श्रद्धा थवाइत, हिंदी कहानी का ताजातरीन स्वर है, जिसमें पर्यावरण के प्रति लगाव की चैतन्यता मिलती है। ताजा कटी घास की महक-सी भाषा और कथ्य में झरनों-सी रवानगी। परिवेश भी उनके जंगल-पहाड़ के आस-पास के। छत्तीसगढ़ की होने के कारण आदिवासी जीवन से उनका निकट का संपर्क है।
किताब में सात अलग-अलग कथ्य, परिवेश की कहानियां हैं, जिन्हें हमने सतही तौर पर देखा मगर गौर नहीं किया। इन पर श्रद्धा न केवल गौर करती हैं बल्कि इनके तंतु-तंतु अलग कर नई परत सामने लाती हैं। कहानियां पढ़कर पाठक गहरी सोच में डूब जाते हैं और हिंदी कहानी में आज इसी की दरकार है। परिवार में अवांछित वृद्धों की कहानी, गंगा-जमनी सभ्यता पर दिए जाने वाले शहरी भाषण और इसके गांवों में सहज ही बचे रहने की कहानी, नक्सल हिंसा में मारे गए जवान की कहानी, गंभीर बीमारी में दवा दिए जाने के मनोवैज्ञानिक असर प्लेसिबो इफेक्ट की कहानी, सरकारी नौकरियों में रिश्वत को समाज द्वारा सम्मानजनक सुविधा मान लेने की कहानी, चिकित्सकीय लापरवाही की कहानी, एक लड़की के विवाह के बाद हाथ से छूटते शौक को जिजीविषा से वापस हासिल करने की कहानी।
इस संग्रह की कहानियों की स्त्रियां भले सौम्य और सामाजिक हों, किंतु उनके आंतरिक अस्तित्व सजग हैं। वे अपनी कैद में छटपटाती नहीं, हाहाकार नहीं करतीं, वे समय आते ही पूरे आत्मविश्वास से अपने से बाहर निकलती हैं, घर की चौखट लांघती हैं और मनचाहा करती हैं।