पंजाब में पूर्व अकाली-भाजपा सरकार के समय से चला आ रहा अवैध खनन का खेल आज भी जारी है। 13 महीने की कांग्रेस की कैप्टन सरकार भी इसे थाम नहीं पाई। दोनों ओर के नेताओं की शह पर पुलिस और माइनिंग अफसरों की मिलीभगत से स्याह रातों में माफियाओं द्वारा रेत की लूट जारी है। मार्च 2017 से 15 अप्रैल 2018 तक 4285 एफआइआर हुईं। रोजाना औसतन 11 मामले अवैध खनन के दर्ज हुए, लेकिन यह कागजी कार्रवाई ही साबित हुई। अवैध खनन पर लगाम कैसे लगे? इस पर रिपोर्ट तैयार करने वाले तीन कैबिनेट मंत्रियों की उप-समिति के मुखिया नवजोत सिंह सिद्धू अपनी ही सरकार पर यह सवाल उठा रहे हैं कि पूर्व सरकार के 10 साल से चली आ रही लूट को कैप्टन सरकार 13 महीने में कैसे रोक पाती? अपनी आंखों से खनन का खेल देखने वाले सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की प्रशासनिक अमले को दी गई मुस्तैदी की हिदायतें चंद दिन भी नहीं टिक पाईं। आखिर अवैध खनन का खेल सालाना 4000 करोड़ रुपये से ज्यादा का है, जबकि पूर्व अकाली-भाजपा सरकार के हाथ सिर्फ 42 करोड़ रुपये आते थे। खनन के खेल में सीएम के करीबी पूर्व कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत से इस्तीफा लेने वाली कांग्रेस सरकार भी कोई करिश्मा नहीं कर पाई।
2017-18 में खनन विभाग का दावा 1100 करोड़ रुपये जुटाने का था, लेकिन हाथ लगे सिर्फ 130 करोड़ रुपये। दो बार हुई खनन नीलामी में बोली लगाने वाले 110 ठेकेदारों में से 50 से सिर्फ 130 करोड़ रुपये आए। साल भर में बाजार में रेत के रेट दोगुने हुए। 15-18 रुपये प्रति फुट रेत का रेट 30 रुपये चल रहा है।
जिन नेताओं की शह पर रेत की लूट हो रही है, उन सबके नामों की सूची होने का दावा विधानसभा में करने वाले मुख्यमंत्री भी अपनी ही पार्टी के कई विधायकों को फंसता देख बाद में मुकर गए। अकाली नेताओं को सलाखों के पीछे पहुंचाने का दावा करने वाले नवजोत सिद्धू भी उन्हें अवैध खनन के खेल में क्लीनचिट देते हुए दावे से पलट गए। आउटलुक द्वारा माइनिंग और इंटेलिजेंस विभाग से जुटाई जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस के ही 11 विधायकों के नाम खनन के खेल में सामने आ रहे हैं। कहने को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस पॉलिसी लागू करते हुए अमरिंदर सिंह सरकार का हालिया मंत्रिमंडल विस्तार हुआ है। लेकिन शामिल किए गए नौ नए चेहरों में से दो पर खनन माफिया को सरंक्षण देने के आरोप रहे हैं।
“किसी को भी नहीं बक्शा जाएगा” वाले अवैध खनन पर लगाम के लिए रिपोर्ट में हुई देरी कैबिनेट मंत्री नवजोत सिद्धू के दावे की सार्थकता पर संदेह पैदा करती है। सफेदपोश हर बार की तरह साफगोई से बचा लिए जाएंगे।
पार्टी और सरकार की छवि अहम है। हालांकि, कांग्रेस के ही कई विधायकों ने मंत्री पद की दौड़ में एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए खनन के खेल में एक-दूसरे के नाम तक उछाले थे। हालिया मंत्रिमंडल विस्तार में मंत्री बने कैप्टन के जिन करीबी पर खनन माफिया को सरंक्षण देने के कई बार आरोप लगे, उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मुझे मंत्री पद से दूर रखने के लिए नाम उछालने वाले ही असल में खनन के खेल में लगे हैं।
अपना बचाव करते हुए कांग्रेस के ही एक अन्य विधायक ने साथी कांग्रेसी विधायक के बेटे का नाम उछालते हुए यह तक कहने में गुरेज नहीं किया कि “गलतफहमी हुई है, मेरा नाम और गोत्र उस विधायक के बेटे से मिलते-जुलते हैं। अवैध खनन में मैं नहीं विधायक का वह बेटा शामिल है।” माइनिंग और इंटेलीजेंस विभाग के रडार पर रहे एक और कांग्रेसी विधायक ने अपना बचाव करते हुए आउटलुक से बातचीत में एक और ऐसे विधायक का नाम लिया जो हाल में कैबिनेट मंत्री बना है।
13 महीने में अवैध खनन नहीं रुकेगा
पंजाब में अवैध खनन का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। इससे सरकारी खजाने को भी चूना लग रहा है। इन सब पर लगाम लगाने के लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की सब-कमेटी बनाई थी। पेश हैं नवजोत सिंह सिद्धू से इन मसलों पर बातचीत के मुख्य अंशः
-मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने अवैध माइनिंग का मामला पकड़ा था। रोक के लिए मुस्तैदी बढ़ाने के लिए जिला उपायुक्तों और पुलिस अफसरों के साथ तीन बैठकें कीं। अवैध खनन फिर भी जारी है?
नेता, पुलिस और माइनिंग माफिया के दशकों से चले आ रहे गठजोड़ को 13 महीने की सरकार भला कैसे पूरी तरह से तोड़ सकती है? अवैध खनन कम हुआ है। खत्म करने के लिए तेलंगाना की तर्ज पर माइनिंग कमीशन बनाया जा सकता है। रेत का कारोबार पूरी तरह से सरकार के हाथ में होने से माइनिंग माफिया का सफाया होगा।
-मुख्यमंत्री के पास कई नेताओं और उनके करीबियों की सूची बताई जाती है। ऐसे में आपकी जांच रिपोर्ट को कितना सही और उचित माना जाए?
पंजाब का हित सर्वोपरि है। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर, सब-कमेटी मांगे पंजाब की खैर। रिपोर्ट में कुछ देरी भले ही हुई है, लेकिन बगैर किसी दबाव के बनी इस रिपोर्ट में घालमेल की गुंजाइश नहीं है।
-सरकार बनने के 13 महीने तक कांग्रेस के नेताओं की शह पर अवैध माइनिंग होती रही। कैप्टन साहब को भी साल भर बाद सूझा, तब तक रेत माफिया ने नदियां और नहरें खोखली कर डालीं?
यह मानता हूं कि हमारी सरकार में भी रेत की लूट हुई। पोकलेन की मंजूरी नहीं होने पर भी दिन- रात चल रही हैं। फर्जी पर्चियां चलती रहीं, रेत माफिया बगैर बिल के रेत बिक्री से पांच फीसदी जीएसटी पर लूटते रहे। यह जानकर हैरानी होगी कि प्रदेश में रेत के 65 फीसदी खपतकार सरकारी ठेकेदार और विभागों के पास रेत खरीद के बिल ही नहीं हैं। नियम हैं कि वे सिर्फ वैध खानों से ही रेत-बजरी खरीदेंगे।
-पंजाब से माइनिंग माफिया का सफाया कैसे होगा? बजरी-रेत के रेट कैसे घटेंगे। कैसे सरकार का राजस्व बढ़ेगा?
कैबिनेट सब-कमेटी ने 13 राज्यों की माइनिंग पॉलिसी खंगालने के साथ तीन दिन तेलंगाना जाकर माइनिंग सिस्टम की स्टडी की। 2014 में नए राज्य के रूप में अस्तित्व में तेलंगाना की माइनिंग से सालाना इनकम सिर्फ 10 करोड़ रुपये थी। कॉरपोरेशन बनाकर माइनिंग अपने हाथ में रखी तो 2017-18 में तेलंगाना सरकार को 350 किलोमीटर खनन एरिया से 1200 करोड़ रुपये राजस्व मिला। पंजाब से कहीं छोटे पड़ोसी राज्य हरियाणा को ही माइनिंग से सालाना लगभग 900 करोड़ रुपये की कमाई होती है। पंजाब के सतलुज, ब्यास और रावी नदी के 1150 किलोमीटर खनन रकबे से पूर्व अकाली-भाजपा सरकार को सिर्फ 40-42 करोड़ रुपये मिलते थे। हमारी सरकार को 130 करोड़ रुपये मिले, जबकि सालाना रेत की लूट का खेल करीब 5000 करोड़ रुपये का है। नई माइनिंग पॉलिसी से माइनिंग माफिया पर नकेल लगेगी, तो दाम भी घटेंगे और लोगों को सस्ते में रेत उपलब्ध हो सकेगा। साथ ही, सरकारी खजाने में पैसा भी आएगा।