लालू प्रसाद यादव का नाम रांची के होटवार जेल के आधिकारिक रिकॉर्ड में वैसे तो कैदी नंबर 3351 के रूप में दर्ज है, लेकिन चारा घोटाला में सजायाफ्ता होने के बावजूद लगता है, उनकी परदे के पीछे से सियासत करने की क्षमता कम नहीं हुई है। ताजा मामला बिहार में नवनिर्वाचित नीतीश कुमार सरकार गिराने के उनके कथित षड्यंत्र से संबंधित है। राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख पर आरोप है कि राज्य में नए विधानसभा के पहले सत्र के दौरान अध्यक्ष के चुनाव की पूर्व संध्या पर उन्होंने सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के विधायकों को मंत्री पद का प्रलोभन देकर ‘खरीदने’ की कोशिश की। उन पर आरोप है कि उन्होंने रांची स्थित राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान स्थित केली बंगला से, जहां वे इलाजरत हैं, भाजपा के पहली बार चुने गए विधायक ललन पासवान को विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव प्रक्रिया में शामिल नहीं होने को कहा, ‘ताकि नीतीश सरकार को गिराया जा सके।’
ललन भागलपुर जिले के पीरपैंती विधानसभा से पहली बार विधायक चुन कर आए हैं। उनका आरोप है कि 24 नवंबर कि शाम उनके पीए ने उन्हें बताया कि लालूजी का फोन आया है, तो उन्हें लगा कि शायद राजद के दिग्गज नेता उन्हें चुनाव जीतने पर मुबारकबाद देना चाहते हैं। लेकिन ललन कहते हैं, “लालूजी ने मुझसे कहा कि मैं कोविड संक्रमण के बहाने वोटिंग से दूर रहूं ताकि एनडीए सरकार गिराई जा सके। मैंने सोचा था कि एक बड़े नेता ने मेरे जैसे गरीब और दलित व्यक्ति के विधायक बनने पर बधाई देने के लिए फोन किया है, लेकिन मुझे अफसोस है कि कभी सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए जाने जाने वाले नेता ने मुझे खरीदने के कोशिश की।”
लालू का कथित प्रयास सफल नहीं हो पाया क्योंकि एनडीए के उम्मीदवार, भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा अगले दिन विधानसभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हो गए, लेकिन उनकी मुश्किलें जरूर बढ़ गई हैं। ललन ने पटना में निगरानी विभाग में भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून के तहत लालू के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया है। उन्हें उम्मीद है कि उन्हें न्याय जरूर मिलेगा। वे पूछते हैं, “ऐसी आम धारणा बन गई है कि किसी गरीब और दलित व्यक्ति को प्रलोभन देकर खरीदा जा सकता है। ऐसी धारणा कब बदलेगी?”
रांची के रिम्स में लालू यादव
उधर रांची में, लालू के जेल में रहते कथित रूप से किया गए फोन से उपजे विवाद के बाद रिम्स प्रशासन ने उन्हें केली बंगला से वापस अस्पताल के पेइंग वार्ड में स्थानांतरित कर दिया, लेकिन मामला एक पीआइएल के रूप में झारखंड हाइकोर्ट में पहुंच गया। चार दिसंबर को मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डॉ. रविरंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि लालू प्रसाद यादव को रिम्स के पेइंग वार्ड से केली बंगला में किस नियम के आधार पर शिफ्ट किया गया था और यह निर्णय किसके आदेश पर किया गया था? अदालत ने मीडिया में वायरल हुए ऑडियो टेप का जिक्र करते हुए यह भी पूछा कि अगर इसमें लालू की आवाज है तो उनके पास मोबाइल फोन कैसे पहुंचा? मामले की अगली सुनवाई अब 18 दिसंबर को होनी है। यह विवाद ऐसे समय सामने आया है जब अदालत में लालू की जमानत अर्जी विचाराधीन है।
दरअसल, इस ऑडियो टेप का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि लालू का कथित फोन ललन के पास उस समय आया जब वे वरिष्ठ भाजपा नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, जो हाल ही में राज्यसभा के लिए चुने गए, के पास बैठे हुए थे। यह महज संयोग था या कुछ और, लेकिन सुशील को जैसे ही इस बात का पता चला तो उन्होंने फौरन जिस नंबर से ललन को फोन आया था, उस पर फोन लगाया। सुशील का कहना है कि फोन इस बार स्वयं लालू ने उठाया और उन्होंने राजद प्रमुख को सरकार गिराने के हथकंडों से बचने के सलाह दी क्योंकि वे अपने मंसूबों में कभी कामयाब नहीं होंगे। सुशील ने ट्वीटर पर न सिर्फ लालू पर सरकार गिराने का प्रयास करने का आरोप लगाया बल्कि उस फोन नंबर को भी सार्वजानिक किया जिससे ललन को फोन आया था। अगले दिन, वह कथित ऑडियो टेप वायरल हो गया।
इस विवाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी लालू पर निशाना साधने का मौका दिया। उन्होंने कहा, “देख लीजिये, क्या हो रहा है। जेल से फोन किये जा रहे हैं, लेकिन यह मैं स्पष्ट कर दूं, एनडीए का एक भी विधायक पाला नहीं बदल रहा है।” राजद ने हालांकि लालू पर लगाये गए तमाम आरोपों को बेबुनियाद बताया है। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का कहना है कि सुशील मोदी के पास कुछ काम नहीं है, इसलिए वे लालू जी के विरुद्ध मिथ्या प्रचार कर रहे हैं। सुशील पर मानहानि का मुकदमा दायर करने की बात कहते हुए राजद के अन्य नेताओं का मानना है कि लालूजी कि आवाज के नकल हजारों मिमिक्री आर्टिस्ट करते है। वे जानना चाहते हैं कि “आखिर इस बात का क्या सबूत है कि फोन लालूजी ने ही किया?”
इधर एनडीए के नेता झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार पर आरोप लगते हैं कि रांची में लालू को जेल मैन्युअल के खिलाफ वीआइपी सुविधाएं मुहैया कराई हैं, क्योंकि राजद वहां सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। उनका यह भी कहना है कि राजद विधानसभा चुनाव में मिली हार पचा नहीं पा रहा है और किसी भी तरीके से सत्ता पाने की जुगत में लगा है।
दरअसल, चारा घोटाले मामले में सजा मिलने के बाद से ही लालू का ज्यादा समय रिम्स में इलाजरत बीता है। वे कई बीमारियों से ग्रस्त बताये जाते हैं। इस वर्ष उनके वार्ड के कुछ सुरक्षाकर्मियों के कोविड संक्रमित होने के बाद अस्पताल प्रशासन ने उन्हें रिम्स परिसर में ही स्थित केली बंगला में स्थानांतरित कर दिया था, जहां वे 82 दिन रहे। यह बंगला रिम्स के निदेशक के नाम से आवंटित था, लेकिन किसी स्थायी निदेशक की नियुक्ति न होने के कारण खाली पड़ा था। इस बंगले में लालू पर कई बार जेल मैन्युअल के उल्लंघन के अरोप लगे। उनके विरोधियों के अनुसार, वे वहां बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान राजद का टिकट चाहने वालों का दरबार लगाते थे। सुशील मोदी ने तो यहां तक आरोप लगाया कि नवरात्रि के दौरान उन्होंने वहां पशुओं की बलि भी करवाई थी।
बिहार की राजनीति में सुशील और लालू की सियासी दुश्मनी दशकों पुरानी है। जेपी आंदोलन के दौरान लालू पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष हुआ करते थे, जबकि सुशील महासचिव। इस कारण लालू अभी तक उन्हें मजाकिया लहजे में अपने ‘सेक्रेटरी’ कहते हैं। लेकिन नब्बे के दशक में सुशील द्वारा पटना हाइकोर्ट में चारा घोटाले में सीबीआइ जांच की अर्जी दाखिल करने के बाद उनकी सियासी रंजिश बढ़ गई। सुशील उसके बाद से लालू और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। 2017 में जब राजद नीतीश कुमार की गठबंधन सरकार में शामिल था, तब भी सुशील ने लगातार 44 प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर लालू और तेजस्वी प्रसाद यादव सहित अन्य बच्चों पर गंभीर आरोप लगाये। इन्हीं आरोपों के आधार पर नीतीश ने राजद से नाता तोड़ने का फैसला किया और एनडीए में चले गए। इसमें दो मत नहीं है कि सुशील ही बिहार में अरसे से लालू के राजनैतिक दुश्मन नंबर वन रहे हैं। अब उनका राज्यसभा का सदस्य होना राजद के लिए राहत की खबर हो सकती है, क्योंकि सुशील अब गृह राज्य छोड़ कर राष्ट्रीय राजनीति करने जा रहे हैं। खबर यह भी है कि उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री पद मिल सकता है। हालांकि इसके आसार कम लगते हैं कि उनकी लालू से सियासी अदावत अब खत्म होने को है। ताजा ऑडियो टेप मामले के उजागर होने बाद यह फिर स्पष्ट हो गया है कि बिहार में लालू या उनके परिवार के खिलाफ लड़ाई में भाजपा के पास सुशील मोदी से सटीक मोहरा कोई और नहीं है।