हरियाणा के 22 जिलों में दो ग्रीन,18 ऑरेंज जोन में हैं। सो, राज्य में आम जनजीवन, स्कूल-कॉलेज और औद्योगिक गतिविधियां सामान्य नहीं हैं। मार्च-अप्रैल में राज्य को 12 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है। प्रवासी मजदूरों की समस्याएं अलग हैं। ऐसे में सरकार क्या कर रही है, इस पर संपादक हरवीर सिंह ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से बात की। प्रमुख अंश:
कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए 25 मार्च से लगातार तीन बार लॉकडाउन लगाना पड़ा। इससे पैदा हुए हालात से निपटने के लिए आपकी क्या रणनीति रही?
हमें कई मोर्चों पर एक साथ लड़ाई लड़नी पड़ी। हरियाणा में इसकी शुरुआत 4 मार्च से हुई। उस समय 14 कोरोना संक्रमित इतालवी गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आए। उस समय हमारा बजट सत्र चल रहा था। हमें कोरोना की तो कल्पना भी नहीं थी। अचानक इस महामारी से निपटने के लिए कंट्रोल रूम और हेल्पलाइन स्थापित किए गए। सभी संबंधित विभागों को सक्रिय किया गया। शुरुआत में हमारे यहां स्थिति नियंत्रण में थी, पर 140 कोरोना संक्रमित तबलीगी लोगों के यहां आने से संकट बढ़ा। दूसरी चुनौती घरों के लिए निकले प्रवासी श्रमिकों के अचानक सड़कों पर आने से पैदा हुई। उन्हें राहत शिविरों में लेकर गए। 600 से ज्यादा संक्रमितों में बड़ी संख्या तबलीगी जमात के लोगों की है। दिल्ली का भी हरियाणा में बहुत असर पड़ा है। एनसीआर के चार जिलों सोनीपत, झज्जर, गुरुग्राम और फरीदाबाद में ही 350 से ज्यादा लोग संक्रमित हैं।
दिल्ली के तीन तरफ से लगती हरियाणा की सभी सीमाएं पूरी तरह सील की गई हैं, जबकि बड़ी तादाद में हरियाणा के लोगों को जरूरी सेवाओं के लिए रोज दिल्ली जाना होता है। इनके लिए दिल्ली में रहने की कोई व्यवस्था नहीं है। यह स्थिति कैसे सुधरेगी?
दिल्ली से कोरोना को रोकना हमारे लिए बड़ी चुनौती है। हरियाणा से रोज दिल्ली जाने वालों के लिए यह रोकथाम हमें इसलिए करनी पड़ी कि कहीं कोरोना वॉरियर ही कोरोना कैरियर न बन जाएं। दिल्ली से कोरोना संक्रमित लोग हरियाणा में न आएं, इसके लिए हमने दिल्ली के मुख्यमंत्री को हरसंभव मदद की पेशकश की। रोज दिल्ली जाने वालों को भी अनुमति नहीं देंगे, चाहे वे पुलिसवाले हों या स्वास्थ्यकर्मी। यहां से सब्जियां लेकर जाने वाले किसान हैं, दूध आपूर्ति करने वाले हैं। कई सब्जी व्यापारियों में कोरोना का संक्रमण मिला, तब हमें रोज आने-जाने वालों को रोकना पड़ा। हमने साप्ताहिक पास जारी किए, ताकि लोग एक सप्ताह दिल्ली में रहने के बाद यहां आकर एकांतवास करें। बहुत जरूरी सेवाओं- प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह, रक्षा विभागों और स्वास्थ्य सेवाओं में कायर्रत लोगों के लिए हमने छूट भी दी है। अन्य सेवाएं देने वालों पर हमने सख्ती की है। कोरोना रोकने के लिए जो भी सख्ती हमें करनी पड़ेगी, वह करेंगे।
हरियाणा के दो जिले ग्रीन जोन में, 18 ऑरेंज और दो रेड जोन में हैं। कोरोना ऐसी बीमारी है जिसमें पता नहीं चलता कि कौन कोरोना संक्रमित दूसरों में संक्रमण फैला दे। ऐसे में, लोगों को क्वारंटीन करने के लिए किस तरह की व्यवस्था की?
हमने क्वारंटीन के लिए करीब 14,000 बेड की इमरजेंसी व्यवस्था की। विदेशों से आने वाले करीब 30,000 लोगों को हमने सर्विलांस में रखा। स्थानीय लोगों से कोरोना संक्रमण नहीं फैला। तबलीगी जमात से संक्रमण पर भी पूरी तरह से नियंत्रण हो गया है। दिल्ली एक चुनौती है। एक नई चुनौती नांदेड़ गुरुद्वारा से आने वाले श्रद्धालु हो सकते हैं, जिनमें 15 संक्रमित हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों के बाद फरीदाबाद, गुरुग्राम, सोनीपत और रोहतक जैसे औद्योगिक हब में आर्थिक गतिविधियां आंशिक रूप से शुरू हुई हैं। कुछ शर्तों के चलते यहां की गतिविधियां अभी पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटी हैं। क्या उद्यमियों में काम का माहौल बहाल करने के प्रति विश्वास पैदा नहीं हो पाया है?
ऐसा नहीं है, पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के बाद औद्योगिक इकाइयों को शुरू करने की स्वत: अनुमति मिल रही है। उद्योग सोशल डिस्टेंसिंग की सावधनियां बरतने के बाद उत्पादन शुरू कर रहे हैं। 20,000 से अधिक औद्योगिक इकाइयां शुरू हो गई हैं, इनमें 12 लाख से अधिक श्रमिक काम कर रहे हैं। रोजाना दो से तीन हजार इकाइयां शुरू हो रही हैं, जिनमें एक से डेढ़ लाख श्रमिक काम पर लौट रहे हैं। रेड जोन में जरूर सख्ती बरती जा रही है। ऑरेंज जोन में सावधानी की जरूरत है। जिला उपायुक्तों की अगुआई में बनी जिला स्तरीय कमेटियों की मदद से उद्योगों को खोलने की अनुमति दी जा रही है। रेड जोन में 33, ऑरेंज में 50 और ग्रीन जोन में 75 फीसदी लोगों के साथ काम करने की अनुमति है।
प्रवासी श्रमिकों को उनके मूल राज्यों में भेजना बड़ी चुनौती है। हरियाणा में बाहर से बहुत से श्रमिक कृषि क्षेत्र और उद्योगों में काम करने के लिए आते हैं। अपने राज्य लौटने के लिए कितने श्रमिकों ने आवेदन किया है?
कृषि क्षेत्र में काम करने वाले करीब 65,000 श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन नहीं है, जिन्हें पहले चरण में भेजा जा रहा है। उद्योगों में काम करने वाले करीब सवा दो लाख श्रमिकों ने ऐप पर आवेदन किया है। करीब 100 ट्रेनों में 1.20 लाख लोगों को भेजा जाएगा। मैंने लोगों से यह अपील भी की है कि यहां उद्योग-धंधे खुल रहे हैं, इसलिए लोगों को नहीं जाना चाहिए। जिन राज्यों में वे जाना चाहते हैं, वहां हालात हरियाणा से अच्छे नहीं हैं। मेरी अपील का असर यह हुआ कि उद्योगों के खुलने के साथ ही बहुत से श्रमिकों ने अपने मूल राज्य लौटने से इनकार कर दिया। तीन लाख में से करीब डेढ़ लाख लोग ही अपने राज्य जाना चाहते हैं। जाने वाले भी 15-20 दिन बाद वापस लौट सकते हैं, मेरा ऐसा विश्वास है।
श्रमिकों को भेजने का खर्च आपकी सरकार उठा रही है?
कोरोना रिलीफ फंड में जनता ने 225 करोड़ रुपये का योगदान किया है। श्रमिकों को भेजने के लिए आठ से दस करोड़ रुपये का खर्च इस फंड में से किया जाएगा।
ऐसी चर्चा है कि चीन में कार्यरत कई बड़ी विदेशी कंपनियां चीन को छोड़कर भारत में निवेश की संभावनाएं तलाश रही हैं। ऐसे में, हरियाणा को कोई संभावना दिख रही है? क्या किन्हीं कंपनियों से संपर्क हुआ है?
हमने अधिकारियों की एक टीम बनाई है, जो सभी संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं। टीम ने कई निवेशकों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस की हैं। दिल्ली के निकट होने के कारण जापान की कई कंपनियां यहां निवेश करना चाहती हैं।
संकट की घड़ी में व्यक्तिगत आर्थिक सेहत और राज्य की आर्थिक सेहत पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है। लॉकडाउन के दो महीने में गतिविधियां बंद रहने से राजस्व का बड़ा नुकसान हुआ है। इसके आकलन और नुकसान से उबरने के उपाय तलाशने के लिए क्या किसी टास्क फोर्स का गठन किया गया है?
यह बहुत बड़ा आर्थिक संकट है। जैसे परिवारों पर संकट आया है वैसे ही सरकारों पर भी संकट है। गरीब परिवारों की मदद के लिए हमने मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना के तहत सूचीबद्ध 12.50 लाख में से 9.50 लाख लोगों में हरेक को चार हजार रुपये महीना दिया है। भवन निर्माण से जुड़े सवा तीन लाख पंजीकृत श्रमिकों को पांच हजार रुपये महीना और पांच लाख बीपीएल तथा असंगठित श्रेत्र के श्रमिकों को भी सहायता दी गई है। 20 लाख से अधिक गरीबों को भी नकद सहायता राशि दी गई है। कोई व्यक्ति भूखा नहीं सोए, इसके लिए राज्य में सवा दो करोड़ भोजन के पैकेट के अलावा बड़े पैमाने पर राशन भी वितरित किया गया है।
आर्थिक गतिविधियां बंद रहने से राज्य की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई है। मार्च औैर अप्रैल में जीएसटी, वैट, स्टांप ड्यूटी, एक्साइज ड्यूटी का 12 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है। इसके बावजूद हमने हर महीने 4,500 करोड़ रुपये का खर्च वहन किया है। इसके लिए अप्रैल में 5,000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया था, मई में भी 2,000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया जाएगा। हमने शराब के ठेके खोले हैं, उससे करीब 700 करोड़ रुपये महीना आएगा। प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री खुलने से हर महीने करीब 150 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। पेट्रोल पर 1.15 रुपये और डीजल पर एक रुपया लीटर वैट बढ़ाने से राजस्व के मोर्चे पर कुछ राहत मिलेगी। व्यापार शुरू होने से जीएसटी मिलेगा। ठप पड़े विकास कार्यों को पटरी पर लाने में कुछ महीने और लगेंगे। केंद्र से राहत पैकेज मिलने के बाद गतिविधियां बढ़ेंगी।
आर्थिक संकट से उबरने के दो उपाय होते हैं- खर्चे घटाएं और राजस्व के नए स्रोत तलाशे जाएं। आपकी सरकार ने नौकरियों में भर्ती पर एक साल के लिए रोक लगा दी है। कुछ कर बढ़ाए हैं, कुछ खर्चे घटाए हैं, पर करों का बोझ बढ़ाने से महंगाई भी बढ़ जाती है। खर्च घटाने और आय के नए संसाधन जुटाने के क्या उपाय किए जा रहे हैं?
टैक्स हमने कोई ज्यादा नहीं बढ़ाया है। पेट्रोल पर 1.15 रुपये और डीजल पर एक रुपया लीटर वैट बढ़ाया है। दिल्ली, पंजाब और राजस्थान समेत कई राज्यों ने सात रुपये लीटर तक वैट बढ़ाया है। फल तथा सब्जी पर मंडी फीस से हमें सालाना 40 करोड़ रुपये मिलेंगे, जिसे मंडियों के विकास पर ही खर्च किया जाएगा। बसों का किराया 1.05 रुपये प्रति किलोमीटर किया है जो पड़ोस के राज्यों की तुलना में कम है। कर इतने नहीं बढ़ाए हैं कि जनता पर महंगाई का कोई बड़ा बोझ पड़े। मंत्रिमंडल के खर्च घटाए हैं, उनके विशेष कोटे का 51 करोड़ रुपये का फंड खत्म कर दिया है, दिसंबर तक किसी बोर्ड और कॉरपोरेशन में नया चेयरमैन नियुक्त नहीं किया जाएगा, नई गाड़ियां नहीं खरीदी जाएंगी। शराब पर कोरोना सेस लगाया गया है, जिससे 300 करोड़ रुपये मिलेंगे। इन उपायों के बावजूद काम पूरा होने वाला नहीं है। केंद्र से बड़ा राहत पैकेज जरूरी है।
कृषि क्षेत्र में हरियाणा का बड़ा योगदान है। केंद्रीय पूल में पंजाब के बाद दूसरे नंबर पर गेहूं का योगदान करने वाले हरियाणा में महामारी के बीच गेहूं की कटाई और मंडियों में खरीद भी एक बड़ी चुनौती रही है। खरीदारी सामान्य बनाए रखने के मोर्चे पर सरकार की क्या तैयारी रही?
इस संकट में आइटी को छोड़कर हर क्षेत्र की सेवाएं करीब-करीब ठप रही हैं, पर कृषि क्षेत्र पर कोरोना का कोई विपरीत असर नहीं पड़ा है। गेहूं की खरीदारी से 16,000 करोड़ रुपये और सरसों की खरीद से 6,000 करोड़ रुपये मार्केट में आएंगे। गन्ने के 2,000 करोड़ रुपये भी आएंगे। साल भर में कृषि क्षेत्र से 45,000 करोड़ रुपये बाजार में आएंगे। सोशल डिस्टेंसिंग के लिए मंडियां 500 से बढ़ाकर 1,800 की गई हैं। श्रमिकों की किल्लत से दो-चार होना पड़ा, फिर भी खरीदारी नहीं रुकने दी। ‘मेरी फसल मेरा ब्योरा’ पोर्टल पर रजिस्टर्ड राज्य के किसानों से 65-70 लाख टन गेहूं खरीद होने की उम्मीद है। पांच लाख टन सरसों खरीदी जा चुकी है। आसपास के राज्यों के किसानों से गेहूं की खरीद रोकी गई, पर हरियाणा से गेहूं खरीदारी पूरी होने के बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के किसानों से गेहूं खरीदा जाएगा। दूसरे राज्य के किसानों की सरसों हरियाणा में नहीं खरीदी जाएगी।
फल-सब्जी उत्पादक किसानों को राहत के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
सब्जी उत्पादक किसानों के लिए हमने भावांतर भरपाई योजना लागू की है। सब्जी के भाव गिरने पर किसानों को लागत मूल्य की भरपाई की जाती है। एक साल हमने करीब 10 करोड़ रुपये दिए थे, पर दूसरे साल हमें भरपाई नहीं करनी पड़ी। इस बार दिल्ली के आसपास के सब्जी उत्पादक किसान प्रभावित हुए हैं, उन्हें योजना के तहत राहत दी जाएगी।
संकट के समय में शिक्षा पर बड़ा प्रतिकूल असर पड़ा है। बड़ी तादाद में वे छात्र जो स्कूली शिक्षा पूरी करके अगली कक्षाओं में जाने वाले थे, उन्हें बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दाखिलों की प्रक्रिया पूरी तरह से ठप है। ऐसे क्या उपाय किए जा रहे हैं कि विद्यार्थियों का शैक्षणिक सत्र बर्बाद न हो?
शिक्षा विभाग की पूरी व्यवस्था तेजी से बदल रही है। ऑनलाइन शिक्षा के कुछ प्रावधान किए गए हैं, कुछ जारी हैं। एजुसेट को चैनल्स के साथ जोड़ा गया है। कॉलेज के छात्रों के लिए 4,000 से अधिक लेक्चर ऑनलाइन अपलोड किए गए हैं। राज्य उच्च शिक्षा परिषद से रिपोर्ट मांगी गई है कि किस तरह शिक्षा को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आगे बढ़ाया जाए। किसी भी विद्यार्थी का शैक्षणिक सत्र खराब नहीं होने दिया जाएगा।
आपकी गठबंधन सरकार के छह महीने से ज्यादा हो गए। पिछली बार आपकी पार्टी की, और अबकी बार गठबंधन की सरकार के कार्यकाल को कैसे दखते हैं?
गठबंधन सरकार में मुझे कोई बड़ा फर्क महसूस नहीं होता। कार्यशैली में कोई अंतर नहीं आया है। पिछली बार की सरकार में हमारे बारे में विपक्ष द्वारा कहा जाता था कि यह अनुभवहीन लोगों की सरकार है। हम स्वीकार करते थे कि हम अनुभवहीन हैं पर साथ में यह भी कहते थे कि हमें लैंड यूज में परिवर्तन, तबादलों और नौकरियों में वैसा अनुभव नहीं है, जो पूर्व सरकारों के कार्यकाल में रहा है। हम ऐसी सरकार नहीं चलाएंगे। हम पारदर्शी और जनहित वाली सरकार चलाएंगे। इस बार भी बेहतर कर रहे हैं। लॉकडाउन के दो महीने में हमारे आइटी प्रोजेक्ट तेजी से बढ़े हैं। ई-गवर्नेंस के माध्यम से आखिरी छोर के गरीब आदमी को सरकारी स्कीमों का सीधा लाभ मिला है।
मौजूदा परिस्थितियों में कब तक जनजीवन पटरी पर लौटने की उम्मीद की जा सकती है?
अनिश्चितता के माहौल में कुछ नहीं कहा जा सकता कि कब तक कोरोना से निकल पाएंगे। कोरोना से बाहर निकलने के बाद ही स्थिति सामान्य हो पाएगी। डर का माहौल भी बनाया जा रहा है। कुछ लोग कह रहे हैं कि 15 अगस्त तक देश में ढाई करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित होंगे। कोरोना से बाहर निकलने के लिए जीवन शैली बदलनी पड़ेगी।
लॉकडाउन के तीसरे चरण के बाद 17 मई से और ढील मिलने की संभावना है?
कुछ शर्तों के साथ ढील पहले भी दी गई है। कोरोना का ग्राफ गिरने के साथ ही ढील और बढ़ेगी। ढील मिलने के बाद भी मूल मंत्र सोशल डिस्टेंसिंग ही है। लॉकडाउन बढ़ता है तो भी सोशल डिस्टेंसिंग में रहते हुए काम जारी रहेगा।