हिमाचल की राजनीति में अब तक की परिपाटी रही है कि सत्तारूढ़ पार्टी कभी भी खुद को अगले चुनाव में दुहराती नहीं है। ऐसे में भाजपा की संभावनाओं पर केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने शिमला में अश्वनी शर्मा से बात की, जिन्होंने यह भी बताया कि उनके पिता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल इस बार चुनाव में सक्रिय क्यों नहीं हैं।
कांग्रेस का कहना है कि पांच साल के दौरान राज्य में कोई विकास नहीं हुआ है और ‘डबल इंजन’ महज एक और जुमला है।
कांग्रेस के पास अपनी उपलब्धि के नाम पर कुछ नहीं है। उसे विकास दिखाई नहीं दे रहा है।
कांग्रेस ने एक आरोप-पत्र निकाला है जिसमें जयराम ठाकुर की सरकार में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं।
कांग्रेस के पास कोई नैतिक हक नहीं है कि वह भाजपा की सरकार को भ्रष्ट कहे। उसके अपने केंद्रीय और प्रदेश स्तर के नेता भष्टाचार में लिप्त हैं और जमानत पर बाहर हैं। जयराम ठाकुर की सरकार ने ईमानदारी के साथ काम किया है। इस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं है।
कांग्रेस का कहना है कि वह सत्ता में आयी तो पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस)बहाल कर देगी।
मैं कांग्रेस से पूछना चाहूंगा कि जब ओपीएस लागू हुआ था उस वक्त सत्ता में कौन था। वीरभद्र सिंह थे, जिन्होंने 2003 में इसे लागू किया था। फिर 2012 में जब वे वापस आए तो उसे बहाल क्यों नहीं कर दिया? कांग्रेस की जिन दो सरकारों राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने सैद्धांतिक रूप से इस पर फैसला लिया है वे अब केंद्र की मदद मांग रही हैं। अब तक कांग्रेस की किसी भी सरकार ने इसे बहाल नहीं किया है।
सरकारी कर्मचारी क्या भाजपा की संभावनाओं को कमजोर नहीं कर सकते।
भाजपा विकास में सरकारी कर्मचारियों के योगदान को स्वीकार करती है। हम उनसे बस इतना कह रहे हैं कि ओपीएस के जटिल मसले का हल जल्द ही ढूंढ लिया जाएगा।
कांग्रेस ने 18 से 60 साल के बीच की महिलाओं को 1500 रुपये मासिक अनुदान का वादा किया है।
यह कांग्रेस का सबसे बड़ा चुनावी छल साबित होने जा रहा है। अव्वल तो कम राजस्व स्रोतों वाला और पहले से ही 70,000 करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा एक राज्य साठ से पैंसठ हजार करोड़ सालाना का अतिरिक्त वित्तीय बोझ नहीं सह सकता।
भाजपा के 21 बागी नेता चुनाव मैदान में हैं। यह अभूतपूर्व है।
भाजपा में टिकट वितरण का तरीका दूसरे दलों से बिलकुल अलग है। यह सच है कि इस बार कई बागियों ने अपना नामांकन करवाया है। कई को मना लिया गया लेकिन कुछ हैं जिन्होंने अब भी अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं ली है। कभी-कभार बागी भी मददगार साबित होते हैं, यह भी एक हकीकत है।
आम आदमी पार्टी क्या इस पहाड़ी राज्य में अपने पैर जमा पाएगी?
कोई सवाल ही नहीं उठता।
क्या आपको नहीं लगता कि पार्टी ने आपके पिता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया।
अगर किसी को यह जानना है कि कैसे एक जमीनी नेता अपनी पार्टी के लिए जिंदगी, स्वास्थ्य और सुविधाओं को कुरबान कर देता है तो उसे इस देश में धूमलजी का उदाहरण लेना चाहिए। 2017 का चुनाव हारने के एक हफ्ते के भीतर धूमलजी वापस अपनी सियासी जमीन पर उतर गए और पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ खड़े रहे। पिछले पांच साल में उन्होंने अपनी सेहत या उम्र का कोई खयाल नहीं रखा। पार्टी के प्रति ऐसी प्रतिबद्धता दुर्लभ है।
उन्हें चुनाव न लड़ाए जाने के फैसले से कई कार्यकर्ताओं को दुख पहुंचा है। आप भी हमीरपुर में इस पर बात करते वक्त भावुक हो गए थे।
यह तो स्वाभाविक है। सच्चाई यह है कि धूमलजी ने दो महीने पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखकर भेज दिया था कि वे चुनावी राजनीति से सन्यास ले रहे हैं।