इस बार चुनाव में बाबाओं का जादू बेमानी है। न राम का जादू है और न ही रहीम का। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद गुरमीत राम रहीम, आसाराम और रामपाल प्रकरण के समय हुए खूनी टकराव में दर्जनों मासूमों की जानें भेंट चढ़ीं। दुराचार,कत्ल और राजद्रोह जैसे संगीन जुर्म में जेल की सजा काट रहे बाबाओं की साख तो खाक में मिल ही गई है, वे धर्मगुरु भी चुनावी फिजा से बाहर हैं, जिनकी पिछले चुनावों में ऐसी धाक थी कि वे उम्मीदवार भी तय कर रहे थे। अब राजनैतिक दलों के लिए वे मानो काम के नहीं रह गए। पिछले लोकसभा चुनाव में देश भर में योग शिविरों के जरिए मोदी के पक्ष में लहर पैदा करने वाले रामदेव भी इस बार भाजपा के प्रचार से दूर हैं। हाल में वे सिर्फ राजस्थान के जयपुर ग्रामीण से भाजपा के उम्मीदवार राज्यवर्धन सिंह राठौर के पर्चा भरने के दौरान ही दिखे। यही नहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में उनके अलावा जग्गी वासुदेव, श्री श्री रविशंकर सरीखे कई बाबाओं ने खुलकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया था, वे इस बार गायब हैं।
गुरमीत राम रहीम, आसाराम और रामपाल जेल में बंद हैं तो उनके अनुयायी दिशाहीन दिखाई दे रहे हैं। हालांकि डेरा सच्चा सौदा के सियासी विंग के प्रमुख राम सिंह ने आउटलुक से कहा, “डेरा बिखरा नहीं है, देश भर में डेरे के तमाम श्रद्धालु एकजुट हैं। समर्थन पाने के लिए कई दलों के नेता हमारी सियासी विंग के संपर्क में हैं।” डेरा सच्चा सौदा की पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में सियासी विंग सक्रिय हो गई है। सूत्रों के मुताबिक, डेरे के समर्थन का फतवा पहली बार जेल से जारी होगा। किस सियासी दल को इस बार समर्थन होगा, इसका फैसला जेल में बैठा गुरमीत राम रहीम खुद करेगा। लेकिन राजनैतिक दलों को शायद पहले जैसा भरोसा नहीं रह गया है। हालांकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का कहना है कि लोकतंत्र में वोट मांगना अधिकार है। डेरा प्रेमियों को अपने पक्ष में करने के लिए इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के महासचिव अभय सिंह चौटाला ने कहा कि इस बार वे डेरा का समर्थन मांगने जाएंगे। वहीं, डेरा से समर्थन मांगने पर कांग्रेस अभी चुप है।
हरियाणा की भाजपा सरकार के कार्यकाल में राम रहीम को जेल की सजा से डेरा प्रेमियों की नाराजगी इन चुनावों में भाजपा के खिलाफ जा सकती है। इधर पंजाब में भाजपा के सहयोगी शिरोमणि अकाली दल धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी की घटनाओं और अकाल तख्त द्वारा डेरे के बहिष्कार की घोषणा के चलते इस बार डेरा समर्थन से दूरी बनाए हुए है। कांग्रेस अपने पूर्व विधायक हरमिंदर जस्सी के जरिए डेरा के संपर्क में है। जस्सी डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के समधी हैं।
नाबालिग से दुराचार के जुर्म में जोधपुर में ताउम्र जेल की सजा काट रहे आसाराम की योग वेदांत सेवा समिति से जुड़े श्रद्धालु भले ही खुलकर किसी सियासी दल के समर्थन में नहीं रहे, पर अभी तक गुजराती आसाराम की मोदी से नजदीकी की वजह से श्रद्धालुओं का ज्यादा झुकाव भाजपा की ओर रहा। इन चुनावों में इस बात को लेकर गुस्सा भी है कि सियासी फायदे के लिए अक्सर आसाराम के सत्संगों में हाजिरी लगाने वाले तमाम भाजपा नेताओं ने मुसीबत के वक्त किनारा कर लिया। समिति में तीन दशक से सक्रिय रहे श्रद्धालु ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि ये चुनाव भाजपा के लिए सबक होंगे। इधर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में प्रभावशाली सतलोक आश्रम करोंथा का प्रमुख रामपाल 2014 से हरियाणा में भाजपा सरकार के आते ही राजद्रोह के मामले में फंस गया। आज वह जेल की सजा काट रहा है। हिसार कोर्ट में रामपाल की पेशी के दौरान अक्सर जुटने वाली उसके श्रद्धालुओं की भीड़ भाजपा सरकार के खिलाफ रोष प्रदर्शन करती है। इसका चुनाव में असर पड़ सकता है।
जेड प्लस सुरक्षा कवच में रहने वाले राधा स्वामी डेरा प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों से मार्च में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ब्यास जाकर मुलाकात की। दो महीने पहले डेरों पर जाने से इनकार करने वाले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अप्रैल के पहले हफ्ते में डेरा ब्यास में पहुंच गए। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल का भी विक्रम मजीठिया के साथ डेरा ब्यास जाने का कार्यक्रम है। मजीठिया की डेरा प्रमुख से रिश्तेदारी है। पिछले तीन दशक से राधा स्वामी डेरा ब्यास की लंगर सेवा में लगे फौजी हरदयाल सिंह ने कहा, “डेरा प्रमुख स्पष्ट तौर पर किसी दल के समर्थन के लिए नहीं कहते हैं, चुनाव के समय और बाद में भी सियासी नेता बाबा जी के दर्शन के लिए ब्यास आते रहते हैं।” वहीं, डेरे से जुड़े एक अन्य सूत्र का कहना है कि जिस भी सियासी दल को अंदरखाने समर्थन करना होता है, उस दल के नेताओं को बाबा जी खुली जीप में अपने साथ बिठाकर डेरे का चक्कर लगाते हैं। बाबा जी ने सियासी दलों से संपर्क की जिम्मेदारी डेरे में तीन साल से सेवा कर रहे फोर्टिस हेल्थकेयर के संस्थापक शिविंदर मोहन सिंह को सौंप रखी है।
1978 में अमृतसर में अकालियों के साथ खूनी टकराव में कई जानें गंवाने वाले निरंकारी मिशन ने तब से चुनाव में किसी भी सियासी पार्टी को खुलकर समर्थन देना बंद कर दिया। मिशन के चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा के मीडिया प्रभारी मंजीत सहदेव ने कहा कि मिशन का किसी सियासी दल से संबंध नहीं है, पर भाजपा व कांग्रेस के शीर्ष नेता मिशन के सम्मेलनों मंे आते हैं। इस बार लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद प्रियंका गांधी ने भी मिशन की मौजूदा प्रमुख गुरु सुदिक्षा जी (गुरु हरदेव सिंह की पुत्री) से मिलने की इच्छा जाहिर की थी, पर सुदिक्षा के विदेश दौरे की वजह से मुलाकात नहीं हो पाई।
उत्तराखंड की भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की मानव उत्थान सेवा समिति के आश्रमों में भी इन दिनों नेताओं के फेरे बढ़ गए हैं। भाजपा के केंद्रीय स्टार प्रचारक के तौर पर सतपाल महाराज मोदी के लिए वोट मांग रहे हैं। सद्भावना सम्मेलनों के जरिए भी वे देश भर में अपने अनुयायियों के बीच जाकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। समिति की पंजाब-हरियाणा इकाई के अध्यक्ष ओमप्रकाश अग्रवाल के मुताबिक, समिति की तहसील स्तर तक की 5,000 से अधिक शाखाओं और श्रद्धालुओं का समर्थन भाजपा के साथ है। समिति के समर्थन से 2014 में दार्जिलिंग से पहली बार सिख चेहरे एस.एस. अहलूवालिया ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। इस बार राजू बिष्ट के लिए महाराज ने रैलियां कीं।
जालंधर के डेरा सचखंड का रविदासिया समाज पर काफी प्रभाव है। डेरा सचखंड के महासचिव सतपाल विर्दी कहते हैं कि हमारे डेरों पर कैप्टन अमरिंदर सिंह, अरविंद केजरीवाल और बादल आदि नेता आते हैं। समर्थन पर विर्दी कहते हैं कि ईमानदार एवं स्वच्छ छवि के उम्मीदवार को समर्थन दिया जाएगा। पंजाब के नूरमहल (जालंधर) स्थित आशुतोष महाराज की संस्था दिव्य ज्योति जागृति संस्थान का भी दोआबा और माझा इलाके में बहुत प्रभाव है।
योग गुरु रामदेव भले ही खुलकर भाजपा का प्रचार नहीं कर रहे हैं, पर उनके भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के शिविरों में श्रद्धालुओं में भाजपा को समर्थन की चर्चा है। हरियाणा में ट्रस्ट के योग शिविर संचालित करने वाले अखिल सेंगर का कहना है कि देश भर में ट्रस्ट से जुड़े साधकों का समर्थन भाजपा के साथ है।
पंजाब के डेरों पर शोध कर रहे पंजाब गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर के भूपिंदर सिंह ठाकुर का कहना है, “ज्यादातर डेरे अपनी पसंद से अनुयायियों को अवगत करा देते हैं। डेरा प्रमुखों में भी सत्ता से रसूख पाने की भावना रहती है।” कई डेरों के कारनामे सामने आने के कारण सभी डेरों और पंथों की साख को धक्का लगा है और अनुयायी हताश होने के साथ बिखरने लगे हैं। देखना होगा कि इस बार वे अपनी सियासी ताकत से हार-जीत तय कर पाते हैं या नहीं।