Advertisement

महिला सुरक्षाः सिकुड़ते महफूज ठिकाने

राष्ट्रीय वार्षिक रिपोर्ट तथा सूचकांक (एनएआरआइ) में महिलाओं की असुरक्षा तेजी से बढ़ी
महिला सुरक्षा बड़ा मुद्दा

महिलाओं की सुरक्षा के लिए बस में मार्शल, जगमगाती स्ट्रीट लाइटें, निगरानी के लिए हर जगह कैमरे भले ही लगे हों, लेकिन सच्चाई यही है कि अब कम शहर बचे हैं, जहां महिलाएं खुद को सुरक्षित मान रही हों। ज्यादातर महिलाओं का मानना है कि रोशनी भले ही हो लेकिन रात में बाहर निकलना उनके लिए डरावना अनुभव होता है। हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया राहटकर ने महिला सुरक्षा पर राष्ट्रीय वार्षिक रिपोर्ट तथा सूचकांक (एनएआरआइ) 2025 जारी की, जिसमें यही सब बातें निकल कर सामने आईं। इस नई रिपोर्ट में महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से भारतीय शहरों को कई मापदंडों पर जांचा-परखा गया है। 

आयोग की अध्यक्ष ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा को महज कानून-व्यवस्था तक सीमित नहीं रखा जा सकता। यह सुरक्षा हर क्षेत्र यानी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवागमन और यहां तक कि डिजिटल उपस्थिति जैसे जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित करती है।

रिपोर्ट ग्रुप ऑफ इंटेलेक्चुअल्स एेंड एकेडमिशियंस (जीआइए), पीवैल्यू एनालिटिक्स, द नॉर्थकैप यूनिवर्सिटी और जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल ने तैयार की है। इसमें सभी राज्यों के 31 शहरों को लिया गया और करीब 12,770 महिलाओं पर सुरक्षा को लेकर सर्वे किया गया।

सर्वे में महिलाओं के लिए देश के सबसे सुरक्षित शहरों में चार शहर पूर्वोत्तर के रहे। सबसे सुरक्षित शहरों की सूची में कोहिमा, विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर, आइजोल, गंगतोक, ईटानगर और मुंबई रहे। असुरक्षित शहरों में उत्तर भारत के शहर ही रहे। पटना, जयपुर, फरीदाबाद, दिल्ली, कोलकाता, श्रीनगर और रांची सुरक्षा के लिहाज से सबसे निचले स्थान पर रहे। इसके लिए लैंगिक समानता, नागरिक भागीदारी, पुलिस व्यवस्था और महिला-अनुकूल बुनियादी ढांचा आधार था। 

इस आधार पर कोहिमा सबसे ज्यादा खरा उतरा। पटना और जयपुर जैसे शहरों का प्रदर्शन इन बिंदुओं पर कमजोर साबित हुआ। जयपुर को महिलाओं की सुरक्षा के मामले में सबसे निचले पायदान पर रखा गया। पितृसत्तात्मक रवैया और शहरी बुनियादी ढांचे में कमी जैसे कारक उनकी परेशानी का सबब थे। 

अध्ययन से पता चला कि रात के वक्त विशेष रूप से सार्वजनिक परिवहन और मनोरंजन स्थलों पर महिलाएं खुद को सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस करती हैं। 86 फीसदी महिलाओं लगता है कि वे दिन के समय अपने शैक्षणिक संस्थान में ज्यादा सुरक्षित हैं, लेकिन रात उन्हें अनाजने भय से भर देती है।

91 फीसदी महिलाओं को अपना दफ्तर सुरक्षित तो लगता है लेकिन इनमें लगभग आधी महिलाओं को यह पता ही नहीं है कि उनके दफ्तर में यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए (पीओएसएच, पॉश) कानून लागू है या नहीं। जिन महिलाओं को पॉश कानून के बारे में पता था, उन्होंने माना कि दफ्तर में यह प्रभावी होता है। सर्वेक्षण में शामिल महिलाओं में से एक चौथाई ने माना कि उन्हें भरोसा है कि सुरक्षा संबंधी शिकायत करने पर अधिकारी कार्रवाई करेंगे। 69 फीसदी महिलाएं मौजूदा सुरक्षा प्रयास को बहुत हद तक पर्याप्त मानती हैं, जबकि 30 प्रतिशत से ज्यादा कई कमियों का जिक्र करती हैं।

7 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि 2024 में उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। 24 साल से कम उम्र की महिलाओं में यह आंकड़ा 14 प्रतिशत था। महिलाएं सबसे ज्यादा अपने आस-पड़ोस को असुरक्षित मानती हैं। ऐसा मानने वाली महिलाएं 38 प्रतिशत थीं। सार्वजनिक परिवहन को असुरक्षित मानने वाली महिलाएं 29 प्रतिशत थीं। सर्वे में यह बात भी निकल कर आई कि हर तीन में से एक पीड़ित ही उत्पीड़न की घटना की जानकारी परिवार को देती है और शिकायत करती है। इसके मायने हैं कि दो महिलाएं उत्पीड़न की शिकायत नहीं करतीं यानी एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के पास भी अधिकांश घटनाएं दर्ज नहीं हो पातीं।

एक महत्वपूर्ण बात निकल कर आई कि महिलाओं का संस्थागत प्रतिक्रियाओं में भरोसा कमजोर रहा। केवल चार में से एक महिला ने शिकायतों के प्रभावी निपटारे वाले अधिकारियों पर भरोसा जताया।

आजादी और डर के शहर

सुरक्षित शहर

. कोहिमा

. विशाखापत्तनम

. भुवनेश्वर

. आइजोल

. गंगटोक

. ईटानगर

. मुंबई

असुरक्षित शहर

. रांची

. श्रीनगर

. कोलकाता

. दिल्ली

. फरीदाबाद

. पटना

. जयपुर