कृषि कानून वापस लिए जाने के बाद से पंजाब में भाजपा 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए सक्रिय हो गई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा सरीखे टकसाली अकाली नेताओं के साथ गठबंधन के लिए उसकी कोशिश जारी है। हालांकि उस पर शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की राह मुश्किल करने के लिए प्रमुख सिख चेहरों को जबरन पार्टी में शामिल कराने के आरोप भी लग रहे हैं। पिछले दिनों संगरूर से आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान ने भी आरोप लगाया कि भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने विधानसभा चुनावों से पहले भगवा पार्टी में शामिल होने के लिए उन्हें धन और केंद्र में मंत्रिपद की पेशकश की थी।
भाजपा में शामिल होने के लिए मनजिंदर सिंह सिरसा ने दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया। पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसएस विर्क और शिरोमणि अकाली दल के पूर्व विधायक सरबजीत सिंह मक्कड़ समेत दो दर्जन सिख नेता हाल ही शिअद का दामन छोड़ भगवा पार्टी में शामिल हुए हैं। आउटलुक से बातचीत में शिअद प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने कहा, “भाजपा में शामिल न होने पर शिअद नेताओं को जेल भेजने की धमकी दी जा रही है। इस डर से ही मनजिंदर सिंह सिरसा भाजपा में गए हैं।”
इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व वरिष्ठ शिअद नेता सुखदेव सिंह ढींढसा से गठबंधन के लिए बातचीत जारी है। ढींढसा ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, “अमित शाह से करीब आधे घंटे की पहली दौर की बातचीत हो चुकी है। अगली बातचीत के बाद गठबंधन और सीटों के बंटवारे को लेकर स्थिति स्पष्ट होगी।”
शिअद से तीन दशक का गठजोड़ टूटने के बाद बदले समीकरणों पर भाजपा के वरिष्ठ नेता मास्टर मोहन लाल ने कहा, “हम उम्मीद कर रहे थे कि शिअद तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर हमारा साथ देगा, लेकिन उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए हमें धोखा दिया। इससे हमारे केंद्रीय नेतृत्व को चोट पहुंची है।”
कृषि कानूनों की वापसी के बावजूद राजनीतिक दृष्टि से देखें तो भाजपा के पास पंजाब में कुछ बड़ा पाने या खोने के लिए कुछ भी नहीं है। शिअद के साथ गठबंधन में भाजपा 117 में से केवल 23 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। अब वह नए सहयोगियों के साथ चौथा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रही है। 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने केवल तीन सीटें जीती थीं, लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को पश्चिम बंगाल जैसा प्रदर्शन पंजाब में दोहराने की उम्मीद है जहां उसकी सीटों की संख्या तीन से 77 तक पहुंच गई।
चुनाव से ठीक पहले सिरसा के आने से भाजपा को कितना लाभ होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता। लेकिन सिरसा ने दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए ट्वीट में राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका के संकेत जरूर दिए। सिरसा ने लिखा, “मैं दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहा हूं। मैं कमेटी का आगामी चुनाव नहीं लड़ूंगा। मेरी अपने समुदाय, मानवता और राष्ट्र सेवा के लिए प्रतिबद्धता है।”
अकाल तख्त के प्रमुख ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने सिरसा को एक कमजोर सिख बताते हुए कहा, “जेल भेजे जाने के डर से सिरसा ने पंथ से गद्दारी की है। भाजपा में शामिल होने से एक दिन पहले उन्होंने मुझसे बात की थी। मुझे लगा कि उन्हें भाजपा में जाने या जेल जाने में से कोई एक चुनने को कहा गया था, और उन्होंने भाजपा को चुना।” हालांकि आउटलुक से बातचीत में सिरसा ने इन बातों से इनकार करते हुए कहा, “मैं स्वेच्छा से भाजपा में गया क्योंकि इस पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद शिअद सिखों और किसानों के मुद्दे हल करने की स्थिति में नहीं था।”
कृषि कानून वापस लिए जाने के बाद पंजाब में भाजपा के सियासी हालात पर भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां का कहना है, “पंजाब में भाजपा एक बड़ा सिख चेहरा चाहती थी, इसलिए उसने मनजिंदर सिंह सिरसा को चुना है। अगर सिरसा भाजपा के टिकट पर पंजाब से चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं और उन्हें लगता है कि कृषि कानून रद्द किए जाने से उन्हें सहानुभूति मिलेगी, तो यह उनकी बड़ी गलतफहमी होगी।”