एदुआर्दो गलियानो लिखते हैं, “हमारी यह दुनिया, जो ताकतवर केंद्रों और शोषित हाशियों की दुनिया है, यहां कोई ऐसी संपत्ति नहीं जिसे संदेह की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए।” यही गलियानो, ‘वाशिंगटन बुलेट्स’ लिखने वाले विजय प्रशाद के नायक हैं। यह किताब दुनिया का प्रचलित इतिहास, शोषितों पर अत्याचार और उनके खिलाफ किए गए षड्यंत्रों का आख्यान है। बीसवीं शताब्दी के पांचवें दशक से अभी तक का वैश्विक इतिहास, अमेरिकी प्रभुत्व के निर्माण, प्रसार और उसके दुनिया पर पड़ने वाले असर की कहानी है। पड़ताल के केंद्र में प्रभुत्व-निर्माण और अमेरिकी नीतियां हैं, जो असंख्य युद्धों और हत्याओं का कारण रही हैं। किताब विभिन्न देशों में तख्तापलट की दास्तान और अमेरिकी हितों को ध्यान में रख कर की गई अमेरिकी बर्बरताओं का संकलन भी है।
प्रस्तावना में लेखक कहते हैं, “यह किताब छायाओं पर है लेकिन रोशनी के साहित्य पर भरोसा करती है।” अमेरिकी साम्राज्य और उसकी एजेंसी सीआइए ने दुनिया के कई देशों में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से तख्तापलट करने और राजनीतिक असंतुलन पैदा करने में बड़ी भूमिका निभाई क्योंकि ऐसा होने से अमेरिकी साम्राज्यवाद का विस्तार होने में मदद मिली। इस क्रम में सैकड़ों हत्याएं, नरसंहार और ध्वंस होते रहे। इंडोनेशिया और ग्वाटेमाला के उदाहरण से होते हुए लेखक कांगो तक आते हैं और वहां से वियतनाम सरीखे अन्य देशों में हुए तख्तापलट की बात करते हैं।
विजय तख्तापलट की पूरी प्रक्रिया समझाते हैं। किताब का दूसरा भाग विस्तार से सत्ता परिवर्तन की कुंजी की बात करता है। जनमत बनाने का खेल, वहां अमेरिकी प्रतिनिधि की तैनाती, सेना पर प्रभाव, अर्थव्यवस्था को कमजोर करना, कूटनीतिक घेराबंदी और परिणामस्वरूप जनविद्रोह जिसका हवाला देते हुए तख्तापलट को हरी झंडी दिखाना और अंत में अपनी संलिप्तता को सिरे से नकार देना। विजय बताते हैं कि कैसे साम्यवाद के खिलाफ मुस्लिम पुनरुत्थान का इस्तेमाल किया गया। किताब का तीसरा भाग पाठकों को वर्तमान दौर में लेकर आता है। यह ऐसा समय है जब साम्यवाद को हराया जा चुका है, संयुक्त रूस विखंडित हो चुका है और शोषण का एक नया दौर सामने है।
धरती का एक भी कोना ऐसा नहीं है, जो अमेरिकी साम्राज्यवाद के प्रभाव से अछूता हो। तख्तापलट के पीछे राजनीति और इसके साथ असंख्य लोगों की जिंदगियों पर पड़ने वाले प्रभावों के गहन अन्वेषण के द्वारा ये तमाम प्रश्न किताब पूछती है।
तख़्तापलटः तीसरी दुनिया में अमेरिकी दादागिरी
विजय प्रशाद
अनुवाद | संजय कुंदन
प्रकाशक| वाम प्रकाशन
मूल्य: 250 रुपये | पृष्ठ: 156