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5 जनवरी 2026 · JAN 05 , 2026

पुस्तक समीक्षाः कहानीपन बाकी है

इस किताब का संदेश है कि मनुष्य जितना प्रकृति से विमुख होता जाएगा, समाज के लिए परिणाम उतना ही घातक सिद्ध होगा
दृश्यात्मक-विवरणता की कहानियां

इस संग्रह की कहानियां स्त्रियों की कहानियां, पुरुषों की कहानियों का हिस्सा या उनमें समाहित नहीं होतीं बल्कि स्वतंत्र और स्वनिर्मित होती हैं। ‘हम ब्रेक पर हैं’ की नायिका रीना अपने प्रेमी से बन चुकी दूरी या कहें टूटन का आदर-जनक निर्वहन करती मिलती है। प्रेम में घटित हुई ये बेहद परिपक्व परिस्थिती है। ये ‘इस दुनिया के किनारे’ कहानी की उमा का युवा चेहरा है। जिससे पाठकों की मुलाकात संग्रह की दूसरी इससे एकदम सटी कहानी में होती है। अव्यक्त आश्चर्य और अप्रदर्शित खीज में डूबा पुरुष यहां हताश है और अपने सामने जन्मी इस अकल्पनीय स्थिति के आगे असमंजस से भरा है। पुरुष के लिए किसी स्त्री में अपने लिए उत्पन्न हुआ ऐसा व्यवहार असहनीय कष्टप्रद और आश्चर्यजनक है मगर इस परिस्थिति में स्त्री को ऐसा ही होना चाहिए। यह एक स्वयं पर विश्वास करने वाली स्त्री है जिसकी समझ प्रेम और पुरुष को अलग करके देखती है। ये एक विश्वास जगाने वाली स्त्री है और उससे अलग होने की पीड़ादायी कल्पना उससे भी सुखद है।

तलईकुत्तम इस संग्रह की ऐसी कहानी है, जो हमेशा चर्चा में बनी रहेगी। अशक्त, असहाय, वृद्ध परिजन से छुटकारा पाने की अमानुषिक, आपराधिक, हत्यारी प्रथा के संबंध में पहले भी खबरें और सूचनाएं लोगों तक पहुंचती रही हैं। मगर आलोक रंजन अपनी इस कहानी में जिस तरह इस प्रथा के सिरे तक पहुंचे हैं, वह हृदय को हिला देने वाला है। इस कहानी का पुरुष भी अथक संघर्ष करती कहानी की नायिका का शत्रु नहीं। न वह उस पर जुल्म करता है न ही उस पर अपना अधिकार जमाता है। वह उसके जीवन में, उसके जीवन संघर्ष को बढ़ाता, न होने जितना मगर खाने-पीने के लिए निर्भर।

‘तालाब’ ‘रोटी के चार हर्फ’ और ‘स्वांग के बाहर’ आलोक रंजन की ऐसी कहानियां हैं जिनमें गजब का मनोविज्ञान, दृश्यात्मक-विवरणता और समकालीनता है। कहानियों में समकालीन संदर्भों का उपयोग उन्हें एकदम नया, समकालीन कहानीकार साबित करता है। ‘स्वांग के बाहर’ कहानी में रोचकता है और एक युवा स्त्री की अव्यक्त वेदनामयी कशमकश भी। शीर्षक कहानी, ‘रोटी के चार हर्फ’ कहानी के नायक की नानी सबको अपनी नानी की तरह और उसका पिता अपने पिता की तरह लगने लगता है। उसकी रोटी पाठकों को अपनी थाली की रोटी लगने लगती है।

 

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