बिहार में कथित विकास की आंधी की जद में एक और ऐतिहासिक धरोहर आ गई है। यह है खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी। बिहार पुल निर्माण निगम लिमिटेड ने पटना में निरंतर बढ़ती ट्रैफिक समस्या के मद्देनजर गांधी मैदान स्थित कारगिल चौक से एनआइटी, पटना तक 2.2 किलोमीटर लंबे फ्लाइओवर की एक महत्वकांक्षी योजना बनाई है। इसके तहत खुदा बख्श लाइब्रेरी स्थित ऐतिहासिक कर्जन रीडिंग रूम को तोड़ने की जरूरत है। सरकार उस प्रांगण में एक नया रीडिंग रूम बनाना चाहती है, लेकिन सिविल सोसाइटी के सदस्यों, खासकर प्राचीन धरोहरों की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को यह मंजूर नहीं।
इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैक) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक पत्र लिखकर कर्जन रीडिंग रूम बचाने के लिए दखल देने की अपील की है। इंटैक ने कहा है, "खुदा बख्श लाइब्रेरी का दौरा मशहूर हस्तियों जैसे महात्मा गांधी, लॉर्ड कर्जन, वैज्ञानिक सीवी रमन, जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, एपीजे अब्दुल कलाम और कई मुख्य न्यायाधीश कर चुके हैं। इंटैक के पटना चैप्टर के प्रमुख जे.के. लाल कहते हैं, “हमारी धरोहर को संरक्षित किया जाना चाहिए। यूरोप में सरकारें धरोहर में शामिल इमारतों को संरक्षित करती हैं, उन्हें ध्वस्त नहीं करती हैं। यह समझना होगा कि ऐसी इमारतें न केवल मौजूदा पीढ़ी के लिए धरोहर हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अहम हैं।”
सरकार ने अपना निर्णय नहीं बदला तो धरोहरों के संरक्षण को समर्पित इस संस्था ने अदालत का दरवाजा खटखटाने का निर्णय किया है। सरकार के इस निर्णय के खिलाफ विरोध के अन्य स्वर भी उठ रहे हैं। पूर्व आइपीएस अमिताभ कुमार दास ने इसे बचाने के लिए एक मुहिम शुरू की है और राष्ट्रपति पुलिस पदक लौटाने की घोषणा की है। दास ने 12 अप्रैल को राष्ट्रपति को भेजे एक पत्र में लिखा, “खुदा बख्श लाइब्रेरी पूरी इंसानियत की विरासत है। हिन्दुस्तान की गंगा-जमनी तहजीब की निशानी है। पूरा बिहार इस पर फख्र करता है। खुदा बख्श लाइब्रेरी को जमींदोज करने के नीतीश सरकार के फैसले के खिलाफ मैं भारत सरकार का दिया पुलिस पदक लौटा रहा हूं।”
सरकार के निर्णय के विरोध में लाइब्रेरी की निदेशक शाइस्ता बेदार का कहना है कि कर्जन रीडिंग रूम इस पुस्तकालय का हिस्सा है, जो अत्यंत महत्वपूर्ण धरोहर है। उन्होंने इसे बचाने के लिए जिला प्रशासन को चार विकल्प बताए हैं, जिससे एलिवेटेड पुल भी बन जाएगा और रीडिंग रूम पर भी आंच नहीं आएगी।
लाइब्रेरी का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। इसकी स्थापना सीवान के एक प्रतिष्ठित जमींदार खानदान के खान बहादुर मौलवी खुदा बख्श ने की थी, जिन्हें पिता से 1,400 पांडुलिपियां विरासत में मिली थीं। उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग 4,000 पांडुलिपियां एकत्र कीं और 1891 में पटना स्थित पुस्तकालय को आम जनता के लिए स्थापित किया।
लाइब्रेरी की निदेशक ने इसे बचाने के लिए प्रशासन को चार विकल्प सुझाए हैं, जिससे पुल भी बन जाएगा और रीडिंग रूम भी बच जाएगा
वर्ष 1905 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने लाइब्रेरी का भ्रमण किया और पांडुलिपियों से प्रभावित होकर इसके विकास के लिए अनुदान भी मुहैया कराया। उसके बाद उनके नाम पर एक रीडिंग हॉल का निर्माण हुआ। आजादी के बाद केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की तरफ से वित्त पोषित पुस्तकालय को 1969 में संसद में पारित एक विधेयक के जरिए राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के तौर पर मान्यता भी दी गई।
आज इस लाइब्रेरी में 21 हजार से अधिक ऐतिहासिक महत्व की पांडुलिपियां और ढाई लाख से अधिक पुस्तकें, खासकर अरबी और फारसी में लिखी इस्लामिक साहित्य के ग्रंथों का दुर्लभ संग्रह है। यहां मौजूद अमूल्य पांडुलिपियों, दुर्लभ मुद्रित पुस्तकों और मुगल, राजपूत, तुर्की, ईरानी और मध्य एशियाई स्कूल के मूल चित्रों के कारण यह पुस्तकालय दुनिया भर में प्रसिद्ध है। हर वर्ष यहां हजारों की संख्या में शोधकर्ता पहुंचते रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में पटना में कई ऐतिहासिक इमारतों को नए भवन बनाने के नाम पर ध्वस्त किया गया। इनमें 1885 में बना अंजुमन इस्लामिया हाल, 110 वर्ष पुराना गोल भवन और ब्रिटिश राज के दौरान बने कई बंगले शामिल हैं। सरकार आजादी के पूर्व बने पटना समाहरणालय को भी ढहा कर वहां नया भवन बनाना चाहती है। इसी परिसर में डच के बनाए गोदाम भी शामिल हैं, लेकिन सरकार के अनुसार उनका कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं है, क्योंकि उनका उपयोग महज अफीम रखने के लिए किया जाता था।