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23 जून 2025 · JUN 23 , 2025

आवरण कथा/पहलगाम बाद कूटनीतिः फिर ग्रे लिस्ट की कोशिश?

पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में वापस डालने के लिए भारत ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल 33 देशों में भेजा
पाकिस्तान के खिलाफ सबूत दिखाते शशि थरूर

भारत ने पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट में दोबारा वापस लाने के लिए ठोस कूटनीतिक और वित्तीय अभियान शुरू किया है। यह पेरिस में स्थित एक अंतर-सरकारी निगरानी संस्था है, जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने के लिए वैश्विक मानक निर्धारित करती है। भारत की ओर से यह दबाव एक विस्तृत डोजियर पर केंद्रित है, जिसे जून में एफएटीएफ के पूर्ण सत्र के दौरान पेश किया जाना है, जिसमें वित्तीय लेनदेन, खुफिया आकलन और अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के इनपुट जुटाए गए हैं। इससे वाकिफ अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान के सरकारी संस्‍थानों और संयुक्त राष्ट्र की सूची में दर्ज आतंकवादी गुटों के बीच लगातार जारी रिश्‍तों की जानकारी है, जो पाकिस्‍तान के वादे के उलट है जिसके आधार पर उसे अक्टूबर 2022 में ग्रे सूची से निकाला गया था।

डोजियर में कथित तौर पर बताया गया है कि पाकिस्तान ने एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग (एएमएल) और आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण (सीटीएफ) से संबंधित प्रमुख एफएटीएफ मानदंडों का माखौल उड़ाया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, दलील पेश की जाएगी कि वित्तीय पारदर्शिता के वादे के बावजूद, पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे गुटों को लगातार वित्तीय मदद जारी रखी है।

इसके समानांतर, भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) और विश्व बैंक जैसे वित्तीय संस्थानों से इस्लामाबाद को दी जाने वाली आर्थिक मदद के पुनर्मूल्यांकन का भी आग्रह कर रहा है। भारत सरकार ने डेटा प्रस्तुत किया है कि आर्थिक सुधार के मद में लगाने के लिए ली गई मदद को शायद फौज के आधुनिकीकरण और आतंकवाद के वित्तपोषण में लगाया गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के विश्लेषण से पता चलता है कि 1980 और 2023 के बीच आइएमएफ फंडिंग की अवधि के दौरान पाकिस्तान के हथियारों के आयात में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

ग्रे लिस्ट पर दबाव डालने के लिए विदेश सचिव विक्रम मिसरी (दाएं) वॉशिंगटन में हैं। इसके लिए अमेरिका की सहमति बेहद जरूरी होगी

ग्रे लिस्ट पर दबाव डालने के लिए विदेश सचिव विक्रम मिसरी (दाएं) वॉशिंगटन में हैं। इसके लिए अमेरिका की सहमति बेहद जरूरी होगी

इन तमाम मकसदों के लिए भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी भी वॉशिंगटन में हैं। जाहिर है, इसके लिए अमेरिका की सहमति बेहद जरूरी होगी। ग्रे लिस्ट में शामिल होने से किसी देश की अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ सकता है, जिससे वित्तीय लेन-देन की जांच बढ़ सकती है, निवेशकों का भरोसा कम हो सकता है और अंतरराष्ट्रीय कर्ज और मदद प्राप्त करने में मुश्किल हो सकती है। ब्‍लैक लिस्‍ट वाले देश तो इन मदों से बाहर ही हैं।

पाकिस्तान को पहली बार 2008 में और फिर 2012 में खासकर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी गुटों को आर्थिक मदद रोकने में नकामी के लिए ग्रे-लिस्ट में रखा गया था। वह 2015 तक निगरानी में रहा। फिर, पुलवामा आतंकी हमले के बाद बढ़े अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद 2018 में फिर उसे ग्रे-लिस्ट में रखा गया।

अगले चार वर्षों में, एफएटीएफ ने 34 एक्शन पॉइंट की शृंखला जारी की, जिसके तहत इस्लामाबाद को संयुक्त राष्ट्र के नामित आतंकवादियों पर मुकदमा चलाने, वित्तीय निगरानी को मजबूत करने और घरेलू कानूनों में सुधार करने की जरूरत थी। अक्टूबर 2022 में, भारत सहित एफएटीएफ के सदस्य देशों ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से हटाने के पक्ष में सर्वसम्मति से मतदान किया।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘‘यह वैश्विक हित में है कि पाकिस्तान अपनी जमीन से पैदा होने वाले आतंकवाद और आतंकवादियों को आर्थिक मदद के खिलाफ विश्वसनीय, साबित करने योग्य और निरंतर कार्रवाई जारी रखे।’’ हालांकि, इस वर्ष 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद यह धारणा बदल गई है।

अब भारत की दलील है कि पाकिस्तान ने 2022 के बाद अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं किया है और 26/11 मुंबई हमलों और पुलवामा बम विस्फोट जैसे हमलों के लिए जिम्मेदार लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे गुटों को शह देना जारी रखा है। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, जून में ही होने वाले एफएटीएफ के पूर्ण अधिवेशन के लिए एक व्यापक डोजियर तैयार किया गया है, जिसमें सार्वजनिक धन और विदेशी सहायता का पता लगाने वाली वित्तीय खुफिया जानकारी, आर्थिक संकटों के बीच पाकिस्तान के बढ़े रक्षा खर्च को उजागर करने वाला बजट विश्लेषण, अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों से डेटा वगैरह है, जिससे कथित तौर पर सैन्य विस्तार के लिए आर्थिक सहायता के दुरुपयोग का संकेत है।

पहलगाम के बाद कूटनीतिक पहल

पहलगाम आतंकी हमले और जवाबी सैन्‍य कार्रवाई, और संघर्ष-विराम के बाद अधिकांश अंतरराष्ट्रीय संस्‍थाओं और देशों ने हिंसा की निंदा की और संघर्ष-विराम प्रशंसा की, लेकिन ज्‍यादातर ने सीधे तौर पर पाकिस्तान को दोषी नहीं ठहराया। इसी लिए भारत ने अपना पक्ष रखने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल यूरोप, खाड़ी देशों, अफ्रीका, अमेरिका वगैरह में 33 देशों में भेजे। बहरीन में, एआइएमआइएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि पाकिस्तान “नाकाम राज्य” है, जो आंतकी गुटों को पालता और शह देता है, इसलिए उसे एफएटीएफ की ग्रे सूची में दोबारा डालना चाहिए।

वॉशिंगटन में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अमेरिकी नीति विश्लेषकों के साथ चर्चा में पाकिस्तान को “संशोधनवादी देश” कहा और चेतावनी दी कि नियंत्रण रेखा के पार कोई भी हमला बड़े युद्ध का कारण बन सकता है। शशि थरूर की टोली कोलंबिया वगैरह भी गई, जहां सरकारी बयान में पहलगाम और सैन्‍य कार्रवाई में पाकिस्‍तान में मारे गए लोगों दोनों के लिए ही दुख जताया गया। बाद में थरूर ने बताया कि कोलंबिया सरकार पाकिस्‍तान में मारे गए लोगों के प्रति दुख जताने का बयान वापस लेने पर राजी हो गई है, लेकिन उसकी कोई आधिकारिक सूचना नहीं आई।

पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने सियोल में कहा कि हाल के विधानसभा चुनावों के बाद जम्मू-कश्मीर में अपेक्षाकृत शांति का माहौल है, इसी को तोड़ने के लिए पाकिस्‍तान की ओर से पहलगाम आतंकी कार्रवाई की गई। शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे यूएई और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के नेताओं से मुलाकात की। बहरहाल, इन दौरों का क्‍या असर होता है, यह देखना है, क्‍योंकि शायद ही किसी देश के सरकारी हलकों में बातचीत हो पाई। अमेरिका में तो ट्रम्प प्रशासन या किसी आधिकारिक फोरम पर उन्‍हें बुलाया ही नहीं गया।

तब, पाकिस्तान को फिर से ग्रे-लिस्ट में डालने के क्‍या नतीजे होंगे? पहले ग्रे-लिस्ट के कारण पाकिस्तान को काफी आर्थिक नुकसान हुआ है। इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक तबदलाब के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2008 से 2019 तक ग्रे-लिस्ट के कारण कुल मिलाकर लगभग 38 अरब डॉलर की जीडीपी का नुकसान हुआ, जो खपत, निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी के कारण हुआ। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान की बैंकिंग प्रणाली को कड़ी जांच-पड़ताल का सामना करना पड़ेगा, जिससे अंतरराष्ट्रीय लेनदेन धीमा और महंगा हो गया।

ग्रे लिस्ट में वापस आने से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय साख पर असर पड़ सकता है और द्विपक्षीय संबंधों में तनाव आ सकता है, खासकर ऐसे समय में जब पाकिस्तान आइएमएफ करार पर माथापच्‍ची कर रहा है। मई 2025 में, आइएमएफ ने इस्लामाबाद को 1 अरब डॉलर की नई किस्‍त की मंजूरी दी। यह आर्थिक मदद ढांचागत सुधारों की शर्त से जुड़ा हुआ है, जिनमें राष्ट्रीय बजट की सख्त विधायी निगरानी, क्षेत्रवार करों में समानता और राजकोषीय घाटे को अंकुश लगाने वगैरह प्रमुख हैं। ऐसे में पाकिस्‍तान के लिए नए सिरे से ग्रे लिस्‍ट में शामिल होना मुश्किल पैदा कर सकता है। लेकिन यह सब इस पर निर्भर है कि भारत की कोशिशें कितनी कारगर होती हैं। फिलहाल तो पाकिस्तान को कई देशों और विश्व बैंक से भी मदद मिल रही है। विश्व बैंक ने हाल में ही 4 अरब डॉलर की मदद को राजी हो गया है।

क्या है एफएटीएफ और उसकी ग्रे लिस्ट?

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की स्‍थापना 1989 में जी7 देशों कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका ने की थी, ताकि मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद के वित्तपोषण और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली के खतरों से निपटने के लिए वैश्विक मानक तय किए जाएं। आज 39 देश इसके सदस्य हैं और 200 से अधिक संबद्ध देश हैं। उसकी सिफारिशें मान्‍य होती हैं। 

एफएटीएफ की दो सार्वजनिक सूचियां ग्रे (भूरी या धूसर) और ब्लैक (काली) है।

. ग्रे लिस्ट में उन देशों को डाला जाता है, जिनमें रणनीतिक और नीतिगत कमियां हैं लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का ठोस वादा करते हैं। फिलहाल इस सूची में लेबनान, हैती, दक्षिण सूडान, दक्षिण अफ्रीका और मोनाको जैसे देश हैं।

. ब्लैक लिस्ट में गंभीर खामियों और भारी जोखिम वाले उन देशों को डाला जाता है, जिनके पास कोई विश्वसनीय योजना नहीं है। इस सूची में केवल तीन देश हैं: म्यांमार, उत्तर कोरिया और ईरान। 

 

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