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31 मार्च 2025 · MAR 31 , 2025

आवरण कथा/भोजपुरी: अश्लीलता का अतिरेक

मामला फूहड़ मनोरंजन का है, या उससे बढ़कर समाज में गहरी जड़ें जमा चुके स्त्री-विरोधी मानसिकता का इजहार
विवादः हनी सिंह का एलबम मैनिएक

हनी सिंह का नया एलबम मैनिएक विवादों के केंद्र में आ गया है। इस गाने में भोजपुरी के प्रयोग और महिलाओं के चित्रण को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता और बॉलीवुड अभिनेत्री नीतू चंद्रा ने गाने के खिलाफ पटना हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। उनका आरोप है कि गाने में द्विअर्थी शब्दों और अश्लील प्रस्तुतिकरण के माध्यम से महिलाओं का अपमान किया गया है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई 28 मार्च, 2025 को निर्धारित की गई है।

इस मामले ने एक बार फिर भारतीय संगीत और मनोरंजन उद्योग में बढ़ती अश्लीलता बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बहस को जन्म दे दिया है। नीतू चंद्रा का कहना है कि जब शराबबंदी जैसी सख्त नीतियां लागू की जा सकती हैं, तो फूहड़ और महिलाओं को अपमानित करने वाले गानों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा सकता? उनका तर्क है कि ऐसे गाने समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान को कम करते हैं और युवाओं के मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। वे चाहती हैं कि सरकार इस तरह के गानों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए और ऐसे कंटेंट निर्माताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।

याचिका में यह भी कहा गया है कि हनी सिंह के इस गाने में भोजपुरी शब्दों का इस्तेमाल कर महिलाओं के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं। भोजपुरी भाषा को इस तरह अश्लीलता के साथ जोड़ा जाना उसके सम्मान के खिलाफ है, जो भारतीय संस्कृति और साहित्य की एक समृद्ध विरासत का हिस्सा रही है। यह मुद्दा सिर्फ एक गाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक समस्या की ओर इशारा करता है, जहां कला और अभिव्यक्ति की आड़ में महिलाओं को कमोडिटी बनाया जा रहा है।

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब हनी सिंह के गानों को लेकर विवाद हुआ हो। उनके गानों पर पहले भी अश्लीलता और महिला विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने के आरोप लग चुके हैं। हालांकि, हर बार यह तर्क दिया जाता है कि संगीत और कला में स्वतंत्रता होनी चाहिए। सवाल यह उठता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए?

युवा पीढ़ी के लिए संगीत सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह उनकी सोच और दृष्टिकोण को भी प्रभावित करता है। जब गानों में महिलाओं को केवल एक उपभोग की वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो यह समाज में उनकी वास्तविक स्थिति को भी प्रभावित कर सकता है। नीतू चंद्रा का कहना है कि बिहार और अन्य राज्यों में स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियां इन गानों के कारण असुरक्षित महसूस करती हैं। यह सिर्फ व्यक्तिगत पसंद का मामला नहीं है, बल्कि यह एक सामूहिक सामाजिक मुद्दा है, जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हाइकोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाता है। कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करता है, तो इससे अश्लील गानों पर एक नई बहस छिड़ सकती है और संभवतः इस तरह के कंटेंट पर सख्त नियंत्रण के लिए नए दिशानिर्देश भी बनाए जा सकते हैं। यह मामला केवल एक गाने का नहीं, बल्कि भारतीय संगीत उद्योग में बढ़ती अनैतिकता और समाज पर उसके प्रभाव का भी है। क्या यह केवल मनोरंजन का हिस्सा है, या फिर यह समाज में गहरी जड़ें जमा चुके महिला विरोधी रवैये का एक और उदाहरण? इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में अदालत और समाज दोनों को मिलकर तलाशना होगा।

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