सीमा पर विवाद के कारण सरकार ने 29 जून को 59 चाइनीज ऐप पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की तो देश की गेमिंग कम्युनिटी ने राहत की सांस ली थी, क्योंकि प्रतिबंधित ऐप में प्लेयर अननोन्स बैटलग्राउंड (पबजी) नहीं था। लेकिन उनकी यह खुशी बमुश्किल दो महीने टिकी और सरकार ने 2 सितंबर को पबजी मोबाइल समेत 118 चाइनीज ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया। यह गेम खेलने वाले सबसे ज्यादा भारत में ही हैं। लेकिन बाजार की ताकत देखिए। प्रतिबंध के एक हफ्ते के भीतर, 8 सितंबर को दक्षिण कोरिया की पबजी कॉरपोरेशन ने कहा कि उसने भारत में पबजी के मोबाइल वर्जन की फ्रेंचाइजी चीन की टेनसेंट गेम्स से वापस ले ली है। इसके बाद माना जा रहा है कि कोरियाई कंपनी संभवतः किसी भारतीय डिस्ट्रीब्यूटर के जरिए इसे जल्दी ही रीलांच करेगी। अन्य लोकप्रिय चाइनीज ऐप भी भारतीय पार्टनर के जरिए रीलांचिंग कर सकते हैं। यहां एक और बात स्पष्ट करने की जरूरत है कि कंप्यूटर पर खेले जाने वाले पबजी पीसी और पबजी कंसोल के अधिकार पहले से कोरियाई कंपनी के पास हैं। उन पर प्रतिबंध नहीं लगा था।
भारत में पबजी मोबाइल की पब्लिशिंग टेनसेंट गेम्स ही कर रही थी। कोरियाई कंपनी ने कहा कि इस गेम का पेटेंट उसके पास है और प्रतिबंध हटाने के लिए वह सरकार से बात करेगी। दरअसल, भारत में पबजी की लोकप्रियता को देखते हुए कोरियाई कंपनी इस बाजार को खोना नहीं चाहती। ऐप डाटा फर्म सेंसर टावर के अनुसार भारत में इसके 17.5 करोड़ डाउनलोड हैं जो पूरी दुनिया में डाउनलोड का एक चौथाई है। जुलाई में देश में इसके चार करोड़ एक्टिव यूजर थे। भारत में गेम स्ट्रीमिंग बाजार का आधा पबजी का था। इसके बाद फ्री फायर और कॉल ऑफ ड्यूटी गेम हैं। भारत में पबजी मोबाइल के रोजाना लगभग डेढ़ करोड़ लॉगिन होते थे। पबजी मोबाइल के रेवेन्यू में भारत का हिस्सा 80 लाख से एक करोड़ डॉलर प्रतिमाह था। प्रतिबंध के बाद एक दिन में ही टेनसेंट की मार्केट वैल्यू 34 अरब डॉलर घट गई थी।
मोबाइल गेम प्रेमियों को दोबारा पबजी खेलने का मौका शायद जल्दी ही मिल जाए, फिर भी ई-स्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर लोकेश सूजी मानते हैं कि ज्यादा चिंतित होने की बात नहीं है। युवाओं ने ई-स्पोर्ट्स का स्वाद चख लिया है, इसलिए वे दूसरे गेम की तरफ जाएंगे। आउटलुक से बातचीत में उन्होंने कहा, “गेम स्ट्रीमिंग करने वालों के फॉलोअर बड़ी संख्या में हैं। वे दूसरे गेम की लोकप्रियता तय करने में बड़ी भूमिका निभाएंगे।”
हालांकि ट्रिनिटी गेमिंग के सीईओ अभिषेक अग्रवाल की राय थोड़ी अलग है। उन्होंने कहा, “पबजी पर प्रतिबंध ई-स्पोर्ट्स के लिए बड़ा झटका था। दूसरा और कोई गेम नहीं जिसकी इतनी बड़ी कम्युनिटी हो। हर इनफ्लुएंसर के दर्शकों की संख्या एक से डेढ़ महीने में 10 से 30 फीसदी कम हो सकती है।”
पबजी भले दोबारा शुरू हो जाए, लेकिन इस पर प्रतिबंध ने दूसरी कंपनियों को मौका दिया है। फ्री फायर, कॉल ऑफ ड्यूटी मोबाइल, फोर्टनाइट और वेलोरेंट जैसे गेम में खिलाड़ियों की संख्या बढ़ रही है। फ्री फायर पहले भी पबजी मोबाइल को कड़ी टक्कर दे रही थी। अभिषेक के अनुसार इनके नंबर अभी कम हैं लेकिन अगर इन्होंने सही रणनीति बनाई तो इनके डाउनलोड पबजी जितने हो सकते हैं। ग्राफिक्स क्वालिटी के लिहाज से पबजी की तुलना में फ्री फायर थोड़ा हल्का गेम है, लेकिन कॉल ऑफ ड्यूटी मोबाइल पबजी के लगभग समान है।
प्रतिबंध से कई सवाल भी उभरे हैं। साल-डेढ़ साल में भारत ने ई-स्पोर्ट्स में जो बढ़त हासिल की थी, उसे गंवा दिया है। अभिषेक कहते हैं, “फैनाटिक जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने यहां ई-स्पोर्ट्स में काफी निवेश किया है, उनकी आगे की रणनीति भी देखनी होगी। अगर ये संगठन भारत से चले जाते हैं तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत गलत संदेश जाएगा।”
युवा ई-स्पोर्ट्स को बतौर करिअर अपना रहे हैं और कई का घर खर्च ई-स्पोर्ट्स, खास कर पबजी से चल रहा था। सूजी के अनुसार शीर्ष स्तर के खिलाड़ी और स्ट्रीमर पबजी मोबाइल से हर महीने दो से दस लाख रुपये कमाते थे। अग्रवाल ने बताया, जो खिलाड़ी किसी टीम की तरफ से खेलते हैं उन्हें कंपनी 25,000 से एक लाख रुपये तक हर महीने देती है। एक लाख फॉलोअर वाले खिलाड़ियों की मासिक कमाई 75 हजार के आसपास और 70-80 लाख फॉलोअर वाले की 10-15 लाख रुपये है।
गेम डेवलपर के लिए मौका
वैसे तो भारत में मोबाइल गेम डेवलपिंग पर बीते कुछ समय से काम चल रहा है, लेकिन पबजी मोबाइल के खिलाफ सरकार के कदम ने भारतीय डेवलपर्स को तेजी से बढ़ने का मौका दिया है। हालांकि यह आसान नहीं है। अग्रवाल के अनुसार गेम डेवलप करने में डेढ़ से दो साल लगते हैं और हर तीन महीने में उसे अपडेट करना पड़ता है। अभी तक किसी भारतीय डेवलपर के पास ऐसा ईकोसिस्टम होने की जानकारी नहीं है।
गेम डेवलपर कंपनी हिटविकेट की सह-संस्थापक और वाइस प्रेसिडेंट कीर्ति सिंह इसकी वजह बताती हैं। पश्चिमी देशों, चीन या दक्षिण एशियाई देशों के पास एडवांटेज है क्योंकि वहां मोबाइल गेमिंग पहले आया। भारत में इसकी शुरुआत 2014-15 में हुई। यहां डेवलपर्स के लिए चुनौती है कि उनकी प्रतिस्पर्धा पहले दिन से ही दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गेम्स के साथ है। वे यूजर से यह नहीं कह सकते कि भारतीय होने के नाते हमारा ऐप डाउनलोड कीजिए। कीर्ति के अनुसार, “गेम बनाना और उसे पब्लिश कर देना काफी नहीं। डेवलपर को लगातार प्रयोग करने पड़ेंगे। यह देखना पड़ेगा कि यूजर्स को कौन सा फीचर पसंद आ रहा है, कौन सा नहीं।” कीर्ति की कंपनी हिटविकेट को पिछले महीने 7 तारीख को आयोजित आत्मनिर्भर भारत इनोवेशन चैलेंज में गेम्स श्रेणी में पहला पुरस्कार मिला था।
ईकोसिस्टम में कई बातें आती हैं। जैसे टैलेंट, लोगों का अनुभव, बाजार की समझ, फंडिंग और सरकारी समर्थन। भारत में फंडिंग की अभी शुरुआत हुई है। टैलेंट की बात करें तो अब भी कम ही लोग गेम डेवलपर बनना चाहते हैं। बहुत कम कॉलेज हैं जो गेम डेवलपमेंट सिखाते हैं। कीर्ति एक और चुनौती बताती हैं, "जब हम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करते हैं तो उसके लिए पैसे नहीं देने पड़ते। इस लिहाज से देखें तो मोबाइल गेमिंग को इतना इंगेजिंग होना पड़ेगा कि लोग उसके लिए पैसे भी दें।"
इन चुनौतियों के साथ भारतीय डेवलपर्स के सामने बड़ा बाजार भी है। मोबाइल गेमिंग का वैश्विक बाजार (68.5 अरब डॉलर) पिछले साल ही दुनिया के सिनेमा (41.7 अरब डॉलर) और म्यूजिक इंडस्ट्री (19.1 अरब डॉलर) से अधिक हो गया था। 33 फीसदी ऐप डाउनलोड मोबाइल गेम के ही होते हैं और 2019 में करीब 250 करोड़ लोगों ने मोबाइल पर गेम खेला। सूजी के अनुसार 2019 में भारत में गेमिंग रेवेन्यू 83 करोड़ डॉलर का था जिसके 2024 में 3.34 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
मोबाइल गेमिंग की शुरुआत 1997 में कही जा सकती है जब नोकिया ने 40 करोड़ फोन में सांप का खेल इंस्टॉल किया था। लेकिन आज यह युवाओं से जुड़ने का साधन बन गया है। हाल ही न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने एक गेमिंग प्लेटफॉर्म पर कुछ समय बिताया। यानी राजनेता भी समझ रहे हैं कि युवाओं के साथ जुड़ने के लिए उनकी भाषा बोलनी पड़ेगी। इस लिहाज से देखें तो मोबाइल गेमिंग इंडस्ट्री के आने वाले दिनों में काफी बढ़ने की संभावना है।
भारत में मोबाइल डाटा सस्ता होने के बाद जैसे एक नई दुनिया खुल गई। पिछले एक साल से सबसे ज्यादा गेम भारत में ही डाउनलोड हो रहे हैं। तीन साल पहले तक लोग यही कहते थे कि भारत में कोई मोबाइल गेम पर पैसे खर्च नहीं करेगा, लेकिन पिछले साल पबजी ने भारतीय ग्राहकों से 10 करोड़ डॉलर कमाए। इससे एक और बात पता चलती है कि भारत के लोग गेम खेलना तो चाहते हैं लेकिन उनकी यह ख्वाहिश भी है कि उन्हें विश्वस्तरीय गेम मिले। कीर्ति कहती हैं, “गेम कोई कमोडिटी बिजनेस नहीं, यह एक तरह का भावनात्मक अनुभव है। डेवलपर को अपने यूजर को भावनात्मक रूप से जोड़ना पड़ेगा। वे यह न सोचें कि पबजी जैसा गेम बना देने से वह हिट हो जाएगा। ऐसा नहीं होता। आज के युवा काफी स्मार्ट हैं और वे हर चीज विश्वस्तरीय चाहते हैं।”