खालिस्तान समर्थक ‘वारिस पंजाब दे’ के मुखिया अमृतपाल सिंह के लुका-छिपी का खेल क्या महज पंजाब पुलिस की लापरवाही का मामला है? विपक्षी दलों की मानें, तो लापरवाही दर लापरवाही अमृतपाल को सरकार के सरंक्षण का संकेत देती है। पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट के सामने एडवोकेट जनरल विनोद घई ने दो बार जो हलफनामा दाखिल किया है में दावा किया गया है कि पुलिस अमृतपाल की गिरफ्तारी के बहुत करीब है। दावे को पुख्ता करने के लिए मीडिया में खबरें भी चलाई गईं कि 25 मार्च की शाम को फगवाड़ा के निकट अमृतपाल को उसके करीबी साथी पप्पलप्रीत सिंह के साथ इनोवा में देखा गया। पुलिस ने पीछा किया पर होशियारपुर पहुंचकर अमृतपाल फरार हो गया। (पप्लप्रीत को 10 अप्रैल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया)। अगले दिन पीलीभीत के मोहनपुर गुरुद्वारे के सीसीटीवी फुटेज के हवाले से पंजाब पुलिस ने जानकारी दी कि पीलीभीत में छापेमारी की गई। पुलिस ने पाया कि इस गुरुद्वारे में 25 मार्च से पहले की सारी सीसीटीवी फुटेज हटा दी गई और 26 मार्च से आगे की फुटेज में एक स्कॉर्पियो गुरुद्वारे में खड़ी दिखाई दी, जिसमें अमृतपाल यहां पहुंचा था। इससे पहले अमृतपाल के हरियाणा के शाहबाद से उत्तराखंड और नेपाल भागने की खबरें भी पुलिस के हवाले से आईं।
18 मार्च से फरार अमृतपाल के कई वीडियो फुटेज सामने आए पर पुलिस के हाथ खाली हैं। एक के बाद एक कुल तीन वीडियो वायरल कर अमृतपाल पुलिस को खुली चुनौती देता रहा। पहले वीडियो में कहता है, “मुझे पकड़ना इतना आसान नहीं।” दूसरे में सरेंडर होने की शर्तें रखता है, “मेरे आत्मसमर्पण को पुलिस गिरफ्तारी नहीं बताएगी और पूछताछ के दौरान मारपीट नहीं की जाएगी।” तीसरे वीडियो में कहता है, “मैं जहां भी हूं ‘चड़दी कलां’ में हूं” यानी मजे में हूं। उधर, एनएआइ और सीबीआइ जैसी जांच एजेंसियां भी उस पर नजर रखे हुए हैं। इस बीच जम्मू-कश्मीर और चंडीगढ़ से अमृतपाल के दो निजी सुरक्षाकर्मियों को जारी हथियारों के लाइसेंस रद्द करने में हुई देरी पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। दोनों निजी सुरक्षाकर्मी सेना से सेवानिवृत्त हैं। इनमें वरिंदर सिंह 19वीं सिख रेजीमेंट से और तलविंदर सिंह 23वीं आर्म्ड पंजाब रेजिमेंट से जुड़ा था। 12 जनवरी को पंजाब के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (खुफिया) ने संबंधित उपायुक्तों को पत्र लिखने के बावजूद दोनों के लाइसेंस रद्द नहीं किए गए।
जम्मू-कश्मीर के रामबन और किश्तवाड़ जिलों के उपायुक्तों द्वारा अमृतसर जिले में कोट धर्मचंद कलां के तलविंदर सिंह और असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद वरिंदर सिंह उर्फ फौजी दोनों के शस्त्र लाइसेंस अवैध करार दिए गए हैं। इस बारे में 9 मार्च के आदेश के मुताबिक वरिंदर सिंह के लाइसेंस का 24 जुलाई 2017 से नवीकरण नहीं हुआ था। जम्मू-कश्मीर से समय-समय पर फर्जी बंदूक लाइसेंस जारी करने के मामले सामने आए हैं। सीबीआइ इस मामले की जांच कर रही है। सीबीआइ ने 2012 और 2016 के बीच जम्मू-कश्मीर के 22 जिलों में 2.78 लाख शस्त्र लाइसेंस देने में गड़बड़ी को लेकर 16 अक्टूबर 2018 को एफआइआर दर्ज की थी। दिसंबर 2019 में सीबीआइ ने कुपवाड़ा, बारामूला, ऊधमपुर, किश्तवाड़, शोपियां, राजौरी, डोडा और पुलवामा के तत्कालीन जिलाधिकारियों और मैजिस्ट्रेट से संबंधित श्रीनगर, जम्मू, गुरुग्राम और नोएडा में एक दर्जन स्थानों पर छापे मारे।
सीबीआइ के प्रवक्ता आरसी जोशी ने कहा, “छानबीन और दस्तावेजों की जांच के दौरान कुछ बंदूक डीलर की भूमिका पाई गई, जिन्होंने संबंधित जिलों के तत्कालीन डीएम और एडीएम की मिलीभगत से अपात्र व्यक्तियों को कथित तौर पर अवैध हथियारों के लाइसेंस जारी किए थे।” यह भी आरोप लगाया गया कि जिन लोगों को ये लाइसेंस मिले, वे उन जगहों के मूल निवासी नहीं थे। केंद्रीय एजेंसियों के मुताबिक, अमृतपाल सशस्त्र बल की स्थापना के लिए पूर्व सैनिकों और नशा करने वालों की भर्ती कर रहा था। उसने अपने गांव जल्लूपुर खेड़ा में फायरिंग रेंज बनाई हुई है जिसमें सेना से रिटायर अमृतपाल के दो साथी हथियारों को प्रशिक्षण दे रहे थे। इनमें तलविंदर सिंह और वरिंदर सिंह ने पहले बैच में 7 लोगों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया, जो पहले नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती थे। हथियार प्रशिक्षण पाने के बाद दोनों अमृतपाल के निजी सुरक्षाकर्मी बन गए।
पंजाब की सुरक्षा एजेंसियों को संदेह था कि अमृतपाल नशामुक्ति केंद्रों और गुरुद्वारों का इस्तेमाल हथियारों को जमा करने और आत्मघाती हमलों के लिए युवाओं की ब्रिगेड आनंदपुर खालसा फौज (एकेएफ) तैयार कर रहा था। पुलिस ने अमृतपाल के गांव जल्लूपुर खेड़ा में छापेमारी के दौरान फायरिंग रेंज में जमा किए गया गोला बारूद और हथियार जब्त किए हैं। रेंज में एकेएफ के निशान वाली वर्दी और जैकेट भी बरामद हुए हैं। पुलिस का यह भी कहना है कि खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (केएलएफ) प्रमुख रणजोध सिंह इंग्लैंड में अवतार सिंह खंडा नाम से दोहरी जिंदगी जी रहा है और 19 मार्च को लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग के बाहर हुए प्रदर्शन और हिंसा का मास्टरमाइंड वही है। वह अमृतपाल सिंह के सीधे संर्पक में है। केएलएफ ने प्रेस को जारी बयान में केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों और पंजाब पुलिस को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी और उन्हें पंजाब में आतंकवाद के दिनों में डीआइजी अवतार सिंह अटवाल और एसएसपी गोबिंद राम की हत्याओं की याद दिलाई। कुल मिलाकर यह सवाल उठाया जा रहा है कि अमृतपाल फरार है या फिर पुलिस सरंक्षण में सुरक्षित है?
शून्य से शुरुआत
साल भर तक जेल की सलाखों के पीछे रहे पूर्व क्रिकेटर, पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने जेल में रहते 30 किलो वजन घटाया। हालांकि जेल से छूटते ही हल्की दाढ़ी और नजर के चश्मे के साथ उनकी गंभीरता छू हो गई और पुराने तीखे तेवर सामने आ गए। जेल से वापसी के साथ ही उन्होंने पंजाब की ठंडी कांग्रेसी सियासत को गर्माने की कोशिश की। 1988 में पटियाला में कार पार्किंग को लेकर झगड़े में 65 वर्षीय गुरनाम सिंह की सिद्धू के मुक्के मारने से मौत हो गई थी।
फरवरी 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक महीना भर पहले भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस का हाथ थामने वाले सिद्धू ने बीते पांच साल में कांग्रेस में ही सेंध लगाई। आलाकमान ने सिद्धू पर दांव खेला पर कैप्टन अमरिंदर सिंह से खटक गई। सिद्धू को, पांच दशक से कट्टर कांग्रेसी सुनील जाखड़ को हटाकर 18 जुलाई 2021 को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। अध्यक्ष बनते ही कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सिद्धू ने कैप्टन सरकार का तख्ता पलट कराया। कैप्टन के बाद अगला मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में पिछड़े तो कैप्टन के बदले मुख्यमंत्री बने चरणजीत सिंह चन्नी को कमजोर मुख्यमंत्री साबित करने में सिद्धू ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
राहुल-प्रियंका के साथ सिद्धू
सिद्धू की लालसा इस कदर भारी पड़ी कि 2022 के विधानसभा चुनाव में खुद विधायक भी न बन पाए और 16 मार्च 2022 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। 19 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जेल की सजा सुनाए जाने पर सलाखों के पीछे जाने से शून्य हुए सिद्धू को कांग्रेस आलाकमान ने भले ही पंजाब कांग्रेस में फिर से स्थापित करने पर विचार किया हो पर प्रदेश कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता सिद्धू को तवज्जो देने को तैयार नहीं। पटियाला जेल से रिहाई के समय अमृतसर के सांसद गुरजीत सिंह औजला को छोड़ कोई बड़ा नेता सिद्धू की आगवानी के लिए नहीं पहुंचा। हालांकि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने फरमान जारी कर सिद्धू की अगवानी के लिए पहुंचने को कहा था पर पंजाब के कांग्रेसियों ने परवाह नहीं की।
सिद्धू से खार खाए पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ के बाद पूर्व सीएम कैप्टन अमरिदंर सिंह समेत कांग्रेस के आठ पूर्व कैबिनेट मंत्रियों और विधायकों ने भाजपा में शामिल होकर भाजपा को कांग्रेस की बी टीम के रूप में स्थापित कर लिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 13 में से 8 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस की बगैर बड़े चहरों के पहली परीक्षा 2024 के लोकसभा चुनाव हैं। हालांकि कांग्रेस के जालंधर से सांसद चौधरी संतोख सिंह के निधन से खाली हुई इस सीट पर 10 मई को होने वाले उपचुनाव में चौधरी की पत्नी करमजीत कौर चौधरी के जरिए यह सीट वापस कांग्रेस के हाथ आना एक कड़ी चुनौती है।
जेल से रिहाई के बाद सिद्धू ने अपनी सुरक्षा को लेकर केंद्र और पंजाब की भगवंत मान सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा, “एक सिद्धू (गायक सिद्धू मूसेवाला)को गैंगस्टरों की गोलियों से मरवा दिया गया और दूसरे को मरवाने के लिए भगवंत मान सरकार ने सुरक्षा से बुलैटप्रूफ गाड़ी हटा दी है और जेड प्लस सुरक्षा को घटाकर सुरक्षाकर्मी 25 से 12 कर दिए हैं।”
इस पर आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता मलविंदर सिंह कंग ने कहा, “एक बुर्जग की जान से खेलने वाले सिद्धू कोई आजादी की लड़ाई जीत कर जेल से रिहा नहीं हुए जो उन्होंने अपनी रिहाई पर ढोल-ढमाकों से अपना स्वागत कराया। जेल से रिहा होते ही बेतुकी बयानबाजी की बजाय सिद्धू को आत्ममंथन करना चाहिए और कुछ समय अपने परिवार के साथ बिताना चाहिए।”
शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता डॉ. दलजीत चीमा ने कहा, “सिद्धू के जेल में रहने से कांग्रेस के पास तो खोने के लिए अब कुछ नहीं बचा है। देखते हैं यह दिशाहीन मिसाइल अब किस पर गिरेगी? देखना होगा अपने स्वभाव के मुताबिक सिद्धू पंजाब कांग्रेस में अपनी अनदेखी पर अपनी ही पार्टी के साथियों को कब निशाने पर लेते हैं?”