Advertisement
17 मार्च 2025 · MAR 17 , 2025

अमेरिका से लौटे लोगः ईमान और पहचान भी छिनी

अमेरिकी सेना के विमान से दूसरी-तीसरी-चौथी खेप में भी अमृतसर लौटे लोगों को सिर्फ जंजीरों में ही नहीं जकड़ा गया, बल्कि उनकी पगड़ी उतार कर केश भी काटे गए
अमृतसर में अमेरिकी विमान

हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़े 332 भारतीय आप्रवासियों को 5 फरवरी, 15 और 16 फरवरी को अमेरिकी सेना के विमान से अमृतसर के हवाई अड्डे पर उतारा गया। यह अब अमेरिका की अवैध प्रवासियों के खिलाफ सिर्फ कानूनी प्रक्रिया भर नहीं रह गई है, बल्कि इससे दो देशों के राजनयिक संबंधों पर भी कई सवाल खड़े हुए हैं। अमानवीय ढंग से लौटाए गए लोगों की आपबीती दर्दनाक दास्‍तां बयां करती है, वह भी ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री अमेरिका दौरे पर थे। पहले विमान से 5 फरवरी को 104 निर्वासित भारतीयों को हथकड़ियां और बेड़ियां पहनाकर लौटाए जाने पर संसद से लेकर सड़कों तक मचे बवाल के बाद सफाई में विदेश मंत्रालय के सचिव विक्रम मिस्री ने कहा था, “भविष्य में ऐसा न हो इस पर अमेरिका के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से बातचीत की जाएगी।” हफ्ते भर बाद ही अमेरिका के दूसरे, तीसरे और चौथे विमान में लाए गए लोगों को फिर हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़े जाने के वीडियो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के सरकारी निवास ह्वाइट हाउस के सोशल मीडिया ‘एक्स’ से वायरल हुए।

अमेरिका से लौटाए गए पंजाब के 128 लोगों में ज्यादातर सिखों ने अमेरिकी डिटेंशन सेंटरों के अमानवीय हालात बयां किए। उन्हें न केवल बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित किया गया, बल्कि उनकी धार्मिक पहचान भी छीनी गई। तीनों ही बार देर रात अमृतसर हवाई अड्डे पर उतारने से पहले अमेरिकी सैनिकों ने हथकड़ी-बेड़ियां तो खोल दीं पर उनके सिर का क्या जो खुले हुए थे। बगैर पगड़ी के उतरे सिखों को सिर ढंकने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने हवाई अड्डे पर पगड़ियां दीं।

बेइज्जती का आलमः बेड़ियों और हथकड़ी में लौटे लोग

बेइज्जती का आलमः बेड़ियों और हथकड़ी में लौटे लोग

अमेरिका से निर्वासित होकर लौटे कई पंजाबी युवाओं ने बताया कि अमेरिकी डिटेंशन सेंटरों में पुलिस ने उनकी धार्मिक पहचान को भी नहीं बख्शा। उन्हें उनकी अस्मिता और आस्था की प्रतीक पगड़ी उतारने और जबरन केश कटाने के लिए मजबूर किया गया ताकि कोई भी अपनी पगड़ी को ही ‘फांसी का फंदा’ न बना ले।

बॉर्डर पर डिटेंशन सेंटर में करीब दो महीना रहे टांडा (होशियारपुर) के जसबीर सिंह ने बताया, “जब हमें गिरफ्तार किया गया, तो बॉर्डर पेट्रोलिंग पुलिस ने मुझे और मेरे साथ चार और सिख भाइयों को पगड़ी उतारने के लिए कहा। जब हमने विरोध किया, तो उन्होंने कहा कि इससे तुम फांसी लगा सकते हो, इसलिए इसे उतारना पड़ेगा। मेरे जैसे कई अन्य सिख भाइयों को अपनी धार्मिक पहचान खोनी पड़ी।”

धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ पर अमेरिका से इस मसले को गंभीरता से उठाए जाने के बजाय इसे सियासी रंग दिए जाने की प्रतिक्रिया में श्री अकाल तख्त साहिब अमृतसर के प्रमुख ग्रंथी सरदार बलबीर सिंह ने आउटलुक से कहा, “अमानवीय यातनाएं झेलने के साथ अमेरिका समेत कई अन्य देशों में सिखों को धार्मिक रूप से आहत किए जाने की घटनाओं को भारत सरकार ने कभी गंभीरता से नहीं लिया।” भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह ने कहा, “अमेरिका से निर्वासित सिखों की पगड़ी उतारे जाने के मामले पर अमेरिका में शरणार्थी खालिस्तान समर्थक गुरुपतवंत पन्नू चुप क्यों है?”

अपमानित होकर लौटे लोगों की आपबीती अवैध इमिग्रेशन एजेंटों के हाथों ठगे लोगों के संघर्ष को भी उजागर करती है। बेहतर जीवन की खोज में अपना सब कुछ दांव पर लगाकर निकले ऐसे लोगों को पंजाब और हरियाणा में ‘डंकी’ की संज्ञा दी जाती है। जिन अवैध राहों से ये अमेरिका जैसे देश में घुसपैठ करते हैं उसे ‘डंकी रूट’ कहा जाता है।

निरंकुश अवैध इमिग्रेशन एजेंटों पर नकेल के बजाय पंजाब, हरियाणा, गुजरात समेत तमाम राज्यों में उनका जाल अमरबेल की तरह फैलता जा रहा है। अमेरिका से निर्वासन की हालिया तीन घटनाओं के मद्देनजर पंजाब पुलिस ने अवैध इमिग्रेशन एजेंटों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू की है। अब तक तीन दर्जन से अधिक ट्रैवेल एजेंटों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की जा चुकी है। राज्य सरकार ने अवैध एजेंटों की संपत्तियां जब्त करने की भी योजना बनाई है। सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में 92 प्रतिशत ट्रैवेल एजेंट अवैध रूप से कार्यरत हैं। श्री मुक्तसर साहिब, तरन तारन, फरीदकोट, पठानकोट, फिरोजपुर, मलेरकोटला, फाजिल्का और मानसा जैसे आठ जिलों में एक भी ट्रैवेल एजेंट पंजीकृत नहीं है।

ग्राफिक

विदेश में पढ़ाई के विशेषज्ञ ‘स्टडी अब्रॉड कंसल्टेंट एसोसिएशन’ के चेयरमैन सुकांत त्रिवेदी कहते हैं, ‘‘जानते हुए भी लोग डंकी रूट से अमेरिका में अवैध रूप से घुसने की कोशिश करते हैं। वे जान-बूझ कर अपने आप को वहां की पुलिस के हवाले कर देते हैं। इसके बाद उन्हें ‘इमिग्रेशन कैम्प’ में रखा जाता है। उन्हें यहां से निकालने के लिए रिश्तेदार वहां वकीलों की सेवाएं लेते हैं। वे कोर्ट को अपनी दलीलें पेश करते हैं। इमिग्रेशन कैंप में बंद ‘डंकी’ अमेरिका पर बोझ न बन जाएं इसलिए उन्हें कमाने और खाने की अनुमति दी जाती है। यह अनुमति साल दर साल बढ़ती रहती है। 8-10 साल में ग्रीन कार्ड मिल जाता है। यानी डंकी को रहने और काम करने का अधिकार मिल जाता है। इसके 10-15 साल बाद अमेरिका की नागरिकता भी मिल जाती है।

अवैध इमिग्रेशन के मुद्दे पर पंजाब में सियासत भी तेज है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र सरकार पर पंजाब को बदनाम करने की साजिश का आरोप लगाते हुए कहा, “निर्वासित लोगों से भरे अमेरिकी विमान हर बार अमृतसर हवाई अड्डे पर ही क्यों उतारे जा रहे हैं?” मान के आरोप पर विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि “2020 से लेकर अब तक अवैध भारतीय प्रवासियों को लेकर अमेरिका के 20 विमान अमृतसर उतारे जा चुके हैं। इनमें ज्यादा लोग पंजाब के होते हैं इसलिए विमान अमृतसर उतारे जाते हैं।” कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने पंजाब सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “बीते तीन वर्षों में अवैध इमिग्रेशन एजेंटों पर कार्रवाई न करना सरकार की नाकामी को दर्शाता है।” शिरोमणि अकाली दल के नेता विक्रम मजीठिया ने अमेरिका में सिखों की पगड़ी उतरवाने की घटनाओं को धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ बताया और केंद्र और राज्य सरकार से कड़ा रुख अपनाने की मांग की।

अमेरिकी डंकी रूट सिर्फ अवैध रास्ता नहीं, बल्कि हजारों पंजाबी युवाओं की बर्बाद जिंदगी का प्रतीक है

अमेरिकी डंकी रूट सिर्फ अवैध रास्ता नहीं, बल्कि हजारों पंजाबी युवाओं की बर्बाद जिंदगी का प्रतीक है

आरटीआइ एक्टिविस्ट पंकज वशिष्ठ ने पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में दायर जनहित याचिका में राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग की है कि जो लोग अमेरिका से निर्वासित होकर लौटे हैं वे मानसिक और आर्थिक रूप से टूट चुके हैं। उनके पास न पैसा बचा है, न कोई रोजगार का साधन। ऐसे में राज्य सरकार को इनके पुनर्वास के लिए ठोस नीति बनानी होगी। इन्हें रोजगार, शिक्षा और व्यवसायिक प्रशिक्षण देकर समाज की मुख्यधारा में लाने की जरूरत है। इस पर पंजाब के एनआरआइ विभाग के मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने आउटलुक से कहा, “विदेशों से निर्वासित युवाओं के पुनर्वास के लिए पंजाब सरकार नीति बनाने पर विचार कर रही है। सरकार ऐसे युवाओं के संपर्क में है।”

लौटे लोगों की आपबीती

मनदीप सिंह (तरनतारन)  “15 फरवरी की रात अमृतसर हवाई अड्डे पर नंगे सिर उतरा, तो घर से लेने आए पिता और पत्नी का पहला सवाल थाः पगड़ी कित्थे है, पगड़ी क्यों नी पाई? कुछ लोगों ने नंगे सिर मेरी फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर डाल दी, जो वायरल हो गई। अगले दिन कई रिश्तेदारों का भी यही सवाल था कि अमेरिका जाकर सिख स्वरूप क्यों बदला? मैं किस-किस को बताऊं कि यह स्वरूप मैंने नहीं बदला, जबरन बदला गया है। अमेरिकी सैनिकों ने पकड़ने के बाद मेरी पगड़ी उतारकर कूड़ेदान में फेंक दी। दाढ़ी और केश भी काट दिए।”

17 साल सेना की सेवा में रहने के बाद वीआरएस लेने वाला मंदीप सिंह घर पर खाली बैठे रहने के बजाय विदेश जाकर जिंदगी को बेहतर बनाने के मकसद से एक एजेंट के झांसे में आ गया था। एजेंट ने 40 लाख रुपये में उसे अमेरिका में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी का वादा किया। रिटायरमेंट के वक्त मिले 35 लाख रुपये और बाकी 5 लाख रुपये के लिए पत्नी के गहने बेचकर एजेंट को दिए। उसके बाद एजेंट ने 14 लाख रुपये की और मांग की। ऐसा न करने की सूरत में अमेरिका भेजने से इनकार कर दिया। किसी तरह कर्ज लेकर 14 लाख रुपये का इंतजाम किया।

13 अगस्त 2024 को अमेरिका जाने के लिए घर से निकले मनदीप को ट्रैवेल एजेंट ने दिल्ली बुलाया। दिल्ली से मुंबई, केन्या, डकार, एम्स्टर्डम होते हुए सूरीनाम से गुयाना और बोलिविया तक के हवाई सफर के बाद पेरू, ब्राजील, इक्वाडोर से कोलंबिया का सफर सड़क और समुद्री मार्ग से पूरा किया। कभी कारों की डिग्गियों में छिपे, तो कभी नाव में बैठाकर समुद्र की ऊंची लहरों के बीच छोड़ दिया गया। करीब दो महीने मैगी खाकर गुजारा किया।

“इससे आगे चार दिन तक पनामा के खतरनाक जंगलों में भटकते हुए मैक्सिको के मैक्सिकली में डंकी रूट के गाइड जिन्हें ‘डोंकर’ कहा जाता है, ने मुझे कमरे में बंद कर दिया। बाथरूम में फ्लश करते वक्त जो पानी आता था, वो पिलाया गया। वो कहते थे, जब तक पैसा नहीं दोगे यही पानी पीना पड़ेगा। जरा सी सुविधा देने के लिए हजारों डॉलर की मांग डोंकर करता था। पैसे का दबाव बनाने के लिए कई दफा कनपटी पर पिस्तौल लगा देता।” 

मनदीप ने बताया, “जैसे ही मैं मैक्सिको की दीवार फांदकर अमेरिका में घुसा, वहां की बॉर्डर पेट्रोलिंग पुलिस ने मुझे पकड़ किया। गिरफ्तारी के बाद डिटेंशन सेंटर में पुलिस ने मुझसे सारे कपड़े उतारने को कहा। जब मैंने खुद को सिख बताते हुए सिख धर्म में पांच ककारों का महत्व समझाना चाहा, तो उन्होंने मेरी एक न सुनी। मेरी पगड़ी उतारकर कूड़ेदान में फेंक दी। मेरी दाढ़ी और केश काटकर छोटे कर दिए। जब मैंने और मेरे साथ कुछ और सिख साथियों ने अपनी पगड़ी मांगी तो पुलिस से जवाब मिला, “अगर किसी ने पगड़ी से खुद को फंदा वगैरह लगा लिया तो जिम्मेदार कौन होगा?”

गुरविंदर सिंह (गुरदासपुर)  अमेरिका के तीसरे विमान में 112 निष्कासित भारतीयों के तीसरे बैच में 16 फरवरी को अमृतसर पहुंचे गुरदासपुर के गुरविंदर सिंह ने बताया, “50 लाख रुपये के बदले एजेंट ने वैध तरीके से सीधे अमेरिका भेजने का दावा किया। पनामा के जंगलों में भटके तो ‘डंकी रूट’ का पता चला। 22 सितंबर 2024 को दिल्ली से मुंबई होते हुए गुयाना, ब्राजील और कोलंबिया से होते हुए पनामा के जंगलों तक पहुंचा दिया गया। मेरे साथ 23 लोगों के ग्रुप में कुछ लोग नेपाल के भी थे। डंकी रूट पर अमेरिका की तरफ बढ़े, तो रास्ते में डोंकर हमसे दुर्व्यवहार करते। मोबाइल फोन छीन लेते। परिवार से बात नहीं करने देते। दो दिन उस जंगल में गुजरे। कई बार छोटी नाव से जंगल के रास्ते नदियां भी पार करनी पड़ीं, सांप-मगरमच्छों से भी बचना पड़ा। खाने के लिए सिर्फ चिप्स और पीने के लिए गंदा पानी मिलता था।”

गुरविंदर के मुताबिक, एक फरवरी को उन्हें मैक्सिको बॉर्डर पर पहुंचा दिया गया। वहां से वह दीवार फांदकर अमेरिकी सीमा में दाखिल हो गए जहां अमेरिकी सेना की बॉर्डर पेट्रोल टीम ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद 14 दिन उन्हें आर्मी कैंप में रखा गया। उन्हें रात में नहाने के लिए उठा दिया जाता था और कड़ाके की सर्दी में बगैर गर्म कपड़ों के एसी में रखा जाता था। 15 फरवरी को पता चला कि उन्हें जबरन भारत लौटाया जा रहा है। कैंप से निकाला गया। हथकड़ी और बेड़ियां डाली गईं। इसके बाद सेना के विमान में बैठा दिया गया। विमान के अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरने से पहले उनकी हथकड़ी-बेड़ियां खोली गईं पर पहनने के लिए उनके पास पगड़ी नहीं थी। अमृतसर एयरपोर्ट पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने सिर ढंकने के लिए रूमाला साहिब दिया।

सौरव (फिरोजपुर)  इमिग्रेशन एजेंट को 45 लाख रुपये देने के लिए सौरव के पिता ने अपनी दो एकड़ जमीन बेची। 17 दिसंबर 2024 को अमेरिका के लिए निकले सौरव ने बताया, “एजेंट ने मुझे बताया कि सीधे अमेरिका जाना है पर एम्स्टर्डम, पनामा और मैक्सिको होते हुए मुझे अमेरिका की सीमा पर छोड़ दिया गया। 27 जनवरी को जैसे ही मैं सीमा पार कर अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहा था तो बॉर्डर पुलिस ने मुझे और मेरे साथ वहां की सीमा में दाखिल होने वाले 10-12 और लोगों को पकड़ लिया। 18 दिनों तक हिरासत केंद्र में रखा गया। मोबाइल फोन जब्त कर लिए। 13 फरवरी को हमें बताया गया कि किसी दूसरे केंद्र में ले जाया जाएगा पर विमान में 30 घंटे के सफर में हमें हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ 15 फरवरी की रात साढ़े 11 बजे अमृतसर उतारा गया।”

सुनहरे सपने साकार करने की तलाश में अमेरिका गए मनप्रीत को वहां पहुंचते ही डिटेंशन सेंटर में डाल दिया गया। पगड़ी उतरवाई गई, बाल जबरन काट दिए गए। “यह मेरे लिए किसी मृत्यु से कम नहीं था। जब मैं भारत लौटा, तो बगैर केश खुद को पहचान नहीं पाया।”

हरजीत सिंह (अमृतसर) के मुताबिक जब मुझे पगड़ी उतारने के लिए कहा गया तो मेरी आंखों में आंसू थे, “मैंने गुरुओं की दी हुई पहचान बचाने की लाख कोशिश की, लेकिन अमेरिकी सेना ने मेरे विरोध को अनदेखा कर दिया। मेरी पगड़ी उतारकर मेरा मजाक उड़ाया गया और फिर केश काट दिए गए। जब मैंने इसका विरोध किया, तो अलग अंधेरे सेल में डाल दिया गया और दो दिन तक खाना-पानी तक नहीं दिया गया”। अमेरिका से निर्वासित होकर फगवाड़ा लौटे गुरमीत सिंह ने अपनी आपबीती बताते हुए कहा, "अमेरिका पहुंचने की हमारी सारी उम्मीदें धराशायी हो गईं। अमानवीय हालात में रहना बहुत ही अपमानजनक अनुभव था।"

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement