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उन्हें नहीं रुचता कुछ खास अतीत

बिहार सरकार पटना कलेक्ट्रेट परिसर स्थित ऐतिहासिक इमारतों को गिराना चाहती है, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल काम रुका
पटना कलेक्ट्रेट की इमारत

तथाकथित विकास के स्तंभ, आधुनिक वास्तुशिल्प पसंद करने वालों को इतिहास और धरोहर रास नहीं आती है। उनके लिए अतीत किसी दूसरे देश जैसा है। नीतीश कुमार पटना कलेक्ट्रेट परिसर की सदियों पुरानी इमारत को तोड़ना चाहते हैं, लेकिन इस पर उठे विवाद से हैरान हैं। उनकी सरकार इसे गिरा कर गगनचुंबी इमारत बनाना चाहती है। बिहार के मुख्यमंत्री को आश्चर्य होता है कि “औपनिवेशिक काल का अफीम का भंडार ऐतिहासिक ढांचा कैसे हो सकता है?” उत्तर और पूर्वी भारत में अफीम की बड़ी महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक भूमिका रही है। लेकिन लगता है, मुख्यमंत्री को उन सब बातों को जानने-समझने का मौका नहीं मिला है। वे कहते हैं, “लोगों के अनुसार यह ऐतिहासिक इमारत है, लेकिन पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर की रिपोर्ट के अनुसार डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने अफीम और शोरा रखने के लिए इसका निर्माण करवाया था। रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी की शूटिंग यहां हुई थी। लेकिन इन सब बातों से कोई ऐतिहासिक महत्व साबित नहीं होता है।”

पटना कलेक्ट्रेट के रिकॉर्ड रूम का नजारा

अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश उद्घाटन के मोड में हैं। उन्होंने वीडियो काॅन्फ्रेंस के जरिए छह सरकारी इमारतों का उद्घाटन किया, जिन पर 85.69 करोड़ रुपये का खर्च आया है। इसके अलावा 23 अन्य इमारतों की आधारशिला रखी है, जिनके निर्माण पर 536.53 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इनमें पांच मंजिला पटना कलेक्ट्रेट परिसर भी है जिसके निर्माण पर 186 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। यह परियोजना 3,484 वर्ग मीटर में फैली है। इसमें जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय समेत 39 कार्यालय होंगे।

नए कलेक्ट्रेट का निर्माण नीतीश वर्षों से करवाना चाह रहे थे। वे कहते हैं, “हम 2010 से नया परिसर बनवाना चाह रहे थे, लेकिन अभी तक मामला कोर्ट में होने के कारण काम शुरू नहीं हो सका है। अब मुझे खुशी है कि निर्माण पर स्थगन आदेश हट गया है।”

हालांकि उनकी यह खुशी क्षणिक साबित हुई क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल यथास्थिति रखने का आदेश दे दिया है। पुराना ढांचा गिराने के खिलाफ इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एेंड कल्चरल हेरिटेज (इनटैक) के पटना चैप्टर ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि न तो भारतीय पुरातत्व विभाग और न ही नवगठित बिहार अर्बन आर्ट्स ऐंड हेरिटेज कमीशन ने इमारत को ऐतिहासिक घोषित किया है। नीतीश की टिप्पणी हाइकोर्ट के इसी निर्णय के बाद आई थी।

कोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार पटना कलेक्ट्रेट परिसर का कोई ऐतिहासिक, पुरातात्विक, कला या सांस्कृतिक महत्व नहीं है। विशेषज्ञों ने अपनी राय दे दी है और इसमें हस्तक्षेप करने का हमें कोई कारण नजर नहीं आता है। कोर्ट ने कहा, “इतिहास में इस परिसर से जुड़ा कुछ महत्व हो सकता है, लेकिन वह व्यापार के मकसद से अफीम और शोरा रखने के लिए था। इस परिसर के साथ किसी मशहूर व्यक्ति का नाम भी नहीं जुड़ा है।”

डच ईस्ट इंडिया कंपनी के बनाए रिकॉर्ड रूम का एक स्केच

गंगा के तट पर स्थित पटना कलेक्ट्रेट परिसर का कुछ हिस्सा 250 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। कुछ इमारतों, खासकर रिकॉर्ड रूम और पुराने जिला इंजीनियर कार्यालय में ऊंची छत और बड़े दरवाजे हैं। विशेषज्ञ इन्हें बिहार में डच वास्तुशिल्प के आखिरी प्रतीकों में एक मानते हैं। डीएम कार्यालय जैसे ब्रिटिश काल में बने कुछ ढांचे भी हैं, जिनमें अंग्रेजी-डच वास्तुशिल्प की झलक दिखती है। इस परिसर में 19वीं सदी में हुए त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण (ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे) का पर्यवेक्षण केंद्र भी था।

नीतीश सरकार के अनुसार कलेक्ट्रेट परिसर की जो इमारतें जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं, उनकी मरम्मत नहीं की जा सकती। उन्हें गिरा कर नया निर्माण कराना ही एकमात्र उपाय है, जो स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का भी हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इमारत तोड़ने का काम फिलहाल रुक गया है।

पटना हाइकोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली इनटैक के पटना चैप्टर की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया और बिहार सरकार से दो हफ्ते में जवाब मांगा। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने विरासत के प्रति प्रेम रखने वालों को बड़ी राहत दी, जो 2016 से ‘पटना कलेक्ट्रेट बचाओ’ अभियान चला रहे हैं।

करीब एक दशक से बिहार में विरासत संजोने की लड़ाई लड़ रहे स्वतंत्र अनुसंधानकर्ता कुणाल दत्त ने आउटलुक से कहा कि पटना की ऐतिहासिक लेकिन असुरक्षित इमारतों को जानबूझकर ढहने दिया गया ताकि उन्हें तोड़ने का आधार बन सके। राज्य सरकार का कहना है कि कलेक्ट्रेट न तो भारतीय पुरातत्व विभाग की सूची में है न ही राज्य के, इसलिए यह विरासत नहीं है। सच तो यह है कि इस परिसर के साथ-साथ पटना और बिहार की अन्य ऐतिहासिक इमारतों को जानबूझकर असुरक्षित छोड़ा गया ताकि विकास के नाम पर उन्हें गिराया जा सके।

पटना कलेक्ट्रेट आजादी से पूर्व बना पहला परिसर नहीं जिसे सरकार गिराना चाहती है। 2019 में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर पटना नगर निगम ने शहर के पहले म्युनिसिपल बाजार, 100 साल पुराने गोल मार्केट को ढहा दिया। 1912 में जब पटना बिहार और उड़ीसा की नई राजधानी बना तब न्यूजीलैंड मूल के वास्तुकार जोसफ फियरिस म्युनिंग्स ने इसका डिजाइन तैयार किया था। इसी तरह, 2018 में अंजुमन इस्लामिया हॉल गिराया गया जिसका निर्माण 1885 में हुआ था।

दत्त बताते हैं, “2010 से 2015 के दरम्यान कई ऐतिहासिक इमारतें गिरा दी गईं। इनमें पटना सिटी स्थित बावली हॉल और बांकीपुर सेंट्रल जेल भी शामिल हैं। गौर करने वाली बात यह है कि बिहार सरकार की तरफ से 2008 में प्रकाशित पटनाः ए मॉनुमेंटल हिस्ट्री में पटना कलेक्ट्रेट, गोल मार्केट, अंजुमन इस्लामिया हॉल और बावली हॉल को विरासत बताया गया था। 2016 से अफीम के गोदाम की कहानी रची गई ताकि कलेक्ट्रेट के ऐतिहासिक महत्व को कम किया जा सके।”

विशेषज्ञों का कहना है कि उम्र, अनोखी वास्तुशैली और निर्माण सामग्री जैसी वजहों से पटना कलेक्ट्रेट एक विरासत है, इसे दोबारा नहीं बनाया जा सकता। दत्त कहते हैं, “ये इमारतें हमारी विरासत हैं और हमें इन्हें संजोना चाहिए।” दत्त पटना कलेक्ट्रेट को बचाने के लिए 2016 से अभियान चला रहे हैं। उनके इस अभियान को अमेरिका, इंग्लैंड, इटली, ईरान, स्कॉटलैंड और कनाडा समेत 15 देशों का समर्थन मिल चुका है। उन्होंने इसके पुनरुद्धार की योजनाएं भी पेश की थीं, जिसमें डच काल के रिकॉर्ड रूम को कलेक्ट्रेट कैफे बनाने का प्रस्ताव था। डच के आने के बाद पटना अफीम और शोरा के व्यापार का केंद्र बन गया था। गंगा के तट पर उन्होंने कई विशाल इमारतें बनाईं जो 1857 के बाद जिला प्रशासन कार्यालय में तब्दील हो गईं। इनटैक का कहना है कि इस इमारत का ऐतिहासिक महत्व सिर्फ इसलिए खत्म नहीं हो जाता कि यहां अफीम रखी जाती थी।

बेंगलूरूः द अर्ली सिटी की लेखिका और शहर की एशियाटिक बिल्डिंग को बचाने की मुहिम से जुड़ी संरक्षणवादी यशस्विनी शर्मा कहती हैं, “अफीम का व्यापार भारत के इतिहास का हिस्सा है। इसे आज के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। सिर्फ इसलिए कि यहां अफीम रखी जाती थी, इमारत को विरासत नहीं मानना नीति-निर्माताओं की अदूरदर्शिता होगी।”

इन इमारतों के पुनरुद्धार के लिए नीदरलैंड सरकार ने भी मदद का प्रस्ताव दिया था। लंदन स्थित गांधी फाउंडेशन ने भी कलेक्ट्रेट परिसर नहीं गिराने की अपील की है क्योंकि गांधी फिल्म के कई दृश्य यहां फिल्माए गए थे। फिल्म में डचकालीन रिकॉर्ड रूम को जेल और डीएम कार्यालय को कोर्ट रूम के रूप में दिखाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश से देश-विदेश के संस्कृति और विरासत प्रेमी खुश हैं। जाने-माने इतिहासकार इरफान हबीब का कहना है कि पूरा विश्व विरासत को बचाने और उन्हें संरक्षित रखने की बात करता है, लेकिन हम अतीत का सम्मान नहीं करते हैं, चाहे वह इतिहास हो या स्मारक। वे कहते हैं, “यूरोप की अनेक संसद 500 से 600 साल पुरानी हैं, लेकिन हम अपनी 100 साल से भी कम पुरानी संसद को गिरा कर सेंट्रल विस्टा जैसा कुछ नया प्रोजेक्ट ला रहे हैं। किसी दिन हम ताजमहल को भी जमींदोज कर देंगे।”

हबीब के अनुसार, “ऐतिहासिक नजरिए से पटना कलेक्ट्रेट परिसर के साथ डच जुड़ाव का रोचक पहलू तलाशा जा सकता है, लेकिन वे पुरानी इमारत गिराकर नई इमारत खड़ी करना चाहते हैं ताकि उन पर अपना नेम प्लेट लगा सकें। यह सस्ती राजनीति है, जिससे बचा जाना चाहिए।” हबीब कहते हैं अतीत का असम्मान करने वाली संस्कृति और सभ्यताएं टिकी नहीं हैं।

क्या हो सकता है पटना कलेक्ट्रेट का

पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में 233 साल पुरानी डेनिश सराय को पुनरुद्धार के बाद हुगली नदी के किनारे खूबसूरत कैफे और लॉज बनाया गया है। पटना कलेक्ट्रेट को भी उसी तरह विकसित किया जा सकता है।

गंगा के किनारे स्थित इन इमारतों की छतें काफी ऊंची हैं। इन्हें सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है जहां बिहार की कला प्रदर्शित की जा सकती है।

पटना थीम पर एक लाइब्रेरी बनाई जा सकती है जहां प्राचीन पाटलिपुत्र से लेकर आधुनिक पटना तक शहर से जुड़ी सभी किताबें और पांडुलिपियां रखी जा सकती हैं।

कैफे और स्मारकों की दुकान के साथ इस जगह को कला, शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया जा सकता है।

केरल के कोच्चि किले में बेकार पड़े गोदामों को दुकानों और कला केंद्र में तब्दील किया गया है। पटना कलेक्ट्रेट को भी उसी तर्ज पर विकसित किया जा सकता है।

पटना में दो संग्रहालय हैं जिनमें कलाकृतियां हैं, लेकिन पटना और इसके विकास की कहानी बताने वाला एक भी संग्रहालय नहीं। कलेक्ट्रेट की एक बिल्डिंग को ऐसे संग्रहालय में बदला जा सकता है, जिसमें इस प्राचीन शहर की कहानी बताने में वाली तस्वीरें और पेंटिंग्स हों।

इंग्लैंड के गांधी फाउंडेशन के अनुसार भावी पीढ़ी के लिए इसे संरक्षित किया जाना चाहिए, क्योंकि रिचर्ड एटनबरो ने महात्मा गांधी पर बनी फिल्म की शूटिंग यहां की थी।

कलेक्ट्रेट के साथ पटना कॉलेज की प्रशासनिक बिल्डिंग और गुलजारबाग प्रेस जैसी इमारतों को मिलाकर पटना में एक डच-ब्रिटिश सर्किट बनाया जा सकता है।

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