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सब दूर बदलाव की आहट

मतदाता मोटे तौर पर मौन, शोर-शराबा भी कम, पार्टियां जाति गणित साधने और मुद्दों को धार देने में मशगूल
मुख्यमंत्री बघेल का शक्ति प्रदर्शन

ओडिशा की सीमा से करीब 20 किलोमीटर दूर बागबाहरा में पास के गांव खमारमुंडा के रहने वाले लखनलाल ध्रुव कहते हैं, “इस बार महासमुंद लोकसभा सीट कांग्रेस अच्छे मतों से जीतेगी।” लखनलाल का कहना है, “रमन सरकार ने प्रति परिवार 35 किलो से घटाकर प्रति व्यक्ति महीने में सात किलो चावल कर दिया था। उतने में गुजारा चलता नहीं। अब भूपेश बघेल सरकार हर महीने फिर से प्रति परिवार 35 किलो चावल देगी, इसलिए हम लोग कांग्रेस को ही वोट देंगे।” आदिवासी समाज भी कांग्रेस को ही वोट करेगा। खेती और वकालत करने वाले रवि निषाद कहते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई वादा पूरा नहीं किया, केवल प्रचार कर रहे हैं।” वहीं, वकील नरेंद्र चंद्राकर का कहना है, “मोदी के नाम और काम के कारण भाजपा को वोट मिलेगा। आतंकवादियों के ठिकाने पर सीधे अटैक से मोदी जी की नई छवि उभरी है।” बागबाहरा महासमुंद लोकसभा सीट में सवा 15 लाख वोटर हैं। इस सीट में साहू समाज की सर्वाधिक 23 फीसदी आबादी है। इसे ध्यान में रखकर ही भाजपा और कांग्रेस ने साहू समाज से प्रत्याशी खड़े किए हैं। भाजपा से खल्लारी के पूर्व विधायक चुन्नीलाल साहू मैदान में हैं तो कांग्रेस से अभनपुर के विधायक धनेंद्र साहू प्रत्याशी हैं।

कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे दिवंगत विद्याचरण शुक्ल ने 1957 में इसी सीट से चुनाव जीतकर संसदीय जीवन की शुरुआत की थी। कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट से अजीत जोगी 2014 में महज 1,217 वोटों से भाजपा के चंदूलाल साहू से चुनाव हार गए थे। इस सीट में आदिवासी वोटरों की संख्या काफी है और निर्णायक भी। यह लोकसभा क्षेत्र राज्य के तीन जिलों में फैला है। महासमुंद जिले के महासमुंद, सराईपाली, बसना और खल्लारी। धमतरी जिले के धमतरी और कुरुद तथा गरियाबंद जिले के राजिम और बिंद्रानवागढ़ विधानसभा इसमें आते हैं। भाजपा भले राष्ट्रवाद और स्वाभिमान की बात करे, यहां के लोगों को तो ऋणमाफी और 2,500 रुपये की दर से धान खरीदी दिख रही है। नौ एकड़ जमीन में खेती-किसानी कर परिवार का पालन-पोषण करने वाले जयंती चंद्राकर कहते हैं, “कांग्रेस सरकार ने उन्हें लाभ दिया।”

रायपुर लोकसभा के आरंग में कांग्रेस का झंडा लिए पार्टी की सभा में शामिल होने के लिए बुजुर्ग और महिलाओं के पैदल मार्च से लोकसभा चुनाव में भी विधानसभा जैसे नतीजे की बात होने लगी है। आरंग की सभा में भले ही राज्य के नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डेहरिया नहीं पहुंचे थे, लेकिन उनके इंतजार में भीड़ धूप में पंडाल के नीचे शांति से बैठी दिखी। रायपुर लोकसभा में पूर्व और वर्तमान महापौर के बीच टक्कर है। भाजपा ने सात बार के सांसद रमेश बैस का टिकट काटकर पूर्व महापौर सुनील सोनी पर दांव लगाया है। कांग्रेस ने रायपुर के वर्तमान महापौर प्रमोद दुबे को उतारा है। ग्राहकों को टीशर्ट दिखाते सौरभ सोनवानी कहते हैं, “इस बार तो यहां कांग्रेस का ही जोर दिख रहा है।” आरंग में कांग्रेस के झंडे ज्यादा दिखे। पान बेचने वाले दिनेश कुमार कश्यप मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं। उनका कहना है, “मोदी को एक कार्यकाल और मिलना चाहिए।” 

रायपुर लोकसभा में 19 लाख मतदाता हैं। ओबीसी और एससी वोटरों की बहुलता वाले इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा ओबीसी प्रत्याशी पर दांव लगाती रही है। इस बार उसने ओबीसी उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। रायपुर लोकसभा में शहरी इलाके ज्यादा हैं और यह सीट भाजपा का गढ़ रहा है। इस वजह से दोनों सीटों में कड़ा मुकाबला दिख रहा है। यहां मोदी का राष्ट्रवाद काम करता दिखाई दे रहा है तो राहुल की न्याय योजना भी लोगों की जुबान पर है।

दुर्ग लोकसभा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की साख दांव पर लगी है। दुर्ग से कांग्रेस ने पूर्व विधायक प्रतिमा चंद्राकर को उतारा है। मुख्यमंत्री की करीबी प्रतिमा का मुकाबला मुख्यमंत्री के रिश्तेदार भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल से है। यहां साहू समाज के वोट निर्णायक होंगे। कुर्मी समाज के वोट बटेंगे, क्योंकि दोनों प्रत्याशी कुर्मी समाज से ही हैं। जानकारों का कहना है कि यहां कुर्मी समाज के तीन कुनबे हैं, इसमें दल्लीवार कुनबे पर विजय बघेल की पकड़ है। मनवा कुर्मी और चंद्रनाहू कुर्मी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की वजह से कांग्रेस के पक्ष में दिख रहे हैं। गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने 2014 में यह सीट जीती थी। कांग्रेस की यह इकलौती सीट थी। भिलाई के भाजपा नेता दयासिंह कहते हैं, “साहू वोटर भाजपा के परंपरागत मतदाता हैं। पार्टी किसी भी कीमत पर इसे दूर नहीं होने देना चाहती।” भिलाई भी इसी संसदीय क्षेत्र में आता है। मिनी भारत कहे जाने वाले भिलाई में बिहारी वोटर भी बड़ी तादाद में हैं। वहीं, दक्षिण भारतीयों की भी अच्छी संख्या है। झारखंड के मूल निवासी और दुर्ग में पले-बढ़े एक युवा मोदी की नीतियों को सही मानते हैं और उन्हें ही वोट देना चाहते हैं। उनका कहना है, “मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है, इसलिए प्रत्याशी कौन है यह मायने नहीं रखता।” दुर्ग को फतह करने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा भी निकल पड़े हैं। उनके विधायक बेटे अरुण वोरा तो पहले से ही फील्ड में हैं।

राजनांदगांव में इस बार लड़ाई साहू और ब्राह्मण प्रत्याशी में है। कांग्रेस के प्रत्याशी भोलाराम साहू क्षेत्र के लिए जाने-पहचाने चेहरे हैं। वहीं, भाजपा के संतोष पांडे नए हैं। वैसे तो यह क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का है। वे राजनांदगांव से विधायक हैं और वे यहां से सांसद भी रह चुके हैं। पिछली बार उनके पुत्र अभिषेक सिंह सांसद चुने गए थे।  भाजपा प्रत्याशी की जीत की कमान तो डॉ. रमन सिंह के पास है, लेकिन साढ़े तीन लाख साहू वोटर अपने समाज के प्रत्याशी को छोड़कर भाजपा के साथ हो  जाएंगे, इसकी संभावना कम दिखती है। राजनांदगांव में फल बेचने वाले रज्जाक खान का कहना है, “साहू समाज तो भोलाराम साहू के साथ ही रहेगा।” यहां लोधी वोटर भाजपा के हैं, लेकिन उनके भी बंटने की संभावना है। इस कारण इस बार कांग्रेस की स्थिति अच्छी है। प्रधानमंत्री आवास योजना के चलते गरीब तबका मोदी के साथ जुड़ा है और कुछ हद तक राष्ट्रवाद भी उसे लुभा रहा है। राजनांदगांव के एक बर्तन दुकान में काम करने वाले व्यक्ति का कहना था, “मोदी ही देश को अच्छा नेतृत्व दे सकते हैं।” वहीं, एक युवा की राय इसके विपरीत थी।

कोरबा लोकसभा से अजीत जोगी के चुनाव न लड़ने से कांग्रेस प्रत्याशी और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत की राह आसान हो गई है। जोगी कांग्रेस के कई पदाधिकारी कांग्रेस में आ गए हैं। कोरबा सीट की कमान मंत्री जयसिंह अग्रवाल संभाले हुए हैं। भाजपा के प्रत्याशी ज्योतिनंद दुबे नए होने के साथ चर्चित चेहरे नहीं हैं लेकिन वे भाजपा का परंपरागत वोट खींच रहे हैं। यह सीट बिलासपुर, कोरबा और कोरिया जिले में फैली है। इस सीट में आदिवासी वोटर ज्यादा हैं।

सरगुजा सीट में भाजपा की रेणुका सिंह और कांग्रेस के खेलसाय सिंह में सीधा मुकाबला है। एसटी के लिए सुरक्षित इस सीट से मंत्री टी.एस. सिंहदेव की प्रतिष्ठा जुड़ी है। यहां जमीनी स्तर पर भाजपा के आनुषंगिक संगठन की सक्रियता से मुकाबला रोचक बताया जा रहा है। रायगढ़ सुरक्षित सीट पर भाजपा प्रत्याशी को जशपुर राजघराने का साथ मिलने से कांग्रेस के लिए संघर्ष कड़ा हो गया है। 

बिलासपुर सीट परंपरागत रूप से भाजपा की रही है। यहां भी साहू वोटर बड़ा फैक्टर है। यही सोचकर भाजपा ने अशोक साव को प्रत्याशी बनाया है। इनके लिए पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल लगे हैं। अशोक साव का मुकाबला कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव से है। यहां के एक निवासी कमल दुबे का कहना है, “मुकाबला बराबरी का लग रहा है।”

18 अप्रैल को होने वाले दूसरे चरण में कांकेर, महासमुंद और राजनांदगांव में मतदान होना है। शेष सात सीटों रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, सरगुजा और रायगढ़ में 23 अप्रैल को वोटिंग होगी। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार भले शोरगुल वाला नहीं लग रहा, प्रत्याशियों के झंडे-पोस्टर भी कम नजर आ रहे हैं और मतदाता भी ज्यादातर मौन हैं, लेकिन फिजा में बदलाव की आहट है। ढेरों लोग कह रहे हैं कि इस बार कांग्रेस फायदे में रहेगी।

नतीजा क्या होगा यह तो 23 मई को ही पता चलेगा लेकिन सीटों की संख्या पर कांग्रेस-भाजपा दोनों चुप्पी साध लेते हैं।   

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