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संस्कृतियों की अंतर्यात्रा

यह किताब केवल एक देश का आख्यान नहीं, बल्कि यात्रा के बहाने संस्कृतियों की अंतर्यात्रा भी है
स्वर्ग में पांच दिन

“उर्दू के प्रसिद्ध कवि मीर तकी ‘मीर’ ने लिखा है कि 19वीं शताब्दी की दिल्ली के गली-कूचे, गली-कूचे न थे, बल्कि चित्रकार के चित्र जैसे सुंदर थे। बुदापैश्त में तो कुछ और भी दिखाई देता है। हर गली के मोड़ पर ये लगता है कि सिर झुकाए, दुनिया से बेखबर अपने काम में डूबे कलाकार कुछ कर रहे हैं। लेकिन वे नजर नहीं आते, सिर्फ उनकी मौजूदगी को महसूस किया जा सकता है। अगर यह सब महसूस करना है तो मैं बुदापैश्त जाने की सलाह ही दे सकता हूं। किसी दूसरे शहर जाने की सलाह क्यों नहीं दूंगा, यह पूछा जा सकता है। मैं किसी को पेरिस जाने की सलाह नहीं दूंगा क्योंकि वहां आक्रामक सुंदरता है। मैं किसी को लंदन जाने की सलाह नहीं दूंगा क्योंकि वहां अराजक सुंदरता है। मैं किसी को वेनिस जाने की सलाह नहीं दूंगा क्योंकि वहां बनावटी सुंदरता है। मैं किसी को रोम जाने की सलाह नहीं दूंगा क्योंकि वहां बर्बर सुंदरता है। मैं किसी को प्राग जाने की सलाह नहीं दूंगा क्योंकि वहां जादुई सुंदरता है। अब आप समझ गए होंगे कि मैं आपको कहां जाने की सलाह दे सकता हूं।” सुप्रसिद्ध कथाकार और यात्री असगर वजाहत की हंगरी यात्रा के संस्मरणों की किताब स्वर्ग में पांच दिन की ये पंक्तियां यूरोप के एक देश हंगरी के शहर बुदापैश्त की प्रशंसा में लिखी गई हैं। यह पुस्तक उन्होंने अपने हंगरी प्रवास पर लिखी है। वे 1992 से 1997 तक वहां एक विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाने गए थे। वजाहत साहब बताते हैं कि यूरोप के जिप्सी समुदाय का संबंध भारत और एशिया से है। एक रोचक अध्याय में वे बताते हैं कि सोवियत सत्ता के पराभव के बाद जब जगह-जगह लेनिन और स्टालिन की मूर्तियां तोड़ी गईं तब हंगरी में उसका स्वरूप हिंसक नहीं था। शहरों में कम्युनिस्ट विचारकों और नेताओं की मूर्तियों को तोड़ा नहीं, बल्कि उखाड़ा गया और शहर के बाहर एक जगह स्थापित कर दिया गया। इस जगह को ‘मूर्ति पार्क’ कहा जाता है। पार्क देखकर यह विश्वास हो जाता है कि हंगेरियन इतिहास को तोड़ने और नष्ट करने पर विश्वास नहीं करते। इतिहास को समझना इतिहास की सबसे बड़ी भूमिका है। हम कह सकते हैं कि असल में यह किताब केवल एक देश का आख्यान नहीं, बल्कि यात्रा के बहाने संस्कृतियों की अंतर्यात्रा भी है।

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