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18 मार्च 2023 · MAR 18 , 2024

ज्ञानपीठ पुरस्कार: शायर, संन्यासी और पुरस्कार

इस बार ज्ञानपीठ पुरस्कार दो लोगों को मिला तो विवाद भी उछल पड़े, रचनाकारों के काम पर एक नजर
आचार्य रामभद्राचार्य

पद्म विभूषण आचार्य रामभद्राचार्य उर्फ गिरिधर मिश्र को संस्कृत में और गुलजार उर्फ संपूर्ण सिंह कालरा को उर्दू में इस बार प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया तो विवाद भी उभर आया। यूं तो प्रतिष्ठित पुरस्कारों के साथ विवाद कोई नई बात नहीं है और एक मायने में तरह-तरह की राजनीति के आरोप भी उठते रहते हैं, फिर भी इस बार कुछ  ज्यादा ही हैरानी जताई गई है। बेशक, आचार्य रामभद्राचार्य के संस्कृत साहित्य में अवदान से अपरिचय कोई तर्क नहीं बनता है। वे भगवा पहनते हैं, रामकथा बांचते हैं, यह उनकी अयोग्यता नहीं हो सकती है। किसी के पेशे या आस्‍था से वैसे भी साहित्य में योगदान को जोड़कर नहीं देखा जाता है, न देखा जाना चाहिए। रामभद्राचार्य संस्कृत के रचनाकार हैं। कवि हैं। उनकी 80 से अधिक प्रकाशित पुस्तकें हैं। वे मनोनीत आचार्य नहीं हैं, अकादमिक आचार्य हैं। बचपन से नेत्रहीन होने के बावजूद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडलिस्ट हैं। संस्कृत व्याकरण में पीएचडी हैं।

आचार्य पाणिनि पर उनका काम महत्वपूर्ण बताया जाता है। रामचरित मानस और गीता पर उन्होंने अनेक टीकाएं लिखी हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उन्हें सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के अध्यक्ष पद पर भी नियुक्त किया था। मगर गिरिधर मिश्र यानी रामभद्राचार्य ने इस नियुक्ति को अस्वीकार कर दिया था और अपना जीवन धर्म, समाज और विकलांगों की सेवा में लगाने का निर्णय लिया। अयोध्या में मंदिर प्रसंग में इलाहाबाद हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक रामभद्राचार्य ने साक्ष्‍य पेश किए थे।

वर्ष 2005 में ‘श्रीभार्गवराघवीयम्’ महाकाव्य पर साहित्य अकादेमी से सम्मानित रामभद्राचार्य की रचनाशीलता के अनेक पड़ाव हैं। गौरतलब है कि तब यूपीए सरकार का दौर था। फिर, इंदिरा गांधी ने बतौर प्रधानमंत्री उन्हें पांच स्वर्ण पदकों के साथ उत्तर प्रदेश के लिए ‘चलवैजयन्ती पुरस्कार’ प्रदान किया था। 1976 में सात स्वर्ण पदकों और कुलाधिपति स्वर्ण पदक के साथ उन्होंने आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। ‘आजादचन्द्रशेखरचरितम्’ नाम से स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद पर रामभद्राचार्य ने खंड काव्य लिखा है। उनकी कृतियां संस्कृत और हिंदी में हैं।

इस बार दूसरे नाम पर भी विवाद है। रामभद्राचार्य के साथ हिंदी फिल्मी जगत के गीतकार-निर्देशक गुलजार को यह पुरस्कार मिला है। ठीक है कि कभी पंचर बनाने वाले संपूर्ण सिंह कालरा यानी गुलजार हिंदी फिल्म जगत में बतौर गीतकार और बतौर निर्देशक भी नकल करने में श्रेष्ठ हैं। वे फिल्मी दुनिया में भी इधर-उधर का पंचर जोड़ने से बाज नहीं आते। बतौर निर्देशक सीन दर सीन उड़ा लेने में वे मास्टर हैं। वे विदेशी फिल्मों का मुकम्मल भारतीयकरण कर देते हैं। पर वे हैं उर्दू के आदमी। खांटी उर्दू के। उर्दू में किसी भी नज़्म, गजल के एक मिसरे पर पूरी गजल या नज़्म कहने की परंपरा है। गालिब, मीर, मोमिन, इकबाल समेत हर किसी ने इस परंपरा की गंगा में स्नान किया है। बहुतेरे किस्से हैं। यह कोई नई बात नहीं है। यह काम गुलजार ने फिल्मों में किया है, सो लोग उन्हें नकल करने वाला कहने लगे। यह गलत बात है। इस तरह का काम तो गुलजार से कहीं ज्यादा जावेद अख्तर ने किया है। जावेद के मामा मजाज लखनवी के तो लगभग सारे कलाम तमाम फिल्मी गीतकारों ने उठा लिए हैं। कुछ भी छोड़ा नहीं है।

गुलजार

गुलजार

सच यह है कि गुलजार और जावेद नकल करने में श्रेष्ठ ही नहीं, बेस्ट प्रजेंटेटर भी हैं। दोनों इसी का खाते हैं। लेकिन फिल्मी गीत लिखने वाले अधिकांश लोगों ने यह किया है। किसी का मिसरा, गीत किसी का। ‘तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है,’ फैज का मिसरा है पर फिल्म में गाना तो मजरूह ने लिखा है। शैलेंद्र ने भी बहुत से मुखड़े उठाए हैं। उन्होंने तो भोजपुरी से भी उठाए हैं। अनजान ने भी। इंदीवर ने भी। आनंद बख्शी ने भी बहुत किया है यह काम। शैलेंद्र को बहुत सारे मुखड़े तो राज कपूर देते थे। एस.डी. बर्मन ने तो बांग्ला लोकगीत और उसके संगीत को वहां से उठा कर उसका किसी गीतकार से हिंदी करवा दिया है। सी. रामचंद्र, नौशाद, ओ.पी. नैय्यर जैसे संगीतकारों ने भी यह सब किया है। हां, यह है कि गुलजार ने यह काम आटे में नमक नहीं बल्कि नमक में आटे की तरह किया है। इसके बाद भी यह कहना कि गुलजार शायर नहीं, चोर हैं यह कहना जरा ज्यादा ज्यादती है। गुलजार शायर हैं। उनका अपना एक मयार है। 

गुलजार के पास ओरिजिनल शायरी भी है। 2002 में साहित्य अकादेमी से सम्मानित हैं गुलजार। वे मीना कुमारी, दीप्ति नवल जैसी अभिनेत्रियों की शायरी में उस्ताद हैं। उन्होंने मीना कुमारी की डायरी से शेर उड़ा लिए जैसी बातें, कुंठित मानसिकता की बातें हैं।

रामभद्राचार्य अगर पद्म विभूषण हैं, तो गुलजार भी पद्म भूषण हैं।

(लेखक सरोकारनामा नाम से ब्लॉग लिखते हैं)

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