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सियासी ऊंट को मनपसंद करवट बैठाने की जुगत

भाजपा में बैठकों का सिलसिला जारी है। पार्टी भले ही इसे सामान्य प्रक्रिया कहे लेकिन यह आगामी रणनीति का हिस्सा है
दिल्‍ली के महाराष्ट्र सदन में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री

हमेशा की तरह भारतीय जनता पार्टी का दफ्तर गुलजार है, गहमागहमी अब भी है पर सुकून की सांसें हैं। तीन बड़ी बैठकों और संघ से भाजपा में आए पूर्णकालिकों के अभ्यास वर्ग के बाद तय कार्यों पर कवायद हो रही है। 23 अगस्त को सभी राज्यों के प्रमुखों की कोर बैठक, 27 अगस्त को सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और 31 अगस्त को भारतीय जनता पार्टी के सभी राज्यसभा सांसदों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने खुद शिरकत की। इन बैठकों को एक तरह मध्यावधि समीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी को भी फुर्सत में देखना नहीं चाहते हैं। वह चाहते हैं सभी उनकी तरह दौड़ते-भागते रहें। यह संभवत: पहली बार हुआ है कि भारतीय जनता पार्टी के सभी राज्यसभा सांसदों की अलग से बैठक बुलाई गई। मोदी के पास इस बैठक में भी अलग तरह की योजना थी। उन्होंने राज्यसभा सांसदों को जिम्मेदारी सौंपी है कि जहां भाजपा की सरकार नहीं है, उस राज्य में या हारे हुए संसदीय क्षेत्र को राज्यसभा सांसद गोद लें और उसे अपना कार्यक्षेत्र बनाएं। राज्यसभा सांसदों को कहा गया है कि अपनी सांसद निधि भी वे लोग वहीं खर्च करें। इससे लोगों और उनके बीच जुड़ाव बढ़ेगा और वे अपना खुद का संसदीय क्षेत्र बना पाएंगे।

मैराथन बैठकों के दौर खत्म होने का मतलब यह नहीं है कि नरेंद्र मोदी और उनके मंत्री आराम के मोड में आ जाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आने वाले दिनों के लिए अपने मंत्रियों को व्यस्त रखने का पूरा इंतजाम कर दिया है। पार्टी से जुड़े लोगों की तीन बड़ी बैठकों और भाजपा में आए संघ के पूर्णकालिकों के अभ्यास वर्ग के बाद इसी महीने यानी 23 से 25 सितंबर को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी कालीकट (अब कोझीकोड) में होने जा रही है। यह पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्मशताब्दी वर्ष भी है। दीनदयाल उपाध्याय पहली बार कालीकट में ही 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष बने थे। मोदी इस बैठक में भी वही बात दोहराएंगे जो इन तीनों बैठकों में प्रधानमंत्री ने दोहराई हैं और वह है जनता से संवाद स्थापित करने की। मोदी की इन बैठकों को सिर्फ आगामी चुनावी रणनीति कह कर नहीं समेटा जा सकता। उनकी मंशाएं इससे ज्यादा बड़ी हैं। भारतीय जनता पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने इस संवाददाता से बातचीत के दौरान बताया, ‘इन बैठकों को सिर्फ चुनाव से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता। पार्टी के 10 करोड़ सदस्य बन गए हैं और यह बड़ी जिम्मेदारी है। हम बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को जोड़ना चाहते हैं। इस स्तर के कार्यकर्ता विचारधारा से जुड़ें, यही कोशिश है। इसके लिए कार्ययोजना भी है। इसमें हम तीन दिन का एक प्रशिक्षण रखेंगे।’ महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के कहने से इतना तो स्पष्ट है कि आगे की रणनीति का दायरा बहुत बड़ा होगा। इसमें हर स्तर के व्यक्ति को जोड़ने और उसे अपने साथ बनाए रखने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इस पूरे मसले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी साथ लगातार बना हुआ है। ऐसे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पूर्णकालिक सदस्य हमेशा से भारतीय जनता पार्टी में काम करने आते रहे हैं। और साल भर में इन पूर्णकालिक भाजपा सहयोगियों का अञ्जयास वर्ग भी होना कोई नई बात नहीं है। हर वर्ष यह आयोजित होता है। लेकिन संघ भी अपनी पूरी मौजूदगी राजनीति में बनाए हुए है। संघ के पूर्णकालिक सदस्यों के साथ राज्यों के संगठन मंत्रियों के साथ बैठक बताती है कि संघ भी आगामी रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।

भारतीय जनता पार्टी के ही अन्य नेता बताते हैं, ‘सभी कामों और बैठकों को सिर्फ चुनाव तक जोड़ कर देखना ठीक नहीं। बैठकों का दायरा बड़ा होता है। इनमें सिर्फ चुनाव जीतने या दूसरी पार्टी को हराने की बातें नहीं की जातीं। इनमें कार्यों की समीक्षा भी एक महत्वपूर्ण बिंदु होता है।’ अगस्त की 27 तारीख को दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में जब सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्री जुटे थे तब भी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देश में नई तरह की राजनीति की शुरुआत की है। अब राजनीति भी ‘पॉलिटिक्स ऑफ परफॉरमेंस’ हो गई है। इस बैठक में साफ संदेश था कि सरकार की बातों को आम जनता तक ठीक से पहुंचना चाहिए और अंतिम व्यक्ति तक सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं को पहुंचना चाहिए। अंतिम जन तक पहुंचने के लिए लोक कल्याणकारी योजना का नाम अंत्योदय से बदल कर गरीब कल्याण योजना कर दिया गया है। ताकि अंत्योदय जैसे कठिन शब्द में दब कर कोई योजना दम न तोड़ दे। मोदी देश की नब्ज पर हाथ रखना जानते हैं। वह जानते हैं कि काम के साथ-साथ प्रचार की भी जरूरत होती है। पार्टी के महासचिव अरुण सिंह कहते हैं, ‘ऐसा नहीं है कि नाम बदला गया है। गरीबों के कल्याण की बात तो हमेशा से सरकार के लिए सर्वोपरि है। यह सोचना भी गलत है कि हर काम चुनावों को ध्यान में रख कर ही किया जाता है। यह सच है कि कई राज्यों में चुनाव हैं लेकिन हमेशा उन्हीं का खयाल रख कर ही काम नहीं हो रहा है।’ संभव है यह सच भी हो लेकिन मोदी अपनी कार्ययोजनाएं बहुत चाकचौबंद बनाते हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और राज्यसभा सांसद और पार्टी उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे की एक कमेटी बनाई है। यह कमेटी गरीब कल्याण एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद करेगी। गरीब कल्याण के लिए क्या काम होना चाहिए, इसका एजेंडा क्या रखा जाए, प्रक्रिया और नीति क्या रहे इसका ध्यान भी यह कमेटी रखेगी।

यह तो तय है कि मोदी की कार्ययोजना को पकड़ पाना इतना सहज नहीं होता। वह दूर की कौड़ी लाते हैं। आने वाले दिनों में पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात, गोआ और उत्तराखंड में चुनाव होने वाले हैं। सन 2018 में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होंगे। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लंबे समय से भाजपा की सरकार हैं। शिवराज सिंह पर डंपर घोटाले की परछाईं भले ही धूमिल हो गई हो लेकिन व्यावसायिक परीक्षा मंडल घोटाला रह-रहकर जी उठता है। इसलिए अगले चुनाव में मध्य प्रदेश चुनौती के रूप में आ सकता है। इन्हीं चुनौतियों से लड़ने के लिए भाजपा ने कमर कस ली है। कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, ‘कार्यकर्ता संगठन की बारीकी समझें यही जरूरी है। वैचारिक रूप से संगठन मजबूती से खड़ा हो यही प्रयास रहता है। हमने कार्यकर्ताओं को कहा है कि वे साल में छह कार्यक्रम करें जिसमें आंबेडकर जयंती, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे महापुरुषों की जयंती मनाना भी है। यह जो बैठकें हुई हैं यह सरकार के द्वारा किए गए कामों को लोगों तक पहुंचाने के लिए हुई हैं। बैठक में पहले स्वयं समझना फिर दूसरों को समझाना शामिल है।’ यह सच है कि बैठकों के लिए बैठकें कई बार बेनतीजा होती हैं। लेकिन मोदी जानते हैं कि नतीजे अपने पक्ष में करने के लिए संगठन और पार्टी का समन्वय कितना जरूरी है।

 

बैठकों में संगठन के बारे में विचार साझा किए जाते हैं। गरीबों के हित कैसे पूरे किए जाएं इस पर विचार बैठक का अहम हिस्सा होता है। यह समझना होगा कि बैठकें राजनीतिक इच्छापूर्ति के लिए नहीं होतीं।

अरुण सिंह

महासचिव, भाजपा

 

सरकार आम जनता को फायदा पहुंचाने वाली योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना चाहती है। बैठकों में रणनीति बनाने से ज्यादा लोगों की भलाई और सरकार के कामकाज पर समीक्षा होती है। 

कैलाश विजयवर्गीय

महासचिव, भाजपा

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