दिल्ली की हवा लगातार खराब होती जा रही है। प्रदूषण रोकने के सरकार के कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं। हालात इतने खराब हैं कि नए-नए बने प्रधान न्यायाधीश सुर्यकांत शिकायत कर बैठे कि वे कुछ देर टहले तो तबीयत नासाज हो गई। फिर, इन्हीं दिनों दिल्ली की जहरीली हवा को लेकर दो पोस्ट भी खूब वायरल हुए। पहली यूट्यूबर अक्षत श्रीवास्तव की दूसरी पत्रकार राहुल देव की। अक्षत ने लिखा कि उनकी आइआरएस अधिकारी पत्नी ने दिल्ली के प्रदूषण से तंग आकर नौकरी से इस्तीफा दे दिया है, क्योंकि अब वे लोग दिल्ली में रहना नहीं चाहते। अक्षत श्रीवास्तव की पोस्ट से पता चलता है कि ग्रुप ए सर्विस की अधिकारी आयुषि चंद ने छोटे बेटे के स्वास्थ्य की चिंता को देखते हुए सरकारी नौकरी छोड़ने का फैसला किया। जहरीली हवा से ही परेशान होकर आयुषि की तरह पत्रकार राहुल देव ने भी दिल्ली छोड़ने का ऐलान कर दिया।
अपनी एक पोस्ट में देव ने लिखा कि आखिर किसके भरोसे यहां रहा जा सकता है, क्योंकि यहां के हालात ठीक करने को लेकर किसी नेता में, सरकार में इच्छाशक्ति ही दिखाई नहीं देती। राहुल देव का यह भी कहना है कि स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन ‘स्मॉग कैपिटल’ की हालत शायद ही कभी सुधरे। हमें बीजिंग से सीख लेनी चाहिए थी, जो कभी सबसे प्रदूषित शहर था और आज वहां की आबोहवा इतनी साफ है, कि कहा नहीं जा सकता कि यहां कभी प्रदूषण था।
एक वक्त था, जब ‘दिल्ली की सर्दी’ में रोमांस और रोमांच दोनों भरपूर था। यही वह मौसम होता था, जब देश की राजधानी में सांस्कृतिक गतिविधियां चरम पर होती थीं। अब यही मौसम यहां रहने वालों को और इस मौसम में यहां का लुत्फ उठाने वालों दोनों को डराने लगा है। धुएं और धुंध में लिपटे इस शहर को कुछ साल से ‘स्मॉग कैपिटल’ कहा जाने लगा है।
प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने संसद के शीतकालीन सत्र से पहले दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्या पर फौरन विस्तार के साथ बहस की मांग की है। राहुल गांधी का कहना है कि राजधानी की हवा इतनी खराब हो गई है यह स्वास्थ्य के लिए आपात स्थिति जैसे हालात पैदा कर रही है। राहुल गांधी का कहना है कि ऐसे समय में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी समझ से परे है। जब बच्चे जरीली हवा में सांस ले रहे हों, तब सरकार की तरफ से जिम्मेदारी और तत्परता दिखाई पड़ना चाहिए। उन्होंने अपने घर पर कई ऐसी मांओं से भी मुलाकात की बच्चों की सेहत पर प्रदूषण के कारण गंभीर असर पड़ रहा है।
विशेषज्ञों और चिकित्सकों का भी मानना है कि पुरानी और गंभीर बीमारियों वाले लोगों, बुजुर्गों और बच्चों के लिए हालात सच में बेहद खराब हैं। इस हवा में सांस लेना स्वस्थ लोगों के लिए ही जोखिम भरा है, तो बीमार लोगों के बारे में तो सोचा ही जा सकता है।
दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बन चुकी दिल्ली पिछले 15 दिनों से प्रदूषण के धुएं से घिरी हुई है। पिछले कई हफ्तों से दिल्लीवाले आंखों में जलन, गले में दर्द और सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। सभी इस प्रदूषण पर चिंता जाहिर कर रहे हैं लेकिन इसके मुख्य कारणों पर अभी भी ठीक से बात नहीं हो पा रही है। दिल्ली में प्रदूषण के लिए, मुख्य रूप से वाहनों के धुएं, निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल, औद्योगिक प्रदूषण और परंपरागत ईंधन और ठोस अपशिष्ट को जलाना माना जाता है। इसके अलावा, उत्तर भारत में पराली जलाने के कारण भी राजधानी की हवा को बहुत ज्यादा प्रभावित होती है। अक्टूबर और नवंबर में पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाने से दिल्ली की हवा में सूक्ष्म कणों (पीएम2.5 और पीएम10) की मात्रा असामान्य रूप से बढ़ जाती है।
ये छोटे-छोटे सूक्ष्म कण नाक से फेफड़े में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है। बच्चों, बुजुर्गों और फेफड़ों या हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिए यह विशेष रूप से खतरनाक है। लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग, और यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं।
सर्दियों में हवा की गुणवत्ता ‘गंभीर’ या ‘बहुत गंभीर’ स्थिति तक पहुंच जाती है। प्रदूषण स्वास्थ्य ही नहीं सामाजिक स्तर पर भी असर डालता है। स्कूल बंद करने पड़ते हैं, आउटडोर गेम्स पर प्रतिबंध लगता है। अक्सर मास्क पहनने की सलाह दी जाती है लेकिन मास्क भी बचाव की पूरी गारंटी नहीं होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी), हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) और कैलिफोर्निया एयर रिसोर्स बोर्ड के आंकड़ें बताते हैं कि दिल्ली-एनसीआर समेत दुनिया के बड़े शहरों में प्रदूषण के खतरे गहराते जा रहे हैं। ताजा रिपोर्ट बताती है कि यह सिर्फ दिल्ली-एनसीआर की चिंता नहीं है, बल्कि यदि इस संकट से निपटने के गंभीरता से प्रयास नहीं किए जा रहे हैं इसलिए पूरे सिंधु समेत गंगा के मैदान की हवा के लिए यह ‘ग्लोबल रेड अलर्ट’ का समय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली-एनसीआर और सिंधु-गंगा का मैदान पृथ्वी के सबसे खतरनाक वायु प्रदूषण क्षेत्र में बदल रहा है। आने वाले 10 साल में यह क्षेत्र स्थायी रूप से प्रदूषित हवा का केंद्र बन सकता है, यदि इसे सुधारने के प्रयास न किए गए।
उत्तर भारत में सर्दियों का मौसम लगातार संकट लेकर आ रहा है। पिछले कुछ साल सुधार के उपाय इतने नहीं हो सके हैं कि पीएम 2.5 का स्तर सुरक्षित सीमा से ऊपर न जाए। उत्तर भारत में जनसंख्या घनत्व ज्यादा है, सार्वजनिक परिवहनों के साधन पर्याप्त नहीं हैं, कृषि और उद्योग भी इसे बढ़ाने में इजाफा ही करते हैं। ऐसा नहीं है कि पहले कभी दूसरे शहरों के प्रदूषण पर काबू नहीं पाया गया है। लेकिन इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। लंदन, बीजिंग और लॉस एंजिल्स में भी भारी प्रदूषण था। लेकिन इस पर काबू पाया गया। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर भारत की चुनौती अलग है। क्योंकि दिल्ली-एनसीआर और सिंधु-गंगा का मैदान की भौगोलिक संरचना अलग है। यह इलाका काफी बड़ा है और यहां हवा का फैलाव ज्यादा नहीं हो पाता। इसलिए ठंड के दिनों में हवा की तासीर कम तापमान वाली स्थिर हो जाती है। हवा कैद हो कर रह जाती है यही फंसी हुई हवा प्रदूषण के स्तर को बढ़ा देती है।
हालांकि नवंबर के आखिरी रविवार को हवा की गुणवत्ता में मामूली सुधार दर्ज किया गया था लेकिन यह नाकाफी है। दिल्ली का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 270 था। बावजूद इसके हवा की श्रेणी खराब ही थी। लेकिन यह ‘खराब’ भी राहत की बात लग रही है क्योंकि लगभग 16 दिन बाद एक्यूआई में सुधार दिखाई पड़ा।
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, हवा की दिशा और गति में बदलाव आने के कारण मौसम में मामूली सुधार आया है। इस बार देखा जाए, तो पड़ोसी राज्यों में भी पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई। फिर भी हालात चिंताजनक ही हैं। सरकार ने पंजाब-हरियाणा के किसानों को पराली न जलाने के लिए समझाइश देने के साथ एक मुहिम भी चलाई थी। जिससे इसमें कमी आई और प्रदूषण स्तर में भी गिरावट आई।
यह भी एक चिंता का विषय है कि जब हर साल यह प्रदूषण लौटता है, तो फिर इसके बचाव के कोई उपाय क्यों नहीं खोजे जाते। यहां तक की एमिकस क्यूरी वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह ने जब स्वास्थ्य आपात स्थिति का हवाला देते हुए, सुप्रीम कोर्ट से इस बारे में हस्तक्षेप की मांग की थी, तो प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने टिप्पणी की थी, “हमारे पास जादू की छड़ी नहीं है।’’ उन्होंने यह माना था कि दिल्ली एनसीआर में सभी लोग प्रदूषण से ग्रस्त हैं लेकन लेकिन “कोर्ट के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जो समस्या को तुरंत हल दे।’’ यह तो सच है कि यह समस्या किसी जादू की छड़ी से खत्म नहीं हो सकती, तो क्या फिर कानून की छड़ी ही इसका एकमात्र उपाय है। यदि हां, तो फिर इंतजार किस बात का हो रहा है।