कई मायनों में केरल की बाढ़ विनाशकारी थी। यह अप्रत्याशित थी। कई लोगों की मौत हो गई, सार्वजनिक और निजी दोनों तरह की सपंत्ति को क्षति पहुंची, केरल की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ, रोजगार खत्म हो गए और ऐसे कई और नुकसान हुए। इस भयावह हालात को शब्दों में बयां करना मुमकिन नहीं है। आपदा प्रबंधन का कोई आदर्श मॉडल नहीं है और हर दफे प्रकृति हमें और बेहतर करने की सीख दे जाती है।
केरल त्रासदी के सबक आखिर क्या हैं? मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण सबक आम आदमी की क्षमताओं को असाधारण स्तर तक बढ़ाना है। राहत के मामले में मछुआरों, पेशेवरों, छात्रों, श्रमिकों, गृहणियों, यहां तक कि नेताओं के पारंपरिक ज्ञान की अनदेखी करके दुनिया को भरोसा दिलाया जाएगा कि इससे पहले ऐसा “संकल्प” कभी नहीं दिखा! सब आगे आए और जिस भी तरीके से वे कर सकते थे, उन्होंने मदद की। इससे परे देखें तो बड़ी खामियां नजर आती हैं। यदि इनमें से कुछ लोगों को भी आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण मिला होता तो नतीजे और बेहतर होते। किसी भी आपातकालीन परिस्थिति में जल्द से जल्द, सबसे बेहतर और प्रभावशाली तरीके से प्रतिक्रिया देने में समाज ही सक्षम होता है। अमूमन इस बात को नौकरशाही भूल जाती है। इसलिए, आपदा प्रबंधन की किसी भी योजना में सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण है।
दूसरी सीख जो मिलती है, वह यह है कि जवाब देने के प्रकृति के अपने तरीके हैं। यह बहस का विषय है कि क्या गाडगिल या कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्टों पर अमल करने से आपदा से बचाव होगा। यह भी सच है कि पर्यावरण के पैरोकार उसके विरोधी नहीं हो सकते! ‘निर्माण केंद्रित विकास’ के नाम पर पर्यावरण से छेड़छाड़ मूर्खता है, जिसकी कीमत चुकानी होगी। पहाड़ियों में निर्माण और अवैज्ञानिक तरीके अभूतपूर्व नुकसान का कारण बन सकते हैं। इसलिए, प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान कर ही विकास होना चाहिए। सीमेंट और स्टील आपकी सुरक्षा नहीं कर पाएंगे।
तीसरा मुद्दा बांधों में पानी के प्रबंधन से जुड़ा है। कुछ लोगों का कहना है कि बांधों से पानी गलत तरीके से छोड़ा गया था। सरकार इससे इनकार करती है और उसका कहना है कि कैचमेंट इलाके में बारिश का सही तरीके से अनुमान नहीं लगने के कारण वह खतरे को लेकर आगाह नहीं कर पाई। दोषारोपण का सिलसिला जारी है। हालांकि, कोई भी आसानी से समझ सकता है कि बारिश, नदियों की क्षमता, सैलाब को लेकर अपर्याप्त समझ, नदी किनारे रह रहे लोगों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाने की योजना और बांधों से पानी छोड़ने को लेकर कोई वैज्ञानिक समझ केरल में नहीं दिखाई पड़ी। यदि यह सब कुछ सही होता तो कुछ जिंदगियां बचाई जा सकती थीं। पहाड़ियों में दो डॉप्लर मौसम राडार, आधुनिक बारिश मापदंड, जलस्तर और नदियों में सैलाब के मानक उपकरणों से ये सब चीजें दुरुस्त की जा सकती हैं। साफ है कि आधी-अधूरी योजनाएं और कारगर तकनीक का नहीं होना नुकसान को बढ़ा सकता है।
केरल में सोशल मीडिया और मीडिया ने बेहद जिम्मेदारी दिखाई। बेहद संयम और जिम्मेदारी दिखाते हुए पत्रकारिता के नैतिक मानदंडों को नई ऊंचाई दी। सरकार भी बिना किसी हिचकिचाहट के मीडिया को जानकारी दे रही थी। मुख्यमंत्री खुद नियमित तौर पर संवाद कर रहे थे। आपदा की किसी भी स्थिति में दहशत पैदा किए बिना बचाव बेहद अहम है। गलतियों को लेकर बाद में बातचीत की जा सकती है। जिंदगी बचाना एकमात्र प्राथमिकता होती है। मीडिया ने मोटे तौर पर ऐसा ही किया। बचाव और राहत के दौरान प्रशासन के लिए सोशल मीडिया बड़ा मददगार बनकर उभरा। युवा आइटी पेशेवरों ने जिस तरह खुद आगे बढ़कर बचाव कार्यों का समन्वय किया वह शानदार सीख देता है। इसलिए चौथा सबक यह है कि मीडिया एक महत्वपूर्ण सहयोगी है और उसका अच्छे तरीके से इस्तेमाल करने की आवश्यकता है।
हर बार जब आपदा आती है, यह सवाल उठता है कि क्या यह महज संयोग है? मोटे तौर पर इसका जवाब नहीं है। एक साधारण छतरी बारिश नहीं रोकती, यह बारिश से बचाती है। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस तरह की छतरी का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए, जो खामियां हम पैदा करते हैं उसके कारण खतरे का असर बढ़ जाता है। असल में आपदा हमारे गलत फैसलों और उन अच्छे फैसलों का जिन पर हम अमल नहीं करते, सम्मिलित प्रभाव है।
लचर योजना, अनियमित और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले निर्माण, अवैज्ञानिक डिजाइन, योजनाओं और डिजाइनों में आपदा प्रबंधन की अनदेखी, अपर्याप्त प्रशिक्षण, जागरूकता की कमी और हमारी धारणा कि “यह भगवान का अभिशाप है”, सभी इसका हिस्सा हैं। इसलिए पाचवां सबक यह है कि सभी खतरे आपदा नहीं लाते। कमियों को दूर कर और लचीलापन बढ़ाकर इसका असर कम किया जा सकता है। पुनर्निर्माण और आपदा प्रबंधन को लेकर विस्तृत योजना बनाने जैसे कई और भी सबक सीखने की जरूरत है। पूरी तरह पड़ताल के बाद ये चीजें सामने आएंगी। जानकारियों और जमीनी अनुभवों से सीख लेकर केरल आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भविष्य के लिए तैयारी कर सकता है।
(लेखक केंद्र सरकार में सचिव रह चुके हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य रहे हैं और केरल के निवासी हैं)