साल 1818 में प्रकाशित मशहूर लेखिका मेरी शैली के उपन्यास फ्रैंकेनस्टाइन का शीर्षक ऐसे काल्पनिक पात्र पर आधारित था, जो अपना सृजन करने वाले के लिए ही जी का जंजाल बन जाता है। अंग्रेजी साहित्य के उस पात्र का जिक्र अक्सर एक मुहावरे के रूप में वैसी परिस्थितियों में किया जाता है, जब किसी का अपना आविष्कार उसी का अहित करने लगता है। आधुनिक युग में विज्ञान और तकनीक के कारण दुनिया भर में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए, जिससे आम लोगों की जिंदगियां बेहतर हुईं, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी सामने आया। कुछेक आविष्कार ऐसे भी हुए, जिसके कई दुष्परिणाम भी साथ-साथ देखने को मिले। भले ही ये खोज मानव सभ्यता के सतत विकास की दिशा में किये जा रहे निरंतर प्रयास का हिस्सा थे, उनके दुरुपयोग से विज्ञान का वरदान कई मायनों में अभिशाप के रूप में सामने आया।
सूचना क्रांति के दौर में ही इससे जुड़ा सवाल मौजूं बना हुआ है। पिछले ढाई-तीन दशकों में इंटरनेट के प्रादुर्भाव से दुनिया की तस्वीर और तकदीर बदल गई है। इसके कारण एक अद्भुत आभासी दुनिया का सृजन हुआ है जहां सरहदों की बंदिशें नहीं है और देशों के बीच की दूरियां मिट गई हैं। आज ऑनलाइन माध्यम से दुनिया के अलग-अलग देशों में रह रहे लोगों के बीच संपर्क इतना सुगम हो गया है जिसकी कल्पना पहले नहीं की जा सकती थी। इसके कारण वैश्विक स्तर पर सामाजिक-सांस्कृतिक संबंध भी मजबूत हुए हैं। इसके बावजूद, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस क्रांति के कारण दुनिया भर में साइबर अपराध के मामलों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। साइबर अपराध की घटनाओं का इतिहास वैसे नया नहीं है। इंटरनेट युग के आरंभ से ही अपराधी तत्वों ने इसका प्रयोग अपने लाभ के लिए खूब किया। इसका दुष्परिणाम आर्थिक क्षेत्र में देखने को मिला, जिससे सबसे ज्यादा आम आदमी प्रभावित हुआ। उसके बैंक खातों की जानकारी निकाल ली गई, एटीएम कार्ड क्लोन किए गए, पासवर्ड या पिन हैक किए गए और सारी जमा-पूंजी डिजिटल दुनिया के शातिर नटवरलालों ने धोखे से निकाल ली।
बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों ने बढ़ते साइबर अपराधों को देखते हुए ग्राहकों के हित में अपने स्तर पर पुख्ता इंतजाम तो किए लेकिन वे नाकाफी साबित हुए। दुनिया भर की सरकारों ने भी साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए व्यापक प्रबंध किए लेकिन ऐसी घटनाओं में कमी नहीं आई। जैसे-जैसे नए कानून बनते गए, साइबर अपराधियों ने बचने के नए-नए हथकंडे अपना लिए। इस सदी की शुरुआत में लोगों को ईमेल के माध्यम से ठगने की शुरुआत हुई। आज साइबर ठगी का स्वरूप व्यापक हो चुका है। पिछले तीन-चार साल में साइबर अपराधियों ने तथाकथित हनी ट्रैप के जरिए फर्जी वीडियो बनाकर लोगों को ब्लैकमेल करना शुरू किया। जब यह तरीका पुराना हो गया तो उन्होंने ‘डिजिटल अरेस्ट’ ईजाद किया और लोगों को सरकारी जांच एजेंसियों का डर दिखाकर पैसे वसूलना शुरू किया। कुछ मामलों में तो साइबर अपराधियों ने बाकायदा फर्जी न्यायालय का सेट लगाकर लोगों को गिरफ्तारी का डर दिखा कर पैसे अपने खातों में ट्रांसफर कराए।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में साइबर अपराध का खतरा कई गुना बढ़ गया है। एआइ तकनीक का नायाब नमूना है लेकिन विज्ञान के हर नए आविष्कार की तरह इसके भी दो पहलू हैं। अगर इसका उपयोग समाज की बेहतरी के लिए होता है, तो यह निश्चित रूप से आधुनिक युग का वरदान साबित हो सकता है, लेकिन इसके दुरुपयोग का खतरा भी है। इसके माध्यम से लोगों के न सिर्फ फर्जी फोटो और वीडियो बनाए जा रहे हैं, बल्कि किसी की आवाज की हुबहू नकल की जा रही है। कई लोगों को उनके परिजनों की नकली आवाज सुनाकर झूठे मामले में उनकी गिरफ्तारी का भय दिखाकर पैसे ऐंठे गए हैं। इससे इसके खतरे की गंभीरता समझी जा सकती है कि ऐसे मामलों में सिर्फ अशिक्षित या कम पढ़े-लिखे लोग ही नहीं फंसे। कई मामलों में तो डॉक्टर, इंजीनियर या बड़े सरकारी अधिकारियों ने भी लाखों-करोड़ों रुपये गंवाए।
जैसा कि हमारे इस अंक की आवरण कथा से स्पष्ट है, साइबर अपराध के बढ़ते स्वरूप से दुनिया भर के देश प्रभावित हैं, लेकिन भारत के लिए यह सबसे बड़ा खतरा बन गया है। देश भर में मोबाइल फोन की पहुंच व्यापक स्तर पर है और समाज का कोई तबका ऐसा नहीं है जहां अब ऑनलाइन माध्यम से पैसों का लेन-देन नहीं होता। बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल से लेकर रेहड़ी-पटरी वाले इस माध्यम से व्यापार करते हैं। स्मार्ट फोन अब विलासिता नहीं आवश्यक साधनों में एक है, जिसके बगैर अधिकतर लोगों की जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती। अधिकांश ऐसे लोग हैं, जिन्हें साइबर अपराध और उससे बचने के तमाम उपायों के बारे में जानकारी नहीं है। ये वही लोग हैं जो ऐसे अपराधों के सबसे पहले और आसान शिकार बनते हैं। इसलिए भारत सहित दुनिया भर की सरकारों का दायित्व है कि साइबर अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए हर संभव कड़े कानून बनाए, ताकि तकनीक की बदौलत हासिल हुई एक नेमत फ्रैंकेनस्टाइन न बन सके।