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इन नीतियों से कृषि नहीं उबरेगी

नीतियों का फोकस बदलें और प्रतिबंधों से मुक्त कर किसान को अपनी बुद्धिमानी से चयन करने दें
नीतियों का फोकस बदलें और प्रतिबंधों से मुक्त कर किसान को अपनी बुद्धिमानी से चयन करने दें

कृषि क्षेत्र की नीतियां बनाने में खाद्य सुरक्षा पर फोकस रहा है। यह वाजिब भी है क्योंकि देश में खाद्य वस्तुओं की कमी और आयात पर निर्भरता से निपटने के लिए हरित क्रांति इसी वजह से शुरू की गई। वाजिब कीमत पर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता हमारी नीतियों के केंद्र में रही और बाद में यह जुनून बन गई। इस तर्क के दायरे में तमाम जिंस आ गईं, यहां तक कि चीनी भी। अनाज उत्पादन पर फोकस, एमएसपी व्यवस्था और उपभोक्ता हितैषी रुख इसी नीति का हिस्सा है। लेकिन इस नीति में किसान और पर्यावरण नजरअंदाज हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई उम्मीद जगाने का प्रयास किया कि सरकार 2022 तक वास्तविक अर्थ में किसानों की आय दोगुना करना चाहती है। कृषि अर्थशास्त्रियों ने इस विचार का उपहास उड़ाया। लेकिन यह स्वागत योग्य बदलाव है क्योंकि इससे किसानों की भलाई नीतियों के केंद्र में आ गई। लेकिन कृषि मंत्रालय की कमेटी ने शुरुआती विचार में ही दो साल से ज्यादा समय लगा दिया जिससे इसे लागू करने के लिए समय बहुत कम बचा है। उसके बाद भी हाल में कुछ खास प्रगति नहीं हुई। इस बीच चुनाव आ गए और तेलंगाना की ‘रायतू बंधु’ स्कीम ने नीतिनिर्धारकों का ध्यान खींचा। यह राजनीतिक फायदे के लिए तैयार हुई थी। ओडिशा ‘कालिया’ के साथ एक कदम आगे बढ़ गया, जो परिष्कृत और बेहतर स्कीम है। देश के 14.5 करोड़ किसान परिवारों को हर साल 6,000 रुपये की त्वरित मदद देने वाली योजना पीएम किसान निधि शुरू की गई।

लेकिन समय-समय पर मूल्य वृद्धि से निपटने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत अभी भी अस्थायी और बिना सोचे-समझे उपाय किए जा रहे हैं। एफसीआइ के पास अनाज की भरमार है जिससे करदाताओं का पैसा बर्बाद हो रहा है। चीनी उद्योग सब्सिडी और सरकारी मदद पर चल रहा है। नारे तो बदल गए लेकिन नीतिगत उपाय वही हैं।

विजन 2020 बीत गया। अब नए तरीके से सोचने का वक्त है। किसान और जलवायु पर विचार करिए। मेरे विचार से अगले दस साल में इन दस बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता हैः

किसानों को सभी बंधनों से मुक्त करेंः नए विचार की शुरुआत इस सिद्धांत से होनी चाहिए कि किसानों को सभी प्रतिबंधों से मुक्त करो। बीज, उर्वरक, बाजार और निर्यात से संबंधित तमाम कानूनों के तहत मंजूरियों की अनिवार्यता खत्म करो। अगर कानून के तहत प्रतिबंध नहीं है, तो किसानों को आर्थिक गतिविधियों की छूट होनी चाहिए। अस्थायी अधिसूचनाओं से भी बचना चाहिए। किसी खास तकनीक या प्रक्रिया (बीज वेरायटी, उर्वरक, बैंक लोन, इंश्योरेंस) को बढ़ावा देने वाली रियायतें खत्म की जाएं। सभी तरह की सब्सिडी मिलाकर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के तहत दी जा सकती है। बाजार, एपीएमसी, स्टॉक लिमिट, परिवहन संबंधी बंदिशें समाप्त कर देनी चाहिए।

पीएम किसान निधि का दायरा बढ़ेः सभी तरह की सब्सिडी को ‘पीएम किसान’ के तहत लाना चाहिए। इससे सरकार आर्थिक मदद बढ़ाकर दोगुनी-तीन गुनी कर सकती है। सभी राज्यों से भी बिजली, सिंचाई वगैरह की सब्सिडी इसमें शामिल करने के लिए कहना चाहिए। किसान के नाम पर अक्षमता की भरपाई का सिलसिला रुके। किसानों को बाजार से अच्छे बीज, उर्वरक और सेवाएं खरीदने दें।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली सुधारेंः पीडीएस की आधी से ज्यादा राशि को तत्काल नकद सहायता में बदला जा सकता है। खाद्य वितरण व्यवस्था को प्रायः कमी वाले क्षेत्रों और दुर्गम क्षेत्रों तक सीमित किया जा सकता है। दाल और अन्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने पर गरीबों को ज्यादा आर्थिक मदद दी जाए। लेकिन बाजारों में प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिए। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत प्रात्रता शर्तें कम करनी चाहिए। इससे एफसीआइ की भूमिका सीमित होगी और पैसे की बर्बादी रुकेगी।

महिलाओं की भूमिका बढ़ाएंः पारिवारिक भूमि का पंजीकरण पति और पत्नी के संयुक्त नाम में किया जाए। इससे महिलाओं को बराबर अधिकार मिलेगा और कृषि में उनकी भूमिका बढ़ेगी।

नई तकनीक की सुलभताः अनावश्यक पाबंदियां हटाकर किसानों को तकनीक चुनने दें। अभी बीज, उर्वरक और मशीनरी के लिए नियामक से इस्तेमाल की अनुमति पाना बहुत पेचीदा है। नियामक की भूमिका अनुमति देने के बजाय रोक लगाने की होनी चाहिए। किसानों को तकनीक चुनने के साथ जिम्मेदारी और मुआवजे के लिए कानूनी व्यवस्था की जाए।

तकनीक ही भविष्यः नई तकनीक के उद्यमी आमतौर पर ‘एग-टेक’ कहलाने से बचते हैं क्योंकि कृषि अनुसंधान और विस्तार व्यवस्था बहुत खराब है। अगर अनुपयोगी तकनीक की सब्सिडी बंद हो जाए तो यह बाहर हो जाएंगी। किसान सबसे अच्छी तकनीक को अपनाएंगे। ऐसा इको-सिस्टम बनाएं जिसमें ‘एग-टेक’ उद्यमी बिना सब्सिडी और सरकारी हस्तक्षेप के आय आधारित कारोबारी मॉडल अपना सकें।

सेंट्रल डाटाबेसः किसानों के डाटाबेस का सेंट्रल नेटवर्क बनाएं जिसमें उनके बैंक खाते, मोबाइल नंबर, आधार और भूमि विवरण हो। डाटाबेस में सॉयल हेल्थ कार्ड, फसल विवरण, पशुधन और अन्य विवरण जोड़ना चाहिए। इससे वे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और ब्लॉक चेन टेक्नोलॉजी इस्तेमाल कर सकेंगे। डाटा पर मालिकाना हक किसान का होना चाहिए।

किसानों को कंपनी बनाने का हक होः किसानों को कंपनी गठित करने और शेयरधारक की तरह काम करने के योग्य बनाएं। पारंपरिक कोऑपरेटिव मॉडल सिद्धांतों से भटक चुका है।

किसानों के ज्ञान का सम्मान करेंः सूचना क्रांति किसानों के दरवाजे तक पहुंच चुकी है। वे अच्छे-बुरे में अंतर करने के लिए बुद्धिमान हैं। ‘गरीब किसानों को गुमराह किया जा सकता है’, यह तर्क अब नहीं चल सकता।

जीएसटी काउंसिल की तरह नेशनल एग्रीकल्चरल काउंसिल का गठन किया जाए और आमूल-चूल बदलाव लागू किया जाए। लंबी सुरंग के सिरे से किसानों के लिए कुछ प्रकाश आने दें।

(लेखक खाद्य व कृषि सचिव तथा एनडीडीबी चेयरमैन रहे हैं)

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अगले दस साल की कृषि नीतियों में किसान और जलवायु पर फोकस होना चाहिए। कृषि क्षेत्र के विकास के लिए दस बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है

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