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क्रिकेट: भारतीय टीम में बढ़ता भरोसे का अभाव

जिस तरह कोहली के पर कतरने की कोशिश हुई और कोहली ने कप्तानी छोड़कर जवाब दिया, यह सब भारतीय क्रिकेट के लिए ठीक नहीं
कोहली ने टेस्ट क्रिकेट से भी ले लिया संन्यास

विराट कोहली ने जिस तरह एक के बाद एक भारतीय टीम की कप्तानी छोड़ी है, उससे खेल जगत में सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले इस पद की गरिमा घटी है। पिछले साल सितंबर से भारतीय टीम की कप्तानी को लेकर लगातार कई घटनाएं हुई हैं। इन घटनाओं ने दिखाया कि किस तरह ओछी राजनीति, जिसका मुख्य मकसद व्यक्तिगत अहं को संतुष्ट करना है, ने भारतीय क्रिकेट के ईकोसिस्टम के लिए खतरा पैदा कर दिया है, वह ईकोसिस्टम जो किसी भी लोकप्रिय खेल को आगे बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाता है।

विराट कोहली पिछले कई हफ्तों से चर्चा में रहे हैं और अब यह बात कहने में कोई गुरेज नहीं कि जो कोहली विश्व क्रिकेट में चंद रोज पहले तक सबसे मजबूत शख्सियत के तौर पर माने जाते थे, वे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में व्यवस्था बदलाव के शिकार हो गए हैं। कागजी तौर पर उनकी तरफ से टेस्ट क्रिकेट की कप्तानी छोड़ना स्वैच्छिक दिख सकता है, लेकिन सच्चाई तो यही है कि लगातार ऐसे हालात पैदा किए गए कि वे दरकिनार हो गए और इस तरह का आश्चर्यजनक कदम उठाने को मजबूर हुए।

जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त प्रशासकों की समिति अगस्त 2018 में बीसीसीआइ का नया संविधान लेकर आई थी, तब उसका लक्ष्य खेल को आगे ले जाने में पूर्व क्रिकेटरों की भूमिका बढ़ाना था। यह सब एक ऐसे पारदर्शी, ईमानदार और लोकतांत्रिक तरीके से किया जाना था जिसमें मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों और कॉरपोरेट जगत की हस्तियों का कोई हस्तक्षेप न हो, क्योंकि पहले यही लोग दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट एसोसिएशन का इस्तेमाल अपनी प्रोफाइल मजबूत करने और अपना बिजनेस बढ़ाने में कर रहे थे।

अक्टूबर 2019 में सौरभ गांगुली बीसीसीआइ के ऐसे पहले अध्यक्ष बने जो पहले भारतीय टीम के कप्तान रह चुके थे। लेकिन उनके अध्यक्ष बनने के बाद से भारतीय क्रिकेट में लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं जिससे उसकी छवि दागदार हो रही है। बोर्ड के कुछ कदम तो अवैध कहे जा सकते हैं। इंग्लैंड में विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल और संयुक्त अरब अमीरात में खेले गए ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप में भी भारत के प्रदर्शन पर उंगलियां उठीं। हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में अपेक्षाकृत कमजोर टीम के खिलाफ टेस्ट सीरीज हारना भी ऐसी ही घटना कही जा सकती है। भारत ने न सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में पहली सीरीज जीतने का मौका गंवा दिया बल्कि इस शृंखला के दौरान टीम इंडिया में असंतोष भी उभर कर सामने आया। विराट कोहली का टेस्ट टीम की कप्तानी छोड़ना वरिष्ठ खिलाड़ियों और मैनेजमेंट के बीच बढ़ते असंतोष को ही दर्शाता है। इससे संभवतः इस बात का भी पता चलता है कि पेट्रोकेमिकल, दूरसंचार, मीडिया और खेल के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सक्रिय एक कॉरपोरेट हस्ती का भारतीय क्रिकेट में दबदबा किस तरह बढ़ रहा है।

कोहली

बतौर कप्तान कोहली

 

सीमित ओवरों के खेल में रोहित शर्मा को भारतीय टीम का कप्तान नियुक्त करना एक व्यावहारिक फैसला कहा जा सकता था, लेकिन जिस तरीके से उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई उससे पूरा घटनाक्रम संदिग्ध हो उठा। आखिरकार आइपीएल में सफलता और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तथा वर्ल्ड कप में सफलता, दोनों को समान पैमाने पर नहीं मापा जा सकता। दक्षिण अफ्रीका दौरे से ठीक पहले जिस तरह कोहली को एकदिवसीय टीम की कप्तानी से हटाया गया, उससे कई सवाल खड़े होते हैं। सफेद गेंद के फॉर्मेट में बतौर कप्तान फॉर्म और सफलता निश्चित रूप से कोहली को हटाने का एकमात्र पैमाना नहीं थे। इसके पीछे गहरी योजना थी और शायद टी-20 कप्तानी छोड़ने वाले कोहली से बीसीसीआइ ने एक तरह से बदला लिया था। टी-20 की कप्तानी छोड़कर कोहली ने एक तरह से बीसीसीआइ और चयनकर्ताओं से उन्हें हटाने का मौका छीन लिया था।

हाल के समय में देखें तो बीसीसीआइ के साथ कोहली के संबंध लगातार खराब हुए हैं। वैसे भी यह तथ्य है कि भारतीय क्रिकेट के महान खिलाड़ियों ने कभी एक दूसरे को पसंद नहीं किया है। भले ही वे एक ही टीम में रहे हों और मैदान पर साथ खेले हों। मैदान से बाहर उनके बीच काफी मतभेद रहे हैं। क्रिकेट के प्रशासकों ने इस बात का वर्षों नाजायज फायदा उठाया है। यही कारण है कि भारतीय क्रिकेट में कभी खिलाड़ियों की एसोसिएशन नहीं चल सकी। यहां तक कि महान खिलाड़ी और कप्तान कपिल देव भी अपनी बात कहने के लिए दूसरे क्रिकेटरों को एकजुट न कर सके। आज जब क्रिकेटरों को खेल से करोड़ों की आमदनी हो रही है, एक-एक इंच सफलता का मतलब धनवर्षा है, तो खिलाड़ियों के बीच मतभेद भी काफी बढ़ गए हैं।

बतौर कप्तान कोहली

कोई भी सुप्रीम कोर्ट खिलाड़ियों को एकजुट नहीं कर सकता, और जब कोहली तथा गांगुली जैसे सुपर सेलिब्रिटी आपस में टकराते हैं तो उसका नतीजा काफी भयावह होता है। इसलिए यह अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि कोहली के पर कतरने में गांगुली ने अहम भूमिका निभाई है- पहले राहुल द्रविड़ को मुख्य कोच के तौर पर लाकर और उसके बाद उन्हें एक दिवसीय टीम की कप्तानी से हटाकर। राहुल द्रविड़ कोई रवि शास्त्री नहीं, वे अनिल कुंबले टाइप ज्यादा हैं। उनके सोचने का अपना तरीका है। कोहली की अति आक्रामक नेतृत्व शैली शायद उन्हें न भाए। करिअर के इस मुकाम पर कोहली भी अपनी उस शैली को बदलना नहीं चाहेंगे जो इतने दिनों में उनकी पहचान बनी है। एक शांत, कम आक्रामक कप्तान, द्रविड़ के मतलब का होगा और उसे मैनेज करना भी उनके लिए आसान होगा।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के नए संविधान के अनुसार देखा जाए तो सौरव गांगुली का इसका अध्यक्ष बनना अवैध है। कोहली के करोड़ों प्रशंसक गांगुली को विलेन मानेंगे। कोहली के कप्तानी छोड़ने के बाद रोहित शर्मा टेस्ट टीम के स्वाभाविक कप्तान होने चाहिए थे, लेकिन गांगुली और बीसीसीआइ मैनेजमेंट शायद अभी इसके लिए तैयार नहीं था क्योंकि बीसीसीआइ की तरफ से हटाए जाने से पहले ही कोहली ने इस्तीफा देकर बेहद स्मार्ट तरीके से चाल चल दी।

टेस्ट टीम की कप्तानी से कोहली के इस्तीफा देने के फैसले का गांगुली ने यह कह कर स्वागत किया कि हर अच्छी चीज का अंत होता है और यह बहुत ही अच्छी चीज थी। लेकिन उनकी बातों में परपीड़ा का आनंद भी दिखता है। आखिरकार कोहली ने दक्षिण अफ्रीका दौरे से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में गांगुली का झूठ सामने लाने की हिम्मत दिखाई थी। पिछले सभी बीसीसीआइ अध्यक्षों और सचिवों की तरह गांगुली को भी यह उम्मीद नहीं थी कि कोहली उनके खिलाफ बोलेंगे। अब यह साबित करना तो मुश्किल है कि गांगुली और कोहली में कौन सच कह रहा है, लेकिन गांगुली अभी तक वह इच्छा और प्रशासनिक दक्षता नहीं दिखा पाए हैं जिसकी उम्मीद सुप्रीम कोर्ट के जजों ने उनसे की थी। जाहिर है कि क्रिकेट के दो सबसे महान कप्तानों के बीच भरोसे का अभाव पैदा हो गया है।

इस विवाद को किनारे रखते हुए अब एक नजर इस बात पर डालते हैं कि कोहली की कप्तानी में भारत ने कैसा प्रदर्शन किया। कोहली जनवरी 2015 में भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान बनाए गए थे। तब महेंद्र सिंह धोनी ने अचानक टेस्ट टीम से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी। उस समय ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मेलबर्न में बॉक्सिंग डे टेस्ट मैच चल रहा था जो 30 दिसंबर 2014 को खत्म हुआ।

उसके बाद से कोहली ने घरेलू मैदानों और विदेश में, दोनों जगहों पर भारतीय टीम का नेतृत्व बहुत ही अच्छे तरीके से किया। बतौर कप्तान उन्होंने 68 मैच खेले जिनमें से 40 में जीत दर्ज की। आंकड़ों के लिहाज से वे भारत के सबसे सफल टेस्ट कप्तान साबित हुए हैं। उनकी जीत का प्रतिशत 58.82 फीसदी है। यह टेस्ट क्रिकेट के इतिहास का चौथा सबसे सफल औसत है। उनसे ऊपर स्टीव वॉ (71.93 फीसदी), डॉन ब्रैडमैन (62.50 फीसदी) और रिकी पोंटिंग (62.34 फीसदी) हैं।

घरेलू मैदान पर भारत हमेशा मजबूत टीम रहा है। लेकिन कोहली के नेतृत्व में भारतीय टीम लगभग अपराजेय हो गई थी। 2015 से 2021 के दौरान यहां उसने 34 टेस्ट मैच खेले। इनमें से सिर्फ दो में उसे हार का सामना करना पड़ा। पहला 2017 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ और दूसरा 2021 में इंग्लैंड के खिलाफ। इन 34 टेस्ट मैच में से भारत को 26 में जीत हासिल हुई।

लेकिन कोहली की कप्तानी का कार्यकाल इस लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि विदेशी धरती पर भारतीय टीम का प्रदर्शन कैसा रहा। 2011 से 2014 के दरम्यान विदेशी मैदानों पर टेस्ट मैच में भारत का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा था। भारतीय टीम ने 24 मैचों में से सिर्फ दो में जीत दर्ज की थी। उसे 15 मैचों में हार का सामना करना पड़ा था। इनमें 2011-12 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 0-4 और 2011 में इंग्लैंड के खिलाफ 0-4 से मिली हार भी शामिल है।

इसकी तुलना में कोहली की कप्तानी के समय का रिकॉर्ड देखिए। जनवरी 2015 से जनवरी 2022 के बीच भारत ने विदेशी धरती पर 39 टेस्ट मैच खेले, जिनमें से 18 में जीत मिली और सिर्फ 14 में हार का सामना करना पड़ा। (इनमें से दो जीत ऑस्ट्रेलिया में 2020-21 में अजिंक्य रहाणे की कप्तानी में मिली)

साल 2018-19 में वे ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीतने वाले पहले एशियाई कप्तान बने। पिछले साल उन्होंने इंग्लैंड पर 2-1 से जीत दर्ज करने वाली भारतीय टीम का भी नेतृत्व किया। हालांकि वह सीरीज अधूरी रह गई थी। उनके नेतृत्व में भारतीय टीम पहली विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में भी पहुंची।

कोहली उन विरले क्रिकेटरों में भी हैं जिन्होंने कप्तानी के दायित्व के साथ-साथ अच्छा खेल भी दिखाया। बतौर कप्तान 54.80 के औसत से उन्होंने 5,864 रन बनाए। यह टेस्ट इतिहास में चौथा सर्वश्रेष्ठ है। उनसे ऊपर ग्रीम स्मिथ (8,659), एलन बॉर्डर (6,623) और रिकी पोंटिंग (6,542) हैं। 5000 से अधिक रन बनाने वाले कप्तानों में उनका औसत सबसे अधिक है। बतौर कप्तान उनका औसत (54.80) बिना कप्तानी के उनके रनों के औसत (41.13) से ज्यादा है। यह बताता है कि दबाव में बेहतर प्रदर्शन करने की उम्र में गजब की क्षमता है।

खेल से बड़ा कोई नहीं और भारतीय टीम जल्दी ही नेतृत्व के शून्य को भर देगी। भारत को श्रीलंका के खिलाफ फरवरी के अंत में घरेलू मैदान पर दो टेस्ट की सीरीज खेलनी है। लेकिन कोहली प्रकरण ने दिखा दिया है कि महान खिलाड़ी महान खेल प्रशासक भी होंगे, यह जरूरी नहीं। महान मिल्खा सिंह और परगट सिंह भी इसके उदाहरण हैं। जिस तरह कोहली प्रकरण में गांगुली का नाम जुड़ा है, वह कोलकाता के प्रिंस की कार्यशैली के लिए अच्छा नहीं है।

(अंकित कुमार सिंह के इनपुट के साथ)

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