Advertisement

आवरण कथा/अमेरिकी टैरिफः तबाही की ट्रम्पगीरी

पूरी दुनिया में अमेरिकी राष्ट्रपति के टैरिफ ऐलान से हड़कंप, शेयर बाजार रक्तरंजित, महा मंदी पसरने के आसार तेज हुए
अब ऐसे चलेगी दुनियाः ह्वाइट हाउस में नए टैरिफ का चार्ट दिखाते राष्ट्रपति ट्रम्प, 2 अप्रैल 2025

आगाज ही इतना खरमंडल या उथल-पुथल वाला है, तो आगे न जाने क्या-क्या होना है। अपने वादे के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2 अप्रैल 2025 को कथित  “लिबरेशन डे” का ऐलान किया तो उम्मीद के मुताबिक, दुनिया जमीन पर लोटने लगी, कम से कम शेयर बाजार तो तेजी से गर्त की ओर लुढ़क गए। ट्रम्प यह तो पहली अप्रैल को ही करने की ख्वाहिश पाले हुए थे, लेकिन बकौल उनके, “मूर्ख” कहे जाने से डर कर ऐलान एक दिन आगे बढ़ा दिया, लेकिन जो किया, उससे पूरी दुनिया ही नहीं, उनके अपने देश में भी लोग चारों ओर सड़कों पर उतर आए और “महामूर्ख खरमंडली” की चीख-पुकार हवा में गूंजने लगी। कई कयास ऐसे हैं कि जर्मनी मूल के ट्रम्प का ख्वाब “लिबरेशन डे” के मुत्तलिक हिटलर के चांसलर बनने के दिन 30 जनवरी 1933 को कथित “राष्ट्रीय क्रांति” और “पुनर्जन्म दिवस” को दोहराना है, जिसके नतीजे 30 के दशक की महा मंदी, होलोकास्ट, द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रकट हुए थे। वैसे ही महा मंदी के काले बादल फिर से घुमड़ने लगे हैं और जमीन भी धधकने लगी है। युद्ध के मोर्चे गाजा, युक्रेन और ईरान में भी मुंह बाए खड़े हैं, यह बात अलग है कि युद्ध जैसा वह दौर अब नहीं रहा तो और भी घातक रूप में असर दिख सकते हैं। लेकिन पहले देखें, उस लिबरेशन टैरिफ (जो बतौर ट्रम्प शब्दकोश में सबसे सुंदर शब्द है) ऐलान के बाद कैसी उथल-पुथल मची।

औंधे मुंह बाजार

ऐलान के बाद शुक्रवार 4 अप्रैल को दुनिया भर के शेयर बाजार खुले, तो ढहे लेकिन पूरे असर के आभास के बाद सोमवार 7 अप्रैल को दुनिया भर के शेयर बाजारों में घल्लूघारा जैसा हाहाकार मच गया। एशियाई देशों के शेयर बाजार तो धड़ाम से धूल चाटने लगे, जापान के करीब 8 फीसदी ढहे, हांगकांग 13.2 फीसदी, भारत में दलाल स्ट्रीट 4 फीसदी से ज्यादा ढहा, यूरोपीय देशों में तकरीबन 4 प्रतिशत की गिरावट देखी गई (देखें चार्ट, दुनिया भर में ऐसे ढहे बाजार)। भारत के निवेशकों के 14.2 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हुए बताए जाते हैं। इनकी यह दशा कुछ तो अमेरिका के बाजारों के भरभराने से हुई। सोमवार को ट्रम्प के घरेलू बाजार थरथरा उठे। दो दिनों में ही वॉल स्ट्रीट में 66 खरब डॉलर का नेट वर्थ धूल फांक गया। ट्रम्प के सबसे अमीर दोस्तों की बाजार पूंजी फूंकी (देखें चार्ट, अमीरों को लगा झटका)।

अमीरों को झटका

सो, वॉल स्ट्रीट के कई दिग्गज, जिनमें अधिकांश ट्रम्प के खांटी समर्थक हैं और उनके चुनाव में काफी निवेश कर चुके हैं, अब ट्रम्प के टैरिफ टेरर के खिलाफ खुलकर बोलने लगे हैं। बिलिनेयर हेज फंड मैनेजर बिल एक्कमैन ने कहा कि “अमेरिका ने खुद ही अपने लिए हाड़कंपाऊ ठंडी को बुलावा दे दिया है।” जेपी मॉर्गन चेस के सीईओ जेमी डिमोन ने चेताया, “यह लंबे वक्त में महा विपत्तिकारी हो सकता है।” अमेरिका में भयंकर मंदी की लहर आने की आशंका बलवती होती जा रही है। महंगाई बेपनाह छलांग लगा सकती है। जाने-माने अर्थशास्‍त्री प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “यह ट्रंप की संरक्षणवादी दादागीरी का नतीजा है। उनका सारा जोर यह है कि नव-उदारवादी दौर में अमेरिका ने जो उत्पादन और सेवा क्षेत्र को चीन, मैक्सिको, कनाडा, कुछ हद तक भारत और दूसरे देशों के जिम्मे छोड़ दिया था, वह वापस लाया जाए, ताकि बेरोजगारी और घटती आमदनी से लोगों को राहत मिले। लेकिन मुश्किल यह है कि चीन जैसे देशों में मजदूरी कम होने से सामान सस्ता रहेगा और अमेरिका में महंगा।”

बाजार को झटका

असल में अमेरिका में औसत न्यूनतम मजदूरी रोजाना 15 डॉलर, ऑटो उद्योग में 25 डॉलर है, जो भारत जैसे देशों में महीने का मेहनताना भी नहीं है। तो, इन सारे फैसलों से महंगाई तो बढ़ेगी ही, मांग घटने और उत्पादन पुराने स्केल पर न हो पाने से बेरोजगारी में भी खास फर्क पड़ने की संभावना नहीं है। अमेरिकी फेड रिजर्व के चेयरमैन ने कहा कि “ऊंची मुद्रास्फीति दर बनी रहने वाली है, इसलिए ब्याज दरों में कटौती जल्द खत्म हो सकती है।” इसी वजह से ट्रम्प चीन को सबसे ज्यादा धमकाने की कोशिश कर रहे हैं। ट्रम्प ने कहा, “अगर चीन ने लंबे समय से व्यापार उल्लंघनों के बावजूद 34 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ वापस नहीं लिया तो 8 अप्रैल से उसके हर अमेरिकी आयात पर 50 फीसदी टैरिफ जड़ दिया जाएगा और उससे आगे की सभी बातचीत तोड़ दी जाएगी।”

चीन ने ट्रम्प के टैरिफ ऐलान के बाद तीखी प्रतिक्रिया दी थी। उसके विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था, “हम इस नाइंसाफी का मुंह तोड़ जवाब देंगे और अमेरिका को यह भारी पड़ेगा।” चीन ने 5 अप्रैल को 34 फीसदी टैरिफ का इजाफा कर दिया। अमे‌रिका में चीन से आयात सबसे ज्यादा करीब 40 फीसदी है। उसके मुकाबले भारत वगैरह का निर्यात तो महज 4 फीसदी के आसपास है।

दरअसल यह संकट पूंजीवाद के नव-उदारवादी दौर का है, जो 2008 के सब-प्राइम संकट की वजह से आई मंदी से कभी उबर नहीं पाया। अमेरिका से शुरू हुआ वह संकट पूरी दुनिया में छा गया था। उससे चीन को अपना उत्पादन और बाजार का दायरा फैलाने का मौका मिला। अब पूंजीवाद उस संकट से उबरने के लिए नब्बे के दशक और उसके पहले हुईं तमाम संधियों और समझौतों से बाहर आना चाहता है। लेकिन क्या यह इतना आसान है। प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “ट्रम्प ने पहले कहा था कि हम टैरिफ उतना लगाएंगे, जितना दूसरे देश हम पर लगाते हैं। तो, लगता था कि चलो, यह कुछ समझदारी की बात है। लेकिन यह रेसिपोकल या बराबरी का टैरिफ नहीं, यह अमेरिकी संरक्षणवादी नीति है।”

रेसिप्रोकल शुल्क दर

मसलन, भारत का औसत टैरिफ 17 फीसदी और अमेरिका औसत 3 फीसद रहा है तो, कायदे से 13-14 फीसदी लगाना चाहिए था लेकिन 26-27 फीसदी लगा दिया गया है। उसी तरह पहले चीन पर 20 फीसदी लगाया था, अब 34 फीसदी लगा दिया है। इसी के जवाब में चीन ने भी उतना ही थोप दिया तो ट्रम्प बिफर पड़े हैं। इसी तरह विएतनाम पर 40 फीसदी लगा दिया गया जबकि इतना अंतर नहीं था। तो, यह सीधे-सीधे अमेरिकी बाजार को संरक्षण देने का मामला है। सही है कि अमेरिका की अर्थव्‍यवस्‍था सबसे बड़ी है। दुनिया में करीब 1600 खरब डॉलर मूल्य का उत्‍पादन और सेवा क्षेत्र का दायरा है और उसमें अमेरिका की हिस्सेदारी अकेले 27 फीसदी की है। यानी उसकी अर्थव्‍यवस्‍था दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था की तकरीबन 25 फीसदी है।। तो, ट्रम्प अपनी आर्थिक ताकत दिखा रहे हैं।

दरअसल टैरिफ पहले तटकर और व्यापार आम समझौता (गैट) और फिर विश्व व्यापार संगठन (डब्‍लूटीओ) के व्यापक समझौते के तहत तय हुए थे। अब ट्रम्प उसे खत्‍म कर रहे हैं। यूरोपीय संघ के नेता भी कह रहे हैं, “जो मनमर्जी होगी, वही करेंगे।। यह तो दादागीरी है।” गैट और डब्‍लूटीओ के तहत दुनिया में टैरिफ लगाने की प्रक्रिया में अमेरिका ने यह मंजूर किया था कि जो देश गरीब हैं या जहां टेक्‍नोलॉजी कमजोर है, उन्हें विशेष छूट देनी पड़ेगी। असल में यह हाइ टेक्‍नोलॉजी, इंटरमेडिएट टेक्‍नोलॉजी और लो टेक्‍नोलॉजी के आधार पर तय हुआ। तो, इंटरमेडिएट और लो टेक्‍नोलॉजी वाले देशों ने उत्‍पादन बढ़ाना शुरू किया। जैसे, चीन मजदूरी कम होने से चीजें सस्‍ती बनाने लगा। फिर कम मजदूरी की वजह से सारा उत्‍पादन और सेवा क्षेत्र चीन, भारत, मैक्सिको, कनाडा जैसे देशों में चला गया तो अमेरिका में ऑटो, स्‍टील जैसे उद्योगों में काम करने वाले लोगों को काम मिलना बंद हो गया या कमतर पैसों की नौकरियां करनी पड़ीं। अब ट्रम्प की घोषित मंशा वह उत्‍पादन दोबारा वापस लाने की है।

लेकिन सवाल है कि यह वापस जाएगा कैसे। कम मजदूरी की वजह से कमजोर देशों में सामान सस्‍ता ही पड़ेगा। इसलिए अमेरिका अंदरूनी उत्‍पादन करना चाहेगा तो भी माल महंगा होगा। इसलिए महंगाई वहां और तेजी से बढ़ेगी। दूसरी बात यह है कि सप्‍लाई चेन गड़बड़ा जाएगा। अमेरिका अभी कनाडा, मैक्सिको, चीन या दूसरे देशों से माल मंगाता है, उसके बदले दूसरे स्रोत तलाशने होंगे, सस्‍ता माल मंगाने के लिए।

रोजगार सृजन का संकट

इसकी मूल वजह पूंजीवाद की चुनौती है। अमेरिका अपने कार्यबल के लिए पर्याप्त अच्छी नौकरियां पैदा करने में सक्षम नहीं है। ट्रम्प ने नौकरियों की कमी के लिए चीन, मैक्सिको और भारत को दोषी ठहराया। अपने चुनाव अभियान के दौरान, उन्होंने कहा कि वे उन्हें वापस अमेरिका लाएंगे। अपने पहले कार्यकाल की तरह, जब उन्होंने अमेरिकी ऑटो कंपनियों को घरेलू निवेश बढ़ाने के लिए कहा, इस बार भी वे अच्छी नौकरियां पैदा करने के लिए कंपनियों पर अमेरिका में निवेश करने का दबाव बना रहे हैं। बड़े-बड़े व्यवसायी उनके घर पर लाइन लगाकर खड़े थे और अमेरिका में बड़े निवेश का वादा कर रहे थे।

हालांकि विश्व व्यापार संगठन के आगमन के साथ ही दुनिया का तेजी से वैश्वीकरण हुआ। उत्पादन वैश्विक रूप से एकीकृत हो गया। लंबी आपूर्ति शृंखलाएं स्थापित हुईं। सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात और आयात का हिस्सा हर जगह नाटकीय रूप से बढ़ा। मसलन, भारत का निर्यात और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 1991 में लगभग 7 फीसदी से बढ़कर 2023 में लगभग 22 फीसदी हो गया। अमेरिका या चीन के साथ भी ऐसा ही हुआ है। श्रम विभाजन दुनिया भर में फैल गया। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अधिक मुनाफा कमाने और प्रतिद्वंद्वियों से आगे निकलने के लिए सस्ती कीमतों पर चीजें हासिल करने के लिए लंबी आपूर्ति शृंखलाएं बनाईं। विकासशील देशों में कम मजदूरी सस्ती आपूर्ति का स्रोत बन गई। विकासशील देशों के बीच प्रतिस्पर्धा ने भी कीमतों को कम रखा। उन्नत देशों को इसका फायदा हुआ क्योंकि वे वस्तुएं सस्ते में प्राप्त कर सकते थे जिससे उनके लोगों का जीवन स्तर बेहतर हुआ।

हर ओर विरोधः शिकागो में ट्रम्प विरोधी प्रदर्शन, 5 अप्रैल

हर ओर विरोधः शिकागो में ट्रम्प विरोधी प्रदर्शन, 5 अप्रैल

उच्च प्रौद्योगिकी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने वाले उन्नत देशों को श्रम के इस विभाजन से कुल मिलाकर लाभ हुआ। लेकिन समस्या यह थी कि उन्नत प्रौद्योगिकी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन अत्यधिक स्वचालित है और अधिक रोजगार प्रदान नहीं करता है। इस प्रकार, अमेरिका में, मध्यम प्रौद्योगिकी उत्पादन (जैसे कार और धातु) से विस्थापित श्रमिकों को अच्छा रोजगार नहीं मिल सका। इसलिए, जंग खाए बेल्ट में ब्लू कॉलर श्रमिक नाखुश थे। ट्रम्प ने उन्हें नौकरियां वापस दिलाने के वादे के साथ अपने मंच पर आकर्षित किया।

लेकिन अमेरिका अपने उच्च न्यूनतम वेतन के साथ कम कीमतों पर मध्यम प्रौद्योगिकी वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकता। यह उन कीमतों से मेल नहीं खा सकता है जिस पर चीन इन वस्तुओं की आपूर्ति कर सकता है। इसलिए, इन नौकरियों को वापस लाना है और अमेरिका में उत्पादन करना है, तो इन वस्तुओं के आयात पर उच्च शुल्क लगाना होगा। दूसरे देश भी संरक्षणवादी हो जाते हैं और अपने आयात पर उच्च शुल्क लगाते हैं, तो अमेरिका और दुनिया के लिए समस्या और भी बढ़ जाएगी।

आयात पर टैरिफ बढ़ने से अमेरिका में कीमतों में वृद्धि होगी। इससे अमेरिका में मांग और उत्पादन में कमी आएगी। बेशक, इसका मतलब अन्य देशों के निर्यात में कमी होगी और उन अर्थव्यवस्थाओं में भी मंदी होगी। इस प्रकार, वैश्विक स्तर पर उच्च मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी की संभावना है। इससे राजकोषीय मौद्रिक नीति के जरिए उबरना कठिन है। अमेरिका सरकार, शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणालियों में भी अच्छे रोजगार को कम कर रहा है। टेक अरबपति एलॉन मस्क की अध्यक्षता वाला सरकारी दक्षता विभाग तेजी से सरकारी विभागों को छोटा कर रहा है। इससे मांग और कम होगी।

ट्रम्प ठीक वही कर रहे हैं जिसकी वे धमकी दे रहे थे। इन सबका असर वित्तीय बाजारों पर पड़ा है -खासकर निवेश, शेयर बाजारों, मुद्राओं और सोने की कीमतों पर। भारत के शेयर बाजारों में गिरावट आई है, डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है और विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है। इसका असर पूरी अर्थव्यवस्‍था पर पड़ने वाला है। इसके संकेत पेट्रोल-डीजल और गैस के दाम में इजाफा करके सरकार ने पहले ही दे दिया है। चीन और यूरोप ने जवाबी कर वृद्धि करके अमेरिका को साफ संदेश दिया है कि वे दबने-झुकने वाले नहीं हैं। भारत में एकदम सन्नाटा है। लेकिन हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने और ट्रम्प के फैसलों का असर आने देने का विकल्प बहुत खतरनाक है। अभी तक हीरे-जवाहरात, ऑटो पुर्जे, इलेक्ट्रानिक पुजों और पेट्रोलियम पदार्थों के व्यापार कर प्रभावित होने का अंदेशा था और शेयर बाजार में इन्ही शेयरों में ज्यादा गिरावट देखी गई। लेकिन बैंकिंग के शेयर गिरे हैं वे नए वित्तीय संकट का खतरा बता रहे हैं। दूसरी ओर यह अनुमान भी है कि हमारा कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होगा जिसकी शेयर बाजार में ज्यादा सक्रियता नहीं है।

इन सबका असर वैश्विक विकास पर पड़ रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर हर जगह आबादी के असंगठित और हाशिए पर पड़े वर्गों पर पड़ा है। एआइ का तेजी से प्रसार उनकी समस्याओं को और बढ़ा रहा है। देखना है, आगे क्या-क्या होने वाला है।

 वांग यी, विदेश मंत्री, चीन

हम इस नाइंसाफी का मुंहतोड़ जवाब देंगे। अमेरिका को भारी पड़ेगा। किसी धमकी से झुकने वाले नहीं हैं

वांग यी, विदेश मंत्री, चीन

 

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement