कहते हैं, हर व्यक्ति अपने आपमें कहानी होता है। यह भी कहा जाता है कि हर व्यक्ति के पास कहने को कम से कम एक कहानी जरूर होती है। पर सब अपनी कहानी कह नहीं पाते। ज्यादातर को मर-खटके अपनी जिंदगी बिताने से ही इतनी फुरसत नहीं मिलती कि अपनी कहानी कह सकें। जिन्हें फुरसत मिलती है उन्हें कहानी कहने का सलीका नहीं आता। संसार जितना आदिकाल से कही जा रही कहानियों का बड़ा संग्रह है, उससे कई गुना न कही गई कहानियों का संचय है। शायद मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो कहानी कह सकता है। शायद अपनी कहानी कहकर कोई भी अधिक मनुष्य हो जाता है। जो अपनी कहानी कह पाते हैं वे अक्सर अपनी कहते-कहते दूसरों की कहानी भी कह जाते हैं।
अनामिका अनु की कहानियों का पहला संग्रह है। इससे पहले उनका पहला कविता संग्रह कुछ वर्ष पहले प्रकाशित हो चुका है। उनकी कविता में भी एक तरह की आख्यानपरकता है: वे कई बार कविता में कहानी कहती हैं। उनकी कहानियों में इसी के अनुरूप कविता है। कई बार प्रगट, कई बार अन्तर्ध्वनित या अन्त:सलिल। उनके चरित्र साधारण लोग हैं: पर वे उनके संबंधों में, उनके संघर्षों और द्वंद्वों में, उनके सहज जीवनयापन में जो कहानी छुपी है, उसे तो कहती ही हैं, उसमें अन्तर्भूत कविता को भी पकड़ती हैं। इसलिए ये प्रचलित कहानियों और उनके शिल्प से अलग हैं। ये एक कवि-कथाकार की कहानियां हैं। उनमें गहरा लगाव है तब भी जब वे अलगाव की स्थिति का सामना कर रही होती हैं। उनका मर्म हमेशा ही जीवनासिक्त और जिजीविषा से जुड़ा है और उसी से दीप्त होता है। उनमें कई बार एक मानवीय संबंध है, फिर वह प्रेमियों, पति-पत्नी, मां-बेटी आदि के बीच का हो: उसी की कहानी होती है, जिसमें परिवेश, समाज, समय, प्रकृति सब आते-जाते हैं। कई बार लगता है कि इसका शिल्प लोककथाओं जैसा है जिसमें संभव और असंभव के बीच कोई दूरी नहीं होती है और यथार्थ देखा-भोगा उतना नहीं होता, जितना रचा यथार्थ।
इन कहानियों की कथा-भाषा में बीच-बीच में ऐसी पंक्तियां आती हैं जो प्रसंग का एक तरह की सूक्ति जैसा साधारणीकरण करती हैं और उसे आभासिक्त कर देती हैं। कुछ उदाहरण देखें: राग-रोशनी से विराग-छाया तक की दूरी नाप चुका वह बूढ़ा वैरागी, प्रेम से स्थायी कुछ भी नहीं, न यह ब्रह्मांड, न इस जड़-चेतन की उपस्थिति, न ही समय की व्याप्ति, हमारा डर, हमारी शंका कितने दुखों को निमंत्रण देती है मगर चाहकर भी प्रेम की विदाई नहीं कर पाती। आधुनिक हिंदी में जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय, नागार्जुन, मुक्तिबोध से लेकर रघुवीर सहाय, कुंवर नारायण, श्रीकांत वर्मा, विनोद कुमार शुक्ल आदि कवि-कथाकारों की एक समानान्तर परंपरा बनी है। अनामिका अनु इस परंपरा में सार्थक ढंग से शामिल हो रही हैं। इस बढ़त का स्वागत है।
येनपक कथा और अन्य कहानियां
अनामिका अनु
प्रकाशक | मंजुल
कीमतः 199 रु.
पृष्ठः 200