Advertisement

किसान आंदोलन/ पंजाब: जीत से नई ऊर्जा

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो अब तीसरी पारी खेलने का भी मन बना लिया है
अमरिंदर सिंह

जिस किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी को भुनाने की कोशिश में विपक्ष लगा हुआ है, उसकी बानगी पंजाब में स्थानीय निकाय चुनावों में दिख गई। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों को कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार का समर्थन सियासी रूप से काफी फायदेमंद रहा है। इस वजह से स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली और मतदाताओं ने भाजपा को सिरे से खारिज कर दिया। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) को भी अपने गढ़ मालवा में करारी हार का सामना करना पड़ा है।

जीत से उत्साहित मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो अब तीसरी पारी खेलने का भी मन बना लिया है, जबकि मार्च 2017 में उन्होंने ऐलान किया था कि वह उनकी आखिरी पारी होगी। कैप्टन के जोश का कारण नगर निगम, नगर परिषद और नगर पंचायतों के चुनावों में कांग्रेस की एकतरफा जीत है। पार्टी को 8 नगर निगमों के 400 वार्डों में से 318 वार्ड में जीत हासिल हुई है। वहीं शिरोमणि अकाली दल को 33, भाजपा को 20 और आम आदमी पार्टी को केवल 9 वार्ड में जीत मिली है। जीत से उत्साहित पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ का कहना है, “केंद्र के कृषि कानूनों के प्रति पंजाब के लोगों में भारी गुस्से ने भाजपा को उसकी सियासी हैसियत बता दी है। 2022 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन ही सीएम का चेहरा होंगे।”

हार से परेशान भाजपा ने शर्मनाक प्रदर्शन का ठीकरा सरकार पर डाल दिया है। पंजाब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अश्वनी शर्मा का कहना है, “सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर कांग्रेस ने जबरन जीत दर्ज कर लोकतंत्र की हत्या की है।” भाजपा के पुराने साथी शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा का आरोप है कि कांग्रेस ने चुनाव बाहुबलियों और धन के बल पर जीता है।”

भले ही कैप्टन ने तीसरी पारी खेलने का मन बनाया है, लेकिन वे जानते हैं कि चुनौती आसान नहीं है। इसलिए कैप्टन ने एक बार फिर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पर भरोसा जताया है। कांग्रेस सरकार के लिए चुनावों में सबसे बड़ी चुनौती उसके लिए पूरी तरह से नशा मुक्ति का वादा, किसानों पर 65 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में से अब तक केवल 4,700 करोड़ रुपये की कर्ज माफी (वादा 30 हजार करोड़ रुपये का था), घर-घर रोजगार, केबल, खनन और शराब माफियाओं के खात्मे जैसे चुनावी वादों का अधूरा रहना है। कैप्टन को इन चुनौतियों के साथ नवजोत सिंह सिद्धू जैसे पार्टी के अंदर बैठे विरोधियों का भी सामना करना है। सिद्धू के करीबी कांग्रेस विधायक परगट सिंह ने अमरिंदर सिंह को फिर से मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा, “जिन मुद्दों को लेकर चार साल पहले हमने सरकार बनाई थी, वे पूरे नहीं हुए।” वहीं कादियां से कांग्रेस विधायक फतेह जंग सिंह बाजवा ने कहा, “मुख्यमंत्री को कुछ अफसरों व करीबियों ने बंधक बना लिया है।” शिरोमणि अकाली दल के दलजीत सिंह चीमा का कहना है, “पंजाब आज तक नशे के दंश से मुक्त नहीं हो सका है।” जाहिर है कैप्टन को निकाय चुनावों ने ऊर्जा तो दे दी है, लेकिन उनकी चुनौतियां कम नहीं हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement