नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने 16 अक्टूबर को शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। करीब दो दशक के अपने राजनैतिक सफर में यह उनकी पहली अहम सफलता थी जब पार्टी को उन्होंने 90 सीटों में से 42 पर जीत दिलवाई। इसीलिए इस मौके को न सिर्फ एनसी, बल्कि खुद उमर के लिए भी ऐतिहासिक माना गया। इस चुनावी कामयाबी की तुलना 1977 के चुनावों के साथ की जा रही है जब स्वायत्तता की एक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद शेख मोहम्मद अब्दुल्ला जबरदस्त बहुमत के साथ राज्य की सत्ता में लौटे थे। उन्हें 9 अगस्त, 1953 को कश्मीर षड्यंत्र के केस में गिरफ्तार किया गया था, जब वे उस क्षेत्र के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। उनकी वापसी मुख्यमंत्री के रूप में जब हुई, तब उन्होंने गांदरबल की सीट पर अपनी जीत दर्ज की थी। उस समय एनसी ने 75 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 47 पर जीती थी। इसके उलट जमात-ए-इस्लामी से सैयद अली शाह गीलानी जीतने वाले इकलौते नेता थे जिन्होंने सोपोर से चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में जमात ने 19 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे।
उमर को इतने भारी जनादेश की उम्मीद नहीं थी, इसीलिए उन्होंने गांदरबल के अलावा बडगाम से भी परचा भरा था। 2014 में चुनाव में हारने के बाद उमर मुख्यमंत्री पद से हट गए थे। अब उनकी वापसी राज्य के बजाय एक केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर हुई है। एनसी को जम्मू की चिनाब घाटी और पीर पंजाल क्षेत्र की सीटों पर भी जीत हासिल हुई है। इस तरह अब वह समूचे जम्मू-कश्मीर की पार्टी बन चुकी है।
लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने उमर और उनके पांच मंत्रियों को पद और गोपीयता की शपथ दिलवाई। मंत्रियों का चयन और उसके बाद लिए गए फैसले दिखाते हैं कि उमर अब केंद्र सरकार से किसी किस्म के टकराव में नहीं दिखना चाहते हैं। उन्होंने जम्मू की नौशेरा सीट से जीतकर आने वाले सुरिंदर चौधरी को उप-मुख्यमंत्री बनाया है। जावेद अहमद राणा और सतीश शर्मा को कैबिनेट के पद दिए गए हैं। ये दोनों भी जम्मू से हैं। कश्मीर से सकीना इटू, जावेद अहमद डार को कैबिनेट में लिया गया है। इस तरह छह सदस्यों की कैबिनेट में जम्मू् को आधा हिस्सा देकर उमर ने उसकी नुमाइंदगी के बारे में बहस पर विराम लगाने और क्षेत्रगत संतुलन साधने की कोशिश की है।
राज्य के दरजे की बहाली और अनुच्छेद 370 के अहम मुद्दों पर उमर का रुख सतर्कतापूर्ण है, बावजूद इसके कि विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अवामी इत्तिहाद पार्टी आक्रामक मुद्रा में हैं। उमर ने 17 अक्टू्बर को चुपचाप कैबिनेट से राज्य की बहाली का एक संकल्प पारित करवाया। वैसे तो सूचना विभाग कैबिनेट के फैसलों को आम तौर से तुरंत प्रसारित करता है, लेकिन दो दिन बाद 19 सितंबर को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से विभाग ने इस फैसले की सूचना दी। सूचना के अनुसार कैबिनेट ने राज्य बहाली का संकल्प पारित करते हुए केंद्र से गुजारिश की है कि वह इस बारे में फैसला करे। उसके अनुसार कैबिनेट ने मुख्यमंत्री को केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री के साथ इस मसले पर बातचीत करने के लिए अधिकृत किया है। उमर अब्दुल्ला आगामी दिनों में दिल्ली आएंगे और प्रधानमंत्री सहित अन्य केंद्रीय मंत्रियों से मिलेंगे।
इंडिया ब्लॉक के बड़े नेता
इसके अलावा कैबिनेट ने श्रीनगर में 4 नवंबर, 2024 को विधानसभा का सत्र बुलाने का फैसला किया है और इस संबंध में लेफ्टिनेंट गवर्नर को सत्र बुलाने और असेंबली को संबोधित करने के लिए सूचित किया है। उमर की कैबिनेट के चुपचाप लिए इन फैसलों की दूसरे राजनैतिक दल कड़ी निंदा कर रहे हैं।
सबसे पहली प्रतिक्रिया पीडीपी के नेता वहीद उर रहमान पर्रा ने दी, ‘‘उमर अब्दुल्ला का पहला फैसला 5 अगस्त, 2019 के फैसले की पुष्टि से ज्यादा और कुछ नहीं है। अनुच्छेद 370 पर कोई संकल्प पारित न होना और केवल राज्य के दरजे की बहाली की बात करना बड़ा झटका है, खासकर तब जबकि उन्होंने अनुच्छेद 370 की बहाली के नाम पर वोट मांगे थे। हमें इस बारे में अखबारों से पता चला। यह दुर्भाग्युपूर्ण है और यू-टर्न है। पांच अगस्त 2019 को जो हुआ था वह जम्मू और कश्मीर के लोगों की इच्छा के खिलाफ था। उमर ने वादा किया था कि पहला संकल्प 370 पर ही लिया जाएगा।’’
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद गनी लोन ने एक्स पर लिखा, ‘‘मैं नहीं जानता कि राज्य बहाली पर लिए गए संकल्प को इतना रहस्यमय और गोपनीय क्यों रखा गया। मेरे खयाल से जेएंडके के कैबिनेट सचिवालय ने इसकी अधिसूचना जारी की होगी, जैसा कि प्रोटोकॉल है। मेरा मानना है कि जम्मू और कश्मीर के लोगों की इच्छा असेंबली में जाहिर होती है, कैबिनेट में नहीं।’’ उन्होंने लिखा कि कैबिनेट राजकाज की एक ‘बहुसंख्यकवादी’ संस्था है और सबकी राय की नुमाइंदगी नहीं करती।
स्वायत्तता पर सरकार द्वारा पारित संकल्प पर लोन ने कहा, ‘‘पूरे देश में मेरे खयाल से असेंबली ही राज्य बहाली या अनुच्छेद 370 जैसे अहम मसलों को संबोधित करने के लिए उपयुक्त संस्था है। आखिर अब क्या बदल गया है ऐसा? मुझे समझ नहीं आ रहा कि इस संकल्प को असेंबली के लिए बचाकर क्यों नहीं रखा गया?’’ उन्होंने कहा कि अगर राज्य बहाली और अनुच्छेद 370 का मसला असेंबली में रखा जाता, तो वे देखना पसंद करते कि भाजपा और अन्य दल इस पर कैसे वोट करते।
सज्जाद ने एनसी के चुनावी घोषणापत्र को याद दिलाया जिसमें लिखा था, ‘‘चुनाव के बाद जम्मू और कश्मीर की असेंबली शुरुआती कामों में राज्य का दरजा और विशेष दरजा छीने जाने के केंद्र के फैसले के खिलाफ संकल्प पारित करेगी।’’ यह पढ़ने के बाद वे कहते हैं, ‘‘अंतिम पैरा सब कुछ कह रहा है। हम लोग कुछ भी असामान्य की उम्मीद या मांग नहीं कर रहे, बस उतना कर दीजिए जो आपने अपने घोषणापत्र में जम्मू और कश्मीर की जनता से वादा किया था।’’
बारामूला के सांसद इंजीनियर राशिद ने कहा कि केवल राज्य बहाली पर सरकार का संकल्प ‘बहुत कष्टदायक’ और एनसी के सैद्धांतिक पक्ष से ‘प्रस्थान’ है। उन्होंने कहा, ‘‘हम उमर अब्दुल्ला को याद दिलाना चाहते हैं कि आपने चुनाव अनुच्छेद 370, राज्य और अनुच्छेद 35ए की बहाली के नाम पर लड़ा था, इसलिए केवल राज्य की बहाली पर संकल्प पारित करना बहुत दर्दनाक है। यह उनकी पार्टी के सिद्धांत से खुद उनके मुकरने जैसा है।’’ उन्होंने यह आरोप भी मढ़ दिया कि यह कैबिनेट संकल्प दिखाता है कि उमर भाजपा के हाथों में खेल रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही संसद की बहस में जम्मू् और कश्मीर की राज्य बहाली का आश्वासन दे चुके हैं, इसलिए यह धारणा बन रही है कि उमर की सरकार केंद्र से टकराव के बजाय समझौते की राह अपनाना चाहती है। अभी यह देखा जाना बाकी है कि मोदी सरकार ऐसी मुद्राओं पर क्या प्रतिक्रिया देती है और जम्मू और कश्मीर के लोग इस नीति को एक कदम आगे बढ़ा हुआ मानेंगे या सामूहिक शर्मिंदगी के रूप में लेंगे क्योंकि ‘राज्य की बहाली’ चुनावी मसला था ही नहीं, केवल कश्मीर के लोगों की प्रतिष्ठा और अनुच्छेद 370 की बहाली ही चुनावी मुद्दा था। यह भी देखना होगा कि कांग्रेस की इस पर क्या प्रतिक्रिया होती है। इसमें दो राय नहीं कि उमर संभल कर चल रहे हैं।