अब अंतरिक्ष यात्रा सिर्फ वैज्ञानिकों का शगल नहीं रह गया, न ही मकसद सिर्फ अनुसंधान और शोध है। हर वैज्ञानिक क्षेत्र का दरवाजा खुलता है तो अमीर-उमरों का शौक ही नहीं जागता, बल्कि अंधाधुंध कमाई का जरिया भी बना लिया जाता है। तो, भला अंतरिक्ष कैसे महफूज रह पाता? दुनिया में अंतरिक्ष पर्यटन की शुरुआत हो चुकी है यानी अगर आपकी थैली में अकूत रकम है और शौक भी है तो सितारों में सैर-सपाटा कर आइए। लेकिन ठहरिए, यह शौक फिलहाल अमेरिकी अमीर ही पाल सकते हैं। वर्जिन ग्रुप के संस्थापक अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन और अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस जैसे कई 'अल्ट्रा-रिच' अपनी निजी कंपनियों के जरिए स्पेस की यात्रा कर चुके हैं। वैसे, प्राइवेट कंपनियों का दावा तो यह भी है कि आने वाले समय में कुछ कम अमीरों और फटेहालों के भाग्य भी संवर सकते हैं, लेकिन दावों का क्या, वह अभी काफी दूर की कौड़ी है।
दरअसल, स्पेस टूरिज्म का विकास पिछले कई साल से हो रहा है। इस कड़ी में पहला बड़ा कदम तब उठा था जब 1961 में यूरी गागरिन स्पेस में गए। उस समय यह केवल वैज्ञानिक अनुसंधान और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक था। 2001 में एक अमेरिकी करोड़पति डेनिस टीटो ने असल मायने में पहले स्पेस टूरिस्ट बने। उन्होंने रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस को 20 मिलियन डॉलर (170 करोड़ रुपये) का भुगतान कर स्पेस में बतौर टूरिस्ट यात्रा की। इस घटना ने न केवल अमीरों के लिए स्पेस की राह खोली बल्कि यह साबित किया कि भविष्य में स्पेस यात्रा एक नए उद्योग का रूप ले सकती है। तब से अब तक करीब 63 लोग पर्यटक के तौर पर स्पेस की यात्रा कर चुके हैं। अकेले 2021, 2022 और 2023 में क्रमशः 18, 20 और 13 लोगों ने स्पेस की यात्रा की।
अब स्पेस पर्यटन एक उद्योग बनता जा रहा है। फ्यूचर मार्केट इनसाइट्स के एक आंकड़े के मुताबिक वैश्विक स्पेस पर्यटन बाजार का 2023 में करीब 6300 करोड़ रुपये था। 2023 में स्पेस पर्यटन की मांग में 14.0 फीसदी की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई। इसलिए, 2024 तक बाजार मूल्यांकन 7500 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है और 2034 तक इसका आकार करीब 7 गुना बढ़ जाएगा।” ब्रिटिश अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन की वर्जिन गैलेक्टिक, जेफ बेजोस की ब्लू ओरिजिन और एलन मस्क की स्पेसएक्स जैसी कई कंपनियां अब स्पेस पर्यटन पर दांव लगा रही हैं। इन कंपनियों को यूएस फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन से स्पेस पर्यटन के लिए लाइसेंस भी मिल गया है। हालांकि, अभी यह एक ऐसा सौदा है जिसे सिर्फ अमीर लोग ही वहन कर सकते हैं, लेकिन माना जा रहा है कि आने वाले समय में इसकी कीमतें कम होंगी और स्पेस यात्रा सबके लिए आसान हो जाएगी।
पहला पर्यटकः रूसी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अमेरिकी डेनिश टीटो (एकदम बाएं), 2001
स्टारवाक स्पेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्पेस में घूमने का सपना पूरा करने के लिए मोटी रकम चुकानी होगी। वर्जिन गैलेक्टिक की सब-ऑर्बिटल फ्लाइट की कीमत करीब 2.08 करोड़ रुपये है, जबकि ब्लू ओरिजिन की सब-ऑर्बिटल यात्रा के लिए यात्रियों को 2.50 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। वहीं, अगर कोई स्पेसएक्स के जरिए 3 दिन के लिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जाना चाहे, तो इसकी कीमत 458 करोड़ तक पहुंच जाती है। टिकटों की कीमत महंगी होने के बावजूद इन कंपनियों की टिकटें धड़ल्ले से बिक रही हैं। वर्जिन गैलेक्टिक और ब्लू ओरिजिन के पास हजारों लोग वेटिंग लिस्ट में हैं जो स्पेस में ट्रेवल करना चाहते हैं, जिसमें पॉप सिंगर जस्टिन बीबर और हॉलीवुड स्टार लियोनॉर्डियो डिकार्पियो जैसे लोग शामिल हैं। इसरो के पूर्व वैज्ञानिक मनीष पुरोहित आउटलुक से कहते हैं, "अभी स्पेस टूरिज्म महंगा है और कुछ ही लोग इसे वहन कर सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे तकनीक बढ़ेगी और यान प्रक्षेपण की लागत कम होगी, ज़्यादातर लोग ये यात्रा कर सकते हैं। पहले फ्लाइट से यात्रा भी अमीर ही करते थे लेकिन आज ये इतनी सस्ता हो गई है कि इसे कोई भी कर सकता है। स्पेस टूरिज्म के साथ भी ऐसा ही होगा। आने वाले समय में स्पेस में हॉस्पिटैलिटी सेक्टर का भी ग्रोथ हो सकता है।”
दरअसल, अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी ऑर्बिटल असेंबली स्पेस में एक होटल बनाने पर काम कर रही है, जो 2030 तक पूरी तरह से चालू हो जाएगा। इस होटल में एक बार में करीब 400 लोग ठहर सकते हैं। यहां आपको कॉन्सर्ट वेन्यू, बार, जिम, स्पा और एक ऐसा लाउंज मिलेगा जहाँ से आप धरती के नजारे का लुत्फ उठा सकते हैं। कई कंपनियां टिकटों की कीमतों में कटौती लाने पर काम करना शुरू कर चुकी हैं। एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने अपने फाल्कन 9 रॉकेट को ऐसा बनाया है जिसे बार-बार लॉन्च किया जा सकता है। इससे इसकी लागत 70 प्रतिशत से भी कम हो गई है। एलन मस्क ने तो यहां तक ऐलान कर दिया है कि वे स्पेस यात्रा को और लोकतांत्रिक बनाएंगे और आने वाले समय में कोई भी व्यक्ति चांद और मंगल ग्रह की यात्रा कर सकता है। ब्लू ओरिजिन भी स्पेस पर्यटन को किफायती बनाने के लिए कई शोध कर रहा है।
वैसे, अब तक स्पेस पर्यटन उद्योग की ज्यादातर गतिविधियां अमेरिका में ही केंद्रित हैं, लेकिन कई देश इस बाजार में उतरना चाहते हैं। वर्जिन गैलेक्टिक ने इटली और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ कई समझौते किए हैं। वहीं, चीन भी 2028 तक स्पेस पर्यटन शुरू करने की योजना बना रहा है। ब्रिटेन की सरकार पहले ही वाणिज्यिक स्पेस उड़ान बाजार को बढ़ावा देने के लिए बजट पास कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत की स्पेस एजेंसी इसरो इस दौड़ में कहां है?
फरवरी 2023 में आम आदमी पार्टी के सांसद सजीव अरोड़ा ने राज्यसभा में स्पेस पर्यटन को लेकर सरकार से सवाल किया था। इसके जवाब में तत्कालीन कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन तथा प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि भारत अभी अपने पहले मानव स्पेस उड़ान कार्यक्रम गगनयान पर काम कर रहा है। यह मिशन भविष्य के स्पेस पर्यटन कार्यक्रम का अग्रदूत बनेगा। इसरो ने उप-कक्षीय स्पेस पर्यटन मिशन के लिए कुछ व्यवहार्यता अध्ययन किए हैं। गगनयान मिशन की सफलता के बाद स्पेस पर्यटन की दिशा में गतिविधियों को बल मिलेगा।"
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भारत 2030 तक स्पेस पर्यटन की दिशा में कुछ बड़े कदम उठा सकता है। स्पेस पर्यटन जितना सुनने में आकर्षक लगता है, उतना ही यह कई गंभीर सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताओं को भी जन्म देता है। हाल ही में 5 जून 2024 को मात्र 9 दिन के लिए 'क्रू फ्लाइट टेस्ट मिशन' पर गईं भारतीय मूल की नासा वैज्ञानिक सुनीता विलियम्स तकरीबन 9 महीने तक स्पेस में फंसी रहीं। यह घटना न केवल स्पेस अभियानों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े करती है, बल्कि स्पेस टूरिज्म के जोखिमों को भी उजागर करती है। अगर सरकार द्वारा समर्थित और पूरी तरह प्रशिक्षित वैज्ञानिक के साथ ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, तो फिर एक आम पर्यटक के लिए जोखिम कितना बड़ा हो सकता है?
सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, पर्यावरणीय चिंताएं भी कम गंभीर नहीं हैं। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. एलोइस मारैस के अनुसार, "रॉकेट लॉन्च के दौरान ब्लैक कार्बन और एल्युमिनियम ऑक्साइड जैसे कण निकलते हैं, जो वायुमंडल को नुकसान पहुंचा सकते हैं।" उदाहरण के लिए, वर्जिन गैलेक्टिक की सब-ऑर्बिटल फ्लाइट्स प्रति यात्री लगभग 4.5 टन कार्बनडाइआक्साइड उत्पन्न करती हैं- जो एक औसत कार को एक वर्ष से अधिक समय तक चलाने के बराबर है।
दूसरा सबसे बड़ा सवाल इसके रेगुलेशन को लेकर भी उठता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 111 देशों द्वारा दस्तखत की गई 1967 की आउटर स्पेस ट्रीटी स्पेस में राष्ट्रीय संप्रभुता के दावों को प्रतिबंधित करती है, लेकिन वाणिज्यिक स्पेस में पर्यटन के लिए स्पष्ट मार्गदर्शन का अभाव है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अब हकीकत बनता जा रहा स्पेस पर्यटन भविष्य में किस तरह आगे बढ़ता है और आम आदमी पहली बार सितारों पर कैसे पहुंचता है।