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बॉलीवुड: डरना मना है, हंसना नहीं!

कोविड ने सिनेमाघरों को भूत बंगला जैसा बनाया तो फिल्मोद्योग ने दर्शकों को खींचने का हॉरर-कॉमेडी का अनोखा मिश्रण तैयार किया
हॉरर-कॉमेडी फिल्म रूही

भय और हास्य विरोधाभासी हो सकते हैं, लेकिन बॉलीवुड ने इन दोनों के बीच अद्भुत सामंजस्य स्थापित कर लिया है। पिछले एक साल में कोरोनोवायरस महामारी से तबाह होने के बाद आगे बढ़ने के लिए निरंतर संघर्ष करते हुए हिंदी फिल्म उद्योग ने कठिन समय में सफलता का नया फार्मूला ढूंढ निकाला है। परदे पर दर्शकों को डराने के साथ-साथ हंसने पर मजबूर करने के लिए हॉरर-कॉमेडी पेश है, एक ऐसी मिश्रित शैली, जिसे मुंबइया फिल्मकारों ने पहले कभी अहमियत नहीं दी।

हॉरर और कॉमेडी का कॉकटेल फिल्म निर्माताओं के लिए सफलता के नए सूत्र के रूप में उभरा है, जो उन्हें दर्शकों को सिनेमाघरों में वापस लाने के लिए जादुई छड़ी जैसा लगने लगा है। वैसे तो इस तरह की फिल्मों की शुरुआत 2018 में राजकुमार राव-श्रद्धा कपूर अभिनीत स्त्री के बॉक्स ऑफिस पर अप्रत्याशित सफलता के बाद ही हो चुकी थी, लेकिन कोरोना काल में जब थिएटर ही भूत बंगला जैसे दिखने लगे थे, फिल्मकारों में भूत-प्रेत की कहानियों को कॉमेडी की चासनी में डुबो कर पेश करने की होड़-सी मच गई। अब तो राजकुमार राव और जान्हवी कपूर की रूही की सफलता के बाद भेड़चाल वाली बॉलीवुड में हॉरर-कॉमेडी वाली फिल्मों का सैलाब आना तय है।

पिछले 11 मार्च को प्रदर्शित रूही मुख्यधारा की पहली व्यावसायिक फिल्म थी, जो लंबे समय के लॉकडाउन के बाद देश भर में पूरी क्षमता के साथ खुले सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई और सब की निगाहें उसके बॉक्स ऑफिस पर प्रदर्शन पर थी। यह कौतूहल सब के मन में था कि क्या दर्शक कोरोनावायरस के खौफ को दरकिनार करते हुए इस फिल्म को देखने थिएटर में वापस आएंगे। रूही ने पहले दो हफ्तों में टिकट खिड़की पर 22 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया, जिसे जबरदस्त नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह डूबती फिल्म इंडस्ट्री के लिए तिनके का सहारा जैसा था। बेशक, यह स्त्री की सफलता से कोसों दूर था, जिसने दुनिया भर में लगभग 180 करोड़ रुपये का कारोबार किया। फिर भी, ऐसी परिस्थिति में जब कोविड-19 के कारण मुंबई जैसे प्रमुख क्षेत्रों में केवल आधी क्षमता के साथ थिएटरों खुले थे, एक छोटे बजट की फिल्म रूही का प्रदर्शन इंडस्ट्री के लिए राहत की सांस देने वाला था।

इसके विपरीत, मार्च महीने में प्रदर्शित कई बड़ी फिल्में जैसे जॉन अब्राहम-इमरान हाशमी की मुंबई सागा, यशराज फिल्म्स की संदीप और पिंकी फरार और परिणीति चोपड़ा की बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल की बॉयोपिक सायना बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं कर सकीं। इससे निर्माता-निर्देशकों को लगा कि रूही जैसी हॉरर-कॉमेडी ही अब दर्शकों को बड़े परदे की ओर वापस खींच सकती है।

इसका परिणाम यह हुआ कि आज बॉलीवुड के कई नामचीन सितारे इसी शैली की एक दर्जन से अधिक फिल्मों की शूटिंग कर रहे हैं। ऐसी फिल्मों पर बड़ा दांव लगाने वालों में दिनेश विजन का नाम सबसे पहले आता है, जिन्होंने स्त्री और रूही दोनों का निर्माण किया। इसी कड़ी की अगली फिल्म भेड़िया में वरुण धवन और कृति सैनन मुख्य भूमिकाओं में हैं, जिसे स्त्री से प्रसिद्ध हुए अमर कौशिक निर्देशित कर रहे हैं। इसके टीजर में वरुण धवन को पूर्णिमा की रात में एक भेड़िये में रूप बदलते दिखाया गया है। विश्व सिनेमा के लिए यह भले ही एक घिसापिटा विषय है लेकिन बॉलीवुड में प्रचलित नए ट्रेंड के कारण उम्मीद है कि यह नए तरह की डरावनी फिल्म होगी। कभी डराएगी, कभी गुदगुदाएगी।   

वरुण और कृति आज के दौर के एकमात्र युवा सितारे नहीं हैं, जिन्होंने हॉरर-कॉमेडी की ओर रुख किया है। कार्तिक आर्यन और कियारा आडवाणी की भूल भुलैया 2 के भी इस साल रिलीज होने की उम्मीद है। यह निर्देशक प्रियदर्शन की 2007 में इसी नाम से बनी हॉरर-कॉमेडी का रीमेक है, जिसमें अक्षय कुमार और विद्या बालन मुख्य भूमिकाओं में थे। इस साल सैफ अली खान, जैकलीन फर्नांडीज, यामी गौतम और अर्जुन कपूर की मल्टीस्टारर भूत पुलिस भी आने वाली है। इसे पवन कृपलानी निर्देशित कर रहे हैं, जिन्होंने रागिनी एमएमएस (2011) जैसी हॉरर फिल्म बनाने की महारत हासिल की है।

इसके अलावा कैटरीना कैफ, सिद्धांत चतुर्वेदी और ईशान खट्टर की हॉरर-कॉमेडी फोन भूत भी निर्माणाधीन है। रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर निर्मित यह फिल्म लोकप्रिय ओटीटी सीरीज मिर्जापुर (2018/2020) से लोकप्रिय हुए गुरमीत सिंह निर्देशित कर रहे हैं। हॉरर शैली की अन्य फिल्मों में रोजी: द सैफरन चैप्टर है, जो टीवी अभिनेत्री श्वेता तिवारी की बेटी पलक तिवारी की पहली फिल्म है।  नुसरत भड़ूचा भी छोरी में मुख्य भूमिका में हैं, जो मराठी हॉरर एडवेंचर लापाछपी (2016) की रीमेक है। ऐसी फिल्मों की संख्या दिनोदिन बढ़ रही है।

सवाल यह है कि क्या बॉलीवुड में हॉरर फिल्म को आखिरकार तवज्जो मिल गई है? पहले अधिकतर डरावनी फिल्मों को स्तरहीन, घटिया और तथाकथित चव्वनी छाप दर्शकों की पसंद कहकर नकार दिया जाता था। बड़े सितारे ऐसी फिल्मों से दूरी बना कर रखते थे। इस पर फिलहाल किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सकता, लेकिन वर्तमान में निर्माणाधीन फिल्मों की संख्या पर एक सरसरी नजर यह संकेत देने के लिए पर्याप्त है कि हॉरर के साथ कॉमेडी का मुलम्मा अब फिल्म निर्माताओं को रास आने लगा है। दर्शकों के रुझान को देखते हुए उनके लिए यह मुनाफे का सौदा है कि वे ऐसी शैली की फिल्में बनाएं जो अंधेरे थिएटर के अंदर डर से रौंगटे भी खड़े करे और गुदगुदाए भी।

जानकारों के अनुसार, हॉरर-कॉमेडी फिल्म उद्योग के लिए अभी सबसे बेहतर विषय है क्योंकि ऐसी ही फिल्में अभी कोविद से खौफजदा दर्शकों को सिनेमाघरों में वापस खींच सकती है। रूही के निर्देशक हार्दिक मेहता आउटलुक से कहते हैं, ‘‘हॉरर-कॉमेडी अच्छा फार्मूला है। मैं किसी बेहतर शब्द के अभाव में ऐसा कह सकता हूं। वैसे भी फिल्म निर्माताओं के पास बड़े परदे पर दिखाने के लिए अब केवल छह से सात शैलियों की कहानियां बची हैं। बाकी तो ओटीटी प्लेटफार्मों के हवाले हो गए हैं।’’

पिछले साल की प्रशंसित फिल्म कामयाब के निर्देशक मेहता का मानना है कि हॉरर-कॉमेडी उन चंद शैलियों में से एक है, जिनमें सिनेमाघरों की ओर दर्शकों को आकर्षित करने की क्षमता है। वे कहते हैं, ‘‘भव्य युद्ध की फिल्में, पीरियड ड्रामा, रोमांच से भरपूर कहानी या बड़ी मारधाड़ वाली फिल्मों की तरह हॉरर-कॉमेडी बड़े परदे पर ही आनंद लेने के लिए बनती हैं। अगर आपने रूही देखी है, तो आपको पता होगा कि हममें से कोई भी इसे किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर क्यों नहीं ले जाना चाहता था। अंधेरे थिएटर में डरावनी फिल्म देखने के लिए साउंड और म्यूजिक के सहारे आप दर्शकों के रोमांच का माहौल बना सकते हैं, जिसे होम थिएटर में दोहराया नहीं जा सकता। मुझे खुशी है कि हमने रूही को सिनेमाघरों में रिलीज किया, और इसने अच्छा कारोबार किया।’’

मेहता बताते हैं कि हॉरर और कॉमेडी दशकों तक अलग-अलग शैली के रूप में सह-अस्तित्व में रहे हैं, लेकिन दोनों कभी भी एक दूसरे के पूरक नहीं बने थे। ‘‘वर्षों से हम सब एक खास तरह से बनी हॉरर फिल्म के पुराने फार्मूले से परिचित रहे हैं। उनमें अगर हम नायिका को बाथटब में देखते हैं, तो हम अनुमान लगा लेते हैं कि अब झरने से खून बाहर निकलेगा। लेकिन नए युग की हॉरर फिल्में दर्शकों को कुछ अप्रत्याशित दिखा कर मनोरंजन करती हैं। अब, नायक भी चुड़ैल के प्यार में खो जाता है, जिसका प्रयोग पहले केवल दर्शकों को डराने के लिए किया जाता था।’’

हालांकि स्त्री की बॉक्स-ऑफिस सफलता ने हॉरर-कॉमेडी को भले ही लोकप्रिय बनाया है, लेकिन यह पूरी तरह से नया प्रयोग नहीं है। वास्तव में, स्त्री के रिलीज होने से पांच साल पहले, दिनेश विजन ने ही सैफ अली खान के साथ गो गोवा गॉन (2013) का सह-निर्माण किया था, जो हिंदी सिनेमा की पहली जोंबी-कॉमेडी मानी जाती है। भले इसे आशातीत सफलता नहीं मिली लेकिन इसने विजन को एक दूसरी डरावनी-कॉमेडी बनाने के लिए प्रेरित किया, जब वेब सीरीज द फैमिली मैन (2020) से लोकप्रिय हुए लेखक-द्वय राज निदिमोरु और कृष्णा डी.के. ने उन्हें स्त्री की दिलचस्प अवधारणा सुनाई, जो कर्नाटक की एक लोकप्रिय लोककथा नाल बा (कल आना) से प्रेरित थी। यह एक भटकती आत्मा के बारे में है जो रात में एक गांव में हर दरवाजे पर दस्तक देती है।

स्त्री के प्रभावशाली प्रदर्शन ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि हॉरर फिल्मों की नई लहर आने के बाद निर्माता स्वदेशी स्रोतों से प्रेरणा लेने से कतराते नहीं हैं, जैसा वे पूर्व में करते थे, जब ज्यादातर भारतीय हॉरर फिल्में हॉलीवुड या यूरोपीय फिल्मों से काफी प्रभावित होती थीं। यहां तक कि हॉरर फिल्मों के लिए मशहूर रामसे ब्रदर्स भी अपनी कहानियों के लिए पाश्चत्य सिनेमा से प्रेरणा लेते थे।

ऐसा नहीं है कि रामसे ब्रदर्स की डरावनी फिल्मों में हास्य के पुट नहीं रहते थे। लेकिन, यह मुख्य रूप से डरावनी स्थितियों के बीच दर्शकों को महज कॉमिक रिलीफ देने के लिए था। इस तरह के प्रयोग को उस समय आलोचकों द्वारा भद्दा कहकर खारिज कर दिया जाता था, इसके बावजूद कि उनका एक निष्ठावान दर्शक वर्ग था जो उनकी फिल्मों के प्रदर्शन का बेसब्री से इंतजार करता था।

फिल्म समीक्षक मुर्तजा अली खान का कहना है कि हॉरर-कॉमेडी हाल के वर्षों में निश्चित रूप से लोकप्रिय हुई हैं। वे बताते हैं, ‘‘स्त्री से पहले भी हम भूल भुलैया, भूतनाथ, भूतनाथ रिटर्न्स और गोलमाल अगेन जैसी सफल हॉरर-कॉमेडी देख चुके हैं। गो गोवा गॉन जैसी कुछ रोचक शैली के प्रयोग भी हुए हैं। अगर कोई हिंदी सिनेमा के बारे में हॉरर-कॉमेडी के इतिहास को देखता है, तो पहली फिल्म जो मन में आती है, वह है 1965 की क्लासिक भूत बंगला। बाद में 1990 के दशक में, शाहरुख खान की चमत्कार (1992) और सलमान खान की हलो ब्रदर (1999) भी उल्लेखनीय हैं।’’

फिर भी, इसमें शक नहीं है कि हॉरर फिल्मों को उनका हक कभी नहीं मिला। बॉलीवुड के हॉरर फिल्मों के पहले परिवार रामसे ब्रदर्स की जीवनी, ‘डोंट डिस्टर्ब द डेड’ के लेखक शम्या दासगुप्ता मानते हैं कि डरावनी फिल्में और उनमें काम करने वाले अभिनेताओं को हमेशा मीडिया और आलोचक हेय दृष्टि से देखते थे। वे कहते हैं, ‘‘इस शैली की फिल्मों को अपरिष्कृत और घटिया समझा जाता था। आलोचकों के लिए उच्च बौद्धिक आधार पर टिप्पणी करना तो ठीक है लेकिन वे यह नहीं कह सकते कि ऐसी फिल्मों के जरिए जनता का मनोरंजन किया जाना गलत है। उनके लिए ये फिल्में बौद्धिक रूप से उत्कृष्ट स्तर की नहीं थीं, लेकिन हॉरर फिल्मों का हमेशा अपना एक बाजार था।’’

रामसे बंधुओं ने कम लाभ मिलने के बावजूद ढाई दशक से अधिक समय तक फिल्में बनाना जारी रखा। दासगुप्ता के अनुसार, यह यही साबित करता है कि इसके पीछे कुछ तो तार्किक था। वे कहते हैं, ‘‘दिवंगत तुलसी रामसे (जिन्होंने अपने भाई श्याम के साथ ज्यादातर रामसे फिल्मों का निर्देशन किया था) ने एक बार मुझे बताया था कि हॉरर फिल्मों को उन दिनों कुल हिंदी फिल्म के 20-25 प्रतिशत दर्शक ही देखते थे। ये सेक्स फिल्मों की तरह थीं, जिसे पारिवारिक दर्शक कभी नहीं मिले। उन फिल्मों को केवल लड़कों या पुरुषों के समूहों ने संरक्षण दिया। इसलिए, सीमित लाभ मिलने के कारण फिल्में छोटे बजट पर बनाई गईं, हालांकि अपने समय के कई बड़े सितारों जैसे शत्रुघ्न सिन्हा, परवीन बॉबी, नवीन निश्चल ने भी रामसे की फिल्मों में काम किया।’’ हॉरर फिल्मों की हॉलीवुड और यूरोपीय सिनेमा में हमेशा एक जमीन थी। दासगुप्ता कहते हैं कि भारत में यह मुख्यधारा की सिनेमा तब बना जब राम गोपाल वर्मा और विक्रम भट्ट जैसे निदेशकों ने रात (1992) और राज (2002) जैसी फिल्में बनाना शुरू कर दिया। उदारीकरण के बाद दर्शकों को पहली बार उत्कृष्ट कोटि की भटकती आत्माओं, भूतों और चुड़ैलों की अलौकिक कहानियों का स्वाद मिलना शुरू हुआ। वे कहते हैं, ‘‘अब, परिदृश्य बदल गया है और बड़े स्टार भी डरावनी फिल्मों में बेझिझक काम कर रहे हैं।’’

यह सच है। हाल के वर्षों में, हॉरर-कॉमेडी की सफलता से इस शैली की फिल्मों को ऐसा मुकाम मिला, जिससे वह अतीत में वंचित था। आज, अजय देवगन जैसे मुख्यधारा के बड़े स्टार भी रामसे ब्रदर्स की बॉयोपिक का सह-निर्माण कर रहे हैं। क्या हिंदी सिनेमा के इतिहास में डरावनी फिल्मों की स्थायी जगह बनाने वाले भाइयों के योगदान के लिए बॉलीवुड की इससे बेहतर श्रद्धांजलि हो सकती है?

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