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आपदा/हिमाचल प्रदेश: आंख खुली पर देर से

शिमला-मनाली जैसे पर्यटन स्थलों पर बारिश में हुई भारी तबाही पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट सख्त
धसकती जमीनः शिमला में हाइवे हो या इमारतें, सबके नीचे की मिट्टी कट रही है

सभ्यता के विकासक्रम में जब मनुष्य की जरूरत के ऊपर लोभ हावी होने लगा, तो वह कुदरती संसाधनों का अत्यधिक दोहन करने लगा। यही दोहन आगे चलकर हमारी तरक्की के आड़े आ गया। इस लोभ ने धरती का नाश कर दिया और कुदरती आपदाओं को आमंत्रण दिया। हिमाचल प्रदेश में आज जो हो रहा है, वह इनसान की लालच का ही नतीजा है। शिमला इसका ज्वलंत उदाहरण है, जिसे महज 25000 की आबादी के लिए बसाया गया था लेकिन आज वह अपनी ही आबादी के भार तले दब चुकी है।   पिछले महीने शिमला में अप्रत्याशित बारिश के कारण हुई भारी तबाही, भूस्खलन, इमारतों के गिरने और मिट्टी के धसकने के चलते हरे-भरे देवदारों के उखड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट को भी अपना मुंह खोलना पड़ा है। सर्वोच्च अदालत ने 13 हिमालयी शहरों की वहन क्षमता के तात्कालिक अध्ययन का आदेश दिया है।

अकेले शिमला ही नहीं, मैक्लोडगंज और मनाली जैसे खूबसूरत शहर भी नष्ट हो रहे हैं। इसके पीछे अस्तव्यस्त, अवैज्ञानिक, अनियमित और अवैध निर्माण का हाथ है। मैक्लोडगंज तो जोशीमठ की राह पर है, जहां सड़कें धंस चुकी हैं, मकानों में दरारें पड़ चुकी हैं और नाले जाम हो जाने के कारण बाढ़ आ चुकी है। जुलाई में बारिश और बाढ़ के चलते मनाली में बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था। इस मशहूर पर्यटन स्‍थल तक आने वाला सड़क मार्ग पूरी तरह बंद हो गया था। इन्हीं  के मद्देनजर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है कि वह सभी 13 हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की वहन क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए एक समयबद्ध कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश दे। वहन क्षमता का आकलन देहरादून स्थित जीबी पंत नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेन्ट द्वारा तैयार दिशानिर्देशों के मुताबिक किया जाना है।

मकानों के नीचे से कटती मिट्टी

मकानों के नीचे से कटती मिट्टी

सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में मंत्रालय ने लिखा है, ‘यह जरूरी है कि हर हिल स्टेशन के तथ्यात्मक आयामों की विशिष्ट पहचान और संकलन स्थानीय अधिकरणों के सहयोग से किया जाए।’ मंत्रालय ने यह भी सुझाव दिया है कि ‘13 हिमालयी राज्यों द्वारा तैयार वहन क्षमता आकलन का परीक्षण एक तकनीकी समिति कर सकती है, जिसकी अध्यक्षता जीबी पंत इंस्टिट्यूट के निदेशक करें।’

मंत्रालय के मुताबिक राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में लंबित प्रकरणों के संबंध में मसूरी, मनाली और मैक्लोडगंज के लिए किए गए ऐसे ही अध्ययनों में संस्थान की संलग्नता पहले से रही है। एनजीटी ने 2016-17 में ही शिमला और अन्य शहरों की वहन क्षमता का अध्ययन करने के लिए एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, जीबी पंत नेशनल इंस्टिट्यूट, वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ सीस्मोलॉजी और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के विशेषज्ञ शामिल थे। इस कमेटी के निष्कर्षों के आधार पर एनजीटी ने शिमला और कसौली में किसी भी नई निर्माण गतिविधि पर पूरी रोक लगा दी थी। कमेटी ने कहा था कि यहां की ज्यादातर इमारतें नाजुक और असुरक्षित हैं जो अस्थिर और धंसती हुई ढलानों पर बने होने के चलते गिर जाएंगी। इससे भारी इनसानी क्षति हो सकती है जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। एनजीटी ने इन्हींं चिंताओं के मद्देनजर निर्माण पर पूरी तरह रोक लगा दी थी।   

कमेटी ने इस बात पर भी चिंता जताई थी कि ज्यादातर भवन निर्माण 45 अंश से अधिक कोण पर टिकी जमीनों पर हुआ है और कुछ मामलों में तो यह ढलान 70 डिग्री तक चली गई है। रिपोर्ट ने तत्काल शिमला पर आबादी का बोझ कम करने और भीड़ घटाने का सुझाव दिया था, खासकर संजौली, ढली, टुटु और लोवर लक्कड़ बाजार जैसे सघन इलाकों में। कमेटी का कहना था कि तमाम ऐसे संस्थान जिन्हें  शिमला से चलाए जाने की मजबूरी नहीं है, जिनमें रक्षा प्रतिष्ठान भी शामिल हैं, उन्हें दूसरी जगह ले जाया जाना चाहिए। अफसोस की बात है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के सचिव देवेश कुमार इस बात को स्वीकार करते हैं कि शिमला में आबादी बढ़ने और इमारतों की सुरक्षा के संबंध में कई समस्याएं लंबे समय से चली आ रही थीं। वे बताते हैं कि सरकार ने शहर में भवनों का अध्ययन करने के लिए एक विशेषज्ञ कमेटी बैठा दी है और निश्चित रूप से राज्य की कैबिनेट नागरिकों की चिंताओं को संबोधित करेगी। हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी मनाली और मैक्लोेडगंज की वहन क्षमता पर एक अध्ययन करवाया था और उसके आधार पर सुझाव दिया था कि समूचे मनाली नगरीय क्षेत्र और मैक्लोडगंज के तीन वार्डों में निर्माण कार्य पर रोक लगाई जाए।

मिट्टी-पानीः इस बारिश में हिमाचल की तबाही का सबसे बड़ा कारण बहते हुए पानी और मिट्टी से आई बाढ़ है

मिट्टी-पानीः इस बारिश में हिमाचल की तबाही का सबसे बड़ा कारण बहते हुए पानी और मिट्टी से आई बाढ़ है 

भाजपा के एक पूर्व मंत्री मोहिंदर नाथ सोफट कहते हैं, ‘अजीब बात है कि किसी ने भी विभिन्न कमेटियों की सिफारिशों को नहीं माना। मैं सुप्रीम कोर्ट की पहल का स्वागत करता हूं, अब शिमला की पहचान को बचाने के लिए मामले को उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाना ही होगा।’

शिमला की समस्याओं में इजाफा खासकर अस्सी के दशक में आए पर्यटन में उछाल के बाद हुआ। शिमला के शुरुआती होटलों में एक होटल हिमलैंड के मालिक उमेश अक्रे बताते हैं कि उनके पिता वीपी अक्रे होटल उद्योग में अग्रणी शख्सि‍यत थे, जिन्होंने 1969 में पचास कमरे का एक होटल स्टेट फाइनेंशियल कॉरपोरेशन के प्रबंधन निदेशक दीवान गोविंद सहाय के सहयोग और प्रेरणा से बनवाया। वे बताते हैं, ‘मेरे पिता ने ही इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज, सीपीआरआइ और कुछ महत्वपूर्ण भवन बनवाए, जिनमें सेंट बीड्स कॉलेज भी है। हिमलैंड होटल शिमला की पहली भूकंपरोधी निजी इमारत है, जो तकनीक आज भी यहां की इमारतों से नदारद है जिसके चलते वे भूस्खलन और भूधंसाव का शिकार हो जाती हैं।’

सैलानियों के बाजार का दोहन करने के लिए बीते पचास साल में बनाए गए ज्यादा से ज्यादा होटलों ने ही शिमला के वातावरण को बरबाद करने का काम किया है। इनके चलते पानी, बिजली, ट्रैफिक, स्वच्छता आदि बुनियादी जरूरतों पर दबाव पड़ा है। पलट कर इसका असर होटल उद्योग पर भी पड़ा है। जुलाई 2023 के बाद से सैलानियों की आमद बमुश्किल पांच फीसद या उससे कम रही है।

डॉ. वाइएस परमार वानिकी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और पर्यावरणविद डॉ. विजय सिंह ठाकुर कहते हैं, ‘नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी के लिए ज्यादा आबादी और अत्यधिक इनसानी गतिविधियां खतरनाक हैं। शिमला और अन्य शहरों की वहन क्षमता पहले ही खत्म हो चुकी है। निर्माण पर अब पूर्ण विराम लगाने की जरूरत है।’

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