इस्तेमाल के बाद जूते फेंकना कोई नई बात नहीं है। लेकिन, ग्रीनसोल के 23 वर्षीय सीईओ तथा संस्थापक श्रियांस भंडारी इन्हीं फटे-पुराने जूतों को नए फुटवियर में ढाल देते हैं। इस नायाब उद्यम की बदौलत वे एक लाख से ज्यादा नंगे पावों को चप्पल पहना चुके हैं। पुराने जूतों को रिसाइकिल कर नए फुटवियर बनाने का आइडिया उन्हें 19 साल की उम्र में आया। उस वक्त वे मुंबई के जयहिंद कॉलेज में बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे थे।
देश-विदेश के कई मैराथन में भाग चुके श्रियांस ने बताया, “दिसंबर 2013 की बात है। एक दिन रनिंग की प्रैक्टिस करते वक्त मेरी नजर साथी धावक रमेश धामी पर पड़ी जो अपने फटे-पुराने जूते को दौड़ने लायक बना रहा था, जबकि मैं साल भर में करीब आधे दर्जन ऐसे जूते फेंक देता था जो किसी दूसरे के काम आ सकते थे। इसी दौरान मेरे दिमाग में पुराने जूतों को रिसाइकिल कर फुटवियर बनाने का आइडिया आया।”
तीन महीने की जद्दोजहद के बाद श्रियांस और धामी पुराने जूते से पहला चप्पल बनाने में कामयाब हुए थे। इसके बाद अपने इनोवेशन को लेकर वे आइआइटी, मुंबई और आंत्रप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (ईडीआइआइ) अहमदाबाद पहुंचे। दोनों जगहों से प्राइजमनी के तौर पर पांच लाख रुपये मिले। श्रियांस कहते हैं, “आइडिया का इतनी जल्दी एक्सेप्ट होना काफी इनकरेजिंग था।”
प्राइजमनी हाथ में आने के बाद श्रियांस ने अपने पिता से पांच लाख रुपये और लेकर मुंबई के ठक्कर बप्पा में पांच कर्मचारियों के साथ ‘ग्रीनसोल’ की शुरुआत की। जनवरी 2015 में 500 चप्पल बनाकर डोनेट करने का पहला ऑर्डर इनवेस्टमेंट मैनेजमेंट कंपनी जेएलएल से मिला।
टाटा, रॉल्स-रॉयस, इंडिया बुल्स, जस्ट डायल जैसी कंपनियों के लिए ग्रीनसोल अब तक चौदह राज्यों के करीब 400 सरकारी स्कूलों में एक लाख से ज्यादा बच्चों को चप्पल डोनेट कर चुकी है। डोनेट करने के लिए कंपनी हर महीने दस हजार चप्पल बनाती है। सालान दस लाख फुटवियर बनाने वाली राम फैशन एक्सपर्ट के साथ ग्रीनसोल का टाइअप है।
सितंबर 2016 से ग्रीनसोल फुटवियर ऑनलाइन बेच रही। सालभर में कंपनी करीब दस हजार फुटवियर ऑनलाइन बेचती है। कंपनी सालाना करीब डेढ़ करोड़ रुपये का कारोबार कर रही है। श्रियांस ने बताया हर साल बिजनेस दोगुना हो रहा है। अब इरादा अगले पांच साल में देश के सभी बड़े शहरों में खुद का रिटेल आउटलेट खोलने का है। श्रियांस उदयपुर में हेरिटेज गर्ल्स स्कूल भी चलाते हैं।