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जनादेश’21/केरल: अभी कमल कोसों दूर

भाजपा को अभी कुछ भले हासिल न हो, उसकी कोशिश 2024 के चुनावों की नींव तैयार करने की
नामांकन भरते मुख्यमंत्री विजयन

केरल में ऐसा क्या है जो, भाजपा के लिए मुश्किल पैदा करता है? केंद्र में सत्तारूढ़ दल, एलडीएफ शासित राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले इस सवाल से दो-चार हो रहा है। तिरुवनंतपुरम में एक चुनावी सभा में गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषण में केरल का उल्लेख सामाजिक सुधार की भूमि के रूप में किया। सार्वजनिक नीति अनुसंधान केंद्र के चेयरमैन डी. धनुराज कहते हैं, “यहां सुर मद्धिम थे, पश्चिम बंगाल के भाषणों की तरह आक्रामकता नहीं थी। भाजपा समझ गई है कि सांप्रदायिक बयानबाजी से यहां मदद नहीं मिलेगी।”

शाह ने लोगों को माकपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चों को वोट देने के पुराने पैटर्न से बाहर निकलने का आह्वान किया। 88 वर्षीय टेक्नोक्रेट ई. श्रीधरन जैसे विश्वसनीय चेहरे को लाकर पार्टी ने केरल में राजनीति की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश की है। राजनीतिक पर्यवेक्षक जोसेफ मैथ्यू कहते हैं, “श्रीधरन जैसा लोकप्रिय चेहरा पार्टी को उस समाज में स्वीकार्यता दिलाएगा जहां कभी इसे राजनीतिक अछूत माना जाता था। लेकिन श्रीधरन कितने वोट दिला पाते हैं, यह अंदाजा लगाना मुश्किल है, क्योंकि मलयाली नायकों की पूजा करने के लिए नहीं जाने जाते।”

140 सीटों वाली विधानसभा के लिए 6 अप्रैल को होने वाले चुनाव में मुख्य मुकाबला तो माकपा के नेतृत्व वाले एलडीएफ और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ के बीच होगा, भाजपा के लिए यह प्रतिष्ठा की लड़ाई होगी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन कहते हैं, “त्रिपुरा में हम शून्य सीटों से सत्तारूढ़ पार्टी बन गए। यहां भी हमें 35-40 सीटें जीतने और सरकार बनाने का भरोसा है। चुनाव के बाद कांग्रेस, माकपा और दूसरी पार्टियों से लोग भाजपा में आएंगे।”

सुरेंद्रन कुछ ज्यादा ही आशावादी हैं। पार्टी का वोट शेयर 2016 के विधानसभा चुनाव के 15 फीसदी की तुलना में 2020 के निगम चुनाव में महज 0.5 फीसदी बढ़कर 15.5 फीसदी हुआ। धनुराज के अनुसार, “राज्य में पार्टी के पास करिश्माई, मजबूत और जोड़-तोड़ करने वाला नेतृत्व नहीं है।” आपसी मतभेद भी कम नहीं हैं। श्रीधरन को सीएम उम्मीदवार घोषित करने के बाद राज्य नेतृत्व के यू-टर्न ने पार्टी की दरार को उजागर किया है। प्रदेश की वरिष्ठ भाजपा नेता शोभा सुरेंद्रन ने राज्य इकाई के साथ अपने मतभेदों के बारे में केंद्रीय नेतृत्व से संपर्क किया है।

हाल तक मुकाबले में कमजोर दिख रही कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी के आने से नया जोश दिख रहा है। पार्टी ने चांडी को पुतुपल्ली सीट से टिकट दिया है। 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ नेमन सीट पर जीत मिली थी। कांग्रेस ने वहां से सांसद के. मुरलीधरन को उतार कर भाजपा को कड़ी टक्कर दी है।

ओमन चांडी के आने से कांग्रेस में जोश

ओमन चांडी के आने से कांग्रेस में जोश

भाजपा की एक और बाधा अल्पसंख्यकों का समर्थन न मिलना है। भगवा पार्टी का बड़ा जनाधार नायर समुदाय के बीच ही है। राज्य में 45 फीसदी आबादी वाले मुस्लिम और ईसाई समाज को प्रभावित करना मुश्किल है। हिंदू वोटों (55 फीसदी) को एकजुट करने का प्रयास विफल होने के बाद अब पार्टी ने ईसाईयों पर नजरें गड़ा दी हैं, जिनकी आबादी प्रदेश में 18 फीसदी है। हालांकि, राजनीति शास्त्री प्रो. सज्जाद इब्राहिम का कहना है कि पार्टी ज्यादा ईसाईयों को वोट के लिए राजी नहीं कर पाएगी।

पिछले दिनों कोच्चि में मलंकरा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च के वरिष्ठ बिशप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य के बीच बैठक के बाद अफवाह उड़ी कि चर्च विधानसभा चुनावों में भाजपा को समर्थन दे रहा है। उससे पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑर्थोडॉक्स और जैकोबाइट सीरियन चर्चों के प्रमुखों से मिले थे और उनके बीच पुराना संपत्ति विवाद सुलझाया था। पहले एलडीएफ का समर्थन करने वाले जैकबाइट सीरियन चर्च ने अब अपना रुख बदला है।

संयुक्त ईसाई परिषद के अध्यक्ष फेलिक्स जे. पुल्लुदन कहते हैं, “चर्च प्रमुख इसलिए दबाव में हैं क्योंकि उन्हें विदेश से बेहिसाब पैसा मिलता है। जांच हुई तो इन लोगों पर भारी पड़ेगा।” केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल के सिबू इरम्बिनिकल कहते हैं, “भले ही बिशप और राजनेताओं के बीच मुलाकातें हो रही हों, लेकिन हमने किसी भी दल का पक्ष लेने की बात नहीं सोची है।” संघ के एक नेता ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहा, “हो सकता है इस बार भाजपा को कोई सफलता न मिले, लेकिन उसका लक्ष्य 2024 के लोकसभा चुनाव में कई सीटें हासिल करना है।” वे कहते हैं, “पश्चिम बंगाल में भाजपा ने पहले कम्युनिस्टों का सफाया करने के लिए ममता बनर्जी का इस्तेमाल किया, फिर राज्य में अपने पैर पसारे। पार्टी केरल में वैसे ही मौके का इंतजार कर रही है। हम चाहते हैं कि माकपा सत्ता में रहे और कांग्रेस सिमट जाए और उसका फायदा भाजपा को मिले।”

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