Advertisement

कश्मीर का समाधान सेना नहीं

जाहिर है, पिछली सरकारों की कोशिशें नाकाम रहीं, तो व्यवस्थाे बदलना वक्त की मांग है
अनुच्छेद 370 का नकारात्मक प्रभाव था

फिलहाल, मैं यही कह सकता हूं कि केंद्र सरकार ने एक मजबूत संदेश दिया है कि उसमें इस तरह के कदम उठाने की राजनैतिक इच्छाशक्ति है। इसने निर्णायक और साहसिक राष्ट्रवादी नजरिए का प्रदर्शन किया है। नई व्यवस्था में सशस्‍त्र बलों, अर्धसैनिक एजेंसियों और स्थानीय पुलिस द्वारा आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में व्यापक तालमेल और प्रभाव देखने को मिलेगा। इससे हिंसा और आतंकवादी गतिविधियों में कमी आएगी। साथ ही, इससे राज्य प्रशासन भी अच्छा और भ्रष्टाचार-मुक्त शासन मुहैया करा पाएगा। शांति से ही लोगों की खुशहाली आएगी और उनका कल्याण होगा। युवाओं को नौकरियां देने के लिए निवेश में इजाफा होगा और पर्यटन, हस्तकला, लघु और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा।

जम्मू-कश्मीर में एक प्रभावी शासन यानी विकास और असरदार कानून-व्यवस्था के लिए एक मजबूत राजनैतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी। बगैर शांति के समृद्धि नहीं आ सकती है। खुशहाली के लिए अमन-शांति निहायत जरूरी है। कश्मीर समस्या का समाधान सेना के जरिए नहीं किया जा सकता है। इसके लिए ऐसी रणनीति की जरूरत है, जो पहले चरण में सेना का इस्तेमाल करे, ताकि स्थिति को नियंत्रण में लाया जा सके। फिर, सिविल एजेंसियों को आगे आकर भ्रष्टाचार-मुक्त और कुशल शासन देना चाहिए, जो पहले नहीं हुआ। जब भी सेना ने हालात पर नियंत्रण पाया, तो दुर्भाग्य से सिविल प्रशासन कानून-व्यवस्था को बनाए रखने, सुशासन देने में विफल रहा और हालात फिर पहले जैसे हो गए। पाकिस्तान द्वारा सक्रिय रूप से कश्मीरी युवाओं को प्रशिक्षण देने और हथियार मुहैया कराकर तथा छद्म युद्धों से आतंकवाद की जड़ें मजबूत की गईं।

जाहिर है कि पिछली सरकारों की कोशिशें नाकाम रही हैं और सिस्टम को बदलना पड़ा। यह वक्त की जरूरत है। दो या तीन प्रमुख राजनैतिक परिवारों को खूब फायदा पहुंचा और लोगों ने समृद्धि नहीं देखी। रणनीतिक नजरिए से देखें, तो सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट में एयर स्ट्राइक और अब इन संवैधानिक बदलावों जैसी कई कार्रवाइयों से एक सख्त संदेश दिया गया है। भारत अगली कतार में है और हमने इसके लिए पहल भी की है। हमने पाकिस्तान, चीन, अमेरिका और बाकियों को बता दिया है कि हम किसी देश के खिलाफ आक्रामक नहीं हैं और इसलिए हम किसी को अपने साथ भी खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दे सकते हैं।

हमारे पड़ोसियों पर इसके परोक्ष असर की कल्पना की जा सकती है और हमें इस बात की तारीफ करनी चाहिए। हाल के दिनों में भारत की ओर से उठाए गए गोपनीय कदम निश्चित रूप से सराहनीय रहे हैं। अशांत क्षेत्रों में हमें स्थिरता और शांति के एक द्वीप के रूप में देखा जाता है। प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में हमारे लीडरशिप ने राजनैतिक कुशलता, परिपक्वता और जवाबदेही तथा जिम्मेदारी की उच्च भावना दिखाई है।

अनुच्छेद 370 का नकारात्मक प्रभाव था। इससे राज्य में उद्यमी निवेश करने और व्यापार, कारखानों, होटलों, हस्तकला इकाइयों के लिए अवसर पैदा करने से हिचकते रहे। इस तरह युवाओं के लिए नौकरियों और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मदद नहीं मिली। कानून-व्यवस्था की प्रतिकूल स्थिति के कारण पर्यटन उद्योग को नुकसान उठाना पड़ा। केंद्रीय नियंत्रण से छद्म युद्धों या आतंकवाद से अधिक प्रभावी तरीके से निपटने में मदद मिलेगी। राज्य स्तर पर राजनैतिक हस्तक्षेप खत्म हो जाएगा और पुलिस मजबूत कानून-व्यवस्था स्थापित करने के लिए स्वतंत्र होगी।

केंद्रीय शासन से राजनैतिक रसूख के चलते सुरक्षा पाने वाले राष्ट्रविरोधी ताकतों से निपटना आसान होगा। सेना और विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय भी बढ़ेगा। आतंकवाद के खात्मे और शांति तथा समृद्धि के युग की शुरुआत करने में लोगों की भूमिका का काफी महत्व है। हमारे सामने मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर, नगालैंड और पंजाब का उदाहरण है। कश्मीर के लोग सबसे अधिक प्रताड़ित हुए हैं और हजारों लोग मारे भी गए। अभी तक 40 हजार लोग जान गंवा चुके हैं, जिनमें कई विदेशी आतंकवादियों और गुमराह कश्मीरी युवाओं की हिंसक साजिश के शिकार बेगुनाह लोग भी हैं।

लगभग एक पूरी पीढ़ी इस छद्म युद्ध से बर्बाद हो गई और दूसरी अब उससे पीड़ित है। इस आतंकवाद के सबसे बड़े पीड़ित कश्मीरी हैं। पाकिस्तान के लिए यह एक सस्ती छद्म जंग है, लेकिन अब वह सावधानी बरतेगा, क्योंकि किसी भी दुस्साहस के लिए उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

हमें गुमराह युवाओं को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने के लिए अब बड़ा दिल और करुणा दिखाने की जरूरत है। आइए हम ऐसे गुमराह युवाओं को दूसरा मौका दें, जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। उन्हें एक आकर्षक पुनर्वास पैकेज दें, ताकि वे बिना देरी किए हथियारों के साथ आत्मसमर्पण करें। इस विषय पर मेरे पास कुछ बहुत प्रभावी विचार हैं, जिनका निस्संदेह नतीजा निकलेगा।

ये ऐसे कदम हैं जिनसे भविष्य में आतंकवादियों की सप्लाई चेन पूरी तरह खत्म हो जाएगी। उन्हें मदद मिलनी बंद होते ही माहौल बदलने लगेगा। हमारी हर कोशिश यही होनी चाहिए कि कश्मीरियों में घर कर गई अलगाव की भावना खत्म नहीं तो कम से कम की जा सके। छद्म युद्ध के लिए फंड पर कठोर नियंत्रण से आतंकवादी संगठनों और उनके सहयोगियों पर करारा प्रहार होगा। आतंकवाद के लिए काफी हद तक गैर-कानूनी फंड ही जिम्मेदार है, जबकि राज्य सरकार इससे मुंह मोड़ती रही।

(लेखक पूर्व थल सेना अध्यक्ष हैं)

Advertisement
Advertisement
Advertisement