भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद इस बात की आशंका तेज हो गई थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों को मलाईदार या फिर प्रतिष्ठित पदों पर बैठाया जाएगा। हुआ भी यही, कुछ जगहों पर केवल उन लोगों को महत्व मिला जो भगवा विचारधारा से प्रेरित थे। कुछ महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों के बारे में इस बात की गफलत बनी हुई है कि वे संघ से सीधे तौरपर जुड़े रहे हैं या भाजपा की छात्र इकाई में थे या फिर प्रसिद्घ जेपी आंदोलन में उन्होंने महती भूमिका निभाई थी। कुछ पदों पर बैठे व्यक्तितयों के पास उस संस्थान से संबंधित कोई पृष्ठभूमि नहीं है। इंदिरा गांधी कला केंद्र, नेशनल बुक ट्रस्ट, प्रसार भारती, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड में हुई नियुक्तितयों को लेकर तो कुछ इसी तरह के सवाल उठ रहे हैं। साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी और संगीत नाटक अकादमी में कुछ-कुछ नियुक्तितयां हुईं तो कुछ और अभी होनी हैं। इससे इस बात की आशंका प्रबल हो गई है कि जिन उद्देश्यों के लिए इन संस्थाओं का गठन किया गया था वे उद्देश्य तो पूरे नहीं हो रहे लेकिन संस्थान के नाम पर आबंटित होने वाली धनराशि का दुरुपयोग धडï़ल्ले से यात्राओं और अन्य सुविधाओं पर खर्च में हो रहा है। सांस्कृतिक स्वायत्तता के नाम पर चल रहे इन संस्थानों में कुछ न कुछ तो गड़बड़ जरूर है क्योंकि पदासीन होने के लिए योग्यता नहीं बल्कि जुगाड़ मायने रखता है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र इन दिनों सांस्कृतिक से ज्यादा राजनैतिक अखाड़े के लिए जाना जा रहा है। हालांकि यहां बहुत काम हो रहे हैं लेकिन इसके चेयरमैन रामबहादुर राय की नियुक्तित पर सवाल भी उठ रहे हैं। कला को लेकर उनकी कोई पृष्ठभूमि न होने से उनकी नियुक्तित पर प्रश्नचिह्नï लगता रहता है। रामबहादुर राय की खासियत यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर से लेकर देवीलाल, ओमप्रकाश चौटाला जैसे नेताओं से दोस्ताना रखकर वह संघ और भाजपा परिवार के लिए सूचनाएं एवं राजनीतिक जोड़-तोड़ में सहायता करते रहे। राय ने 'मंजिल से ज्यादा सफर’ पुस्तक में विश्वनाथ प्रताप सिंह का सफरनामा भी लिखा है। जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन के लिए जब समिति बनाई थी उसमें राय भी एक सदस्य के तौर पर जुड़े थे। राय को करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि दैनिक जनसत्ता में जब प्रभाष जोशी संपादक हुआ करते थे तब वे गोविंदाचार्य, विहिप और वी.पी. सिंह के तार जोडऩे में सहयोग देते रहे। इसलिए राय को दक्षिणपंथी समझकर महत्व दिया जाता रहा। लेकिन जब इंदिरा गांधी कला केंद्र में राय की नियुक्तित हुई तो सोशल मीडिया पर खूब सवाल जवाब भी हुए कि राय को यह पद कैसे मिला। वहीं राय के समर्थकों ने भी इसको लेकर तरह-तरह के तर्क दिए। कुछ लोग यह भी तर्क देते हैं कि राय संघ के प्रचारक रहे हैं लेकिन जानकार बताते हैं कि उन्होंने कभी संघ के प्रचारक की भूमिका नहीं निभाई। वह वाराणसी में विद्यार्थी परिषद से जरूर जुड़े थे।
लेकिन कला केंद्र में नियुक्तित को लेकर सवाल जरूर उठ रहे हैं। जनसत्ता, नवभारत टाइम्स या हिंदुस्तान समाचार में संवाददाता रहते हुए राय ने कभी कला, संगीत, नृत्य की समीक्षा भी नहीं लिखी। इतना ही नहीं आउटलुक पत्रिका को दिए गए साक्षात्कार को लेकर भी नकारते रहे कि उन्होंने कोई साक्षात्कार नहीं दिया। जबकि आउटलुक के पास प्रमाण हैं कि उन्होंने बात की। राय को लेकर कई तरह के सवाल हैं। इस तरह के सवाल के जवाब में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी कहते हैं, 'यह सवाल बेमानी है। कला की पृष्ठभूमि और कला की समझ दो अलग-अलग बातें हैं। उन्होंने जो काम शुरू किए हैं वह उल्लेखनीय हैं। कला केंद्र में कला से संबंधित काम हो रहे हैं और इसी पर चर्चा होनी चाहिए।’ आउटलुक से बातचीत में उन्होंने बताया कि संस्कृति संवाद एक नया प्रयोग था, जिसके पहले संवाद में नामवर सिंह को बुलाया गया था। आमजन में संदेश गया कि संस्कृति-विमर्श वाद-विचारधारा से परे है। इसी संवाद की अगली कड़ी में रामाजुनाचार्य पर बात हुई।
इस साल से आईजीएनसीए ने भारत विद्या प्रयोजन नाम से शृंखला शुरू की है। इसमें इंडोलॉजी (पश्चिमी दृष्टि से भारत का अध्ययन) का स्वरूप बदल कर भारतीय दृष्टि से भारत को देखने-समझने का प्रयास किया जा रहा है। भारतीय दर्शन में इतने विद्वान हैं लेकिन उनका पक्ष देखने-सुनने को नहीं मिलता। केंद्र राजीव मल्होत्रा, नागा स्वामी, शतावधानी गणेश जैसे विद्वानों को लाकर भारत के परिप्रेक्ष्य में भारत को देखने पर जागृति लाएगा। इस साल अभिनव गुप्त का जन्म सहस्त्राब्दी वर्ष है। आईजीएनसीए इस साल अभिनव गुप्त के काम पर दो सेमिनार आयोजित करेगा। उनके दर्शन, नाट्यशास्त्र पर लिखी टीका को लोगों तक पहुंचाया जाएगा। देश भर के कुछ चुनिंदा शहरों में अभिनव गुप्त के काम पर व्याख्यानमालाएं आयोजित होंगी। इसके अलावा दुर्लभ पांडुलिपियों को खोजने का काम भी जारी है।
इंदिरा गांधी कला केंद्र की तरह ही नेशनल बुक ट्रस्ट में अध्यक्ष बने बलदेव भाई शर्मा की नियुक्तित भी विवादों में रही। शर्मा संघ से जुड़े रहे लेकिन एक अखबार का संपादक रहते हुए उन्होंने अपना महत्व संघ के नेताओं को समझाया। अखबार का संपादक रहते हुए नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष बने। अध्यक्ष बनने के बाद भी शर्मा का लंबे समय तक अखबार में आने-जाने का सिलसिला जारी रहा ताकि अखबार के मालिकों को इस बात का भरोसा हो सके कि आने वाले दिनों में वे संस्थान के लिए उपयोगी हो सकते हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट का अध्यक्ष बनने से पहले शर्मा लोकसभा टीवी में भी प्रमुख पद पाने का जुगाड़ करते रहे जहां उन्हें सफलता नहीं मिली। आज ट्रस्ट के संसाधनों का बखूबी दुरुपयोग कर शर्मा अपना कद ऊंचा करने में लगे हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक जबसे शर्मा ने पद संभाला है वहां कामकाज की बजाय उनके रहन-सहन और ठाट-बाट में ट्रस्ट के संसाधनों का उपयोग हो रहा है। अध्यक्ष के रूप में वह लगातार देश-विदेश की यात्राएं करते हैं। ये पद अवैतनिक है, लेकिन भîो और सुविधाएं पर्याप्त हैं। ट्रस्ट हर साल विश्व पुस्तक मेले का आयोजन करने के साथ-साथ देश भर में पुस्तकों के प्रति लोगों की रुचि जगाती है जिसमें शर्मा के करीबियों को ज्यादा से ज्यादा मौका दिया जा रहा है। जिहोंने पहले कभी लेखन नहीं किया उनको लेखक बनाकर उनकी पुस्तकें छापी जा रही हैं। महावीर प्रसाद द्विवेदी, दीनदयाल उपाध्याय, गांधी, लोहिया और दीनदयाल के विचारों को लेकर कई पुस्तकों का प्रस्ताव है। इसमें कुछ प्रकाशित हो चुकी हैं तो कुछ की योजना है। इसी तरह वासुदेव शरण अग्रवाल की पुस्तक भारत की मौलिक एकता का भी प्रकाशन हो रहा है। संगोष्ठी के नाम पर संघ विचार वाले लोगों की सूची दी जाती है। इसमें भी कई नामों को लेकर विवाद रहा है। ट्रस्ट की निदेशक डॉ. रीता चौधरी और बलदेव शर्मा के बीच लगातार मतभेद और टकराव की स्थिति है। रीता चौधरी स्वयं प्रतिष्ठित लेखिका रही हैं। उन्हें राजनीतिक जोड़-तोड़ कतई पसंद नहीं है। फिर भी ट्रस्ट के कामकाज पर उनसे समय मांगे जाने पर भी उन्होंने मौन रखना ही ठीक समझा। आगामी जनवरी में अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की 60वीं वर्षगांठ को समर्पित है। मतलब 60 वर्षों की उपलद्ब्रिधयों का श्रेय बलदेव शर्मा को मिलने का इंतजाम जोरों पर है। संघ और सरकार का वरदहस्त होने पर निष्ठावान स्वयंसेवक की जयकार पर कौन आपîिा कर सकेगा।
संघ की सोहबत का असर दिखाकर इंदिरा गांधी कला केंद्र, नेशनल बुक ट्रस्ट में ही नहीं बल्कि प्रसार भारती, दूरदर्शन, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड सहित तमाम संस्थानों में कुछ ऐसी नियुक्तितयां हो गई हैं जिनको लेकर सवाल उठ रहे हैं। यह सवाल कोई और नहीं बल्कि लंबे समय से संघ से जुड़े लोग ही कर रहे हैं। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में चंद्रप्रकाश द्विवेदी की सक्रियता को देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि वे अगले निदेशक हो सकते हैं। द्विवेदी अभी फिल्म प्रमाणन बोर्ड में सदस्य हैं। वहीं साहित्य अकादमी के अगले अध्यक्ष के तौर पर नरेन्द्र कोहली के नाम की चर्चा चल रही है।