पश्चिम बंगाल में जब मतों का रुझान बदलता है तो वह बदलाव काफी बड़ा होता है। 1972 के विधानसभा चुनाव में माकपा के सीटों की संख्या 14 थी, जो 1977 में 178 हो गई। 2006 में पार्टी की 176 सीटें थीं जो 2011 में 40 रह गईं। तृणमूल कांग्रेस की सीटों की संख्या 2006 की 30 के मुकाबले 2011 में 184 जा पहुंची। 2004 में लोकसभा में पार्टी का सिर्फ एक सांसद था जो 2009 में 19 और 2014 में 34 हो गया। 2014 में प्रदेश के सिर्फ दो लोकसभा सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी, तो 2019 में यह संख्या 18 हो गई। 2019 के आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता था कि भाजपा प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने की राह पर है। लेकिन नवंबर 2019 में दो विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में रिवर्स स्विंग दिखा और दोनों सीटें तृणमूल को मिल गईं। ये उपचुनाव कलियागंज और खड़गपुर सीटों पर हुए थे। कलियागंज में भाजपा का वोट लोकसभा चुनाव के 52.15 प्रतिशत की तुलना में 43.54 प्रतिशत रह गया तो तृणमूल का 27.25 से बढ़कर 44.65 प्रतिशत हो गया। खड़गपुर में भाजपा का वोट शेयर 57.23 प्रतिशत से घटकर विधानसभा उपचुनाव में 34.01 प्रतिशत रह गया और तृणमूल का 29.58 प्रतिशत से बढ़कर 47.65 प्रतिशत हो गया। चर्चा होने लगी कि दिल्ली समेत दूसरे राज्यों की तरह क्या पश्चिम बंगाल में भी मतदाता लोकसभा और विधानसभा में अलग तरीके से मतदान करते हैं?
इस परिस्थिति ने ऐसी अनिश्चितता को जन्म दिया कि तृणमूल और भाजपा, दोनों के नेता मौजूदा चुनाव के नतीजों को लेकर कोई अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं। तब दोनों दलों ने ध्रुवीकरण का सहारा लिया। बांकुड़ा जिले के विष्णुपुर में 25 मार्च को एक चुनावी सभा में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, “उत्तर प्रदेश से केसरिया कपड़े पहने और पान बहार चबाते गुंडे यहां भेजे जा रहे हैं, वे हमारी संस्कृति नष्ट कर रहे हैं।” इसके महीने भर पहले ममता के भतीजे और तृणमूल युवा शाखा के प्रमुख अभिषेक बनर्जी ने दक्षिण 24 परगना के ढोलाहाट में एक सभा में कहा था, “उत्तर प्रदेश के गुटखा की पीक से बंगाल के लोहे में जंग नहीं लगेगी।”
तृणमूल कांग्रेस पान बहार और गुटखा का इस्तेमाल ‘बंगाली बनाम बाहरी’ ध्रुवीकरण में कर रही है, तो भाजपा और उसके सहयोगी संगठन प्रदेश में तथाकथित रूप से बढ़ते ‘जिहादी’ प्रभाव को मुद्दा बना रहे हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने 27 फरवरी को ट्वीट किया, “आगामी विधानसभा चुनाव हमारी जमीन बचाने की लड़ाई है। घुसपैठ और अनियंत्रित जन्म दर से जनसांख्यिकी बदल रही है। जिहादी गतिविधियां भी बढ़ रही हैं। बादुरिया, बसीरहाट और कलियाचक इसके गवाह हैं।” ममता बनर्जी के ‘केसरिया गुंडे’ के जवाब में घोष ने कहा कि तृणमूल प्रमुख की हिंदुओं का अपमान करने की आदत हो गई है।
तृणमूल ने जो बात उठाई उसका असर कोलकाता और उसके इर्द-गिर्द शहरी इलाकों में अधिक हुआ, जबकि भाजपा की बात ग्रामीण इलाकों में अनेक लोगों को प्रभावित कर रही थी। उत्तर और दक्षिण 24 परगना तथा बीरभूम जिले के कुछ हिस्सों में मुस्लिम आबादी अधिक है। वहां धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण अधिक दिखा। झाड़ग्राम (2.5%), पुरुलिया (7.76%), बांकुड़ा (8.08%), पूर्वी मिदनापुर (14.59%) और हुगली (15.77%) जैसे इलाकों में मुस्लिम आबादी कम होने के बावजूद हिंदू भाजपा के पक्ष में नजर आए।
झाड़ग्राम के चुन्नीलाल मुर्मू पूछते हैं, “पहले वे सिर्फ मुसलमानों की बात करती थीं। अब हिंदू बनने की कोशिश क्यों कर रही हैं? आखिर उन्हें याद आया कि यहां हम भी हैं।”
इस बात को महसूस कर ममता भी अपनी हिंदू पहचान बताने की कोशिश कर रही हैं। चुनावी सभाओं में वे देवी-देवताओं के नाम लेती हैं, मंत्रोच्चार करती हैं, बताती हैं कि कौन-कौन सी पूजा करती हैं और मंदिरों में भी जाती हैं। पिछले साल सितंबर में उन्होंने हिंदू ब्राह्मणों के लिए स्टाइपेंड की घोषणा की थी, और उनमें भी गरीबों के लिए हाउसिंग स्कीम का ऐलान किया था।
लोगों ने उनकी बातों का संज्ञान तो लिया लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि हर जगह यह बात उनके पक्ष में जा रही है। पूर्वी मिदनापुर जिले के चंडीपुर में टैक्सी चलाने वाले बिमल माइती कहते हैं, “यह निश्चित रूप से भाजपा की जीत है, जिसने उन्हें हिंदुओं पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया।”
दक्षिण 24 परगना जिले के भांगड़ और कैनिंग तथा उत्तर 24 परगना के बसीरहाट जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में ध्रुवीकरण अधिक घना है। एक वरिष्ठ माकपा नेता ने नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर कहा कि जब ममता ने बहुसंख्यकों पर अपना फोकस बढ़ाया, तब हमने अब्बास सिद्दीकी की नई पार्टी इंडियन सेकुलर फ्रंट (आइएसएफ) के साथ गठजोड़ पर ध्यान दिया और उन्हें 26 सीटें दीं। सिद्दीकी के तृणमूल पर प्रहार से मुस्लिम बहुल इलाकों में वाम और कांग्रेस को तृणमूल से मुकाबले में मानो नया उत्साह मिल गया। दूसरी तरफ, इस गठबंधन से हिंदू मतदाताओं को जोड़ने के भाजपा के एजेंडे को मदद मिली।
बांसरा के असित बरन बारुइ कहते हैं, “हिंदुओं के पास भाजपा के पक्ष में वोट डालने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं रह गया है। तृणमूल पहले ही मुसलमानों की करीबी थी, अब लेफ्ट ने भी मुस्लिम कट्टरपंथियों के सामने समर्पण कर दिया है।” कैनिंग-1 ब्लॉक स्थित बांसरा की आबादी 29,521 है। यहां 58.29 प्रतिशत हिंदू और 41.46 प्रतिशत मुस्लिम हैं। लेकिन तृणमूल के बांसरा अंचल इकाई प्रमुख बिजन कृष्ण मंडल इस संभावना से इनकार करते हैं कि भाजपा ने हिंदुओं को अपने पक्ष में मोड़ लिया है। वे कहते हैं, “वे लोग हिंदू-मुस्लिम मुद्दा उठा रहे हैं, लेकिन यहां के लोग सचेत हैं। उनके फंदे में नहीं फंसने वाले।” हालांकि यह भरोसा उनकी पार्टी के अनेक कार्यकर्ताओं में नहीं दिखा जिनका कहना था कि पार्टी धार्मिक ध्रुवीकरण के मुद्दे से जूझ रही है।
2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश की 27 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। दक्षिण बंगाल में तो तृणमूल को ही ज्यादातर मुस्लिम वोट मिले, लेकिन उत्तर बंगाल में मुस्लिम वोट तृणमूल, लेफ्ट और कांग्रेस में बंट गए। इसलिए भाजपा 2019 में रायगंज लोकसभा सीट, उत्तर दिनाजपुर सीट और मालदा की दो लोकसभा सीटों में से एक जीत गई। उत्तर दिनाजपुर और मालदा दोनों मुस्लिम बहुल जिले हैं। प्रदेश की 80 प्रतिशत आबादी दक्षिण बंगाल में ही है, इसलिए तृणमूल को तीसरी बार सत्ता में आने के लिए जरूरी है कि यहां मुस्लिम वोट उसे ही मिलें।
लेकिन लेफ्ट, कांग्रेस और आइएसएफ गठजोड़ ने तृणमूल के लिए स्थिति जटिल बना दी है। खासकर सबसे बड़े उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों में। उत्तर 24 परगना में 33 और दक्षिण 24 परगना में 31 सीटें हैं। उत्तर 24 परगना में 25.82 प्रतिशत और दक्षिण 24 परगना में 35.7 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है।
वरिष्ठ तृणमूल नेता और प्रदेश के खाद्य मंत्री ज्योति प्रिय मल्लिक आश्वस्त हैं कि धर्म के आधार पर भाजपा के चुनाव प्रचार का नतीजों पर कोई असर नहीं होगा। उन्होंने कहा, “बंगाल के लोग बेवकूफ नहीं हैं। वे 10 वर्षों में सरकार के कामकाज के आधार पर मतदान करेंगे। भाजपा अकेली हिंदुत्व का रखवाला करने वाली पार्टी नहीं है।” मल्लिक के अनुसार 2021 की लड़ाई बंगाल की धर्मनिरपेक्ष संस्कृति को धार्मिक उन्मादियों से बचाने की भी लड़ाई है। लेकिन उत्तर 24 परगना के बैरकपुर क्षेत्र से सांसद अर्जुन सिंह इससे असहमत हैं। वे कहते हैं, “यह चुनाव तय करेगा कि हिंदू पश्चिम बंगाल में अपनी परंपरा निभा सकेंगे या नहीं, महिलाएं शंख फूंक सकेंगी या नहीं, स्कूलों में सरस्वती पूजा और तमाम जगहों पर दुर्गा पूजा होगी या नहीं।”
हुगली जिले के गोघाटा विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी 10% से भी कम है, लेकिन बजरंग दल और हिंदू युवा वाहिनी जैसे संगठनों के चलते यहां हिंदू ध्रुवीकरण का असर बहुत है। बंगाल की सबसे बड़ी आध्यात्मिक शख्सीयतों में एक, रामकृष्ण परमहंस का जन्मस्थान कामारपुकुर गोघाटा विधानसभा क्षेत्र में ही है। परमहंस धार्मिक भेद को नहीं मानते थे। रबींद्र भारती यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर और चुनाव विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, “बंगाल में पहले किसी भी चुनाव में सांप्रदायिक थीम इतनी प्रबल नहीं थी। इस बार का चुनाव बिल्कुल अलग और अभूतपूर्व है।”
तृणमूल का भी अपना आधार है जो उसने समाज कल्याण की विभिन्न योजनाओं के जरिए तैयार किया है। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो तृणमूल के प्रशासन चलाने के तरीके से खफा हैं, खासकर पंचायत, कम्युनिटी डेवलपमेंट ब्लॉक और निगम स्तर पर। हालांकि गवर्नेंस का मुद्दा पीछे रह गया है क्योंकि तृणमूल भी भाजपा के ‘हिंदू विरोधी’ आरोप का जवाब देने में लग गई है। तृणमूल नेता धार्मिक कार्यक्रमों और मंदिरों में जा रहे हैं। हिंदू मतदाताओं को खींचने के लिए पार्टी बंगाली अस्तित्व की भी बात कर रही है। पूर्वी बर्दवान जिले के दुर्गापुर-फरीदपुर ब्लॉक स्थित इच्छापुर ग्राम पंचायत के गांव बांगुरी में एक दीवार पर लिखा था- बांग्ला आमार मां, उत्तर प्रदेश हॉबे ना (हमारी मां बांग्ला उत्तर प्रदेश नहीं बनेगी)।
माकपा केंद्रीय समिति के सदस्य रबिन देब के अनुसार तृणमूल और भाजपा दोनों नफरत की राजनीति कर रही हैं। तृणमूल दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों को बाहरी बता रही है। यह उतना ही निंदनीय है जितना भाजपा का मुसलमानों के खिलाफ प्रचार। वे कहते हैं, “ध्रुवीकरण वाले इस प्रचार अभियान को तोड़ने के लिए हम उन मुद्दों को उठा रहे हैं जो वास्तव में लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं।”
तृणमूल के अच्छे गवर्नेंस के दावे के जवाब में भाजपा प्रशासन के पूरी तरह विफल होने का आरोप लगा रही है। लेकिन मतदाता धर्म के आधार पर वोट डालेंगे या गवर्नेंस के आधार पर, यह सबसे बड़ा सवाल है जिसके जवाब का इंतजार इन पार्टियों को भी है।
“जब मैं पूजा करने मंदिर गई, तो पुजारी ने मुझसे मेरा गोत्र पूछा। मैंने कहा, ‘मां, माटी, मानुष।’ त्रिपुरा में त्रिपुरेश्वरी मंदिर में भी मैंने यही कहा था। दरअसल मेरा गोत्र शांडिल्य है”
30 मार्च को नंदीग्राम में हुई आखिरी प्रचार रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी
“उन लोगों ने कई ग्राम पंचायतों को पाकिस्तान की तरह बना दिया है। यदि पाकिस्तान क्रिकेट मैच जीतता है, तो वे पटाखे फोड़ते हैं, मिठाई बांटते हैं और पार्टी करते हैं। आप लोग नंदीग्राम उन लोगों को सौंपना चाहते हो...जरा सोचो इस पर”
शुभेंदु अधिकारी