नवंबर के पहले रविवार को भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मुख्य रूप से अगले साल की शुरुआत में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर चर्चा हुई, लेकिन बैठक की खास बात यह रही कि राजनीतिक संकल्प पत्र उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पेश किया, जो पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करते थे। इसने भाजपा के भी अनेक नेताओं को चौंकाया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार इसमें इस बात का खास तौर से जिक्र किया गया है कि ‘पार्टी अगले विधानसभा चुनावों में जीत सुनिश्चित करेगी’। उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं। महंगाई, बेरोजगारी और कृषि कानून जैसे मुद्दों के बीच पंजाब में भाजपा ने सभी 117 सीटों पर लड़ने का फैसला किया है। चंद महीने पहले तक कांग्रेस के लिए आसान दिखने वाले पंजाब में माहौल अस्थिर है। प्रदेश पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के रूठने-मनाने का दौर जारी है। चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने से कांग्रेस को दलित और पिछड़े वर्ग में फायदा मिलता तो दिख रहा है, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के जाने के बाद पार्टी में कोई बड़ा जट्ट सिख चेहरा नहीं है। अमरिंदर खुद कांग्रेस को चुनौती देने के लिए कमर कस रहे हैं।
योगी के संकल्प पत्र पेश करने के कई मायने हैं। भाजपा जानती है कि 2024 में लगातार तीसरी बार एनडीए सरकार बनाने के लिए 2022 में यूपी जीतना जरूरी है। पिछले दिनों प्रदेश में सरकार विरोधी माहौल बनने के बावजूद पार्टी को लगता है कि सफलता वही दिला सकते हैं। पिछले आम चुनाव में उन्होंने प्रदेश की 80 सीटों में से 64 सीटें दिलाई थीं।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से हफ्ता भर पहले गृह मंत्री अमित शाह भी यूपी और योगी का महत्व बता चुके थे। लखनऊ में भाजपा सदस्यता अभियान की शुरुआत करते हुए कहा था, “मैं यूपी की जनता को बताने आया हूं कि मोदी जी को फिर से 2024 में प्रधानमंत्री बनाना है तो 2022 में फिर एक बार योगी जी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा।” भाषण के अंत में उन्होंने हाथ जोड़ते हुए कहा, “मोदी जी को एक और मौका दे दीजिए, योगी जी को फिर से मुख्यमंत्री बना दीजिए।” शाह के इन शब्दों से यह सवाल उठा कि क्या भाजपा को अपनी स्थिति कमजोर होती दिख रही है, इसलिए ‘पार्टी के चाणक्य’ को इस तरह अपील करनी पड़ रही है?
तमाम विश्लेषणों में भाजपा भले यूपी में अभी लाभ की स्थिति में दिख रही हो, लेकिन इस बार मुकाबला 2017 जैसा नहीं रहने वाला। पिछली बार 403 सीटों में से भाजपा ने 312 (सहयोगी दलों समेत 325) पर जीत दर्ज की थी। सपा 47, बसपा 19 और कांग्रेस सिर्फ सात पर सिमट गई थी। इस बार सत्तारूढ़ दल को सबसे बड़ी चुनौती सपा से ही मिलती दिख रही है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव बड़े ही रणनीतिक तरीके से चालें चल रहे हैं। पूर्वी इलाके में पकड़ मजबूत बनाने के लिए उन्होंने भाजपा के पूर्व सहयोगी ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के साथ गठबंधन किया है, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी से हाथ मिलाया है जिन्होंने हाल ही ‘आशीर्वाद पदयात्रा’ की है।
2017 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष शाह ने मऊ में राजभर के साथ रैली की थी, इस बार अखिलेश ने राजभर के साथ रैली की है। राजभर जिस समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं प्रदेश की आबादी में वह तीन से चार फीसदी है। प्रदेश स्तर पर यह आंकड़ा भले कम हो लेकिन ज्यादातर लोग पूर्वी इलाके में ही हैं। पार्टी का आधार सिर्फ राजभर समुदाय में नहीं बल्कि चौहान, पाल, प्रजापति, विश्वकर्मा, मल्लाह जैसे दूसरे अति पिछड़ा वर्ग में भी है। पूर्वी यूपी के 18 जिलों में 90 सीटें हैं। इनमें से 25-30 सीटों पर राजभर बड़ी संख्या में हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में 2017 में भाजपा की सीटों की संख्या 14 से बढ़कर 72 हो गई तो समाजवादी पार्टी की 52 से घटकर नौ रह गई थी। राजभर जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं जिसका अखिलेश ने वादा किया है।
आंबेडकर नगर में अखिलेश ने कई नेताओं को पार्टी में शामिल कराया
राजभर समुदाय के दो और बड़े नेता भी अखिलेश के साथ हैं- पूर्व बसपा नेता रामअचल राजभर और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर के बेटे कमल कांत। रामअचल और वरिष्ठ बसपा नेता लालजी वर्मा हाल ही आंबेडकर नगर रैली में सपा में शामिल हुए। सपा का अपना आकलन है कि एसबीएसपी 25-30 सीटें जीतने में मदद करेगी। भाजपा की तरफ से मंत्री अनिल राजभर इस समुदाय का चेहरा हैं, लेकिन उनका कद उतना बड़ा नहीं। अखिलेश ने पिछड़ा वर्ग के महान दल के साथ भी गठबंधन किया है, जिसके मुखिया केशव देव मौर्य हैं।
बसपा के छह निलंबित विधायक और भाजपा के सीतापुर से बागी विधायक राकेश राठौड़ भी सपा में शामिल हुए हैं। मायावती ने अक्टूबर 2020 में राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशी रामजी गौतम का विरोध करने की वजह से इन विधायकों को निलंबित किया था। राठौड़ ने महामारी के समय लोगों से घंटियां और तालियां बजाने की अपील करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी।
जिस दिन मऊ में अखिलेश यादव एसबीएसपी की रैली में गए, उसी दिन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने लखनऊ में दावा किया कि पूर्वांचल में पिछड़े वर्ग की सात छोटी पार्टियां उनके साथ हैं। भाजपा ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की अध्यक्षता में चार सदस्यों की समिति बनाई है। यह दूसरे दलों के उन नेताओं की पहचान करेगी जो हाशिए पर हैं और बेहतर राजनीतिक प्लेटफॉर्म तलाश रहे हैं। पार्टी ने लालजी वर्मा, रामअचल राजभर जैसे नेताओं के सपा में जाने को गंभीरता से लिया है। उसे लगता है कि ये नेता उसके लिए काफी उपयोगी हो सकते थे। पार्टी इस बात से भी चिंतित है कि गैर-यादव ओबीसी अब भाजपा के बजाय सपा को तरजीह दे रहे हैं, जबकि भाजपा को ओबीसी में बड़े जनाधार वाली पार्टी माना जाता है।
भाजपा के मध्य प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव का एक बयान भी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। उन्होंने कहा, “मेरी एक जेब में ब्राह्मण और एक जेब में बनिया है।” इससे अगड़ी जातियां नाराज हो सकती हैं। यूपी में ब्राह्मण पहले ही राज्य सरकार से नाराज बताए जाते हैं।
जयंत चौधरी के अनुसार भाजपा तालिबान और पाकिस्तान की बात करती है, लेकिन असली मुद्दे तो महंगाई और बेरोजगारी हैं
रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी कहते हैं, “भाजपा तालिबान और पाकिस्तान की बात कहती है, लेकिन असली मुद्दे बेरोजगारी महंगाई और किसानी की बदहाली है। उनके मुद्दों का जवाब देने के बजाय हम असली मुद्दे उठाते रहेंगे।” उनकी पार्टी को 2017 में सिर्फ एक सीट मिली थी। पार्टी ने घोषणा पत्र भी जारी किया है जिसमें महिलाओं को नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण और सत्ता में आने के बाद छह महीने के भीतर एक करोड़ युवाओं को रोजगार देने की बात है। किसानों को हर साल किसान दिवस पर 12 हजार रुपये देने का वादा भी किया गया है। जयंत चौधरी को साथ लेने के बाद अखिलेश ने कहा कि नेताजी (मुलायम सिंह) के जन्म दिन पर 22 नवंबर को चाचा शिवपाल सिंह को साथ लाने की कोशिश करेंगे। अखिलेश के सपा अध्यक्ष बनने पर शिवपाल ने 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया नाम से अलग पार्टी बना ली थी।
वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन कहते हैं, “प्रदेश में लखीमपुर खीरी एक नया क्षेत्र उभरा है। इसमें 42 सीटें आती हैं जिनमें पिछली बार 37 भाजपा को मिली थीं। यूपी के 15 फीसदी सिख यहीं रहते हैं। यहां के सिख मजबूत हैं और दूसरों को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। किसानों को गाड़ियों से रौंदने की घटना के बाद यहां भाजपा को नुकसान हो सकता है।” अखिलेश ने भी एक रैली में इस घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि जब तक भाजपा की सरकार है तब तक किसानों को न्याय नहीं मिलेगा। शायद इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा, “मोदी जी ने सिख भाइयों के लिए जितना किया है उतना और किसी ने नहीं किया।”
टंडन कहते हैं, “2014 से 2017 के दौरान प्रदेश में सांप्रदायिक दंगे 28 फीसदी बढ़े थे जिसका असर 2017 के विधानसभा चुनाव में दिखा था, लेकिन इस बार वैसी कोई बात नहीं है।” शायद इसलिए ध्रुवीकरण की कोशिशें भी तेज हो गई हैं। योगी ने अयोध्या में दीपोत्सव के मौके पर कहा कि पहले सरकारी पैसा कब्रिस्तान पर खर्च होता था, अब मंदिरों पर खर्च हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी पिछले विधानसभा चुनाव से पहले 19 फरवरी 2017 को फतेहपुर में ‘कब्रिस्तान बनाम शमशान’ की बात कही थी। अखिलेश ने भी पटेल जयंती पर हरदोई में आयोजित जनसभा में पटेल, गांधी और नेहरू के साथ जिन्ना का नाम लेते हुए कहा कि वे एक ही संस्थान में पढ़कर बैरिस्टर बने और हमें आजादी दिलाई। योगी समेत कई भाजपा नेता इसकी आलोचना कर चुके हैं। प्रदेश का सघन दौरा करने वाले टंडन के अनुसार, “इस बार मुस्लिम वोटर शायद मायावती के साथ न जाएं। मुसलमानों को लगता है कि अगर भाजपा की सीटें कम हुईं तो सरकार बनाने के लिए मायावती उसका समर्थन कर सकती हैं।”
प्रदेश में 86 सुरक्षित सीटें हैं, जिनमें 76 पर भाजपा जीती थी। वहां के सवर्ण मतदाता भाजपा के दलित उम्मीदवार को ही वोट देते हैं। दूसरी पार्टियां इसकी काट के लिए वोट प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। पिछली बार 54 सीटों पर हार-जीत पांच हजार से कम वोटों के अंतर से हुई थी। भाजपा ने ऐसी 20 सीटें जीती थीं। पार्टियां इन सीटों पर भी फोकस कर रही हैं।
विश्लेषक इस बार कांग्रेस की सीटें बढ़ने का भी अनुमान लगा रहे हैं। पार्टी के प्रदेश प्रमुख अजय लल्लू खुद ओबीसी से आते हैं, उन्होंने जिला स्तर पर ओबीसी नेताओं को जिम्मेदारियां सौंपी हैं। प्रियंका गांधी की सक्रियता के कारण भी कार्यकर्ताओं में उत्साह है। प्रियंका ने सबसे पहले 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने की बात कही। उसके बाद साल में तीन मुफ्त रसोई गैस सिलिंडर, दसवीं की छात्राओं को मुफ्त स्मार्टफोन, कॉलेज छात्राओं को स्कूटर देने के अलावा आशा कर्मचारियों का वेतन और विधवा पेंशन बढ़ाने का वादा किया है। बंगाल में ममता ने भी ऐसी घोषणाएं की थीं। प्रियंका, योगी के गढ़ गोरखपुर भी गईं और कहा कि मुख्यमंत्री के काम गुरु गोरखनाथ की शिक्षा के विपरीत हैं। उन्होंने गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के साथ मंच साझा करने के लिए गृह मंत्री अमित शाह की भी आलोचना की।
गोवा, उत्तराखंड में एंटी-इनकंबेंसी
महज 40 सीटों वाली गोवा विधानसभा के लिए आठ पार्टियां मैदान में हैं। इस तटीय राज्य में तृणमूल कांग्रेस तो पहली बार चुनाव लड़ेगी, लेकिन आम आदमी पार्टी दूसरी बार यहां प्रयास कर रही है। वैसे मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। 2017 में भाजपा को 13 और कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं लेकिन दूसरे दलों और निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर भाजपा ने सरकार बना ली थी। 2019 में कांग्रेस के 10 विधायक टूटकर भाजपा में चले गए थे। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख गिरीश चोडणकर के अनुसार पिछली बार भी लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया था, लेकिन भाजपा ने जिस तरह जनमत चुराया उसे देखते हुए लोग इस बार कांग्रेस को ज्यादा सीटें दिलवाएंगे।
लेकिन कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं होने वाली है। तृणमूल कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता लुइजिन्हो फलेरियो और टेनिस स्टार लिएंडर पेस को पार्टी में शामिल किया है। तृणमूल को ज्यादा कुछ मिलने की उम्मीद नहीं है, लेकिन वह कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है। कांग्रेस को नुकसान आप से भी हो सकता है, जिसके नेता अरविंद केजरीवाल ने कई मुफ्त योजनाओं की घोषणा की है। भाजपा की सबसे बड़ी मुश्किल एंटी-इनकंबेंसी, भ्रष्टाचार की शिकायतें और बेरोजगारी है। एक समय मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत को भी बदलने की चर्चा थी। भाजपा महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के साथ गठबंधन की भी कोशिश कर रही है, लेकिन सात-आठ सीटों पर दखल रखने वाली एमजीपी के नेता इस बात से खफा हैं कि 2019 में भाजपा ने उसके विधायक तोड़ लिए थे।
गोवा में लोगों से मिलते राहुल
पिछले दिनों राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल, तीनों ने गोवा का दौरा किया। राहुल ने कहा कि कांग्रेस गोवा को कोयला हब बनने से रोकेगी। उन्होंने पश्चिमी घाट को तथाकथित रूप से नुकसान पहुंचाने वाले रेलवे लाइन के दोहरीकरण, राष्ट्रीय राजमार्ग को चार लेन में बदलने और गोवा-तनमार प्रोजेक्ट का भी विरोध किया। जिस दिन राहुल गोवा में थे, उसी दिन ममता भी वहां पहुंचीं। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस राजनीति को लेकर गंभीर नहीं है और इससे प्रधानमंत्री मोदी मजबूत होंगे। उन्होंने यहां तक कहा कि कांग्रेस कोई फैसला नहीं ले रही, जिसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। ममता ने गोवा फॉरवर्ड पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व उप मुख्यमंत्री विजय सरदेसाई से भी मुलाकात की। सरदेसाई पहले भाजपा के सहयोगी थे।
लिएंडर को तृणमूल में शामिल करातीं ममता
उत्तराखंड में भी सत्तारूढ़ भाजपा को एंटी-इनकंबेंसी का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए मार्च से अब तक पार्टी तीन मुख्यमंत्री बदल चुकी है। ध्रुवीकरण की कोशिश यहां भी है। देहरादून में प्रचार अभियान की शुरुआत करते हुए अमित शाह ने एक जनसभा में कहा कि कांग्रेस के शासन में लोगों को राष्ट्रीय राजमार्ग बंद कर वहां नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाती थी। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि कांग्रेस सरकार ने वोट बैंक खोने के डर से केदारनाथ में पुनर्विकास कार्य नहीं किए। यहां चुनाव पर ध्यान देने के लिए वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत ने पिछले दिनों पंजाब प्रभारी का पद छोड़ा। लेकिन उनकी सबसे बड़ी मुश्किल पार्टी के भीतर मची खींचतान है। शाह ने उनके 2016 के स्टिंग का भी मुद्दा उठाया जिसमें विश्वास मत पर मतदान के लिए कुछ बाकी कांग्रेस विधायकों को तथाकथित रूप से रिश्वत देने की बात थी। पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के कांग्रेस में शामिल होने से तराई इलाकों में पार्टी को लाभ मिल सकता है। लेकिन पार्टी में आर्य का विरोध भी हो रहा है। तराई इलाकों में किसान भी भाजपा से नाराज हैं। उसे सिख बहुल ऊधमसिंह नगर में लखीमपुर कांड का भी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
पांचों राज्यों में चुनाव होने में अभी दो महीने से ज्यादा का समय बाकी है। इतना समय किसी भी रुख को बदलने के लिए काफी हो सकता है। देखना है कि चुनाव के दौरान मतदाताओं का रुख क्या रहता है।