लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 11 लोकसभा सीटें जीतने का दावा ठोक रही कांग्रेस दो सीटों पर सिमट कर रह गई। कांग्रेस जरूर संतोष कर सकती है कि पिछले तीन लोकसभा चुनाव के मुकाबले उसे यहां एक सीट ज्यादा मिली, लेकिन विधानसभा चुनाव में 90 में 68 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाली कांग्रेस पांच महीने में ही धराशायी हो गई। पांच महीने से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एकछत्र राज चला रहे थे और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के खास चहेते भी बने थे। नेतृत्व नहीं बदलेगा, लेकिन परिस्थितियां बदलेंगी। सर्वाधिक विधायकों का साथ होने के बावजूद मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की पीड़ा सह रहे राज्य के वरिष्ठ मंत्री टी.एस. सिंहदेव अब अपना पत्ता खोल सकते हैं। वैसे, वे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ झंडा बुलंद करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि उनके गृह जिले के लोकसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस प्रत्याशी की हार हुई है। वे चुनाव परिणामों से पहले सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से सरगुजा क्षेत्र की जनता नाराज है। उधर, पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह नतीजों के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ आक्रामक हो गए हैं। रमन सिंह का कहना है, “भूपेश बघेल देश भर में जहां-जहां प्रचार करने गए कांग्रेस का भट्ठा बैठाया।” इस पर पलटवार करते हुए भूपेश बघेल ने कहा है, “रमन सिंह को उपाध्यक्ष तो बनाया गया, लेकिन कहीं प्रचार के लिए नहीं बुलाया गया, ये उसी की खीझ है।”
कांग्रेस छत्तीसगढ़ में कोरबा और बस्तर सीट ही जीत पाई है। दोनों ही सीटें प्रत्याशियों की मेहनत और संपर्क के कारण कांग्रेस के खाते में आईं। बस्तर लोकसभा सीट से विजयी दीपक बैज अभी विधायक भी हैं और पूरे क्षेत्र में सक्रियता उनकी पहचान है। कोरबा से विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत जीती हैं। चरणदास महंत पिछला लोकसभा चुनाव यहां से हार गए थे, लेकिन उन्होंने लोगों से जीवंत संपर्क रखा। चुनाव की कमान उन्होंने संभाली, उसका फायदा मिला। राज्य के सबसे वरिष्ठ नेता होते हुए भी मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछड़ गए महंत की पूछ-परख पत्नी की जीत से बढ़ेगी। नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति का मामला लंबित है। पहले इसके लिए विधायक अमरजीत भगत का नाम चला था, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो पाया। अब किसी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपनी पड़ेगी। संगठन को मजबूत करना होगा। दूसरा, कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करनी होगी। नाम न छापने की शर्त पर एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने कहा कि पांच महीने में न उन्हें मान-सम्मान मिला और न ही काम। लोकसभा नतीजे को देखकर कांग्रेस को समझना होगा कि विधानसभा में जनता ने उसे जिताया नहीं था, बल्कि भाजपा को बुरी तरह हराया था। पार्टी के प्रभारी महासचिव पी.एल. पुनिया हों या फिर सचिव अरुण ओरांव और चंदन यादव सभी को अपनी कार्यशैली बदलनी होगी। सरकार ने किसानों से किए वादे तो पूरे किए, लेकिन पुराने मुद्दों को उखाड़ने के अलावा विकास के काम नजर नहीं आ रहे हैं। अभी राज्य में वित्तीय संकट तो है ही, आने वाले दिनों में केंद्र सरकार से मदद नहीं मिलने की शंका भी जाहिर की जा रही है। कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी पर हमले भूपेश बघेल को कहीं भारी न पड़ जाएं। इधर भाजपा स्वाभाविक तौर पर ताकत दिखाएगी।
राज्य से आदिवासी नेता रामविचार नेताम और राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडे का भी कद बढ़ाया जा सकता है। भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष रामविचार नेताम ने कहा कि आदिवासी समाज ने इस बार नरेंद्र मोदी पर पूरी तरह भरोसा जताया। यही वजह है कि देश की 47 आदिवासी सीटों में से 33 पर भाजपा और गठबंधन की जीत हुई। छह सामान्य सीटों पर भी आदिवासी समाज के लोग जीते।
वहीं, चुनावी दौड़ से बाहर होने वाले रमेश बैस जैसे नेताओं का पुनर्वास भी तय माना जा रहा है। आगे क्या होता है, यह समय बताएगा। लेकिन एक बात तो तय है कि इस चुनावी नतीजे ने कांग्रेस को जमीन पर पटक दिया और भाजपा में प्राण फूंक दिए। वहीं, आने वाले दिनों में कांग्रेस और भाजपा के भीतर घमासान भी दिखाई पड़ सकते हैं। लोकसभा चुनाव से दूरी बनाने वाले छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के नेता अमित जोगी ट्वीट के जरिए भूपेश बघेल पर वार कर अपनी भड़ास निकालने में लग गए हैं।