी जमानत जब्त हुई। उसके नब्बे प्रतिशत प्रत्याशियों की जमीनत जब्त होगी। आप देखिए, जब से आम आदमी पार्टी बनी है, वह कहां-कहां खड़ी हुई है- वो जेएनयू में जाएगी...
जेएनयू तो कोई राज्य नहीं है...
राज्य नहीं है, लेकिन वैचारिक लड़ाई चल रही है न जेएनयू में, तो वहां जाकर वे कम्युनिस्टों के साथ खड़े होते हैं। यह गुजरात में स्वीकृत नहीं है।
लेकिन दो राज्यों में तो मतदाताओं ने उसे पसंद किया है? दिल्ली और पंजाब में?
दिल्ली में कांग्रेस का राज था। भाजपा का वोट शेयर न दिल्ली में कम हुआ है न ही पंजाब में। आगे जब दिल्ली या पंजाब का चुनाव आएगा, भाजपा की सरकार बनेगी।
एमआइएम के बारे में आपका क्या खयाल है?
मैं हैदराबाद के चुनाव का भाजपा की ओर से इंचार्ज था। वहां पर वे मुस्लिमों को भड़का रहे हैं। ऐसे लोगों को भारत में समर्थन मिलेगा, मुझे भरोसा नहीं है।
विपक्ष दो मुद्दे उठा रहा है- मोरबी का पुल हादसा और जहरीली शराब का मुद्दा। इन दो मुद्दों पर आप जनता के बीच क्या बात कर रहे हैं?
मोरबी की घटना से पूरा गुजरात आहत है। हम लोग भी बहुत दुखी हैं। सरकार मौके पर सबसे पहले पहुंची है। पहले दस मिनट में लोगों को रेस्क्यू कर के अस्पताल पहुंचाने की बात पहली बार पूरे देश में हुई है। इतनी गति से सरकार ने काम किया है।
लेकिन शिकायत तो इस बात की है कि सही दोषियों को दंड नहीं दिया गया...
नहीं, एफआइआर हुई है, मामला कोर्ट में है। कोर्ट निश्चित तौर पर गुनहगारों को सजा देगी। कमेटी बनाई हुई है। पूरा डिटेल में जाएंगे। जिसका जो पाप है वो भुगतेगा।
और जहरीली शराब का मसला...
पहले गुजरात में जहरीली शराब पीने वाले लोग मरते थे तो कांग्रेस की सरकार उन्हें मुआवजा देती थी। अब हमने कठोर कार्रवाई की है। केमिकल जहां से बना उस फैक्ट्री को सील कर दिया। शराब बनाने वालों, बेचने वालों को हमने दंडित किया है। कांग्रेस के शासन में इतने कड़क कानून का उपयोग नहीं होता था।
बीस साल से ज्यादा हो गए भाजपा को गुजरात में, लोग कह रहे हैं कि अब सरकार बदलनी चाहिए, बहुत हो गया। इसको आप कैसे देखते हैं?
आप पंजाब और दिल्ली से आए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता लोगों से मिले होंगे, उन्होंने ही बोला होगा बदलना चाहिए। यह उनकी मंशा है। गुजरात की जनता बार-बार भाजपा को आशीर्वाद देती है। पिछले चुनावों के परिणाम आप देख लीजिए। पिछले दो साल में नौ उपचुनाव हुए असेंबली की सीटों पर, सब हमने जीतीं। स्थानीय निकाय के चुनावों में भाजपा का वोट शेयर बढ़ा है। गुजरात में बदलाव की जो बात है वह दिल्ली और पंजाब से आए लोग कह रहे हैं, जो गुजरात को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। गुजरात की जनता नहीं।
फिर पिछली बार इतना क्लोज कैसे आ गया था मामला?
कहां क्लोज था? भाजपा का वोट शेयर बढ़ा था, कांग्रेस का नहीं बढ़ा था।
सरकारी कर्मचारियों के असंतोष का असर नहीं पड़ेगा? जैसे, ओपीएस (पुरानी पेंशन योजना) की मांग?
सरकारी कर्मचारी हमेशा भाजपा के साथ रहे हैं, इस बार भी रहेंगे। ये सब मुद्दे इन्होंने उत्तराखंड, गोवा आदि में भी उठाए थे, क्या हुआ? कर्मचारी जानते हैं कि भाजपा से काम मिलता है। ओपीएस यहां कोई मुद्दा नहीं है। ये सब मुद्दे केवल चर्चा में रहते हैं। आप ठीक से घूमिए गुजरात में, और चश्मा उतार के घूमिएगा।