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राजस्थानः दोनों दोराहे पर

कांग्रेस और भाजपा दोनों में चल रही अंदरूनी रस्साकशी संभावित चार उपचुनावों के मद्देनजर तेज हुई
कई कांग्रेस विधायकों ने गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला

प्रदेश की 4 सीटों राजसमंद, सहाड़ा, वल्लभनगर और सुजानगढ़ पर होने वाले उपचुनावों की तारीखों के ऐलान के पहले ही सरगरमियां तेज हो गई हैं। राजसमंद सीट भाजपा के पास तो बाकी तीनों पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। अप्रैल में सहाड़ा सीट को खाली हुए छह महीने होने वाले हैं। विधानसभा के मुख्य सचेतक महेश जोशी ने कहा, “चुनाव आयोग मोदी सरकार के दबाव में काम कर रहा है। अभी तक तारीख का ऐलान हो जाना चाहिए था।” केंद्र पर सवालों के इतर राज्य के हर इलाके में हो रही किसान पंचायतों ने भी राजनैतिक तापमान बढ़ा दिया है। वसुंधरा खेमे से बढ़ती खटास से भाजपा का पसोपेश बढ़ा है। कांग्रेस में भी कलह नए सिरे से उठ खड़ी हुई है। आखिर विधानसभा में अशोक गहलोत सरकार ने मान लिया कि उसने पिछले साल सचिन पायलट की अगुआई में बागी विधायकों की फोन टैपिंग की थी। इससे पुरानी रंजिशें फिर खुल गई हैं। लिहाजा, राज्य में दोनों ही प्रमुख पार्टियां अपने ही जाल में उलझती दिख रही हैं।
कांग्रेस में तो अब खुलकर कलह दिखने लगी है। पायलट गुट के पूर्व मंत्री और विधायक रमेश मीणा ने आरोप लगाया कि सरकार में मनमानी चल रही है। मीणा आउटलुक से बातचीत में कहते हैं, “राहुल गांधी के सामने मैं अपनी बात रखूंगा। विधानसभा में एससी-एसटी विधायकों को बिना माइक वाली सीटें दी गई हैं। मुख्यमंत्री से शिकायत के बाद भी समाधान नहीं हुआ। आलाकमान फैसला नहीं लेता है तो मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं।” मीणा गहलोत सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप भी लगाते हैं। वे कहते हैं, “सरकार का पैसा सिर्फ जयपुर और कोटा जा रहा है। राज्य में विकास शून्य हो चला है।”
दरअसल, माइक और फोन टैपिंग तो बहाना है। पायलट गुट की बढ़ती सक्रियता गहलोत सरकार को नई चुनौती देने लगी है। लंबे समय से गहलोत मंत्रिमंडल का विस्तार भी अटका हुआ है। राजस्थान भाजपा के प्रवक्ता तथा पूर्व विधायक अभिषेक मटोरिया कहते हैं, “कलह छुपाने के लिए गहलोत मंत्रिमंडल विस्तार टाल रहे हैं।” मंत्रिमंडल में दस और मंत्रियों को जगह मिल सकती है। गहलोत के पास खुद 18 विभाग हैं। जनवरी से इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि विस्तार बजट सत्र से पहले हो जाएगा। लेकिन अभी तक नहीं हुआ है।
पिछले साल कोरोना महामारी के बीच पार्टी के भीतर बगावत करने वाले पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी सक्रिय हैं। लगातार किसान महापंचायत कर अपनी ताकत दिखा रहे हैं। फोन टैपिंग विवाद तेज होने से भी गहलोत-पायलट के बीच दूरियां फिर बढ़ने के संकेत हैं।
संभावित उपचुनाव कांग्रेस की अगुआई वाली अशोक गहलोत सरकार और विपक्षी भाजपा के लिए नाक की लड़ाई बन गए हैं। हाल में संपन्न हुए 90 नगर निकाय चुनावों में अधिकांश पर निर्दलीयों की जीत से कांग्रेस और भाजपा दोनों परेशान हैं। अपनी छवि बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री ने कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। दांडी यात्रा के 91 साल पूरे होने पर जयपुर में दांडी यात्रा निकाली, लेकिन पायलट समर्थक विधायकों की गैर-मौजूदगी से उनके तेवर चढ़ गए। गहलोत ने कहा कि किसी को पीले चावल बांटने की जरूरत नहीं है। रमेश मीणा कहते हैं, “हमें जब निमंत्रण या सूचना नहीं मिली तो क्यों जाएं।”
दूसरी तरफ, भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का खेमा भी गरमी बढ़ा रहा है। इसी के मद्देनजर पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा मार्च के पहले सप्ताह जयपुर पहुंचे। उन्होंने भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में वसुंधरा राजे सिंधिया और प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का एक साथ हाथ पकड़ कर संदेश देने की कोशिश की कि “एकला मत चलो... ।” वसुंधरा समर्थकों ने पिछले महीने एक अलग “वसुंधरा राजे समर्थक राजस्थान मंच” बना लिया था। हालांकि, तब प्रदेश पार्टी अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा था कि ये संगठन के लोग नहीं हैं। लेकिन, अब वसुंधरा के करीबी माने जाने वाले बीस विधायकों ने पत्र लिखकर नेतृत्व को लेकर सवाल उठाया है। हालांकि 23 फरवरी को वसुंधरा प्रदेश भाजपा कोर कमेटी की बैठक में शामिल हुईं।
जाहिर है, उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों में नई सरगरमी का सबब बन सकते हैं। कांग्रेस में पायलट लगातार गहलोत को चुनौती दे रहे हैं, तो वसुंधरा भाजपा को ‘जमीन’ पर लाने में लगी हैं।

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