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हवा-हवाई के अच्छे दिन

कम से कम हवाई-यात्रा के अच्छे दिन तो नए साल से आ ही जाएंगे, भले ही 15 लाख का कालाधन अभी तक बैंक में नहीं आ पाया हो। सरकार ने उड़ान योजना की दुंदुभि बजा दी है। आम आदमी को आधे दामों में उडऩे से अब कोई नहीं रोक सकता।
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अभी तक अमीरों को ही यह सुख प्राप्त था। समाजवाद की ओर यह अच्छा कदम है। डर यह है कि कहीं इसे फेल करने के लिए आम आदमी पार्टी अपनी फ्री-एयर सर्विस न प्रारंभ कर दे। पंजाब चुनाव को देखते हुए दिल्ली से चंडीगढ़ 'आप’ की मुफ्त सेवा शुरू हो सकती है। इससे पूरे नागरिक उड्डïयन का ही भट्ठïा बैठ सकता है।

मेरे छोटे शहर में हर्ष की लहर व्याप्त हो गई है। यहां तक कि गांव के लोगों की उम्‍मीद भी जग गई है कि आज नहीं तो कल उन्हें भी इसका आनंद मिलने लगेगा। अभी मेरे गांव से लोगों के पत्र आने लगे हैं, 'भैया कब से उड़ान शुरू हो रही है, शीघ्र खबर देना, अभी तक हमारे गांव में हवाई जहाज क्‍या ट्रेन तक के दर्शन नहीं हुए हैं। बस सर्विस से कई बार दो दिन में गांव पहुंच पाते हैं। रोडवेज के खटारा ही इनसे तो अच्छे थे। चूंकि तुम हवाई-यात्रा थोड़ी-बहुत कर चुके हो, अत: अभी से हमें क्‍या-क्‍या तैयारी करना है, चि_ïी से बता देना। तुम्‍हारी ताई जी भी तैयार हो गई हैं कि चलो, स्वर्ग न जा सके तो क्‍या, आकाश में तो उड़ कर स्वर्ग का मजा ले सकेंगे। क्‍या-क्‍या दिक्‍कतें  आ सकती हैं, यह भी बताना। पानी तो खैर इन दिनों गंगा जल के रूप में सरकार ही बेच रही है, वह पी लेंगे, लेकिन खाने का क्‍या होगा। कहीं धर्म-भ्रष्ट न हो जाए। सुना है, हवाई-जहाज में अंग्रेजी खाना मिलता है। क्‍या हम अपने घर की बनी दूध की पूरियां और अचार लेकर जहाज में बैठ सकते हैं। तुम्‍हारी ताई तो जब तीर्थ-यात्रा गई थीं तब रेल से उतर कर ही जल ग्रहण करती थीं। किंतु अब युग बदल रहा है। अत: अब वे जहाज में बैठकर गंगा जल पीने को तैयार हो गई हैं।’

अब मैं गांव वालों का हवा-हवाई का मीठा सपना तोडऩा नहीं चाहता। अच्छे दिन अभी आना बाकी हैं तो कम से कम हवा-हवाई तो प्रारंभ हो ही जाएं। अभी छोटे शहरों में हवाई-अड्डïे नहीं हवाई पट्टिïयां ही बनी हैं। वे भी ऊबड़-खाबड़ हो चुकी हैं। सरकारी प्याज की थैलियां उन पर पड़ी हुई हैं। हुआ यह कि सरकार के पास गोदाम नहीं हैं और प्याज बिक नहीं रहा। अत: सुखाने के लिए उसी पर डाल रखी थीं। इधर पट्टी पर केवल फ्लाइंग क्‍लब के टू-सीटर ही उतर रहे हैं। वे भी मेले-ठेले में 50-100 रुपये में लोगों को देव दर्शन करा देते हैं। पट्टी की बाउंड्री वॉल भी नहीं बनी है। पिछली बार फिसलकर फॉकर-फ्रेंडारीप का छोटा जहाज खेत में घुस गया था। अभी बहुत कुछ होना बाकी है। रात को प्लेन नहीं उड़ सकते, क्‍योंकि लाइट की व्यवस्था भी नहीं है। दिन में ही ट्रेन की तरह हरी झंडी दिखाकर प्लेन को उड़ाना पड़ता है।

बहरहाल मैं आश्वस्त हूं कि सरकार शीघ्र हवाई-अड्डïों को ठीक करा लेगी और आमजनों का हवा-हवाई सपना कालेधन की तरह डूब नहीं जाएगा।

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