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वोटर माता की भागीदारी

हाल ही में हुए बिहार चुनाव में महिला मतदाताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। महिलाओं का एक बड़ा तबका वोट देने पहुंचा और चुनावी नतीजों में सशक्‍त भागीदारी निभाई। राजनीति की इसी नई इबारत पर दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक अध्यापक प्रतिष्ठा सिंह ने वोटर माता की जय पुस्तक लिखी है।
पुस्तक विमोचन

इस पर चर्चा के अवसर पर वरिष्ठ समाजशास्त्री अभय कुमार दूबे और वरिष्ठ पत्रकार भूपेंद्र चौबे ने हिस्सा लिया। यह पुस्तक में बिहार की राजनीति में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करने का सफल प्रयास किया गया है। प्रतिष्ठा सिंह ने पुस्तक में महिला मतदाताओं की सशक्‍त भागीदारी से जनमत निर्माण की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है। चर्चा में प्रतिष्ठा ने कहा, 'मैंने यह समझाने का प्रयास किया है कि घर में बढिय़ा तरीके से परिवार का मोर्चा संभालने वाली महिला में देश और राज्य की राजनीति को प्रभावित करने की भी ताकत है और वह इसे प्रभावित भी कर रही है।’ पुस्तक में बिहार की महिलाओं की सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता की दिलचस्प दास्तान बयां की गई है। वोटर माता की जय किताब में बिहार के उस महिला समाज की झलक मिलती है जिसे अब तक परदे के पीछे ही रखा गया है।

 

रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार

कहानीकार विवेक मिश्र को प्रतिष्ठित रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार से सम्‍मानित किया गया। विवेक मिश्र को सम्‍मानित करते हुए विश्वनाथ त्रिपाठी, विष्णुचंद्र शर्मा, संजीव और मैत्रेयी पुष्पा ने उन्हें संभावनाशील रचनाकार बताया। वरिष्ठ सात्यिकार विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा, 'रमाकांत जी ने कथानक रूढिय़ां नहीं बनाईं।’ वरिष्ठ कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने कहा, 'कहानी को कई बार पढऩा चाहिए। मेरे लिए इस कहानी में बहुत कुछ अपना-सा था। उसमें स्त्रियों का मुखर मौन है।’ हंस पत्रिका के संपादक संजय सहाय का कहना था कि विवेक की भाषा और स्वत: संपादन का तरीका बहुत अच्छा है। इस कहानी का चयन वरिष्ठ रंगकर्मी दिनेश खन्ना ने किया था। उन्होंने कहा कि यह कहानी ऐसे वातावरण में ले जाकर छोड़ देती है जहां से पाठक को लौटने का रास्ता खुद खोजना पड़ता है। कलात्मकता लिए यह कहानी जीवन के अध्याय खोलती है। आलोचक सुशील सिद्धार्थ का कहना था कि लघुता में प्रभुता खोज लेने वाला लेखक बड़ा होता है। वरिष्ठ कथाकार संजीव ने भी अपने विचार रखे।

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