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18 अगस्त 2025 · AUG 18 , 2025

पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

चाहत अनंत

4 अगस्त के अंक में, ‘सदाबहार जवानी की ख्वाहिशें’ पढ़ कर दुख हुआ। जवां दिखने की चाहत ने असली जवानी भी छीन ली है। जो है, उससे खुश रहने के बजाय अनगिनत सर्जरी, क्रीमों का बेहताशा इस्तेमाल, मुट्ठी भर दवाएं। आज की पीढ़ी के हिस्से यही सब आया है। नई पीढ़ी समझ ही नहीं रही कि नाक, दांत, होंठ सुधरवाने भर से वे थोड़े ठीक दिखते हैं, सुंदर नहीं। फिल्मी हस्तियों की देखा-देखी आम मध्यमवर्गीय परिवारों के लड़के-लड़कियां भी यही सब कर रहे हैं। यह पागलपन पता नहीं कहां जाकर रुकेगा।

संजय सोनी | जालंधर, पंजाब

 

बेहद खतरनाक कवायद

4 अगस्त के अंक में, ‘कागज दिखाओ कि देश के’ मतदाता सूची में घालमेल को दिखाता है। इस मुद्दे पर विपक्षी दल मात खा गए हैं। बिहार में चुनाव आ गए हैं और इस बार हर पार्टी के दांव ऊंचे हैं। बिहार में चुनाव वैसे भी बहुत अलग होते हैं। यहां जाति देख कर ही वोट दिए जाते हैं, जाति देखकर ही उम्मीदवार तय होता है। चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, हर तरह के दांव-पेच, राजनैतिक चालें शुरू हो गई हैं। लेकिन एक बात तो सभी को लग रही है कि इतने बड़े मुद्दों को विपक्ष को और जोर से उठाना चाहिए। यह केवल बिहार का मामला नहीं है कि मतदाता सूची में गड़बड़ी है। हर राज्य में ऐसा होता है, फिर बिहार को ही सबसे पहले सूची सुधारने के लिए क्यों चुना गया, वह भी ऐन चुनाव से पहले। यह काम चुनाव से साल भर पहले हो जाना चाहिए था। सब जानते हैं कि मतदाता सूची में फेरबदल करने पर हल्ला मचेगा ही। चुनाव आयोग का कहना है कि वे निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव चाहते हैं। लेकिन जिस ढंग से वे मतदाता सूची का काम कर रहे हैं, वह बहुत खतरनाक है। अभी तो चुनाव आयोग के पास सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि सूची में इतने लोगों के नाम हट जाने के बाद शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव निपट जाएं, क्योंकि सूची से नाम हटने वाले शांति से नहीं बैठेंगे।

सोनिया शर्मा | कोलकाता, पश्चिम बंगाल

 

राजनीति की खातिर

4 अगस्त के अंक में, ‘20 साल बाद संगम’ अच्छा लेख है। नई शिक्षा नीति लागू होते ही भाषा की राजनीति तेज हो गई है। जहां तक महाराष्ट्र की बात है, बालासाहेब ठाकरे की पूरी राजनीति मराठी मानुष के भरोसे ही चली है। पहले विरासत न सौंपे जाने से नाराज राज ठाकरे अब इसी मुद्दे पर 20 साल बाद अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे से मिल गए हैं। राज्य में प्राथमिक विद्यालयों में भाषा नीति के फैसले को महाराष्ट्र सरकार को वापस लेना पड़ा। हिंदी भाषा थोपे जाने की राजनीति में दोनों अपनी राजनीति चमका रहे हैं। नई शिक्षा नीति के त्रिभाषी फार्मूले ने दोनों भाइयों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है, यही इस नीति की सफलता है। महाराष्ट्र की राजनीति में फिर परिवर्तन के संकेत हैं। आगामी मुंबई नगर निगम चुनाव में भाषाई मुद्दा जरूर नया रंग लाएगा।

मीना धानिया | नई दिल्ली

 

नई ताकत

4 अगस्त के अंक में, ‘20 साल बाद संगम’ लेख से पता चलता है कि यह शिवसेना के लिए नई ताकत का मसला है। शिवसेना पिछले दो दशक में दो बार अलग धड़ों में टूटी है। पहले राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई। उसके बाद एकनाथ शिंदे ने अपना अलग गुट बना लिया। फड़नवीस सरकार ने तीसरी भाषा के मुद्दे पर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को जीवनदान दे दिया है। दोनों ही नेता इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या ये दोनों नेता इस अवसर को अपनी राजनैतिक जमीन मजबूत करने के लिए प्रयोग कर पाएंगे या इस मौके को भी गंवा देंगे। जल्द ही इसका जवाब आने वाले समय में बीएमसी चुनावों में पता चल जाएगा। मराठी अस्मिता के मुद्दे का दोनों कितना चुनावी लाभ ले पाते हैं, इसका इंतजार सभी को है। आशा करने हैं कि ये दोनों भाई मिलकर नई क्रांति ले आएं।

बाल गोविंद | नोएडा, उत्तर प्रदेश

 

भाई-भाई का मेल

4 अगस्त के अंक में, ‘20 साल बाद संगम’ पढ़ कर एक ही बात मन में आई कि जिस हिंदी ने भाई-भाई का मेल करा दिया, वह खुद पराई हो गई। महाराष्ट्र में स्कूली शिक्षा में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को शामिल करने के देवेन्द्र फड़नवीस सरकार के फैसले ने बीते दो दशकों से अलग-थलग रह कर अपनी राजनीतिक जमीन खोते जा रहे राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को संजीवनी दे दी। महाराष्ट्र में ठाकरे बंधु मराठी के नाम पर जिस प्रकार से क्षेत्रवाद की राजनीति कर गैर-हिंदी भाषी लोगों के खिलाफ जहर उगल रहे हैं, इसके चलते न केवल हिंदी भाषी लोगों से बल्कि अपने मराठी लोगों के दिलों से भी उतरते जा रहे हैं। इसकी परिणिति यह हो रही कि शिवसेना के शेर कहे जाने वाले ठाकरे बंधु राजनीतिक रूप से जिंदा रहने के लिए घास से भी समझौता करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली पाठ्यक्रम में हिंदी भाषा को तीसरी के रूप में लागू करने के निर्णय को जब महाराष्ट्र में लागू करने का आदेश जारी हुआ, तो अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे ठाकरे बंधुओं की आंखें चमक गई। दोनों भाई दो दशक के अपने आपसी अलगाव को भूलकर एक होकर जमकर हिंदी का विरोध करने लगे। महाराष्ट्र में ठाकरे बंधुओं के एक होने से सरकार को भी अपना फैसला वापस करना पड़ा।

अरविंद रावल | झाबुआ, मध्य प्रद्रेश

 

अड़ियल ट्रम्प

21 जुलाई के अंक में, ‘मैं मध्यस्थ’ अच्छी आवरण कथा है। दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान कहे जाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के माथे पर भी पसीना है। अमेरिका की तरफ से विभिन्न देशों पर टैरिफ लगाने के फैसले का शुरू से विरोध हो रहा है। ये बात और है कि कोई खुलकर तो कोई दबे स्वर में अमेरिकी टैरिफ नीति का विरोध कर रहा है। ब्राजील में हुए ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में इसकी कड़ी आलोचना की गई। उन्होंने इसे ब्रिक्स की अमेरिकी विरोधी नीति करार दे डाला। आखिर उन्हें ऐसा क्या खतरा महसूस हुआ कि ब्रिक्स देशों ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों तक को न केवल इनसे दूर रहने बल्कि टैरिफ लगाने तक की धमकियां दे डाली। इतना ही नहीं, उन्होंने एक दिन पहले ही जापान, कोरिया सहित चौदह देशों पर टैरिफ का बम फोड़ दिया। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स में भारत भी एक महत्वपूर्ण सदस्य है भारत ने पिछले एक दशक में ब्रिक्स समूह में अपनी आर्थिक और राजनैतिक ताकत को मजबूती से स्थापित किया है।

शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी | फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश

 

विजय गाथा

21 जुलाई के अंक में, ‘41 साल बाद ऊंची उड़ान’ प्रेरणादायी लेख है। भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने भारत का नाम रोशन किया है। वे अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन आइएसएस में दाखिल होने वाले पहले भारतीय बने हैं। कैप्टन शुक्ला अब कह सकते हैं कि उन्होंने वाकई आसमान जीता है। यह भारतीय वायु सेना के लिए भी अभूतपूर्व पल है, जब उनके यहां से कोई अंतरिक्ष में गया है। इस जीत की जितनी विजय गाथा गाई जाए कम है। इससे युवाओं और बच्चों को प्रेरणा मिलेगी। युवाओं को लगेगा कि यह भी एक नौकरी है, जिसके लिए पढ़ाई की जा सकती है। ऐसे पल ही कुछ खास करने का जज्बा पैदा करते हैं। यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं पूरे राष्ट्र की सफलता है। अंतरिक्ष में पहुंचना अभी इतना आसान नहीं है। इससे भारत की अंतरिक्ष योजनाओं को भी बल मिलेगा। अभी तक हम अपने दम पर अंतरिक्ष में नहीं जा पाए हैं। लेकिन इसके बाद भारत में इस क्षेत्र में संभावनाएं बढ़ने लगेंगी और इस पर भी ध्यान जाएगा। विज्ञान के क्षेत्र में अभी भारत को बहुत कुछ करना बाकी है। इससे भारत में होने वाले अंतरिक्ष प्रयोगों में तेजी आएगी। जल्द ही हम अपने दम पर अंतरिक्ष की कक्षा में मानव सहित यान भेजने की क्षमता विकसित कर लेंगे। चंद्रयान के बाद यह हमारी बड़ी दूसरी सफलता है। इससे नौजवानों में इसरो के प्रति भी आकर्षण बढ़ेगा।

सुधा जयसिंह | दिल्ली

 

नई आशा

21 जुलाई के अंक में, ‘जीत हो तो ऐसी’ अच्छा लगा। दक्षिण अफ्रीका टीम ने इस जीत के साथ आखिरकार अपने ऊपर से ‘चोकर’ का तमगा हटा ही लिया। दक्षिण अफ्रीका टीम हमेशा से मजबूत रही है। लेकिन यह उनकी बदकिस्मती ही रही कि वे लोग फाइनल या सेमीफाइनल से आगे नहीं बढ़ पाते थे। अब तक आइसीसी ट्रॉफी उठाने से वंचित रही टीम के लिए कप्तान टेम्बा बवुमा नई आशा लेकर आए। उन्होंने अपनी कप्तानी में दक्षिण अफ्रीका को टेस्ट चैंपियनशिप जिताई और टेस्ट का नया बादशाह बनाया। जिस तरह से उनकी कप्तानी में बिना कोई टेस्ट मैच हारे दक्षिण अफ्रीका आइसीसी टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंची और फाइनल में अपनी संघर्षपारी से उन्होंने जिस तरह से दक्षिण अफ्रीका को चैंपियन बनाया वह वास्तव में काबिले तारीफ है।

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

 

पुरस्कृत पत्र: जवानी के लिए दीवानगी

मनुष्य की फितरत को कोई नहीं समझ सकता। सब अनुभवी भी कहलाना चाहते हैं और बूढ़ा होना कोई नहीं चाहता। एक जमाना था, जब लोग चाहते थे कि बालों में सफेदी हो और वे रिटायर लाइफ का आनंद उठाएं। अब हर पल जवां दिखने की चाहत ने सब खराब कर दिया है। जिसे देखो, चेहरे को बदलवाने में लगा हुआ है। बिना यह सोचे कि इससे क्या हासिल होगा। सुंदर दिखने की चाहत सब में होती है। लेकिन इस चाहत को पागलपन की हद तक ले जाना मूर्खता से ज्यादा कुछ नहीं है। सोशल मीडिया में चमकते-दमकते चेहरे देख कर जो भी इस तरह की दवाएं या इंजेक्शन ले रहे हैं, वे अपने स्वास्थ्य से खेल रहे हैं। ये लोग नहीं जानते कि कब इन दवाओं के कारण ये लोग स्वास्थ को लेकर मुसीबत में आ जाएंगे। (‘सदाबहार जवानी की ख्वाहिशें’, 4 अगस्त)

प्रभा जैन|मुंबई, महाराष्ट्र

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