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13 नवंबर 2023 · NOV 13 , 2023

पत्र संपादक के नाम

भारत भर से आई पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

संसाधन पर हक

30 अक्टूबर की आवरण कथा, ‘मंडल-कमंडल का नया दंगल’ बहुत सी बातें सामने रखती है। एक बार फिर जाति में समाज को बांटना सभी के लिए खतरनाक हो सकता है। जाति पूरी तरह खत्म हो जाए और एक समरस समाज बने यह यूटोपिया हो सकता है लेकिन कम से कम यह न हो कि जाति के नाम पर समाज के तबके बंटकर दुश्मन बन जाएं। आरक्षण उन लोगों के लिए जरूरी है जिनके पास साधन और संसाधन की कमी थी लेकिन उन लोगों को तो स्वेच्छा से आरक्षण छोड़ देना चाहिए, जिनकी एक या दो पीढ़ी ने इसका लाभ उठाया और अब वे हर तरह से सक्षम हैं। कुछ जातियां इतनी संपन्न हैं कि उन्हें आरक्षण की जरूरत ही नहीं है। फिर भी वे सड़कों पर उतर आते हैं, ट्रेन रोकते हैं और राजनीति का केंद्र बने रहते हैं। जाति उन्मूलन कठिन है लेकिन राजनीति से जाति को हटा कर बात करना कठिन नहीं है। कुछ नेताओं की राजनीति सिर्फ जाति पर ही चलती है, जो भी ऐसा करे जनता को उसे वोट देना बंद कर देना चाहिए। मतदाता यदि जाति के लालच में फंस कर वोट करना बंद कर देगा, तो नेता अपने आप ही लोगों को जातियों में बांटना बंद कर देंगे। बिहार में जातिवार गणना के आंकड़े सामने आने के बाद इसी का शोर मचा हुआ है। लेकिन आम नागरिक को चाहिए कि वे देश के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास को देखे और अपने मतदान से लड़ाई को निर्णायक मोड़ पर ले आए। पांच राज्यों के चुनाव और अगले साल लोकसभा चुनाव में मतदाता को यह करना ही चाहिए।

किसलय द्विवेदी | सागर, मध्य प्रदेश

 

किसका पलड़ा भारी

30 अक्टूबर की आवरण कथा, ‘मंडल-कमंडल का नया दंगल’ पढ़ी। 15वीं सदी में संत कबीर ने कहा था, ‘जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिए ज्ञान’, लेकिन आज आठ सौ साल बाद भी हम ज्ञान को बिसरा कर जाति ही पूछ रहे हैं। वैसे ये भी एक संयोग ही है कि जब 1990 में मंडल पार्ट-1 आया था, तब उसका सामना कमंडल यानी राम मंदिर आंदोलन से हुआ था और वीपी सिंह को उसका कोई राजनीतिक फायदा नहीं मिल पाया था। अब नीतीश मंडल पार्ट-2 लाने की कोशिश कर रहे हैं और इस बार भी सामना कमंडल यानी राम मंदिर के उद्घाटन से है। अब यह तो 2024 के चुनाव बताएंगे कि मंडल, कमंडल में से किसका पलड़ा भारी रहा और किसे फायदा मिला।

बृजेश माथुर | गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

 

बढ़ती खाई

आउटलुक की 30 अक्टूबर की आवरण कथा, ‘मंडल-कमंडल का नया दंगल’ कई बातों पर रोशनी डालती है। इतने वर्ष आरक्षण के बाद भी देश में बदलाव इसलिए नहीं आए क्योंकि सामर्थ्यवान लोगों ने उस पर कब्जा कर रखा है। ओबीसी सीटों का फायदा उन वर्गों को मिल रहा है जिनकी पिछली पीढ़ी ने आरक्षण के बल पर उच्च पद हासिल कर लिए हैं। उनके बच्चों को हर तरह की सुविधा मिलने के बाद वे आज भी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। वे लोग उच्च वर्ग की हर सुविधा का लाभ लेते हुए भी नौकरी और पढ़ाई में पिछड़ा बने हुए हैं। बिना आरक्षण के बच्चे अच्छे नंबर लाकर भी प्रवेश से वंचित रह जाते हैं वहीं आरक्षण वाले बच्चे मामूली नंबरों के साथ अच्छी जगह दाखिला पा लेते हैं। आरक्षण की वजह से यह खाई बढ़ती जा रही है। ऐसे में जातिवार जनगणना आग में घी का काम करेगी।

किरण गोस्वामी | दिल्ली

 

नुकसान के आसार नहीं

आउटलुक के 30 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित ‘पहली लड़ाई के मोर्चे’ आलेख में पांच राज्यों के चुनाव को मोदी सरकार के लिए अग्निपरीक्षा माना गया है। इनके नतीजे आगामी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में दिखाई पड़ेंगे। राज्यों की चुनाव तारीखें नजदीक आ गई हैं, ऐसे में कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर बिजली परियोजनाओं में अदाणी को लाभ पहुंचाने का आरोप मोदी सरकार पर लगा रहे हैं। विदेशी सूत्रों पर भरोसा रखने वाले राहुल ने इस बार लंदन फाइनांसियल टाइम्स का हवाला देकर आरोप लगाया है। वैसे भी राहुल के आरोपों पर अब मोदी सरकार संज्ञान नहीं लेती। विगत नौ साल में मोदी सरकार पर हेराफेरी का एक भी आरोप साबित नहीं हुआ है। चुनाव आते ही राहुल को लगता है कि वह कुछ भी बोलेंगे, तो लोग उन पर विश्वास कर लेंगे। मगर सच्चाई यह नहीं है। मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देश के हर जरूरतमंद को मिल रहा है। कांग्रेस ने पांच राज्यों के लिए अपने घोषणा पत्रों में रेवड़ियों की झड़ी लगा दी है। लोग अब रेवड़ी संस्कृति को देश के विकास में बाधा मानते हैं। कांग्रेस के अलावा टीएमसी, आम आदमी पार्टी आदि इंडिया के सहयोगी दल इन राज्यों में अपना-अपना उम्मीदवार खड़ा करेंगे। देख कर तो यही लग रहा है कि 2024 में इंडिया गठबंधन से भाजपा को कोई नुकसान नहीं होने वाला।

युगल किशोर राही | छपरा, बिहार

 

बधाई की पात्र सरकार

30 अक्टूबर के अंक में, ‘नक्सली गढ़ में पर्यटन’ सुखद लगा। नौकरी के सिलसिले में लंबा वक्त इन्हीं इलाकों में बिताना पड़ा था। तब के हालात याद कर दिल आज भी कांप उठता है। अगर उसी छत्तीसगढ़ में नक्सली इलाकों में दहशत को पर्यटन ने जीत लिया है, तो यह वाकई बड़ी उपलब्धि है। बस्तर बहुत ही खूबसूरत है और इस जगह को देखना स्वर्गिक आनंद की तरह है। लेकिन नक्सलियों ने पूरे इलाके को अपने कब्जे में लेकर आना ऐसा माहौल कर दिया था कि परींदा भी पर नहीं मार सकता था। आज यदि यह संवेदनशील क्षेत्र होने के बावजूद पर्यटन के नक्शे पर अपनी अलग पहचान बना रहा है, तो सरकार इसके लिए बधाई की पात्र है। पर्यटन से जो सुधार आएगा, वह लंबे समय रहेगा और सकारात्मक असर दिखाएगा। जब लोगों के पास पैसा आएगा, वे दुनिया के दूसरे हिस्से के लोगों से मिलेंगे, उनके संपर्क में आएंगे तो अपने आप नक्सली घटनाओं में कमी आएगी।

शेखर सिंह बघेल | झांसी, उत्तर प्रदेश

 

नई जानकारी

देश के बाकी हिस्सों के पर्यटन क्षेत्र के बारे में समय-समय पर जानकारी मिलती रहती है। पहली बार छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा। 30 अक्टूबर के अंक में, ‘नक्सली गढ़ में पर्यटन’ नए इलाके के बारे में था। घूमने के शौकीन हमेशा ही नई-नई जगहों के बारे में जानना चाहते हैं, ताकि वे वहां जा सकें। प्रकृति की देन जहां है यदि वहां आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी स्थितियां हो, तो प्राकृतिक सौंदर्य का वरदान अभिशाप साबित होता है। यह बहुत अच्छा है कि वहां के गोंड आदिवासी परिवारों को इससे कमाई होगी। होम स्टे उनके लिए आजीविका चलाने का भी बहुत अच्छा साधन है। इससे सैलानियों को भी करीब से और विश्वसनीयता के साथ स्थानीय संस्कृति को देखने और जानने का मौका मिलेगा। आउटलुक ने इस गांव के बारे में बता कर सैलानियों के लिए बहुत नेक काम किया है। इस लेख से ही पता चला कि यहां ज्वालामुखी लावे से निर्मित नेचुरल बाथ टब है। यह नई तरह की बात है, जिसके बारे में पता नहीं था। डायनासोर युग की वनस्पति फर्न भी यहां खूब मिलती है। जिसे देखना किसी भी पर्यटकों के लिए एकदम नया अनुभव हो सकता है। सरकार ने सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था कर पर्यटकों को किसी हमले की चिंता से भी मुक्त कर दिया है। शहर की भीड़-भाड़ से ऊब चुके लोगों को यदि जंगल में ऑर्गेनिक तरीके से उगाई गई सब्जियां, देशी दाल और कंदमूल से बने व्यंजन मिल जाएं, तो उन्हें और क्या चाहिए। इसके अलावा रोमांच की खोज में आने वाले नेशनल पार्क में ट्रेकिंग भी कर सकते हैं। सरकार इस कदम के लिए बधाई की पात्र है, जो यह बदलाव लाई।

डॉ. मनीषा साहा | भुवनेश्वर, ओडिशा

 

साहसिक कदम

आउटलुक के 16 अक्टूबर के आवरण पर देव आनंद का फोटो देख विस्मय हुआ। इस दौर में जब सफलता के लिए खबरों की दुनिया अलग रास्ते पर चल पड़ी है, आउटलुक एक कलाकार को इतना सम्मान दे रहा है। यह भाव ही सुख दे गया। प्रथम दृष्टि ने इसमें चार चांद लगा दिए। देव साहब पर संपादकीय मन प्रसन्न कर गया। यह साहस आउटलुक ही कर सकता था और उसने कर दिखाया भी। देव साहब का कर्म के प्रति समर्पित और फल के प्रति अनासक्त, निष्काम कर्मयोगी व्यक्तित्व का अद्भुत चित्रण संपादकीय में मिला। वाकई देव आनंद बाकी कलाकारों और फिल्मकारों से अलग रहे हैं। जीवन के अंत तक देव साहब का यह कहना कि उनकी सबसे अच्छी कृति का आना अभी शेष है, बायरन के आशावाद को प्रतिध्वनित करता है, गो ओल्ड अलॉन्ग विद मी, द बेस्ट इज येट टु बी।

संतोष तिवारी | भोपाल, मध्य प्रदेश

 

पुरस्कृत पत्र: पुराना राग

आउटलुक की 30 अक्टूबर की आवरण कथा, ‘मंडल-कमंडल का नया दंगल’ पढ़ कर पहला विचार यही आया कि यह नया कहां है। यह तो वही पुराना राग है, जो कुछ दिन शांत रहा और अब फिर बजने लगा है। भारत में मुद्दे जनता की सेवा या उनकी भलाई के आधार पर नहीं बल्कि वोट की राजनीति के हिसाब से तय होते हैं। जाति जनगणना ने एक बार फिर यह बात साबित कर दी है। आवरण कथा इसे बस नए तरीके से याद दिला रही है। एक बार फिर आंदोलन होगा, फिर छात्र अपनी जान गंवाएंगे और हाथ में कुछ बाकी नहीं रहेगा। अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा और दबंग तथा ताकतवर जातियों के लोग एक बार फिर आरक्षण की मलाई चट कर जाएंगे।

शारदा पांडे | बाराबंकी, उत्तर प्रदेश

 

आपकी यादों का शहर

आउटलुक पत्रिका के लोकप्रिय स्तंभ शहरनामा में अब आप भी अपने शहर, गांव या कस्बे की यादें अन्य पाठकों से साझा कर सकते हैं। ऐसा शहर जो आपके दिल के करीब हो, जहां की यादें आपको जीवंतता का एहसास देती हों। लिख भेजिए हमें लगभग 900 शब्दों में वहां की संस्कृति, इतिहास, खान-पान और उस शहर के पीछे की नाम की कहानी। या ऐसा कुछ जो उस शहर की खास पहचान हो, जो अब बस स्मृतियों में बाकी हो।

रचनाएं यूनिकोड में टाइप की हों और सब-हेड के साथ लिखी गई हों। सब्जेक्ट लाइन में शहरनामा लिखना न भूलिएगा। शब्द सीमा में शहर की संस्कृति पर ही लिखें। लेख के साथ अपना छोटा परिचय, फोन नंबर और फोटो जरूर भेजें।

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