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बेकमान कांग्रेस

चुनाव के लिए भाजपा की तैयारियां तेज, पर कांग्रेस में घमासान
विरोध के सुरः हुड्डा पंजाब के अमरिंदर सिंह की तरह दबदबे के साथ कमान चाहते हैं

अक्टूबर में हरियाणा की 14वीं विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं। 90 में से 75 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने तो तैयरियां तेज कर दी हैं, लेकिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अंदरूनी संकट से ही नहीं उबर पा रही है। पार्टी कई धड़ों में बंटी हुई है और नेता अपने-अपने हलकों में परिवर्तन रैलियों के जरिए सत्ता परिवर्तन के सपने देख रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद प्रदेश कांग्रेस में नई जान फूंकने के तमाम प्रयास थम गए हैं। हरियाणा प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने भी नेताओं के साथ बैठकें बंद कर दी हैं। चुनाव से पहले पार्टी में टूट की आहट है। कई नेता पाला बदल कर भाजपा में भी जा सकते हैं। कांग्रेस महागठबंधन के समीकरण भी तलाश रही है।

पार्टी नेता जांच एजेंसियों के शिकंजे में भी फंसे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्लॉट आवंटन घोटाले के आरोपों में सीबीआइ और ईडी से घिरे हैं। चुनाव से पहले उन पर शिकंजा कसा तो कांगेस के लिए विकल्प तलाशना मुश्किल होगा। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के विधायक पुत्र कुलदीप बिश्नोई भी आयकर विभाग के छापों के बाद से दबाव में हैं। उनकी हरियाणा जनहित कांग्रेस ने 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ लड़ा था, लेकिन उसी साल विधानसभा चुनाव से पहले इसका कांग्रेस में विलय हो गया।

लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों सभी 10 सीटें गंवाने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर का पद पर बने रहना हुड्डा और उनके समर्थक विधायकों को मंजूर नहीं है। तंवर लगातार दो लोकसभा चुनाव भी हार चुके हैं। प्रदेश के नेताओं को उम्मीद थी कि राहुल गांधी विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को मजबूत करने का काम करेंगे। इस्तीफे के बाद राहुल ने एक मीटिंग तो की, मगर तंवर को हटाने के मसले पर हाथ खड़े कर दिए। हुड्डा और तंवर एक-दूसरे के खिलाफ बैठकें कर रहे हैं। हुड्डा तो पार्टी हाईकमान से भी सीधे टकराने को तैयार हैं। रोहतक में 18 अगस्त को होने वाली महापरिवर्तन रैली से पहले यदि हुड्डा को प्रदेश कांग्रेस की कमान नहीं मिली, तो उनके समर्थक उन पर बड़ा फैसला लेने का दबाव बना सकते हैं। हुड्डा पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह दबदबे के साथ पार्टी की कमान चाहते हैं, लेकिन राहुल गांधी की असहमति के चलते ऐसा नहीं हो सका। इसलिए अब हुड्डा ने खुलकर खेलना शुरू कर दिया है। उन्होंने चार अगस्त को रोहतक में कार्यकर्ता सम्मेलन किया था। इसके लिए सोशल मीडिया पर जारी पोस्टर में राहुल गांधी, सोनिया गांधी, पार्टी प्रभारी गुलाम नबी आजाद समेत किसी भी बड़े नेता की फोटो नहीं थी। केवल पार्टी का चिह्न, पंजे का निशान छपा हुआ था। चर्चा है कि हुड्डा अब अपने बूते पर प्रदेश की राजनीति करेंगे, उन्हें गांधी परिवार के सहारे की जरूरत नहीं है। हालांकि आउटलुक से बातचीत में हुड्डा ने अलग पार्टी के गठन से इनकार किया। उन्होंने कहा, “मेरा परिवार चार पीढ़ियों से कांग्रेस से जुड़ा है। अलग पार्टी बनाने का सवाल ही नहीं उठता। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का फैसला होते ही स्थिति साफ हो जाएगी। तब तक पार्टी के नेता अपने-अपने ढंग से विधानसभा चुनाव की तैयारी करेंगे।”

गठबंधन के सवाल पर हुड्डा ने कहा कि समान विचारधारा वाले दल एक हो सकते हैं। अशोक तंवर द्वारा गठित चुनाव योजना और प्रबंधन समिति की बैठकों पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय महासचिव गुलाम नबी आजाद समिति भंग कर चुके हैं। अगर फिर भी कोई इसके नाम पर बैठक करता है तो यह अनुशासनहीनता है। वहीं, तंवर ने रोहतक में हुड्डा की महापरिवर्तन रैली से पल्ला झाड़ते हुए आउटलुक से कहा कि उन्हें इसकी सूचना नहीं है। महागठबंधन पर भी पार्टी के प्लेटफॉर्म पर कोई चर्चा नहीं हुई है। कांग्रेस ने अपने स्तर पर विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी प्रदेश की सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने में सक्षम है।

हुड्डा ने रोहतक में चौधर लाने का नारा देकर दस साल तक प्रदेश में सरकार चलाई थी, अगले चुनाव में वह रोहतक की चौधर और गढ़ को बचाने का नारा दे सकते हैं। रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई का खेमा अपनी महत्वाकांक्षाओं को अलग ही परवान चढ़ा रहा है। कांग्रेस के सामने चुनाव की तैयारी से ज्यादा पार्टी में मचे घमासान को शांत करने की चुनौती होगी। अगर पार्टी अपने वरिष्ठ नेताओं का असंतोष खत्म न कर सकी, तो वह विपक्ष में बैठने लायक भी नहीं रह पाएगी।

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