मध्य प्रदेश की राजनीति में टोटका है कि मालवा-निमाड़ (पश्चिमी मध्य प्रदेश) के मतदाता जिस पार्टी को पसंद करते हैं, केंद्र में उसी का झंडा ऊंचा होता है। मालवा-निमाड़ इलाके में आखिरी चरण में 19 मई को वोट डाले जाएंगे। 2014 के लोकसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ की सभी आठ सीटों पर परचम फहराने वाली भाजपा इस बार अपने गढ़ को बचाने में मशक्क्त करती दिख रही है। 2014 के बाद हुए उपचुनाव में इलाके की झाबुआ-रतलाम सीट से हाथ धो बैठी भाजपा पश्चिमी मध्य प्रदेश में आपसी कलह का शिकार दिख रही है। मिली-जुली संस्कृति वाले पश्चिमी मध्य प्रदेश में आदिवासी समाज की बहुलता है, तो व्यापारिक गतिविधियों के साथ कृषि उत्पादन में भी राज्य का महत्वपूर्ण स्थान है। इंदौर को मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है। पश्चिमी मध्य प्रदेश में आरएसएस की जड़ें काफी गहरी मानी जाती हैं, इस कारण यहां भाजपा मजबूत रही है। लेकिन इस बार उलट स्थिति दिखाई दे रही है। यहां की महत्वपूर्ण सीट है इंदौर। यहां के रहने वाले विनोद श्रीवास्तव का कहना है, “हम तो प्रत्याशी देखकर वोट देंगे। भाजपा के शंकर ललवानी की जगह कांग्रेस के पंकज सिंघवी में हमें ज्यादा संभावनाएं नजर आती हैं।” यहीं के धनंजय गोगटे का कहना है, “प्रत्याशी की छवि अहम होगी।” इस सीट पर भाजपा का लगातार आठ बार कब्जा रहा है। मौजूदा लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन यहां से चुनकर संसद जाती रही हैं। पार्टी ने इस बार इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे शंकर ललवानी को उतारा है। राजनीतिक विश्लेषक हेमंत पाल का कहना है, “ललवानी कभी शहर के जननेता नहीं रहे। पार्षद रहने के अलावा उन्होंने कभी जनता से जुड़कर राजनीति नहीं की।” यह भी नहीं कहा जा सकता कि वे शहर में सिंधी समाज के एकछत्र नेता हैं, उनकी उम्मीदवारी की घोषणा के साथ ही समाज में विरोध की आवाज भी उठी। इस क्षेत्र में सिंधियों के इतने वोट भी नहीं हैं कि वे नतीजों को पलट सकें। यह भी दावा नहीं किया जा सकता है कि पूरा सिंधी समाज उनके साथ है या समाज के सभी लोग भाजपा सोच वाले हैं। गुजराती समाज से जुड़े पंकज सिंघवी, जिन्हें कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है, ने पार्षद का चुनाव जीतकर राजनीति में कदम रखा था उन्हें विधानसभा, लोकसभा और महापौर का चुनाव लड़ने का अनुभव तो है लेकिन वे जीते नहीं। इस बार किस्मत साथ देती नजर आ रही है।
झाबुआ-रतलाम में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया का मुकाबला भाजपा के गुमानसिंह डामोर से है। दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद हुए उप-चुनाव में कांतिलाल भूरिया ने जीत कर कांग्रेस के सांसदों की संख्या बढ़ाई थी। झाबुआ से विधायक गुमानसिंह डामोर सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद भाजपा में आए और विधानसभा का चुनाव जीते। विधायक को लोकसभा चुनाव नहीं लड़ाने के सांगठनिक नियम के बावजूद डामोर को उम्मीदवार बनाने से साफ है कि भाजपा के पास कोई सशक्त उम्मीदवार नहीं है। झाबुआ के मुकेश राने के अनुसार मुकाबला कांटे का है।
धार सीट से पिछला चुनाव भाजपा की सवित्री ठाकुर जीती थीं, लेकिन इस बार पार्टी ने छतरसिंह दरबार को टिकट दिया है। वे पहले सांसद रह चुके हैं, पर अब उनका कोई जनाधार नहीं बचा है। वे न तो विक्रम वर्मा गुट के हैं न रंजना बघेल गुट के। उन्हें पार्टी ने क्या सोचकर टिकट दिया है, यह समझ से परे है। विधानसभा चुनाव में यहां की आठ में से छह सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। यहां छतरसिंह दरबार का मुकाबला कांग्रेस के दिनेश गिरेवाल से होगा। गिरेवाल को कमजोर उम्मीदवार माना जा रहा है। लेकिन विधानसभा चुनाव में वोटों के बड़े अंतर ने कांग्रेस की ताकत को बढ़ाया था। जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) के प्रत्याशी के मैदान में रहने से मुकाबला रोचक हो गया है। धार से गजेंद्र शर्मा का मानना है, “मतदाता नए चेहरे को पसंद कर रहे हैं।” खरगोन से भाजपा के लिए पिछली जीत दोहरा पाना आसान नहीं लग रहा है। भाजपा ने सुभाष पटेल का टिकट काटकर गजेंद्र पटेल को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने डॉ. गोविंद मुजाल्दा को खड़ा किया है। दोनों ही नए हैं लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन से पार्टी की आस जगी है, क्योंकि क्षेत्र की आठ में से सात विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।
देवास से कांग्रेस ने पद्मश्री से सम्मानित कबीर भजन गायक प्रहलादसिंह टिपानिया को प्रत्याशी बनाया है, जबकि इस सीट को बचाने के लिए भाजपा ने पूर्व जज महेंद्र सिंह सोलंकी को मैदान में उतारा है। राजनीति के क्षेत्र में दोनों ही नए हैं। लिहाजा, भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए सीट जीतना बड़ी चुनौती है। अभी यह सीट भाजपा के कब्जे में है लेकिन विधानसभा चुनाव में यहां की कुल आठ में से चार सीटें भाजपा हार चुकी है। खंडवा क्षेत्र में भाजपा के नंदकुमार चौहान और कांग्रेस के अरुण यादव के बीच मुकाबला है। 2014 में नंदकुमार अरुण यादव को हराकर संसद पहुंचे थे। दोनों ही अपनी-अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। कहा जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने के बाद चौहान ने जनता की नब्ज टटोलनी शुरू की। यादव के लिए उनके छोटे भाई और कमलनाथ के मंत्री सचिन यादव घोड़े पर बैठकर लोगों के बीच जा रहे हैं। वे लोगों से कर्जमाफी के नाम पर वोट मांग रहे हैं। अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित उज्जैन सीट भाजपा की परंपरागत सीट रही है और भाजपा समय-समय पर प्रत्याशी बदलती रही है। इस बार चिंतामणि मालवीय की जगह अनिल फिरोजिया को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने बाबूलाल मालवीय और बसपा ने सतीश परमार को मैदान में उतारा है। लेकिन मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही है। मंदसौर में किसान गोली कांड के लिए सुर्खियों में आए सांसद सुधीर गुप्ता को दोबारा उम्मीदवार बनाने से कार्यकर्ताओं और लोगों में नाराजगी है। लेकिन मोदी फैक्टर चला तो फिर यह मायने नहीं रखेगा। सुधीर गुप्ता का मुकाबला कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन से है। मीनाक्षी स्थानीय नहीं होने के बाद भी 2009 में लक्ष्मी नारायण पांडे को मात देकर संसद पहुंची थीं।
चबंल संभाग में भी भाजपा को कड़ी चुनौती मिली। यहां से सांसद रहे नरेंद्रसिंह तोमर इस बार मुरैना से चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि भाजपा ने मेयर विजय शेजवलकर को प्रत्याशी बनाया है। उनका मुकाबला कांग्रेस के अशोक सिंह से है। मुरैना में नरेंद्रसिंह तोमर ने प्रधानमंत्री आवास योजना और मोदी सरकार के काम के आधार पर वोट मांगे। तोमर का मुकाबला कांग्रेस के रामनिवास रावत से है। भिंड एससी सीट से भाजपा ने प्रत्याशी बदला। डॉ. भागीरथ प्रसाद की जगह संध्या राय को उम्मीदवार बनाया। गुना से कांग्रेस उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया की जीत तय मानी जा रही है। बसपा उम्मीदवार लोकेंद्र सिंह राजपूत के कांग्रेस में आने से माहौल एकतरफा हो गया। सिंधिया का मुकाबला बीजेपी के केपी यादव से है। विदिशा भाजपा की परंपरागत सीट है, यहां भाजपा के रमाकांत भार्गव का मुकाबला कांग्रेस के शैलेन्द्र पटेल से है। राज्य में 29 अप्रैल, 6 और 12 मई को 21 सीटों पर मतदान हो चुका है। मालवा-निमाड़ की आठ सीटों पर 19 मई को वोटिंग होनी है।
भोपाल रही सबसे हॉट सीट
भोपाल सीट काफी अहम हो गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के मुकाबले भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारकर मुकाबला संघर्षपूर्ण और संवेदनशील बना दिया है। साधु-संतों और कई बड़े नेताओं के जमावड़े और बयानों के कारण भोपाल सुर्खियों में रहा।