कृषि क्षेत्र पिछले कई साल से संकट का सामना कर रहा है और कृषि से होने वाली कमाई में लगातार गिरावट आई है। ऐसे में कृषि पर निर्भर परिवारों की बचत भी घटी है। लिहाजा, कृषि क्षेत्र में निवेश घटा है और कृषि क्षेत्र की विकास दर भी गिरी है। आंकड़ों से समझें तो 2009 से 2013 की अवधि में कृषि क्षेत्र की सालाना विकास दर 4.9 फीसदी थी, जो अब गिरकर 2.7 फीसदी पर आ गई है। ऐसे में, कोविड-19 का संकट कृषि क्षेत्र के लिए नई चुनौती लेकर आया है, इसलिए सही समय पर एक्शन नहीं लिया गया तो स्थिति बदतर हो सकती है।
कृषि निर्यात और औद्योगिक विकास दर में गिरावट से बेरोजगारी भी बढ़ी है। नतीजतन, खाद्यान्न और कृषि से संबंधित दूसरे उत्पादों की कीमतों में गिरावट आई है। इससे कृषि आय नकारात्मक स्तर पर पहुंच गई है। निर्यात होने वाले बासमती चावल, कपास, भैंस के मांस और दूसरे उत्पादों की मांग में भारी गिरावट है और आपूर्ति में भी दिक्कतें हैं।
इसके अतिरिक्त कृषि श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी दर में भी कमी आई है। छोटे और सीमांत किसानों की भी करीब 34 फीसदी आमदनी कृषि मजदूरी पर ही निर्भर है। ऐसे में, कोविड-19 की वजह से लागू हुए लॉकडाउन ने कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल असर डाला है। इससे कृषि कारोबार ठप हो गया है जो कृषि क्षेत्र का संकट बढ़ा रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के अनुसार अनौपचारिक क्षेत्र की तकरीबन 40 करोड़ आबादी ग्रामीण इलाकों में काम करती है। कोरोना की वजह से इस बड़ी आबादी के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है और ये लोग गरीबी के कुचक्र में फंस सकते हैं। लिहाजा, कृषि क्षेत्र पर बड़े स्तर पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इसके कई अहम कारण हैं। एक तो यही है कि लंबे लॉकडाउन से रबी की फसल की कटाई में भी दिक्कत आ रही है, क्योंकि इस समय श्रमिकों का संकट है। हरियाणा और पंजाब की सरकारों ने जिस तरह समय पर कदम उठाकर रबी पैदावार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के कदम उठाए हैं, वैसी तत्परता दूसरे राज्यों ने नहीं दिखाई। यही नहीं, अगर रबी पैदावार की खरीद में देरी की गई तो इस बात की भी आशंका है कि बारिश या तूफान से फसल खेतों में रहने से बर्बाद हो सकती है। दूसरी अहम बात यह है कि कर्नाटक और अन्य जगह से ऐसी खबरें आ रही हैं कि मजदूरों की कमी और ढुलाई-व्यवस्था न हो पाने से फसल की कटाई नहीं हो पा रही है और किसान जल्द खराब होने वाली फसलों को बाजार तक भी नहीं पहुंचा पा रहे हैं। मंडियां भी कई जगह बंद हैं। ऐसा तब है जब सरकार ने लॉकडाउन में भी कृषि गतिविधियों को चालू रखने और मंडियों को खोलने की बात कही है। जल्द खराब होने वाली फसलों के लिए कोल्ड स्टोरेज की उपलब्धता भी काफी कम है।
तीसरी बड़ी समस्या यह है कि सीमांत किसान और भूमिहीन मजदूरों के लिए खाद्य सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन गई है। वे अमूमन अनाज और जरूरी खाद्य वस्तुओं की हर रोज खरीदारी करते हैं लेकिन लॉकडाउन की वजह से आपूर्ति प्रभावित हुई है। ऐसे में, उनके सामने खाने-पीने का संकट खड़ा हो गया है। इस समय भारतीय खाद्य निगम के पास करीब 5.6 करोड़ टन अनाज का स्टॉक है। सरकार इस स्टॉक को गरीबों के लिए वितरण में उपयोग कर सकती है, जिसका वित्त मंत्री ने पहले ही ऐलान कर दिया है। लेकिन यह कदम तभी सार्थक होगा जब इसे बेहतर तरीके से लागू किया जाएगा। लॉकडाउन से मत्स्य और पोल्ट्री उत्पादों पर भी भारी असर हुआ है। इससे छोटे किसानों के जीवन पर संकट बढ़ गया है। चौथी अहम बात यह है लॉकडाउन से हजारों प्रवासी मजदूर अचानक फंस गए हैं। बिना किसी तैयारी के अचानक लॉकडाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियां रुक गई हैं। राज्यों और शहरों के बॉर्डर सील कर दिए गए हैं। ऐसे में जो जहां है वहीं फंस गया है। प्रवासी मजदूर कई सीमांत किसानों की जरूरतें पूरी करते हैं और कृषि क्षेत्र की सप्लाई चेन को बनाए रखते हैं। उनके फंसे होने से यह चेन पूरी तरह से टूट गई है।
पांचवी चिंता यह है कि रबी फसलों की कटाई में देरी से खरीफ की बुवाई भी देर से हो पाएगी। इससे कई क्षेत्रों में उत्पादन पर भी असर पड़ेगा। इसके अलावा बीज और उर्वरक की कमी भी समस्या खड़ी करेगी। खरीफ सीजन में करीब 25 करोड़ क्विंटल बीज की जरूरत पड़ती है जिसका मार्च से मई के दौरान इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस साल लॉकडाउन की वजह से यह प्रक्रिया ठप हो गई है। भले ही केंद्र और राज्य सरकारों ने कृषि गतिविधियों को लॉकडाउन से अलग रखने के निर्देश दिए हैं। लेकिन लोगों को स्थानीय पुलिस और प्रशासन से उत्पीड़न भी झेलना पड़ रहा है। कई स्थानों पर पुलिस ने कृषि के लिए जरूरी उत्पाद उपलब्ध कराने वाली दुकानें भी बंद करा दी हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि कोविड-19 के संकट को देखते हुए लॉकडाउन बेहद जरूरी है। लॉकडाउन से वायरस का संक्रमण कम से कम हो सकेगा। लेकिन यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि इस कवायद में सप्लाई चेन प्रभावित न हो, क्योंकि ऐसा होने से बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
इसके अतिरिक्त भारतीय खाद्य निगम, नेफेड और राज्य सरकारों को बेहतर तालमेल के जरिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद की व्यवस्था करनी चाहिए। दूसरी फसलों के लिए जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई पारदर्शी तरीके से किसानों को तुरंत करनी चाहिए। इससे किसान को इस संकट से उबरने में मदद मिलेगी और खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने में वह सक्षम होगा। इसके साथ बैंकों और वित्तीय संस्थानों को सलाह देनी चाहिए कि वे खरीफ फसलों के लिए किसानों को कम अवधि के ब्याज-मुक्त कर्ज उपलब्ध कराएं, ताकि वे फसल के लिए इनपुट खरीद सकें। साथ ही, पीएम किसान योजना के तहत किसानों को मिलने वाली राशि भी दोगुनी कर देनी चाहिए। इसमें बंटाईदार और भूमिहीन मजदूरों को भी शामिल करना चाहिए।
अंत में, हमें यह समझना होगा कि कोविड-19 भयंकर बीमारी है। इससे बड़े पैमाने पर लोगों की जानें गई हैं और आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति भी रुक गई है। हमें इससे मिलकर लड़ने की आवश्यकता है और यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि कोई भी भूखा न मरे। आने वाले दिनों में कोविड-19 से लड़ने में किसान और मजदूरों की अहम भूमिका रहने वाली है, इसलिए उन्हें प्रोत्साहन और सम्मान दिए जाने की जरूरत है।
(लेखक कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन और प्रमुख अर्थशास्त्री हैं)
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आने वाले दिनों में कोविड-19 से लड़ने में किसान और मजदूरों की अहम भूमिका रहने वाली है इसलिए उन्हें प्रोत्साहन और सम्मान दिए जाने की जरूरत